ओडिशाः खट्टी-मीठी, रसीले व्यंजन अनूठे

मिठाइयों के लिए मशहूर ओडिशा में चाट-पकौड़े से लेकर अचार और पापड़ के भी लाजवाब ठिकाने, जिन्हें अलहदा जायका खास बना देता है, चार प्रमुख शहरों के स्वाद का एक जायजा

लाजवाब मिठास
लाजवाब मिठास

मंदिरों के शहर के नाम से मशहूर भुवनेश्वर में खानपान की सबसे लोकप्रिय चीज न्न्या है? यहां किसी व्यक्ति से पूछ लें, वह तपाक से कहेगा—लिंगराज लस्सी. शहीद नगर स्थित इस लस्सी की दुकान का नाम लोग सबसे ज्यादा सुझाते हैं. इस लस्सी को सामान्य तरीके से तैयार किया गया है. कांच के गिलास के निचले हिस्से में गहरे भूरे रंग की रबड़ी की एक परत बिछा दी जाती है. उस पर दही चीनी और अनानास का अर्क डालकर तैयार की गई लस्सी डाली जाती है. उसके ऊपर रबड़ी की एक और परत बिछाई जाती है. अंत में उसे नारियल चूरे और चेरी से सजा दिया जाता है.

मैंने देश में कई जगहों पर लस्सी पी है, लेकिन इतने बड़े पैमाने पर इस पेय की बिक्री पहले कभी नहीं देखी. एक तरफ रबड़ी की बड़ी कड़ाही और दूसरी तरफ लस्सी के सैकड़ों गिलास रखे होते हैं. मजेदार बात यह कि भुवनेश्वर में बोर्नविटा लस्सी भी मिलती है. हमने यह लस्सी मेफेयर होटल, जयदेव विहार के पास अर्जुन टी स्टॉल पर पी. दरअसल, दही, चीनी, और कसे हुए नारियल से तैयार इस लस्सी की ऊपरी परत को बोर्नविटा से सजाया गया था.

लिंगराज लस्सी की दुकान के करीब ही चाट, गोलगप्पे समेत स्ट्रीट फूड बेचने वाली कई गाडिय़ां खड़ी रहती हैं. यहां की चाट उत्तर भारतीय शैली की चाट से थोड़ी अलग होती है. इसमें दही का इस्तेमाल नहीं होता.

मुझे ओडिशा की खट्टी परंपरा बहुत पसंद आई. ओडिशा में चाय के अड्डों को खट्टी कहा जाता है. भुवनेश्वर में मेरी सबसे पसंदीदा खट्टी थी शहीद नगर का खोनाह टी स्टॉल.

भुवनेश्वर में एक सुबह हमने राम मंदिर के पास स्थित भोजनालय श्रीराम टिफिन सेंटर पर ओडिशा के लोकप्रिय और पारंपरिक नाश्ते पूरी दालमा के साथ शुरुआत की. गेहूं के आटे से बनी यहां की पूरियां आकार में बड़ी होती हैं. एक अत्यधिक पोषक व्यंजन दालमा मसूर की दाल और बहुत सारी सब्जियों से तैयार होता है. हरा पपीता, बैंगन, कद्दू जैसी सब्जियों को मसूर के साथ उबाला जाता है. अंत में दालमा में पंचफोरन का छौंक लगाया जाता है.

हमारा अगला पड़ाव था गंगानगर के यूनिट 6 में रबी मौसा की बड़ा की दुकान. यहां के बड़े एकदम अलहदा थे. बड़े की लेई में कटा हुआ प्याज भी मिला था. उसे घुघुनी के साथ परोसा जाता था. मुझे जो चीज यहां सबसे पसंद आई वह थी छेना पोड़ा. छेना पोड़ा का शाब्दिक अर्थ हुआ जला हुआ घरेलू छेना. यहां का एक और लोकप्रिय नाश्ता है चकुली, जिसे विभिन्न संयोजनों के साथ परोसा जाता है.

