देश का मिज़ाज सर्वे 2025 : विपक्ष के लिए वापसी की राह
कांग्रेस और उसके सहयोगी दल अगर फिर से विश्वसनीयता की तलाश में हैं तो सर्वे उन्हें एक आश्वस्ति देता है, साथ में आगाह भी करता है. अपनी गिरावट को थामकर उन्होंने बढ़त हासिल की है. हालांकि बिहार चुनाव इसका लिटमस टेस्ट होने जा रहा

भारतीय राजनीति एक निर्णायक दौर में प्रवेश कर रही है. देश की चुनावी राजनीति के साथ-साथ पूरे राजनैतिक विमर्श की दशा-दिशा बदल देने वाली भाजपा के पिछले एक दशक से कायम दबदबे ने विपक्ष को एक दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है. हरियाणा और महाराष्ट्र में पिछले साल मिली हार से वह अभी तक उबर नहीं पाया है. वैसे भी 2024 के आम चुनाव में भाजपा को अपने दम पर पूर्ण बहुमत हासिल करने से रोकने की छोटी-सी सफलता के बाद लगा यह झटका और भी ज्यादा परेशान करने वाला था.
इन असफलताओं ने विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक की बुनियादी कमजोरियों को उजागर कर दिया है: सत्ता-विरोधी लहर को अपनी चुनावी जीत में तब्दील न कर पाना, आम चुनाव की गहमागहमी के बाद गठबंधन की एकजुटता बनाए रखने की चुनौती और सबसे बड़ी बात ऐसा नैरेटिव गढ़ने में असमर्थ होना जो शहरी तबकों और सोशल मीडिया एल्गोरिद्म से आगे बढ़कर अपनी धमक दिखा पाए.
अब, एक और महत्वपूर्ण अग्नि परीक्षा सामने है, और यह है इस साल के अंत में होने वाला बिहार विधानसभा चुनाव. इसके नतीजे ही तय करेंगे कि लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी की तरफ से लगातार लगाए जा रहे 'वोट चोरी' के आरोप और मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) पर उनकी पार्टी की तरफ से जताया जा रहा संदेह जनता की अदालत में कितने खरे उतरते हैं. इससे ये आरोप या तो लामबंदी की ताकत में तब्दील हो जाएंगे या सत्ताधारी एनडीए के संगठनात्मक तंत्र के खिलाफ बयानबाजी की सीमाओं को उजागर कर देंगे.
इस पृष्ठभूमि में इंडिया टुडे का नवीनतम 'देश का मिज़ाज' सर्वे, जो बिहार चुनाव से पहले आखिरी सर्वेक्षण है, विपक्ष की स्थिति की एक स्पष्ट तस्वीर सामने रखता है. यह दिखाता है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी जमीनी स्तर पर कहां टिके हैं, और कहां स्थिति मजबूत करने की गुंजाइश बाकी है. अपनी साख मजबूत करने की जंग लड़ रहे विपक्ष के लिए ये नतीजे आश्वस्त करने वाले और आगाह करने वाले, दोनों हैं.
राहुल गांधी इस बदले समीकरण का केंद्रबिंदु हैं, जो 28.2 फीसद समर्थन हासिल करने के साथ विपक्षी गठबंधन के नेतृत्व के लिए सबसे पसंदीदा विकल्प बनकर उभरे हैं. यह आंकड़ा इस साल की शुरुआत की तुलना में सुधार दर्शाता है, फिर भी एक साल पहले की उनकी चरम लोकप्रियता से कम ही है.
हालांकि, विपक्ष के अन्य नेताओं से तुलना करें तो वे तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी, आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव जैसे प्रतिद्वंद्वियों से काफी आगे हैं. राहुल ने यह लोकप्रियता संसद के अंदर, सड़कों पर और कैमरे के सामने महीनों लगातार नजर आते रहने के कारण हासिल की है. राहुल अब अनिच्छुक राजनेता नहीं रह गए हैं, भाषण देते वक्त उनकी जुबान नहीं लड़खड़ाती. इसके बावजूद उनसे कभी-कभार गलतियां हो जाती हैं. कुछ अंदरूनी सूत्रों की मानें तो उन्होंने 7 अगस्त की अपनी चर्चित 'वोट चोरी' वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस के पहले कई बार इसकी रिहर्सल की थी.
