प्रधान संपादक की कलम से

वह पल किसी पर्व से कम नहीं था. नवी मुंबई के डीवाइ पाटिल स्टेडियम में 40 हजार की भीड़ चीख-चिल्लाकर खिलाड़ियों का हौसला बढ़ा रही थी, लेकिन यह तो बस शुरुआत थी.

इंडिया टुडे हिंदी अंक- 19 नवंबर 2025
इंडिया टुडे हिंदी अंक- 19 नवंबर 2025

- अरूण पुरी

उनकी कहानियां बताती हैं कि सफेद बॉल क्रिकेट की ऊंचाई तक पहुंचने के लिए इन्हें कितनी दीवारें तोड़नी पड़ीं. शेफाली वर्मा ने हरियाणा के रफ-टफ रोहतक में क्रिकेट खेलने के लिए खुद को लड़का बना लिया था. बढ़ई की बि‌टिया अमनजोत कौर ने पहली बार अपने पिता के बनाए लकड़ी के बचे-खुचे टुकड़ों से तैयार बल्ले को थामा. दीप्ति शर्मा ने ताज महल की परछाईं में सुबह-सुबह अकेले प्रैक्टिस करके अपने खेल को निखारा और आज उनके नाम पर सड़क है.

पादरी की बेटी जेमिमा रोड्रिग्स ने 11 साल की उम्र में बांद्रा में बालकनी से सचिन तेंडुलकर को खेलते देखा और तभी अपना रास्ता तय कर लिया. कप्तान हरमनप्रीत कौर टूर पर रहते हुए भी पंजाब के मोगा में अपने परिवार को वीडियो कॉल करके गुरुद्वारे से आ रही कीर्तन की आवाज सुनती हैं. बाकी साथियों की तरह, जिनकी अपनी-अपनी कहानियां हैं, सबने मिलकर ऐसी कामयाबी की धुन रची जो पहले कभी नहीं सुनी गई.

यह कहना सही तो होगा कि 2025 महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप में भारत की ऐतिहासिक जीत से देशभर में खुशी की लहर दौड़ गई, लेकिन अधूरा होगा. यह जीत 1974 में बनी भारतीय महिला टीम के 51 साल लंबे सफर का नतीजा है, जिसमें कई बार दिल टूटा और जीत बस थोड़ा दूर रह गई. बहुत लोग इसे 1983 में कपिल देव की टीम की जीत से तुलना कर रहे हैं.

तुलना मुनासिब भी है: लंबा इंतजार, मुश्किल हालात और फिर वह एक लम्हा जो सिर्फ क्रिकेट नहीं, सब कुछ बदल देता है. लेकिन इस बार यह एहसास और गहरा है. दक्षिण अफ्रीका से मुकाबले में 52 रन से जीत सिर्फ खेल की उपलब्धि नहीं है. एक ऐसे देश में जहां अब भी औरतों को बराबरी की लड़ाई लड़नी पड़ती है, यह जीत शुरुआत है: अधिकार और सशक्तीकरण के नए दौर की.

वह पल किसी पर्व से कम नहीं था. नवी मुंबई के डीवाइ पाटिल स्टेडियम में 40 हजार की भीड़ चीख-चिल्लाकर खिलाड़ियों का हौसला बढ़ा रही थी, लेकिन यह तो बस शुरुआत थी. टीवी और डिजिटल मिलाकर दर्शकों की संख्या जो टूर्नामेंट के बीच में ही 6 करोड़ पहुंच गई थी, फाइनल तक 19 करोड़ पर पहुंच गई. टीम ने भी किसी को निराश नहीं किया. ये वे लड़कियां थीं जो किस्मत को अपनी मुट्ठी में बंद कर रही थीं. जैसे अमनजोत, जिसने कैच मिस करने के बाद डाइव लगाकर मैच पलट दिया. या शेफाली, जिसके सिर पर अब भी वही बॉय कट है जो बचपन में उसके पिता ने कराया था.

उसने 78 गेंदों पर 87 रन ठोके, जिसमें सात चौके और दो छक्के थे, और फिर अपनी 'गोल्डन आर्म’ से सात ओवर गेंदबाजी कर दो विकेट भी झटके. विकेटकीपर ऋचा घोष ने तो हेयरलाइन फ्रैक्चर के बावजूद 24 गेंदों पर 34 रनों की तूफानी पारी खेली. सीनियर खिलाड़ियों ने भी कमाल किया. स्मृति मंधाना, जो 29 साल की हैं, पूरे टूर्नामेंट में 54 से ज्यादा की औसत से रन बनाकर टीम को मजबूत स्कोर तक पहुंचाती रहीं. और 36 वर्ष की कप्तान हरमनप्रीत कौर, जो 2009 से टीम में हैं और 2017 के फाइनल की हार देख चुकी हैं, ने इस बार गजब की शांति के साथ कप्तानी करते हुए वह जादुई कैच पकड़ा जिसने भारत को जीत दिलाई.

