फेक वेडिंग से लेकर अजनबियों के साथ सैर-सपाटा तक; Gen-Z क्यों अपना रहा ये ट्रेंड?

डिजिटल दुनिया में छाई अकेलेपन की महामारी को पीछे छोड़ जेन-जी अनजान लोगों के साथ सैर करने और डिनर करके दोस्ती बढ़ाने की एक नई दुनिया में कदम रख रही है

दिल्ली के रेस्तरां में लेट्स सोशलाइज की सिंगल मीट-अप

इक्कीसवीं सदी में बढ़ते मानसिक दबाव के बीच जेन जी (1996 से 2010 के बीच जन्मे लोग) ने इससे उबरने के लिए कमर कस ली है. उनकी जिंदगी एकदम जद्दोजहद भरी है. व्यस्त पेशेवर जिंदगी, जिसमें किसी दूसरे के लिए समय ही नहीं है.

कनेक्टेड रहने के लिए सोशल मीडिया का सहारा तो है लेकिन धीरे-धीरे दोस्तों का दूर होना उनमें अकेलेपन को बढ़ा रहा है. 28 वर्षीया मैनेजमेंट कंसल्टेंट प्रीति मेहरा ने इन परिस्थितियों से उबरने के लिए एक नई तरकीब अपनाने की सोची. वे उमस भरे एक गुरुवार को गुरुग्राम सेक्टर 29 के एक छोटे से कैफे पहुंची.

कैफे के निमंत्रण में 'डिनर विद स्ट्रेंजर्स' का वादा किया गया था. एक ऐसा डिनर जिसमें आपके साथ ऐसे लोग होंगे जिनसे आप पहले कभी नहीं मिले. ये सब देर रात तक जागने, सुबह जल्दी फ्लाइट पकड़ने और जूम मीटिंगों से उपजी थकान का इलाज है. दोस्त बिखर गए थे-कोई नौकरी से बंध गया, कोई शादी और बच्चों में उलझ गया. बची-खुची बातें अब खोखली-सी लगती थीं. ऐसे में प्रीति की चाह हंसी-मजाक के बीच खाना खाने भर की है.

उनकी ये चाहत एक व्यापक बदलाव को दर्शाती है. अगस्त में प्रकाशित निमहंस (राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान) का अध्ययन कहता है कि 18 से 25 वर्ष के युवाओं की भावनात्मक परेशानी करीबी दोस्तों से दूर होना ही है. शायद इसीलिए सोशल मीडिया पर सबसे सक्रिय जेन-जी अब वर्चुअल लाइफ से लॉग आउट कर असल जीवन में लौट रहे हैं. सामने बैठकर बतियाने की चाह दोस्ती को नया रूप दे रही है और अजनबियों को एक साथ लाने वाले शहरी आयोजन भारतीय शहरों की पहचान बनते जा रहे हैं. दिल्ली की मनोवैज्ञानिक डॉ. उपासना चड्ढा कहती हैं, ''आपसी जुड़ाव की एक ऐसी जरूरत है जो लाइक्स और फिल्टर्स से पूरी नहीं की जा सकती. युवा जान-बूझकर ऑफलाइन स्पेस बना रहे हैं क्योंकि किसी की मौजूदगी अपने आप में एक भरोसा है.''

गपशप, सैर और जिंदगी का मजा
कुछ क्लब्स और ग्रुप्स जहां युवा मिलते हैं, बातें करते हैं और अलग-अलग एक्टिविटीज का मजा लेते हैं.

दिल्ली में जस्टबात की ओर से आयोजित ब्लाइंडफोल्डेड कन्वर्सेशन का सत्र

पूरे भारत में बीस-तीस साल के युवा पार्कों में मिलजुल रहे हैं, डिनर टेबल साझा कर रहे हैं, स्केचबुक या बोर्ड-गेम कैफे में अथवा इम्प्रोव जैम्स (जहां कई इम्प्रोवाइजर्स एक मंच पर मिलकर कुछ भी खेलते या परफॉर्म करते हैं) में मिल रहे हैं. ये नेटवर्किंग बढ़ाने के लिए नहीं है बल्कि दोस्ती को एक आदत के तौर पर अपनाने के लिए है. सिंगल लोगों के लिए ऑफलाइन इवेंट्स करने वाली ऐप लेट्स सोशलाइज के संस्थापक रविंदर सिंह कहते हैं, ''डेटिंग ऐप्स अपने उद्देश्यों से भटक गए हैं और बेमेल नजरिये वाले लोगों के साथ आने से सब बिगड़ गया है.''

