तेलंगाना चुनाव में क्यों चर्चित हो गया गधे का अंडा?
तेलुगु में 'गदिधा गुड्डु' रूपक का सन्दर्भ क्या है, और क्यों तेलंगाना चुनाव में इसका जिक्र हुआ

अनिलेशन महाजन, अर्कमय दत्ता मजूमदार
तेलंगाना में चुनाव अभियान के आखिरी दिनों में कांग्रेस की कई रैलियों में नजर आए विशाल आकार के अंडे ने लोगों का खूब ध्यान खींचा. सफेद रंग के बड़े से इस गोले पर काले रंग से तेलुगु में गदिधा गुड्डु (गधे का अंडा) लिखा गया था. रैलियों में इसका प्रदर्शन लोगों को हंसाने के साथ विशेष तौर पर भाजपा पर कटाक्ष के उद्देश्य से किया गया. सिर्फ यही नहीं, सीएम रेवंत रेड्डी ने तो एक्स पर यह तस्वीर पोस्ट कर एक अच्छी-खासी डिजिटल बहस ही छेड़ दी. उन्होंने ट्वीट किया, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले एक दशक में राज्य को अगर कुछ दिया है तो बस गदिधा गुड्डु. वैसे तेलुगु में इस रूपक का कोई खास संदर्भ नहीं निकलता है, क्योंकि गधा एक स्तनपायी जीव है जो अंडे देने के बजाए सीधे बच्चे को जन्म देता है. बहरहाल, इसके बाद कांग्रेस उम्मीदवारों के हाथ में नजर आने वाले अंडे की ऐसी आकृतियों ने हर जगह मतदाताओं को खेमों में बांट दिया. खासकर चेवेल्ला में, जहां रेवंत के साथ उम्मीदवार जी. रंजीत रेड्डी भी मौजूद थे. रंजीत एक प्रमुख अंडा उत्पादक हैं, और उन्होंने भी दो गदिधा गुड्डु प्रमुखता से दर्शा रखे थे!
इस सबके बीच, आंध्र प्रदेश में कई जगहों पर मतदाताओं ने भी इसे मुद्दा बनाना शुरू कर दिया कि उन्हें उपहार देने के वाईएसआरसीपी और टीडीपी उम्मीदवारों के वादे के बदले एक बड़ा गदिधा गुड्डु ही मिला.
मतदान की पूर्व संध्या यानी 12 मई को कम से कम पांच जगहों पर मतदाताओं ने यह कहते हुए विरोध प्रदर्शन किया कि उनके हाथ अब तक खाली हैं. जाहिर है कि उन्हें इस पर कतई भरोसा नहीं था कि जीतने के बाद कोई भी उन्हें नकद या कोई अन्य वस्तु देने वाला है! पुलिस ने सड़कों पर प्रदर्शन रोकने में सख्ती दिखाई तो ऐसे जागरूक नागरिकों ने भी अपनी ही तरह के हथकंडे अपनाए. आरडब्ल्यूए तो चतुराई दिखाते हुए इस सौदेबाजी पर उतर आए कि सामूहिक वोट के बदले उन्हें जेनरेटर या सोलर पावर बैकअप मुहैया कराए जाएं. कोठापेटा विधानसभा क्षेत्र के पिनापल्ले गांव में महिला मतदाताओं ने ग्राम स्तर के नेताओं के घर पहुंचकर उपहार स्वरूप मिलीं सस्ती साड़ियां लौटा दीं और मांग की कि दूसरे लोगों की तरह उन्हें भी सीधे तौर पर नकद राशि मुहैया कराई जाए, जो 500 रुपए से 6,000 रुपए तक थी.