बहरहाल, देश का मिज़ाज सर्वे के आंकड़े उनके नेतृत्व के बाद अगली कतार की कमजोर कड़ी को भी उभारता है. कभी प्रतिद्वंद्वी सत्ता केंद्र के तौर पर देखी जाने वाली ममता बनर्जी अब अपनी जमीन खो चुकी हैं, जबकि भ्रष्टाचार के आरोपों और दिल्ली में हार के बाद केजरीवाल की साख तेजी से गिरना दिखाता है कि आप की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं लड़खड़ा रही हैं. ऐसे में इंडिया ब्लॉक की दुविधा खत्म होने का नाम नहीं ले रही. हालांकि, इस पर अनिश्चितता कायम है कि क्या राहुल विपक्ष को आम चुनाव में एकजुट रखने में सक्षम होंगे, फिर भी गठबंधन की उन पर निर्भरता बढ़ती जा रही है.
लगातार सुधार जारी
आधिकारिक तौर पर नेता विपक्ष के दर्जे ने राहुल के प्रदर्शन को लेकर जनता की धारणा में उल्लेखनीय सुधार किया है. आधे से ज्यादा लोगों ने उन्हें 'उत्कृष्ट' या 'अच्छा' बताया है, जो पिछले सर्वेक्षण की तुलना में काफी सुधार है, जब उनके प्रदर्शन को 'खराब' मानने वाले लोगों की संख्या 'अच्छा' बताने वालों से ज्यादा थी. ये आंकड़े एक और महत्वपूर्ण पहलू की तरफ इशारा करते हैं कि लोग अब उन्हें सिर्फ एक राजनैतिक परिवार का उत्तराधिकारी नहीं बल्कि संसद में खुद को साबित करने वाले प्रतिपक्षी के तौर पर देखती है. एक विपक्षी दल के तौर पर कांग्रेस के प्रति भी लोगों की राय में सुधार हुआ है और 47.2 फीसद लोग अब इसे 'उत्कृष्ट' या 'अच्छा' मानते हैं, जबकि साल की शुरुआत में यह आंकड़ा कम था. फिर भी, इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि करीब एक-तिहाई उत्तरदाता अब भी इसके प्रदर्शन को नकारात्मक मानते हैं. यह भारत की सबसे पुरानी पार्टी के सामने मौजूद चुनौतियों की गंभीरता को दर्शाता है.
कांग्रेस के भीतर राहुल ने स्पष्ट तौर पर अपनी स्थिति मजबूत की है. पार्टी नेतृत्व के लिए उनके पक्ष में 38.3 फीसद लोगों का समर्थन मिलना इस साल के शुरू से ही लगातार वृद्धि को दर्शाता है. हालांकि यह 2024 में उन्हें मिले लगभग बहुमत के समर्थन से कम है. सबसे पसंदीदा गैर-गांधी नेता के तौर पर सचिन पायलट (16.4 फीसद) का उभरना उस पीढ़ीगत बदलाव की ओर इशारा करता है जिसकी चाहत पार्टी के भीतर कई लोग रखते हैं. हालांकि इस समर्थन का आंकड़ा इतना कम है कि फिलहाल वे गांधी परिवार के लिए कोई तात्कालिक चुनौती पेश नहीं कर सकते. पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े (12.4 फीसद) सहित अन्य संभावित नेताओं के लिए अपेक्षाकृत कम समर्थन इस धारणा को ही पुष्ट करता है कि कांग्रेस चाहे जैसी भी हो, लोग इसे गांधी वंश से पूरी तरह अलग करके नहीं देखते.