भुवनेश्वर में खानपान की मेरी यात्रा का मुख्य आकर्षण रहा ओडिशा होटल का पारंपरिक ओडिया भोजन. हम इसकी चंद्रशेखरपुर की शाखा में गए और मैंने पखला, बड़ी चूरा, मटन कस्सा, रोही तावा फ्राई, चिल्का केकड़ा, प्रॉन करी, मिक्स भाजा, चावल और दाल मंगाया. पखला—मसालों, दही और नींबू के साथ चावल का फर्मेंटेशन करके तैयार किया गया एक पकवान. भात पकाकर उसका मांड निकाल लिया जाता है और फिर इसमें पानी मिलाकर रात भर छोड़ दिया जाता है ताकि अगले दिन नाश्ते/लंच के लिए तैयार किया जा सके. यह किसानों के लिए अत्यधिक पौष्टिक भोजन है. इसमें मौजूद पानी (तोरानी) उन्हें हाइड्रेटेड रखता है और चावल उन्हें ऊर्जा प्रदान करता है. ओडिशा में यह इतना लोकप्रिय है कि 20 मार्च को पाखला दिवस के रूप में मनाया जाता है. यहां के बड़ी चूरा और कखारू फूला भाजा भी बेहद लजीज थे.

भुवनेश्वर में हमें उसी शाम, एक फूड ब्लॉगर अलका जेना के घर ओडिया पीठा खाने का निमंत्रण मिला. अलका ने हमें चावल के आटे, काले चने, गुड़, ड्राइ फ्रूट के साथ इलायची और लौंग जैसे मसालों के साथ बनाया गया पोड़ा पीठा खिलाया. ओडिशा में पोड़ा पीठा को पकवानों का राजा कहा जाता है. इसके अलावा ओडिशा में मुख्य रूप से काकरा पीठा, अरिसा पीठा, मंडा पीठा, चुनची पतरा पीठा और एंडुरी पीठा बहुत लोकप्रिय हैं.

पुराने शहर में स्थित अनंत वासुदेव मंदिर में प्रसाद ग्रहण करना अतुलनीय रहा. कोई भी शख्स मंदिर में प्रसाद की तैयारी देख सकता है और उसे आनंद बाजार में खरीद सकता है. यह बाजार मंदिर का एक हिस्सा है जहां के स्टॉलों से प्रसाद खरीदा जा सकता है. यहां सूखी पत्तियों और मिट्टी के प्यालों में भोजन परोसा जाता है.

भुवनेश्वर में हमारी आखिरी मंजिल थी बापूजी नगर की मिठाई की दुकान—नीमपाड़ा स्वीट्स. हमने यहां मशहूर छेना झिल्ली खाई. इसमें भुने हुए पनीर को चीनी के पतले घोल में डुबाया जाता है. इस यात्रा के समापन के लिए इससे बढिय़ा व्यंजन और क्या हो सकता था! ठ्ठ

भुवनेश्वर की लिंगराज लस्सी लोकप्रिय है

जगन्नाथ का प्रसाद पुरी

भारत के पूर्वी तट पर स्थित पुरी हिंदुओं का प्रमुख तीर्थस्थल है. पुरी में प्रवेश करने से कुछ ही किलोमीटर पहले एक छोटा-सा गांव है—चंदनपुर. यह दालमा के साथ चूड़ा कदंब के लिए प्रसिद्ध है. दरअसल, चूड़ा को पहले पानी में भिगोया जाता है और फिर उसे आटे की तरह गूंथ लिया जाता है. उसमें रबड़ी और छेना मिला दिया जाता है. मैं दही के साथ चूड़ा खाते हुए बड़ा हुआ हूं. यह पहली बार था जब मैंने छेने और रबड़ी के साथ चूड़ा खाया. यह बेहद लजीज था. इसे दालमा के साथ परोसा जाता है. चंदनपुर की चाय ओडिशा की किसी भी अन्य जगह की चाय से काफी अलग थी. इसके ऊपर रबड़ी की एक मोटी परत चढ़ी थी.

पुरी में प्रवेश करने के बाद हम जगन्नाथ मंदिर गए. मुख्य मंदिर में आराधना के लिए भुगतान करने के बाद, हमने मंदिर की रसोई देखने के लिए 5 रु. का टिकट लिया. यहां खिड़कियों से खाना पकते देखने की इजाजत है. यहां 700 रसोइए लकड़ी की आग पर खाना पकाते हैं. मंदिर परिसर में बने आनंद बाजार में प्रसाद बेचा जाता है. यहां के व्यंजन लजीज थे.