पंजाब: अमेरिका वाला सपना
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि विदेशों की खूबसूरत धरती आम पंजाबियों को खूब लुभाती है और कई तो बस वहां जाने के सपने देखते हैं. इसलिए अमेरिका में राजदूत रह चुके प्रत्याशी का अमृतसर से चुनावी दौड़ में होना बेहद मायने रखता है...यह लोगों के मन में इस बात को बैठाने जैसा है कि उन्हें अपने सांसद के तौर पर एक आव्रजन काउंसलर ही मिल जाएगा! भाजपा उम्मीदवार तरनजीत संधू और भी कई वजहों से निराश नहीं करते. विदेश मंत्री एस. जयशंकर उनके मित्र हैं और 10 मई को अमृतसर से नामांकन दाखिल करने के मौके पर उनके साथ थे. इतना ही नहीं, वे संधू के प्रमुख वादों में से एक का पुरजोर समर्थन करते भी नजर आए कि शहर में एक अमेरिकी वाणिज्य दूतावास स्थापित किया जाएगा. वैसे तो, इसका निर्णय तो वाशिंगटन डीसी पर निर्भर है लेकिन, जैसा कि जयशंकर ने कहा, "अमेरिकियों को भारत में दो और वाणिज्य दूतावास खोलने होंगे. और आपके पास अपनी दावेदारी को पुख्ता तरीके से जताने के लिए एक अच्छा वकील होगा."
भाजपा ने 2014 में इस सीट पर अरुण जेटली को और 2019 में आईएफएस में संधू के सीनियर हरदीप पुरी को उम्मीदवार बनाया था. इन नेताओं के विपरीत संधू स्थानीय हैं इसलिए व्यवसायियों और किसानों को इस पर सलाह भी दे रहे हैं कि वे अपने उत्पादों या उपज - जैसे जूतियां, शॉल, फुलकारी, अमृतसर के प्रसिद्ध पापड़-बड़ी या फिर फल-सब्जियों - को कैसे अमेरिका और यूरोप के मेगास्टोर्स में बेच सकते हैं. उनकी पत्नी रीनत संधू मौजूदा समय में नीदरलैंड में राजदूत हैं. और वे भी यह दर्शाने में पीछे नहीं हैं कि दुनियाभर के कई सीईओ के साथ उनकी दोस्ती है जिसकी बदौलत यहां निवेश बढ़ाने की एक नई राह खुल सकती है.
हैदराबाद: ब्रेक का टाइम
मतदान की तारीख और प्रचार का घमासान खत्म होने के बीच का समय तेलंगाना में स्टार प्रचारकों के लिए गैर राजनैतिक गतिविधियों का रहा. सीएम रेवंत रेड्डी इंडिया जर्सी पहने हैदराबाद यूनिवर्सिटी के कैंपस में छात्रों के साथ अपना पसंदीदा खेल फुटबॉल खेलते नजर आए. इसी तरह एआईएमआईएम सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी भी हैदराबाद में शास्त्रीपुरम स्थित अपने आवास के पास फुर्सत के क्षणों में युवाओं के साथ गली में क्रिकेट खेलकर खुद को तरोताजा करते देखे गए.
पश्चिम बंगाल: फूलों की ताकत
पश्चिम बंगाल में तीखा वार-पलटवार होना आम है. गाहे-बगाहे सियासी राह में उछलने वाले एक-दो तीखे बयानों को लेकर आप अधीर रंजन चौधरी को गलत नहीं मान सकते. बहरामपुर का अपना किला बचाने के लिए मुस्तैदी से मोर्चे पर उतरे कांग्रेस के सिपहसालार को बदले में वही मिलता है, जो वे देते हैं. लेकिन 11 मई को दिखा नजारा, इस सबसे एकदम उलट था. अधीर रंजन का काफिला प्रतिद्वंद्वी भाजपा उम्मीदवार निर्मल चंद्र साहा के काफिले से टकरा गया. फिर क्या था...साहा ने बिना वक्त गंवाए कुछ फूल अधीर रंजन की तरफ उछाल दिए! दोनों ने हाथ जोड़कर एक-दूसरे का अभिवादन किया. साहा पेशे से सर्जन हैं और उनकी राय है कि राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता व्यक्तिगत संबंधों में बाधा नहीं बननी चाहिए. टीएमसी उम्मीदवार यूसुफ पठान के विपरीत ये दोनों स्थानीय हैं और वर्षों से एक-दूसरे को जानते हैं. वैसे भी, सौहार्दपूर्ण व्यवहार से कोई नुक्सान नहीं होता, बल्कि कई बार फायदा होता है. इसका उदाहरण दूसरे दिन ही सामने था, जब अधीर रंजन ने बेहिचक मतदाताओं से यह कह दिया कि तृणमूल को वोट देने से अच्छा है कि वे भाजपा को वोट दे दें!