सरकारी स्कूलों में पिछले दो वर्षों में 49 लाख कम दाखिले, क्या है इसकी असल वजह?
सरकारी स्कूलों में दाखिला 2022-23 में 25.18 करोड़ से घटकर 2023-24 में 24.8 करोड़ और 2024-25 में 24.69 करोड़ पर आ गया

सरकारी स्कूलों में लगातार तीन साल से दाखिले में गिरावट देखी जा रही है. दाखिला 2022-23 में 25.18 करोड़ से घटकर 2023-24 में 24.8 करोड़ और 2024-25 में 24.69 करोड़ पर आ गया. लेकिन सार्वजनिक शिक्षा के हालात पर जल्दबाजी में किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले यह समझना जरूरी है कि गिरावट क्यों हो रही है.
बुनियादी वजह तो देश में आबादी की बदलती तस्वीर है. देश की प्रजनन दर रिप्लेसमेंट लेवल यानी बदलाव स्तर से नीचे गिर गई है, लिहाजा स्कूली उम्र के बच्चों की आबादी घट रही है. यह देश की जनसंख्या के ढांचे में बुनियादी बदलाव है, जिससे अब यह युवा आबादी की बहुतायत वाले देश से कुछ बड़ी उम्र की ज्यादा आबादी वाले देश की ओर बढ़ रहा है.
इसके अलावा छात्रों के दाखिले के लिए स्कूलों के चयन में बदलाव भी है. लोग अपने बच्चों के लिए बेहतर पढ़ाई, अंग्रेजी भाषा की अच्छी जानकारी और आगे के जीवन में अच्छे अवसरों की सोच के साथ निजी स्कूलों में दाखिला दिलाने पर जोर दे रहे हैं. यहां तक कि गांवों में भी कमजोर आर्थिक हालत के बावजूद यह प्रवृत्ति साफ देखी जा रही है.
इसमें एक चिंताजनक प्रवृत्ति यह भी देखी जा रही है कि लोग अपनी कमतर आर्थिक कुव्वत को देखते हुए बेटे-बेटियों की पढ़ाई के लिए स्कूलों के चयन में अलग-अलग नजरिया अपनाते हैं. अमूमन लोग बेटियों का सरकारी और बेटों का निजी स्कूलों में दाखिला कराते हैं. इससे सरकारी स्कूलों में लड़कियों की तादाद बढ़ रही है, जिससे पढ़ाई में स्त्री-पुरुष गैर-बराबरी बढ़ रही है.
हालांकि, दाखिले में गिरावट की एक छोटी वजह बेहतर चाइल्ड ट्रैकिंग तंत्र और डेटा संग्रह प्रणालियों की भी है. बेहतर निगरानी से डुप्लीकेट प्रविष्टियां कम हुई हैं और 'छद्म' दाखिले हटाए जा सके हैं, जिसकी वजह से पहले सरकारी आंकड़े बढ़े हुए दिखते रहे हैं. हालांकि यह सटीक प्रशासनिक प्रक्रिया के मामले में तो सही है लेकिन इसका मतलब है कि आंकड़े पहले से ज्यादा चिंताजनक हो सकते हैं.
इसलिए दाखिले में गिरावट को दूर करने की कोशिश व्यवस्थित और व्यापक होनी चाहिए. एक तो यह देखना जरूरी है कि स्कूलों के विलय और एकीकरण से स्कूल न जाने वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि न हो. स्कूलों का विलय और उनकी उपलब्धता कम होना गरीब और हाशिए पर रहने वाले परिवारों के बच्चों के लिए परेशानी बन सकता है. स्कूल की दूरी की वजह से खासकर लड़कियों के लिए पढ़ाई मुश्किल हो जाती है. उनके परिवार पढ़ाई के लिए उन्हें दूर भेजने को लेकर आशंकित हो सकते हैं. स्कूलों की एकीकरण रणनीति में आने-जाने की दिक्कत को ध्यान में रखा जाना चाहिए. यह भी देखा जाना चाहिए कि बिना भेदभाव के सभी बच्चों के लिए स्कूल सहज सुलभ बने रहें. इस मामले में लड़का-लड़की और आर्थिक स्थिति में फर्क नहीं करना चाहिए.
यह धारणा भी बदलने की कोशिश होनी चाहिए कि निजी स्कूल सरकारी स्कूल से बेहतर हैं. इसके लिए पारंपरिक पढ़ाई के तौर-तरीकों में बदलाव करना जरूरी है. स्कूलों में पढ़ाई को कल्याणकारी कार्यक्रमों से जोड़ने से अच्छी कामयाबी मिली है. कोविड महामारी के दौरान सरकारी स्कूलों में मिड डे मील की जगह कच्चा राशन उपलब्ध कराने से और कामयाबी मिली, जो कमजोर परिवारों के लिए बड़ी मददगार साबित हुई है. निजी स्कूल इसकी बराबरी नहीं कर सकते. प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण कार्यक्रम से सरकारी स्कूलों को जोड़ने से भी समग्र विकास में मदद मिली है.
सरकारी स्कूलों में लड़कियों की संख्या बढ़ना भी बदलाव में मदद का अच्छा मौका है. अनुभवों से पता चलता है कि लड़कियों की शिक्षा टिकाऊ विकास के 17 लक्ष्यों में से नौ में गुणात्मक बदलाव लाती है और राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि में लगभग 10 फीसद का योगदान दे सकती है.
इस प्रकार, सरकारी स्कूलों में दाखिले में गिरावट एक विरोधाभासी तस्वीर पेश करती है: स्कूल तक पहुंच के नजरिए से तो यह चिंताजनक है लेकिन सरकारी स्कूल सबसे कमजोर आबादी की पढ़ाई-लिखाई में मददगार हैं. इन स्कूलों की पढ़ाई बेहतर करके और शिक्षा के मामले में गैर-बराबरी को मिटाकर उनके प्रति लोगों की धारणाएं बदली जा सकती हैं.
- शफीना हुसैन
(शफीना हुसैन एजुकेट गर्ल्स नाम के गैर-सरकारी संगठन की संस्थापक हैं, जिसे 2025 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला.)