अंग्रेजों को पहनाए देसी जूते

पहले हमारा फोकस विदेशी बाजार ही हुआ करते थे लेकिन वहां अब वृद्धि की अधिक संभावना नहीं है. इसलिए हमारा लक्ष्य है कि अगले कुछ साल में अपने देश में हमारा कारोबार विदेशी कारोबार को पछाड़ दे

मनीष अग्निनत्री
मनीष अग्निनत्री

उन्नाव में कानपुर-लखनऊ हाइवे पर मशहूर बड़ा चौराहा पड़ता है. कभी राजनैतिक गतिविधियों का केंद्र रहे इस चौराहे के बीचोबीच कवि सूर्यकांत त्रिपाठी श्निराला्य की प्रतिमा लगी है. यहां से लखनऊ की ओर कुछ दूर चलते ही एक अजीब-सी दुर्गंध नाक ढकने को मजबूर कर देती है. यह वह इलाका है जो चमड़े के कारोबार के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्घ है. हाइवे के किनारे कुछ दूर और बढऩे पर कानपुर निवासी 63 वर्षीय मुख्तारुल अमीन की कंपनी ''सुपरहाउस लिमिटेड" की नौ फैक्टरियों का साम्राज्य शुरू होता है. इनके बूते सुपरहाउस चमड़े से लेकर सेफ्टी शूज, आम फैशन वाले जूते, स्पोर्ट्स शूज, स्कूली जूते, पोर्टफोलियो बैग जैसे सामान की देश की सबसे बड़ी निर्यातक कंपनी बन चुकी है. यही नहीं, एक छोटी-सी जगह में चमड़े के इतने सारे उत्पाद बनाए जाने की मिसाल पूरी दुनिया में दूसरी नहीं है.

कानपुर के क्राइस्ट चर्च कॉलेज से स्नातक करने के बाद अमीन 1977 में अपने पुश्तैनी चमड़े के कारोबार में पिता का हाथ बंटाने लगे. पुश्तैनी कारोबार इतना बड़ा नहीं था कि उनके चारों भाई उसमें शामिल हो सकें. इसीलिए सात वर्ष बाद 1984 में अमीन ने ''सुपरहाउस लिमिटेड" नाम से अपनी खुद की एक कंपनी बनाई. वे बताते हैं, ''सुपरहाउस नाम इसलिए चुना गया, ताकि इससे किसी भी प्रकार का व्यवसाय शुरू किया जा सके."

उन्होंने कानपुर के चमनगंज इलाके में 1.5 लाख रु. के शुरुआती निवेश से किराए की जगह पर एक फैक्टरी लगाई और चमड़े के जूतों का ऊपरी हिस्सा बनाना शुरू किया. शुरुआत में ही उन्हें ब्रिटेन की कंपनी ''यूके सेफ्टी शूज" से ऑर्डर मिलने लगे. अब चमड़े की जरूरत हुई तो 1985 में उन्नाव में एक फैक्टरी लगाई. पैसों के इंतजाम के लिए अमीन मुंबई शेयर बाजार में अपनी कंपनी का एक करोड़ रु. का पब्लिक इश्यू लाए. देश में पहली बार कोई लेदर कंपनी इस तरह का पब्लिक इश्यू लेकर आई थी. इससे 60 लाख रु. से अधिक का इंतजाम हुआ. नब्बे के दशक की शुरुआत में यूके सेफ्टी शूज को ब्रिटेन में जूते बनाना महंगा पडऩे लगा. अब इस कंपनी ने अमीन को ही अपनी फैक्टरी में पूरा जूता बनाकर ब्रिटेन भेजने का जिम्मा सौंपा. इसके लिए 1992 में यूके सेफ्टी शूज ने अपनी फैक्टरी में लगी ''रबर वोल्केनाइजिंग" मशीन जैसी कई और महंगी मशीनें अमीन को भेज दीं और सुपरहाउस ने देश में पहली बार कारखानों और अन्य जोखिम वाली जगहों पर काम करने वाले लोगों के लिए सेफ्टी शूज बनाना शुरू किया. 500 से 600 जोड़ी जूते रोज बनने लगे.

रबड़ और चमड़े के बने ये जूते काफी भारी होते थे. इनके वजन को हल्का करने के लिए 1994 में ''डायरेक्ट इंडक्शन पॉलीयूरीथेन" तकनीक पर काम करने वाली ''डेस्मा" मशीन फैक्टरी में लगाई गई. जूते बनाने में प्रयोग होने वाली यह उस वक्त विश्व की अत्याधुनिक और सबसे महंगी 2 करोड़ रु. की कीमत वाली मशीन थी. आज अमीन की फैक्टरियों में कुल छह डेस्मा मशीनें लगी हुई हैं. सेफ्टी शूज की ब्रिटेन में ब्रान्डिंग और डिस्ट्रीब्यूशन के लिए सुपरहाउस ने ब्रिटेन की कंपनी ब्रिक्स फुटवियर का अधिग्रहण कर लिया है.