ये चलन खासा लोकप्रिय हो रहा है. बुकमाइशो के आंकड़े बताते हैं कि 2024 में 319 शहरों में 30,687 लाइव इवेंट्स आयोजित हुए, जो साल-दर-साल के लिहाज से 18 फीसद की वृद्धि है. करीब 8,90,000 लोग अकेले पहुंचे जिससे पता चलता है कि अकेले आने-जाने में किसी तरह का सामाजिक जोखिम नहीं रहा. यह एक बड़ी बात है. व्यापक स्तर पर बात करें तो यह एक अच्छा-खासा बाजार भी है. फिक्की-ईवाइ मीडिया ऐंड इंटरटेनमेंट विश्लेषण बताता है कि 2024 में आयोजित लाइव इवेंट्स की कुल आय 12,000 करोड़ रुपए से अधिक रही.

डेलॉयट का 2025 जेन जी ऐंड मिलेनियल्स सर्वेक्षण बताता है कि भारतीय जेन जी भावनात्मक सेहत का उतना ही ख्याल रखता है जितना पैसा कमाने और सफलता हासिल करने का. साइंटिफिक रिपोर्ट्स में छपा 2023 का अध्ययन कहता है, लॉकडाउन के दौरान किसी से मिलकर बातचीत करना मानसिक स्वास्थ्य का बड़ा संकेतक रहा. ऐसे ही, करंट रिसर्च इन बिहेवियरल साइंसेज में 2024 की प्रकाशित रिपोर्ट बताती है, युवा वयस्क डिजिटल संवाद से ज्यादा ऑफलाइन बातचीत को आनंददायक मानते हैं. ये निष्कर्ष तकनीक के खिलाफ नहीं, मानव के पक्ष में है कि लोगों से फोन के जरिए संपर्क कीजिए फिर उनसे जब मिलिए तो फोन किनारे रख दीजिए. 

फोर्टिस हेल्थकेयर में मानसिक स्वास्थ्य निदेशक डॉ. समीर पारिख कहते हैं कि दोस्ती बनाए रखने के लिए जो छोटी-छोटी चीजें जरूरी हैं वह स्क्रीन नहीं दे सकती. ''टोन, टाइमिंग और आई कॉन्टैक्ट, ये ऐसे संकेत हैं जिनसे हमारा दिमाग तय करता है कि सामने वाला विश्वसनीय है या नहीं.'' मैक्स हेल्थकेयर में मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार विज्ञान विभाग के वरिष्ठ निदेशक डॉ. समीर मल्होत्रा कहते हैं कि छोटी-सी व्यक्तिगत मुलाकातें भी लोगों को दोबारा मिलने को प्रेरित करती हैं. यही वजह है कि वीकली रीडिंग सर्कल, महीने में एक बार डिनर और दो बार इम्प्रोव जैम जैसी बातों के अपने मायने हैं. ये नाटकीय नहीं होते बल्कि भरोसा बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं. डॉ. मल्होत्रा कहते हैं कि भरोसेमंद होना ही वह जमीन है जहां दोस्ती का रिश्ता फलता-फूलता है.

कहां से शुरू करें दोस्ती

मेहरा की तरह डिनर टेबल से शुरुआत कर सकते हैं, जिसने उनके वीकेंड को रोचक बना दिया. अजनबियों के साथ डिनर का विचार कोई नई बात नहीं. सामाजिक समूह थ्रिफ्टी एक्स गुरुग्राम, दिल्ली, कोलकाता, भुवनेश्वर और तिरुवनंतपुरम के रेस्तरां में डाइन-इन विद स्ट्रेंजर्स का आयोजन करता है. सीटों की संख्या 8-12 तक सीमित होती है- ताकि आत्मीय ढंग से मिल सकें. नियमित रूप से इसके सभी टिकट बिक जाते हैं. रेंट-अ-फ्रेंड भी अब एक सच्चाई है.

दोस्तअड्डा, पलमैच जैसे ऐप्स के साथ ही फेसबुक और टेलीग्राम की कम्युनिटीज ऐसे लोगों की प्रोफाइल लिस्ट करती हैं जो अपना समय 50 रुपए प्रति घंटे या अधिक दर से किराये पर देते हैं. इसके नियम स्पष्ट हैं और ये नॉन रोमांटिक है. यह ह्यूमन लाइब्रेरी जैसा है. ऐसे ही बेंगलुरु का कब्बन पार्क रविवार सुबह शांति से बैठकर कुछ न कुछ पढ़ने वाली मंडलियों से भरा होता है.

कब्बन रीड्स की शुरुआत 2023 में हुई थी. एक समय पर 500 से ज्यादा पाठक पेड़ संख्या 3256 के नीचे एकत्र होते थे. अब चेन्नै से लेकर मुंबई इसकी 60 से ज्यादा शाखा हैं. नियम सीधा सा है: साथ में पढ़े और फिर बातें करें, चाहे किताब या किसी और विषय पर. 23 वर्षीय एडवर्टाइजमेंट इंटर्न प्रणव सिन्हा ने मुंबई में अपनी पहली मित्र मंडली ऐसे ही बनाई. मांग कर लिया गया पेन, एक साथ नाश्ता-पानी और तीसरे रविवार तक मित्रों संग योजनाएं.

