स्टार शिक्षक
इब्राहिम अल्काजी (1925-) समकालीन भारतीय रंगमच का सम्राट

इब्राहिम अल्काजी ने हमारी विरासत के तमाम धागों को, जिनमें एक नाट्य शास्त्र भी है, अंतरराष्ट्रीय सूत्रों और मंचन के मानकों के साथ मिलाकर आधुनिक भारतीय रंगमंच का ताना-बाना बुना. उन्होंने संगीत, शानदार सेट और नए-नवेले प्रकाश संयोजन को इस कदर आपस में गूंथा कि शो के बहुत वक्त बाद भी दर्शकों पर उसकी अमिट छाप बनी रहती थी. लंदन की मशहूर रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आट्र्स में उनकी पढ़ाई ने शायद उन्हें अंतरराष्ट्रीय नजरिया दिया. अल्काजी जापानी क्लासिकल थिएटर की तर्ज पर भी आसानी से नाटक रच सके, जैसा कि उन्होंने मौलियर के नाटक में किया था. वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं; वे पेंटर हैं, वे संगीत के साथ-साथ डिजाइन की बारीकियों के उस्ताद हैं और मुकम्मल फोटोग्राफर भी हैं.
अल्काजी बंबई से अंग्रेजी नाटकों के समृद्ध खजाने के साथ आए थे. 1963 में उन्होंने पुराना किला के खंडहरों में धर्मवीर भारती के अंधायुग का मंचन करके राजधानी में हंगामा बरपा दिया. उस नाटक को आज भी आधुनिक भारतीय रंगमंच का कीर्तिमान माना जाता है. कई यादगार नाटकों पर उनकी रचनात्मकता की छाप है. जॉन ऑस्बर्न के लुक बैक इन ऐंगर ने दर्शकों को रोमांचित कर दिया था और गिरीश कर्नाड के तुगलक ने भी.
अल्काजी की स्थायी विरासत हिंदी रंगमंच के पहले सुपरस्टार गढऩे में है और टुकड़ों-टुकड़ों में मैं बता सकता हूं कि मैंने उनसे क्या सीखा. उन्होंने यह उसूल हम सबके दिलो-दिमाग में बिठा दिया कि अदाकार को दर्शकों की इज्जत करनी ही चाहिए और अभिनय में भी कामयाबी के लिए अनुशासन बेहद अहम है.
(लेखक फिल्म और रंगमंच के जाने-माने अभिनेता हैं)