मंदिर के पश्चिमी द्वार पर स्थित शंकर स्वीट्स सबसे मशहूर दुकान है. पुरी का मुख्य प्रसाद खाजा है. मैदे की कई परतों को तलने के बाद उसे चीनी की चाशनी में डुबो दिया जाता है. नृसिंह स्वीट्स इस इलाके की सबसे पुरानी दुकान है. खाजापट्टी या खाजा लेन बलिशाही में स्थित यह दुकान 1945 में शुरू हुई थी. वैसे, इस नाम से अब कई दुकानें हैं.

शाम को हम समुद्री व्यंजनों का जायका लेने स्वर्गद्वार के पास पुरी के तट पर गए. यहां एक कतार में कई स्टॉल दिख जाएंगे जहां रोल, तली हुई समुद्री मछलियां, केकड़े, लॉबस्टर, पोम्फ्रेट आदि बिकते हैं. यहां पहले हल्दी और नमक में मछली को लपेटते हैं और फिर उसे आधा तलकर रख लेते हैं. इसके बाद मछली को मुख्य घोल में लपेटकर खूब अच्छे से तला जाता है. इस तरह स्वादिष्ट कुरकुरी मछली तैयार हो जाती है.

जगन्नाथ मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर, एक फूड कार्ट लगता है जिस पर शाम को मटर का पानी बेचा जाता है. यह मसालों में लिपटा मटर के एक शोरबे जैसा है. मटर को लकड़ी की आग पर उबाला जाता है जिससे शोरबे में धुएं का स्वाद भी मिल जाता है. इस कार्ट का मालिक एक प्लेट पर पहले काली और हरी मिर्च को कूटता है, फिर मटर का थोड़ा शोरबा उड़ेलने के बाद ऊपर से कुछ मसाले छिड़कता है. अंत में इसे स्टील के कटोरे में परोसा जाता है.

इसके बाद हमने खाज स्ट्रीट की एक दुकान में पापुड़ी या मलाई पूड़ी को भी चखा. यह भैंस के दूध की मोटी क्रीम की परत के ऊपर थोड़ी चीनी भुरभुरा कर तैयार होने वाली एक मिठाई है. दूध को उबालने के बाद उसे कुछ देर के लिए छोड़ दिया जाता है, ताकि ऊपर मलाई की परत जम जाए. यह प्रक्रिया तब तक दोहराई जाती है जब तक मलाई की मोटी परत नहीं बन जाती. आखिरकार, टहनी की मदद से मलाई को निकाला जाता है और उसे सूखे पत्ते की प्लेट पर रखकर ऊपर से चीनी भुरभुराने के बाद छोटे टुकड़ों में काट लिया जाता है.

पुरी में चुंगवाह रेस्तरां भी है, जिसे एक चीनी परिवार चलाता है. भुवनेश्वर की ओर वापसी के रास्ते में हम थोड़ी देर कोणार्क के सूर्य मंदिर के पास भी रुके. वहां से फिर हम यात्रा के आखिरी पड़ाव निमापाड़ा पहुंचे जिसे छेना झिल्ली का जन्मस्थान भी कहा जाता है.

"जगन्नाथ मंदिर की रसोई को देखने के लिए पांच रुपए का टिकट लगता है. व्यंजनों को बनाने के लिए यहां 700 रसोइए नियुक्त हैं. प्रसाद को मंदिर परिसर में स्थित आनंद बाजार में बेचा जाता है.''

आलू दम और दही वड़े का ठिकाना

कटक

कटक पूर्वी ओडिशा का दूसरा सबसे बड़ा शहर है. यह 52 बाजारों और 53 सड़कों वाला शहर है. कटक आलू दम और दही वड़ा के लिए मशहूर है. यहां हर ओर दही बड़े के स्टॉल देखे जा सकते हैं. दही और वड़ा (दाल का बना पकौड़ा) को गाढ़ी आलू कढ़ी के साथ परोसा जाता है. वड़े को मसालेदार पतली छाछ में भिगोया जाता है. वड़े के 4-6 टुकड़े एक दोने में डालकर उसके ऊपर आलू दम रखा जाता है. दही-वड़े का सबसे लोकप्रिय स्टॉल है—बिदानासी में 45 साल पुरानी रघु की स्टॉल. यहां के दही-वड़े इतने लोकप्रिय हैं कि घंटे भर में सारे बिक जाते हैं.