सिटी गर्ल्स हू वॉक दिल्ली की शुरुआत मार्च 2023 में सात महिलाओं ने की. तबसे ये सुंदर नर्सरी, लोधी गार्डन, पुराना किला और अमृत उद्यान में 4,000 से ज्यादा महिलाओं के साथ चहल-कदमी कर चुका है. इंस्टाग्राम पर पोस्ट वीकेंड रूट्स पर 90-100 लोग पैदल चलते हैं. इंटर्नशिप के लिए आईं 23 वर्षीया आर्किटेक्चर छात्रा नेहा कपूर कहती हैं, ''मुझे बस आरामदायक जूते पहनकर आना था. और आखिर में मुझे ब्रंच के निमंत्रण के साथ दोस्ती की सौगात मिली.''

क्या आपको टहलने की बजाय इम्प्रोव पसंद है? दिल्ली में कैवल्य प्लेज ओपन जैम्स चलाता है जहां पहली बार आने वाले लोग नियमित आने वालों के साथ परफॉर्म करते हैं. इसमें कहानी सुनाना, स्टैंड-अप कॉमेडी, थिएटर, संगीत आदि शामिल है. जैमिंग के बाद चाय अक्सर रिश्तों को गहरा करने में मददगार साबित होती है. 

पेंसिल चलाने में महारत रखते हों तो बेंगलूरू स्थित पेंसिलजैम की तरफ से लॉन और पेड़ों की छांव में आयोजित स्केच-क्रॉल्स आपके लिए ही है. अगस्त में नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट में पेड़ों के नीचे 100 से ज्यादा स्केचर्स जुटे. 26 वर्षीया सस्टेनेबिलिटी कंसल्टेंट तारा अय्यर एक मुश्किल भरे हफ्ते के बाद अचानक एक सत्र में यहां पहुंचीं. वे बताती हैं, ''किसी ने मुझे एक नीडेड रबर थमाई जैसे कोई सीक्रेट हैंडशेक हो. मैंने दो घंटे तक बेतरतीब पत्तियां बनाईं और मुझे फिर से आने न्योता मिल गया.''

कुछ फॉर्मेट ऐसे हैं जिनमें इस तरह की कोई गतिविधि नहीं होती. थ्रिफ्टी एक्स की तरफ से दिल्ली और बेंगलूरू में और जस्टबात की तरफ से पूरे भारत में आयोजित ब्लाइंडफोल्डेड कन्वर्सेशन्स इससे भी आगे की चीज है. लोग आंखों पर पट्टी बांधकर बातें करते हैं ताकि रूप-रंग और स्तर आड़े न आएं और बातचीत ईमानदार पहलुओं पर आधारित हो. यह तरीका बिना किसी सामाजिक भेदभाव के अजनबियों के बीच तालमेल बनाने में मददगार होता है.

साइक्लिंग समूहों की सक्रियता अलग ही तरह की होती है. कोच्चि में महिला समूह संचालित फ्रीडम नाइट राइड शहर की एक रस्म बन चुकी है, जो किशोरावस्था से लेकर साठ साल की उम्र तक के लोगों को खूब लुभा रही है, जो पुराने शहर की गलियों से गुजरने का लुत्फ उठाते हैं. 

और, शादी के जश्न के बिना सब कुछ अधूरा ही रहेगा. इसलिए फेक वेडिंग भी हाजिर है. टिकट है पर यहां कोई शादी नहीं करता लेकिन बारात होती है. मकसद है दिल खोलकर नाचना-गाना, मस्ती करना और नए दोस्त बनाना. 

अपनेपन से बढ़कर कुछ भी नहीं

ये सब कारगर क्यों साबित हो रहा? इसमें कोई जोखिम नहीं है, क्यूरेटर सब व्यवस्थित कर देते हैं. मेजबान डिनर टेबल पर किसी हिचकिचाते मेहमान का पूरी गर्मजोशी के साथ दूसरे व्यक्ति से परिचय कराता है. एक माहौल में साथ वक्त बिताना, एक ही सीढ़ी का स्केच बनाना, रात में एक ही रास्ते पर साइकिल चलाना, एक ही पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ना लोगों के बीच अपनापन बढ़ाते हैं.

समावेशिता भी इसमें शामिल है—केवल महिलाओं के लिए वॉक, कम-ऐज-यू-आर, आर्ट मीट आदि इसके उदाहरण हैं. जैसा, डॉ. पारिख का कहना है, ''अपनापन जताने के लिए कुछ बहुत अलग नहीं करना होता. बार-बार मिलने का वादा करना या फिर अगले हफ्ते फिर मिलते हैं, जैसा मामूली-सा वाक्य भी अपनापन निभाने के लिए काफी होता है.''

