प्रधान संपादक की कलम से

पीएम नरेंद्र मोदी ने साहसिक और पूर्ण स्वदेशी अंतरिक्ष अन्वेषण कैलेंडर को मंजूरी दी है. इसके केंद्र में है भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन गगनयान, जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 2027 के लिए तय किया है.

इंडिया टुडे मैगजीन
इंडिया टुडे मैगजीन

—अरुण पुरी

जब अगस्त में अपने ऐतिहासिक अंतरिक्ष सफर के बाद शुभांशु शुक्ला दिल्ली लौटे तो देश रोमांच और गर्व से भर गया. उन्होंने प्रधानमंत्री से मुलाकात की, प्रेस कॉन्फ्रेंस की. पर उनके अनुभवों को लेकर उत्सुकता अब भी बरकरार है और कई सवालों के जवाब बाकी हैं. इस अंक में हम आपके लिए वे सभी जवाब लेकर आए हैं.

इंडिया टुडे के ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर राज चेंगप्पा के साथ सीधे 'शुक्स’ से, जैसा कि उन्हें कहा जाता है, एक्सक्लूसिव और विस्तृत बातचीत. राज 1984 में राकेश शर्मा के मिशन से लेकर अब तक भारत के हर अंतरिक्ष अभियान को करीब से कवर करते आए हैं. उन्होंने कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स पर भी लिखा है.

इस बातचीत में वे दोनों न केवल विज्ञान और रोमांच को उजागर करते हैं, बल्कि उस गहरे आंतरिक बदलाव को भी सामने लाते हैं जो कोई अंतरिक्ष यात्री शून्य गुरुत्वाकर्षण में तैरते हुए अनुभव करता है. शुक्स कहते हैं, ''मैं खिड़की के पास बैठता और घंटों धरती को निहारता रहता था. न कोई विचार, न चिंता, न सवाल. समय जैसे थम जाता था. तब एहसास होता है कि जो कुछ भी आपने जाना, जिनसे आप मिले, पूरा इतिहास, सब कुछ वहीं हुआ है. और आप खुद को बेहद छोटा महसूस करते हैं.’’

जब शुक्ला स्पेसएक्स के क्रू ड्रैगन शटल के खुले हैच से तैरते हुए इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आइएसएस) के भीतर पहुंचे, तो उन्होंने इतिहास में नाम दर्ज कर लिया. अगर 1984 में राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय थे, तो शुक्ला दूसरे बने लेकिन एक अहम फर्क के साथ. वे पहले भारतीय हैं जिन्होंने वर्ष 2000 से मानवता की संयुक्त परियोजना आइएसएस पर रहकर काम किया और परिक्रमा करती लैब में वैज्ञानिक प्रयोग किए.

23 देशों के करीब 285 अंतरिक्ष यात्री उनसे पहले वहां जा चुके थे, फिर भी उनकी यात्रा का अलग महत्व है. यह भारत का उस भविष्य की ओर पहला कदम था, जो संभावनाओं भरा है. पीएम नरेंद्र मोदी ने साहसिक और पूर्ण स्वदेशी अंतरिक्ष अन्वेषण कैलेंडर को मंजूरी दी है. इसके केंद्र में है भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन गगनयान, जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 2027 के लिए तय किया है. इसके लिए चुने गए वायु सेना के चार टेस्ट पायलटों में से एक शुक्ला असल में पूरे राष्ट्र की ओर से अंतरिक्ष का जायजा लेने के लिए एक खोजी मिशन पर थे.

अगला कदम और भी ऐतिहासिक होने वाला है. भारत 2035 तक खुद का भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की योजना बना रहा है, जो कक्षा में अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आइएसएस) और चीन के चालू तियानगोंग कार्यक्रम के बाद तीसरा अंतरिक्ष स्टेशन होगा. 2040 तक लक्ष्य और भी साहसिक है: एक भारतीय को भारतीय अंतरिक्ष यान के जरिए चांद पर उतारना. इसरो ने शुक्ला को एक्सियोम-4 मिशन के लिए खास तौर पर इसलिए चुना ताकि वे आने वाले मानव अंतरिक्ष अभियानों के लिए जरूरी प्रत्यक्ष अनुभव जुटा सकें.

इस मिशन पर 50 करोड़ डॉलर खर्च हुए लेकिन वे जो अनुभव साथ लाए, वह अमूल्य है. जो उन्होंने जिया, उसे कोई सिम्युलेटर दोहरा नहीं सकता: चार लाख किलो रॉकेट ईंधन के ऊपर बैठे हुए फाल्कन-9 की गर्जना के साथ आकाश की ओर उड़ान, आइएसएस के साथ डॉकिंग, माइक्रोग्रैविटी में बिताए दिन और फिर पृथ्वी पर वापसी. कक्षा में किए गए उनके सात प्रयोग भी अनमोल हैं, जिनमें से एक स्टेम सेल और मांसपेशियों के क्षय पर आधारित था जो चिकित्सा विज्ञान की दिशा बदल सकता है.

राकेश शर्मा के एक सप्ताह की उड़ान से कहीं लंबी शुक्ला की यह ऐतिहासिक यात्रा 20 दिन तक चली, जिनमें से 18 दिन उन्होंने आइएसएस पर बिताए, जिसे वे मजाक में '6बीएचके जितना बड़ा’ कहते हैं. बेहद ऊंचाई के आदी एक फाइटर पायलट के रूप में उन्होंने विस्मय का एक नया पैमाना खोजा. पृथ्वी से 400 किलोमीटर ऊपर, 28,000 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ते हुए और दिन में 16 बार पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए, उन्होंने वह दृश्य देखा जो बहुत कम लोग देख पाते हैं: शून्य में तैरती हमारी नीली धरती.

उनके अनुभव हमारे भीतर भी जिज्ञासा और विस्मय जगाते हैं. शून्य गुरुत्वाकर्षण में खाना कैसे खाया जाता है? शरीर लंबी अवधि तक भारहीनता पर कैसी प्रतिक्रिया देता है? जब आप दीवार से बंधे होते हैं तो नींद कैसे आती है? और इनके अलावा, दार्शनिक सवाल भी हैं: कैसा लगता है जब आप सारे मानव इतिहास को अपने नीचे उस गोलाकार धरती में सिमटा देखते हैं? कैसा लगता है जब आप पृथ्वी को निहारते हैं और महसूस करते हैं कि पूरी सभ्यता उसी पर टिकी है?

चालीस की उम्र में ही शुक्स नई पीढ़ी की कल्पनाओं को आकार दे रहे हैं. उनकी कहानी युवाओं को अंतरिक्ष, विज्ञान और खोज के सपने देखने के लिए प्रेरित करती है. वे मानते हैं कि वे लौटना नहीं चाहते थे क्योंकि उनका मन पहले से ही भारत के पहले चांद मिशन पर था. वे हंसते हुए कहते हैं, ''मैं बच्चों से कहता हूं, हो सकता है तुममें से कोई चांद पर कदम रखे. लेकिन मैं भी उस मौके के लिए तुमसे मुकाबला करूंगा.’’ फिलहाल, उस व्यक्ति के साथ रोचक इंटरव्यू का आनंद लीजिए जिसने अंतरिक्ष को हमारे घरों के थोड़ा और करीब ला दिया है. और हां, दीपावली की शुभकामनाएं! 

Read more!