दही शरबत और रबड़ी शरबत कटक के दो प्रसिद्ध पेय हैं. 50 साल पुरानी सेन ऐंड सेन शॉप में चीनी का घोल, दही, कसे हुए नारियल और रबड़ी के साथ-साथ स्वाद बढ़ाने के लिए अनानास और जामुन का अर्क मिलाया जाता है. बक्चशी बाजार में दिलबहार शरबत की दुकान का शरबत मुझे सबसे ज्यादा पसंद आया.

कटक में अलहदा चाय के स्टॉल भी हैं. बालीयात्रा पाडिया में मोनू चाय स्टॉल के दिलदार दुकान मालिक चाय में थोड़ा घी भी डाल देते हैं. गुआ घी चाय के रूप में प्रसिद्ध इस चाय का स्वाद बढिय़ा है.

नंदी शाही की मौसी चकुली दुकान कटक में नाश्ते के लिए एक जानी-मानी जगह है. 76 साल की उम्र में अन्नपूर्णा देवी सुबह के नाश्ते में खाई जाने वाली चकुली को लाल मसालेदार चटनी के साथ परोसती हैं. यहां पर चकुली खाना कटक में मेरे सबसे अच्छे अनुभवों में से एक था. यहां शाम के नाश्ते के लिए प्रोफेसर पाडा के कलिया चॉप और बाबू भाई चाप की दुकानें बहुत प्रसिद्ध हैं. दोनों झींगा, कलेजी, मटन और चिकन चाप बेचते हैं.

कटक में हमारा आखिरी पड़ाव गिरिजा होटल था जहां हमने बिरयानी का स्वाद लिया. कटक-भुवनेश्वर हाइवे पर नाना होटल, फुलनखरा और पहाला लैंडमार्क माने जाते हैं. ओडिया में नाना का मतलब बड़ा भाई होता है. चावल के साथ अपनी मटन करी के लिए प्रसिद्ध नाना होटल की ठेठ ढाबा शैली बड़ी लुभावनी है. यह ओडिशा का मेरा दूसरा बहुत पसंदीदा भोजन था.

कटक के करीब ही पहाला है जो रसगुल्लों के लिए मशहूर है. कटक से आधे घंटे की दूरी पर स्थित सेलपुर के बिकलानंद कर के रसगुल्ले भी बहुत मशहूर हैं. ये रसगुल्ले भूरे रंग के होते हैं और चीनी की चाशनी मोटी होती है. यहां छोटे से लेकर बड़े, अलग-अलग आकार वाले रसगुल्ले मिलते हैं. इन रसगुल्लों को बनते देखना और उनका स्वाद लेना एक यादगार अनुभव रहा! ठ्ठ

मौसी चकुली की दुकान की चावल और सफेद मसूर की बनी चकुली बहुत पसंद की जाती है

पूड़ी उपमा का ठिकाना

बरहमपुर

बरहमपुर ओडिशा का चौथा सबसे अधिक आबादी वाला शहर है. यहां भुवनेश्वर और कटक से आसानी से पहुंचा जा सकता है. यहां ओडिशा के कुछ बेहतरीन स्ट्रीट फूड हैं. यह शहर रेशम कारोबार के लिए भी मशहूर है और इसे सिल्क सिटी के रूप में भी जाना जाता है. रेशम के अलावा बरहमपुर मसालों, इमली, कपड़े इत्यादि का भी प्रमुख व्यापार केंद्र रहा है.

हमने शहर के प्रमुख व्यापार केंद्र बड़ा बाजार से अपनी व्यंजन यात्रा शुरू की. यहां के पापड़ और अचार बहुत मशहूर हैं. यहां हमने करीब 25 विभिन्न प्रकार के अचार देखे. यहां का नवरतन अचार—ड्राइफ्रूट और चेरी से बना मीठा, मसालेदार—मुंह में पानी लाने वाला अचार है. दाल और तिल से बने पापड़ अद्भुत हैं.