कम खर्चीला होना भी एक अहम वजह है. कई आयोजन मुफ्त या कम टिकट वाले होते हैं. टियर-2 शहरों के पार्क और नदी तट काफी अहम साबित होते हैं. आपको बस एक कदम उठाना है, बाकी काम तो इस पूरी संरचना के भीतर खुद-ब-खुद हो जाएगा, और आपके पास नए दोस्तों की मंडली होगी.

आज जब पूरी दुनिया डिजिटल स्क्रीन के जाल में उलझी है, जेन जी अपनी पहचान अपना वजूद बनाए रखने, चिंताओं से उबरने और अपने सगे-संबंधियों से इतर परिवार बनाने के लिए ऑफलाइन दोस्ती को अपना रही है. बस, आंखों में आंखें डालकर बात कीजिए, एक बेंच पर बैठिए और कुछ स्नैक्स साझा कीजिए. 

यह देखना बेहद उत्साहित करता है कि जब कोई शहर आपको अपनी बात कहने की जगह देता है तो बातचीत बहुत जल्द एक गहरे जुड़ाव में तब्दील हो जाती है. कुछ ऐसे ही पॉपुलर ग्रुप्स के नाम- 

> डिनर विद स्ट्रेंजर्स
एक्टिविटी: अजनबियों से मिलना, साथ खाना और बातें करना.
फुटफॉल: 40-60 प्रति इवेंट
शहर: दिल्ली-एनसीआर, कोलकाता, तिरुवनंतपुरम और भुवनेश्वर
खर्च: 1000-2000 रु. प्रति व्यक्ति

> गर्ल्स हू वॉक
एक्टिविटी: महिलाओं की हफ्तेवार वॉक. सुरक्षित, कैजुअल और मजेदार सोशलाइजिंग का तरीका.
फुटफॉल: 80-150 प्रति वॉक
शहर: दिल्ली, मुंबई और बेंगलूरू
खर्च: मुफ्त

> ब्लाइंडफोल्ड कन्वर्सेशन
एक्टिविटी: आंखों पर पट्टी बांधकर केवल आवाज और व्यक्ति की बातों से उसे जानना.
फुटफॉल: 25-40 प्रति सेशन
शहर: दिल्ली और बेंगलूरू
खर्च: 500-1000 रु.

> मिस्ट्री वॉक
एक्टिविटी: अजनबियों के साथ सीक्रेट लोकेशन पर वॉक करना, जो किसी कैफे या बार में जाकर खत्म होती है.
फुटफॉल: 50-70 प्रति वॉक 
शहर: दिल्ली-एनसीआर, पुणे और मुंबई
खर्च: 800-1200 रु. 

> गेम्स नाइट विद स्ट्रेंजर्स
एक्टिविटी: बोर्ड और कार्ड गेम्स के जरिए नए दोस्तों से मिलना.
फुटफॉल: 40-80 पर नाइट 
शहर: दिल्ली-एनसीआर, हैदराबाद और चेन्नै
खर्च: 500-1000 रु.

> फेक वेडिंग्स
एक्टिविटी: शादी के रोल निभाते हुए मस्ती के साथ बॉन्ड बनाना.
फुटफॉल: 100-250 प्रति इवेंट 
शहर: बेंगलूरू, पुणे और 
दिल्ली-एनसीआर
खर्च: 2000-3500 रु.

> साइलेंट रीडिंग क्लब
एक्टिविटी: शांत बैठकर पढ़ना, फिर चाहे बातचीत कीजिए या बुक स्वैप.
फुटफॉल: 30-80 प्रति सेशन 
शहर: मुंबई, दिल्ली-एनसीआर, बेंगलूरू, पुणे, हैदराबाद और चेन्नै
खर्च: मुफ्त से लेकर 300 रु. तक

> ह्यूमन लाइब्रेरी
एक्टिविटी: अनुभवी लोगों को 'बॉरो' कर उनसे बातचीत करना.
फुटफॉल: 60-150 प्रति इवेंट 
शहर: बेंगलूरू, मुंबई, दिल्ली-एनसीआर, कोच्चि और चंडीगढ़
खर्च: 200-600 रु.


साइकॉलजिस्ट डॉ. उपासना चड्ढा के मुताबिक, आज के समय में लोगों को असली कनेक्शन की बहुत जरूरत है, जो लाइक्स और फिल्टर्स से पूरा नहीं हो सकते. इसलिए युवा जान-बूझकर ऑफलाइन स्पेस बना रहे हैं क्योंकि इंसान की मौजूदगी अपने आप में एक भरोसा है.

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