सेफ्टी शूज की मांग सीमित थी. सो, कारोबार बढ़ाने के लिए अमीन ने 1998 में फैशन फुटवियर के क्षेत्र में कदम रखा. उन्नाव में ही लखनऊ-कानपुर हाइवे के किनारे आदमियों के जूते बनाने का कारखाना खोला. अमीन ने इन जूतों का नामकरण बड़े रोचक ढंग से किया. वे बताते हैं, ''ब्रिटिश राज में दो अंग्रेज व्यापारियों एलन और कूपर ने कानपुर में चमड़े के कारखाने की शुरुआत की थी. इन दोनों के नाम को मिलाकर हमने एलन-कूपर नाम से अपना जूते का ब्रान्ड लॉन्च किया." कुछ ही समय में इन जूतों ने ब्रिटेन में अपनी पहचान बना ली.

अमीन का कारोबार ज्यादातर निर्यात आधारित था. इसमें और तेजी लाने के लिए उन्होंने ब्रिटेन के लेस्टर में ''सुपरहाउस यूके" के नाम से कंपनी बनाई और इसके जरिए ब्रिटेन में फैशन फुटवियर का डिस्ट्रीब्यूशन शुरू किया. नतीजे अच्छे आए.  2012 में ब्रिटेन के बाजार में ''सिल्वर स्ट्रीट" के नाम से फैशन फुटवियर उतारे गए. ब्रिटेन में अपनी कंपनी के जरिए अमीन केवल बड़े रिटेल दुकानदारों के साथ ही काम कर पा रहे थे. छोटे रिटेलर्स के साथ काम करने के लिए उनके पास जरूरी नेटवर्क नहीं था. इसके लिए 2015 में ब्रिटेन की कंपनी ''पैट्रिक शूज" खरीद कर इसके जरिए छोटे रिटेल दुकानदारों के साथ भी अमीन ने फैशन फुटवियर का कारोबार आगे बढ़ाया. सुपरहाउस लिमिटेड का कारवां केवल ब्रिटेन तक ही सीमित नहीं रहा. आज जर्मनी, फ्रांस और स्पेन में भी अमीन अपनी कंपनियों के जरिए जूतों का कारोबार कर रहे हैं.

पर्सनल प्रोटेक्टिव प्रोडक्ट के कुल कारोबार में सेफ्टी शूज की हिस्सेदारी 26 प्रतिशत है जबकि सेफ्टी कपड़ों का हिस्सा 40 फीसदी के करीब बैठता है. हालांकि सेफ्टी शूज और ''सेफ्टी गारमेंट" का बाजार एक ही था. इसलिए 2012 में अमीन ने उन्नाव में एक और फैक्टरी लगाकर सेफ्टी गारमेंट बनाना शुरू किया. कुछ ही समय में सुपरहाउस सेफ्टी गारमेंट के निर्यात में भी देश की अग्रणी कंपनी बन गई. पिछले वर्ष इसी फैक्टरी में सेफ्टी बेल्ट भी बनाना शुरू किया गया. कानपुर में घुड़सवारी काफी प्रचलित है इसलिए मांग को देखते हुए सुपरहाउस लिमिटेड ने ''राइडिंग प्रोडक्ट'' भी बनाना शुरू किया. आज सुपरहाउस घुड़सवारी में प्रयोग होने वाले उत्पाद बनाने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी है. सुपरहाउस लिमिटेड का अस्सी फीसदी कारोबार निर्यात पर टिका है. यह कारोबार अपन चरम पर पहुंच चुका है. ऐसी स्थिति में अमीन अब देसी बाजार में भी अपनी धमक दिखाने की तैयारी कर रहे हैं. वे बताते हैं, ''हमारा लक्ष्य है कि अगले कुछ वर्षों में देश के भीतर हमारा कारोबार कुल निर्यात को पछाड़ दे."

अमीन ने कानपुर में शिक्षा के क्षेत्र में भी धाक जमाई है. 1983 में दिल्ली पब्लिक स्कूल सोसाइटी ने देश में पहली बार किसी निजी व्यक्ति को अपने स्कूल की फ्रेंचाइजी दी. अमीन ने कानपुर के सर्वोदय नगर में दिल्ली पब्लिक स्कूल खोला. वे आज उत्तर प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में दिल्ली पब्लिक स्कूल की कुल सात शाखाओं का संचालन कर रहे हैं. अमीन ने 2005 में एलन हाउस पब्लिक स्कूल के नाम से खुद का स्कूल खोला. वे बताते हैं, ''हमारे पास सुपरहाउस और एलन-कूपर दो ब्रान्ड थे. इन्हीं को आपस में मिलाकर एलन-हाउस बनाया गया." आज एलन-हाउस पब्लिक स्कूल कानपुर का सबसे प्रतिष्ठित स्कूल है.

1980 के दशक में चमड़े के एक छोटे-से कारखाने से शुरू अमीन का उद्यम एक मायने में आज पूरे उद्योग में अग्रणी बन गया है. इस समूह की देश के बाहर ब्रिटेन, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और रोमानिया के साथ कई देशों में कंपनियां हैं. समूह का कारोबार 800 करोड़ रु. से अधिक का हो चुका है. यह अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों में शिक्षा के क्षेत्र के अलावा जल संरक्षण और संसाधनों के समुचित प्रयोग केजरिए पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान का दावा करता है. लेकिन अमीन खुले दिमाग और ईमानदारी से काम करने को ही अपनी कामयाबी का राज बताते हैं.

इसमें दो राय नहीं कि उन्होंने एक समय हम पर राज करने वाले अंग्रेजों को जूता पहना कर अपनी चतुराई का परिचय दिया है.

Read more!