दुनिया के डिजिटल ट्रैफिक की मेजबानी के लिए क्या कर रहा है भारत?
भारत डेटा क्षमता बढ़ाने और दुनिया के डिजिटल ट्रैफिक की मेजबानी करने की दौड़ में आगे निकलने की कोशिश कर रहा है

अजय सुकुमारन
भारत के नवजात डेटा सेंटर उद्योग में इस महीने खासा जोश आया जब इंटरनेट की दिग्गज कंपनी गूगल ने विशाखापत्तनम में 1 गीगावॉट का डेटा सेंटर बनाने के लिए 15 अरब डॉलर (1.32 लाख करोड़ रुपए) की योजना का ऐलान किया.
यह देश में इस पैमाने का पहला डेटा सेंटर होगा. 2030 तक पांच सालों में किए जाने वाले इस निवेश में पूर्वी तटवर्ती शहर में एक नया इंटरनेशनल सब-सी गेटवे यानी समुद्र के नीचे नया अंतरराष्ट्रीय मार्ग बनाना शामिल है, जिससे विश्वभर के इंटरनेट और डेटा ट्रैफिक को ले जाने वाली फाइबर-ऑप्टिकल केबल वहां आकर जुड़ेंगी.
भारत दुनिया का करीब 20 फीसद डेटा जनरेट करता है, लेकिन वैश्विक स्टोरेज क्षमता में इसका हिस्सा महज 3 फीसद है. यह भी एक वजह है जिसकी बदौलत देश में डेटा सेंटर में उछाल आने की उम्मीद है क्योंकि डेटा की खपत और डिजिटल सेवाओं—मसलन, यूपीआइ के जरिए कैशलेस और वास्तविक समय पर लेन-देनदोनों तेजी से बढ़ रहे हैं.
एरिक्सन मोबिलिटी रिपार्ट 2025 के मुताबिक, भारत में 5जी अपनाए जाने की बदौलत प्रति स्मार्टफोन प्रति माह 32 जीबी डेटा ट्रैफिक है जो दुनिया के सबसे ज्यादा डेटा ट्रैफिक में है, और 2030 तक यह करीब दोगुना बढ़कर 62 जीबी हो सकता है.
यह सब 2018 से शुरू हुआ जब भारतीय रिजर्व बैंक यह नियम लाया कि वित्तीय डेटा का स्टोरेज स्थानीय स्तर पर होगा. यह कदम डेटा सेंटर की मांग में वृद्धि का कारक बना. इसी तरह का एक और उत्प्रेरक 2022 में आया जब सरकार ने डेटा सेंटरों को प्रमुख बुनियादी ढांचे के तौर पर मान्यता दी. डेटा सेंटर उद्योग 2019 के 590 मेगावॉट से दोगुने से भी ज्यादा बढ़कर फिलहाल 1.4 गीगावॉट है.
डेटा सेंटर की क्षमता मेगावॉट और गीगावॉट में नापी जाती है, क्योंकि बिजली की खपत परिचालन लागत के प्रमुख संकेतकों में से एक है. कुछ अनुमानों के हिसाब से भारत की क्षमता पांच गुना बढ़कर 2030 तक करीब 8 गीगावॉट पर पहुंच जाने का अनुमान है. निवेश फर्म जेफरीज की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, क्षमता में इतनी बढ़ोतरी के लिए 30 अरब डॉलर (2.64 लाख करोड़) के पूंजीगत खर्च की जरूरत होगी और दशक के अंत तक डेटा केंद्रों को लीज पर देकर 8 अरब डॉलर (70,000 करोड़ रुपए) की राजस्व क्षमता के दरवाजे खोले जा सकते हैं.
बदलता भूगोल
अभी भारत की करीब दो-तिहाई डेटा क्षमता मुंबई और चेन्नै में स्थित है. भारत में 17 इंटरनेशनल सब-सी केबल हैं जो मुंबई, चेन्नै, कोच्चि, थूतुकुडी और तिरुवनंतपुरम में स्थित 14 लैंडिंग स्टेशनों तक फैले हैं. सबमरीन यानी समुद्र के नीचे केबल इंफ्रास्ट्रक्चर के मालिक टेलिकॉम ऑपरेटरों में टाटा कम्युनिकेशंस, ग्लोबल क्लाउड एक्सचेंज, रिलायंस जियो, भारती एयरटेल, सिफी टेक्नोलॉजी और बीएसएनएल शामिल हैं.
