बांग्लादेश के आक्रामक रुख पर भारत के शांत रवैये के क्या मायने हैं?

भारत ने हसीना को मौत की सजा पर रणनीतिक धैर्य के साथ प्रतिक्रिया दी. उसे उम्मीद है कि बांग्लादेश के साथ रिश्ते अंतत: सुधर जाएंगे

बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना और मुहम्मद यूनुस (फाइल फोटो)
बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना और मुहम्मद यूनुस (फाइल फोटो)

यह कोई आश्चर्य नहीं कि बांग्लादेश की सत्ता से बेदखल की गईं प्रधानमंत्री शेख हसीना को अंतरराष्ट्रीय अपराध पंचाट (आइसीटी) ने मौत की सजा सुनाई. उन्हें कई मामलों में दोषी पाया गया, जिसमें बड़े पैमाने पर हत्या भी शामिल है.

पंचाट ने फैसला सुनाया कि सरकार हसीना की संपत्ति जब्त कर ले. उन्हें फैसले के खिलाफ अपील करने का अधिकार इस शर्त पर है कि वे खुद 30 दिनों के अंदर लौट आएं और गिरफ्तारी दें, ऐसा न करने पर उन्हें भगोड़ा घोषित किया जाएगा.

क्या हसीना फांसी पर चढ़ेंगी? इसके आसार कम हैं. यह गुंजाइश न के बराबर है कि भारत हसीना को मौत की सजा के लिए सौंपेगा. दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि में ऐसी साफ धाराएं हैं जो 'सियासी किस्म के अपराध' [आर्टिकल 6] के लिए प्रत्यर्पण से छूट देते हैं. भारत के फैसले पर सबकी नजर रहेगी.

आइसीटी का वैधानिक दायरा 1971 के युद्ध अपराधियों पर मुकदमा चलाने तक सीमित था. लेकिन एक अध्यादेश के जरिए उसका दायरा बदल दिया गया. उसके तहत चली कानूनी प्रक्रिया भी पक्षपात भरी थी. हसीना को अपने बचाव के लिए वकील चुनने की इजाजत नहीं दी गई और पूर्वाग्रह से ग्रस्त जजों के आगे सुनवाई हुई. यह फैसला बेशक राजनीति से प्रेरित है. शुरू से ही, यह मुकदमा बस दिखावे का लग रहा था.

हसीना के भारत में शरण लेने के फौरन बाद सुप्रीम कोर्ट के जजों को इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा था, उन्हें जान से मारने की धमकियां मिल रही थीं. तख्तापलट को अंजाम देने वाले छात्र आंदोलन को संगठित करने वाले जमात-ए-इस्लामी (जेईआइ) के समर्थकों जजों ने अंतरिम सरकार को उससे जुड़े जजों को नियुक्त करने पर मजबूर किया. जमात पाकिस्तान समर्थक नजरिए के लिए जाना जाता है. जिस 1971 के मुक्ति संग्राम से बांग्लादेश बना, उस दौरान कत्लेआम में जमात ने पाकिस्तानी फौज की मदद की थी.

फिलहाल प्रो. मुहम्मद यूनुस की अगुआई वाली अंतरिम सरकार को संवैधानिक वैधता नहीं है. संसद और संविधान दोनों स्थगित हैं. इन सभी वजहों से पंचाट के फैसलों की वैधता पर भी गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं. अंतरिम सरकार के सभी किरदार हसीना और उनकी अवामी लीग से गहरी नफरत करते हैं. जमात बदला लेने की बात खुलकर कहता रहा है, क्योंकि आइसीटी ने उसके कई नेताओं के खिलाफ युद्ध अपराध के लिए दोषी ठहराया, फांसी की सुनाई और सजा पर अमल भी किया गया.

हसीना को मौत की सजा के पीछे जमात का हाथ साफ है. यूनुस भी हसीना से गहरी नाराजगी रखते हैं क्योंकि उनकी सरकार ने उनके माइक्रोफाइनेंस और कमर्शियल वेंचर्स के लिए टैक्स चोरी और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में केस फाइल किए थे. 2006 में नोबेल शांति पुरस्कार मिलने के बाद यूनुस के सियासी मंसूबे बढ़ गए थे.

ढाका ने भारत से हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की है. भारत ने उसका कोई जवाब नहीं दिया है. यह मुद्दा दोनों देशों के रिश्तों में टकराव की वजह बना रहेगा. फैसले पर भारत का ठंडा रवैया, उसकी मंशा का संकेत है कि हालात न बिगड़ें और रणनीतिक सब्र दिखाया जाए.

दोनों देशों के रिश्ते कई और वजहों से ठंडे हैं. यूनुस के भारत की भौगोलिक अखंडता के खिलाफ ऊल-जलूल बातें और उनके इस्लावादी समर्थकों के भारत विरोधी बयान रिश्ते सुधारने की राह में बाधक बने हुए हैं. भारत को एहसास है कि हसीना के खिलाफ वहां लोगों में गुस्सा है. भारत में उम्मीद की जा रही है कि फरवरी 2026 के निष्पक्ष और सबको साथ लेकर चलने वाले चुनाव हुए तो रिश्तों में सुधार की ओर कदम बढ़ेंगे.

बांग्लादेश का राजनैतिक भविष्य अभी अनिश्चित लगता है. नई ताकतें और मौत की सजा राजनैतिक स्थिरता पर भारी पड़ेंगी. लोकतंत्र, उसके संस्थानों की कमजोर नींव और ध्रुवीकृत सियासत की वजहों से दशकों से घरेलू राजनीति में टकराव बना रहा है.

ऐसा लगता है कि बांग्लादेश की फौज ने फैसले को मानने के लिए यूनुस सरकार को मजबूर किया है. देश की सियासत में फौज का हस्तक्षेप है. ढाका का इस्लामाबाद के साथ बढ़ता तालमेल दोतरफा रिश्तों के लिए अच्छा नहीं है. दिल्ली में हुए बम धमाके में पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच लिंक सामने आ गए हैं.

भारत की पड़ोसी पहले की नीति को कई बार चुनौतियां मिली हैं. बांग्लादेश पहले स्थाई सहयोगी रहा है, लेकिन अब वहां राजनैतिक अनिश्चितता है. मालदीव और श्रीलंका के साथ रिश्ते फिर से ठीक हो गए हैं. चुनाव के बाद नेपाल के साथ भी रिश्ते फिर से ठीक होने वाले हैं. धुर विरोधी पाकिस्तान के साथ रिश्ते वैसे भी बेहतर होने की बहुत कम उम्मीद है. दुर्भाग्य से, आइसीटी का अप्रत्याशित फैसला हमारे क्षेत्रीय रिश्तों में एक और मुश्किल खड़ा कर सकता है.

पिनाक रंजन चक्रवर्तीबांग्लादेश के पूर्व उच्चायुक्त हैं.  

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