उस दिन की गवाही के लिए इतिहास खुद मैदान में मौजूद था, सचमुच. स्टेडियम में महिलाओं के क्रिकेट की पूरी पीढिय़ां एक साथ दिखीं: डायना एडुल्जी और शांता रंगास्वामी जैसी पहली पीढ़ी की दिग्गजों से लेकर मिताली राज और झूलन गोस्वामी जैसी हाल की स्टार्स तक, सबने मिलकर उस अविश्वसनीय पल को जिया जब खुशी के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. इन सबकी कहानियां मिलकर उस लंबे सफर को दिखाती हैं जिसमें महिलाओं के क्रिकेट को हमेशा पीछे रखा गया, जहां कभी उन्हें वैसी पहचान नहीं मिली जैसी पुरुष खिलाड़ियों को मिली.

मिताली ने, जिन्होंने 2017 वर्ल्ड कप में टीम की कप्तानी की थी, उन दिनों के बारे में हमारे लिए लिखा है. बहुत समय नहीं हुआ जब महिला खिलाड़ियों को एक मैच का मेहनताना सिर्फ 1,000 रुपए मिलता था. अब हालात बदल रहे हैं. वर्ष 2022 में बीसीसीआइ ने जय शाह के नेतृत्व में महिला प्रीमियर लीग यानी डब्ल्यूपीएल शुरू की और ऐलान किया कि अब पुरुष और महिला खिलाड़ियों को मैच फीस बराबर मिलेगी: टेस्ट के लिए 15 लाख, वनडे के लिए 6 लाख और टी20 के लिए 3 लाख रुपए.

वर्ष 2025 का वर्ल्ड कप भी कई नए रिकॉर्ड लेकर आया: भारत की चैंपियन टीम को 44.8 लाख डॉलर यानी करीब 40 करोड़ रुपए की इनाम राशि मिली, जो पिछली बार से दोगुनी थी, इसके अलावा बीसीसीआइ ने 51 करोड़ रुपए का बोनस भी दिया. डब्ल्यूपीएल अब आइपीएल की तरह नई प्रतिभाओं की नर्सरी बन चुकी है. जैसे फाइनल में बेहतरीन स्पिन से सबको चौंकाने वाली आंध्र प्रदेश के कडप्पा की युवा खिलाड़ी श्री चरणी ने लीग से सीधे टीम इंडिया में जगह बना ली.

भारतीय खेलों में महिला स्टार्स हमेशा कम रही हैं. अब तक हम पी.टी. उषा, सानिया मिर्जा, मैरी कॉम या पी.वी. सिंधु जैसी कुछ गिनी-चुनी खिलाड़ियों की व्यक्तिगत चमक देखते आए हैं, लेकिन अब यह जीत उस दौर की शुरुआत है जहां एक पूरा सिस्टम तैयार दिखता है, जैसे पहलवानों में दिखा. यह बदलाव हमेशा के लिए है. इसी वजह से दिग्गज सुनील गावस्कर भी बाकी लोगों के साथ खुश होकर बोले कि यह जीत ''भारतीय क्रिकेट के इतिहास की सबसे बड़ी जीतों में से एक है, चाहे कोई भी जेंडर हो.’’ हमारी कवर स्टोरी, जिसे डिप्टी एडिटर सुहानी सिंह ने लिखा है, इस पल की धड़कन और इतिहास की गहराई दोनों को पकड़ती है, साथ ही खिलाड़ियों के छोटे-छोटे प्रोफाइल भी पेश करती है.

हम उम्मीद करते हैं कि अब किसी लड़की को वह बात कभी न सुननी पड़े जो दीप्ति ने बचपन में सुनी थी: ''मत खिलाओ शर्मा जी, लड़की है.’’ यह जीत सिर्फ क्रिकेट की नहीं है. यह उस सोच को बदलने की शुरुआत है जो बताती है कि जब टैलेंट को मौका मिलता है, हिम्मत को पहचान मिलती है तो क्या हो संभव हो जाता है, और एक देश आखिरकार अपनी बेटियों की कामयाबी को उसी जोश से मनाना सीखता है जैसे वह बेटों की जीत मनाता है. इसे आप बड़ा मोड़ कह सकते हैं, या कह सकते हैं कि बहुत देर से आया पल है. लेकिन जैसे भी कहें, यह पल हमारा है, हमें इसे सहेजना और आगे बढ़ाना है.

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