गूगल का कहना है कि विशाखापत्तनम में उसका प्रस्तावित एआइ हब साझेदारों के साथ मिलकर विकसित किया जाएगा, जिनमें एयरटेल और अदाणीकॉनेक्स शामिल हैं. यह अदाणी एंटरप्राइजेज और डेटा सेंटर संचालक एजकॉनेक्स के बीच 50:50 हिस्सेदारी का संयुक्त उद्यम होगा. गूगल क्लाउड के सीईओ थॉमस कुरियन ने 14 अक्तूबर को कंपनी की योजना से पर्दा उठाते वक्त कहा, ''भारत ऐसे डिजिटल कायापलट से गुजर रहा है जो रफ्तार और पैमाने में बेजोड़ है.
यह एआइ हब बहुआयामी निवेश है जिसमें गीगावॉट पैमाने के ताकतवर डेटा सेंटर का संचालन, विशाल पैमाने के नए ऊर्जा स्रोत और फाइबर-ऑप्टिक नेटवर्क का विस्तार शामिल है. इसमें एआइ से संचालित हर क्षेत्र के कायापलट को तेज रफ्तार देने की क्षमता है.'' कुरियन ने यह भी कहा कि विशाखापत्तनम में बहुत से इंटरनेशनल सब-सी केबल को जमीन तक लाने से कनेक्टिविटी हब का निर्माण होगा जो मुंबई और चेन्नै की मौजूदा लैंडिग के अनुपूरक का काम करेगा.
रियल एस्टेट ब्रोकरेज कोलियर्स की मई 2025 की रिपोर्ट में कहा गया: ''भारत में 2024 तक 97 करोड़ से ज्यादा यानी अमेरिका से करीब तीन गुना इंटरनेट यूजर्स होने के बावजूद उसकी डेटा सेंटर क्षमता अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और जर्मनी जमे-जमाए बाजारों के मुकाबले काफी कम है.'' मांग को बढ़ावा देने वाले क्षेत्रों में हाइपरस्केलर यानी बहुत बड़े पैमाने की क्लाउड कंप्यूटिंग सेवाएं देने वाली कंपनियां और बड़ी मात्रा में डेटा, वित्तीय सेवाएं, टेक्नोलॉजी, रिटेल, और हेल्थकेयर संभालने वाले क्लाउड सेवा प्रदाता शामिल हैं.
डेटा स्टोरेज की कुलांचे भरती मांग के अलावा उद्योग को निवेशकों के लिए आकर्षक बनाने वाले दूसरे कारकों में जमीन, श्रम और निर्माण लागतों में अंतर का फायदा उठाकर मुनाफा कमाने की प्रवृत्ति शामिल है. मुंबई की प्रॉपर्टी कंसल्टेंट फर्म एनारॉक के मुताबिक बीते दशक के दौरान इस क्षेत्र में 6.5 अरब डॉलर (57,000 करोड़ रुपए) से ज्यादा निवेश के वायदे किए गए हैं.
हरित ऊर्जा पर जोर
डेटा सेंटर में बिजली बहुत लगती है. एसऐंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स के मुताबिक 2024 के अंत में भारत की कुल बिजली की मांग में इनका हिस्सा 0.8 फीसद था और 2030 तक इसके तिगुना बढ़कर करीब 2.6 फीसद होने की उम्मीद है. उसका कहना है कि अगले दो सालों में भारत के एशिया-प्रशांत क्षेत्र में डेटा सेंटर की बिजली मांग के लिहाज से दूसरा सबसे बड़ा बाजार बन जाने की उम्मीद है.
इंडस्ट्री के विशेषज्ञ कह रहे हैं कि भारत में बिजली प्रचुर है और कई यूरोपीय देशों या सिंगापुर के मुकाबले सस्ती है. लेकिन मुख्य प्राथमिकता नवीकरणीय या अक्षय ऊर्जा की तरफ बढ़ना और डेटा सेंटर की पानी की भारी मांग के साथ संतुलन बैठाना है. डेटा सेंटर क्षेत्र का बढऩा तय है तो नियामकीय नीतियां अहम भूमिका अदा करेंगी.
क्यों है भारत को डेटा सेंटर की जरूरत
> ऑनलाइन सेवाओं और डिजिटल इस्तेमाल बढ़ने से लोकल डेटा स्टोरेज की मांग बढ़ी
> डेटा लोकलाइजेशन कानून के मुताबिक संवेदनशील डेटा भारत में ही स्टोर होना चाहिए
> क्लाउड, एआइ और फिनटेक की ग्रोथ के लिए सुरक्षित कंप्यूटिंग पॉवर की जरूरत
> लोकल स्टोरेज का मतलब तेजी से और सुरक्षित एक्सेस है
> नौकरियां, निवेश और डिजिटल संप्रभुता बढ़ेगी