ओडिशा में हमने जो सबसे अच्छा भोजन किया वह था—सिटी हाइस्कूल रोड पर पीढ़ा होटल का खाना. 50 साल पहले अर्जुन साहू की ओर से शुरू की गई दुकान को अब नीलांचल साहू चलाते हैं. पीढ़ा का मतलब है—बैठने के लिए लकड़ी की बनी कम ऊंचाई वाली कुर्सीनुमा व्यवस्था. रेस्तरां में प्रवेश करने के लिए अपने जूते उतारने होते हैं और सूखे, पर्यावरण अनुकूल पत्तल पर खाना परोसा जाता है. चावल के साथ भरपूर दाल और साथ में एक छोटे कटोरे में चरू पानी (रसम जैसा इमली और हल्दी से बना) परोसा जाता है. और फिर आती है एक सूखे प्लेट में—मटन करी जिसके लिए यह रेस्तरां मशहूर है. शाम को पीढ़ा होटल में बिरयानी परोसी जाती है.

हमारा अगला स्टॉप बीजू पटनायक पार्क के कॉर्पोरेशन रोड पर स्थित न्यू बिरयानी सेंटर था. यहां की बिरयानी अवधी और हैदराबादी स्टाइल का मिला-जुला स्वरूप थी. बिरयानी में चिकन और चावल की परत होती है जबकि पुलाव में मटन/चिकन को चावल के साथ भूना जाता है. बीजू पटनायक पार्क के सामने कॉर्पोरेशन रोड पर स्थित रहीम केजीएन कबाब दुकान के सींक कबाब भी बेहद लजीज हैं. यहां तीन अलग-अलग किस्म के कबाब मिलते हैं—चिकन कबाब, मटन कबाब और झींगा कबाब.

यहां सबसे खास है—श्रीराम घुघनी स्टॉल की घुघुनी चाट. टमाटर, वड़ा, घुघनी, सेव, बूंदी, प्याज पकौड़ा, मसाले, नींबू आदि चीजें घुघनी चाट में डाली जाती हैं. मैंने देश में अब तक जितनी भी दुकानों की चाट खाई है, उनमें यहां की चाट सबसे अच्छी लगी.

वहीं, सबसे लोकप्रिय बरहमपुरिया नाश्ता है पूड़ी और उपमा. यह दक्षिण और उत्तर के पकवानों के मेल का आदर्श उदाहरण है. दो पूडिय़ों को एक दोने में रखा जाता है, उसके ऊपर सामान्य उपमा, मसाला उपमा, घुघनी, सांबर, चटनी और सूजी हलवा डाला जा सकता है.

बरहमपुर में मेरी मुलाकात वैशाली से हुई. उन्हें शहर की सबसे उत्साही फूडी कहा जा सकता है. वे मुझे गिरि मार्केट में किशोर पकोड़ा दुकान ले गईं. वहां हम तीन स्नैक्स—साकू, पपु सेगुडिलू और जैकफ्रूट चिप्स का स्वाद ले सके. साकू आकार में इडली से थोड़ा बड़ा होता है. एक तरफ से भाप में पकाया हुआ और दूसरी तरफ से कड़ाई में तला हुआ. वहीं पपु सेगुडिलू चावल के आटे से बनने वाला स्नैक्स है जिसे हल्दी, हींग, हरी मिर्च और नमक मिलाकर तैयार किया जाता है. उसके ऊपर तिल चिपकाए जाते हैं और तेल में तल दिया जाता है.

बरहमपुर में गुरमीत सिंह का बिलू ढाबा उत्तर भारतीय भोजन के लिए सबसे अच्छी जगह है. यहा मैंने अलहदा अंडा तड़का बनाना सीखा. तले हुए अंडों को काली मसूर दाल में मिलाकर उसे मसालों के साथ भूना जाता है और ऊपर से क्रीम डालकर सजा दिया जाता है. इस तरह हमारी सुखद यात्रा समाप्त हुई! ठ्ठ

श्री राम घुघनी स्टॉल घुघनी चाट की शहर की सबसे मशहूर दुकान है         

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