आगे अग्नि परीक्षा
हालांकि, सहयोगियों के साथ कांग्रेस के संबंध जटिल हैं. लेकिन बेहतर प्रदर्शन दिखाता है कि पार्टी को विपक्ष को एकजुट रखने वाली एक ताकत के तौर पर देखा जाने लगा है. दो-तिहाई उत्तरदाता कांग्रेस को 'असली' विपक्षी दल मानते हैं. यह संख्या जनमानस के लिहाज से काफी मायने रखती है, क्योंकि यह राजनैतिक संस्कृति की ऐसी सीमा है, जहां धारणा अमूमन मूर्त रूप ले लेती है. लोगों की यह राय इस साल की शुरुआत की तुलना में थोड़ी ज्यादा बढ़ी है. इससे पता चलता है कि मजबूत क्षेत्रीय दलों की मौजूदगी और इंडिया ब्लॉक के औपचारिक ढांचे के बावजूद लोगों की नजर में कांग्रेस ही भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी है. इंडिया ब्लॉक के लिए यह संतुलन साधने की जरूरत को दर्शाता है, जिसमें कांग्रेस अपरिहार्य है लेकिन इसकी मजबूत होती स्थिति उन सहयोगियों के अलग-थलग होने का खतरा उत्पन्न करती है जो खुद को उसके साए में खो जाने देना नहीं चाहते.
सर्वे का एक और आंकड़ा इंडिया ब्लॉक के भविष्य को लेकर जटिल स्थिति को उभारता है. 63.3 फीसद लोगों ने इसके अस्तित्व में रहने का समर्थन किया, जो जाहिर तौर पर एक स्थिरता का संकेतक है. और, बताता है कि लोग विपक्षी मोर्चे को एकजुट देखना चाहते हैं. फिर भी, गठबंधन को अपने आंतरिक अंतर्विरोधों से जूझना पड़ रहा है, जो गठबंधन के संभावित नेताओं के तौर पर ममता (7.7 फीसद), अखिलेश (6.7 फीसद) और केजरीवाल (6.4 फीसद) के अपेक्षाकृत कम समर्थन से स्पष्ट है. इन आंकड़ों का एक मतलब यह भी है कि मतदाता विपक्षी एकता तो चाहते हैं लेकिन किसी क्षेत्रीय नेता को वास्तविक राष्ट्रीय विकल्प के तौर पर नहीं देखना चाहते. इसकी वजह यह है कि इससे गठबंधन के भीतर तनातनी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है क्योंकि कई नेताओं की प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा मुखर हो जाएगी.
जटिल जातिगत समीकरणों और गठबंधन राजनीति के इतिहास के साथ बिहार अक्सर राष्ट्रीय राजनैतिक रुझानों के लिए एक संकेतक साबित होता रहा है. राहुल और कांग्रेस के लिए यह चुनावी ईमानदारी के साथ अपने इस नैरेटिव को सही साबित करने मौका है कि व्यवस्थित तरीके से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है. हालांकि जमीनी स्तर पर कांग्रेस की संगठनात्मक कमजोरी उसकी चिंता की वजह बनी हुई है
कांग्रेस की निर्णायक भूमिका के साथ इंडिया ब्लॉक का मजबूत प्रदर्शन अन्य राज्यों के चुनावों से पहले नैरेटिव के मोर्चे पर दबदबा रखने वाली भाजपा को चुनौती देने के लिहाज से महत्वपूर्ण साबित हो सकता है. प्रदर्शन खराब रहा तो राहुल के नेतृत्व और विपक्षी रणनीति की साख एक बार फिर सवालों के घेरे में होगी. प्रतीकात्मक तौर पर बिहार के चुनाव नतीजे और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं. यह भारत के सबसे गरीब राज्यों में से एक है. इस तरह, यह ठीक उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है जिसे कांग्रेस भाजपा के कॉर्पोरेट-समर्थक एजेंडे के खिलाफ खड़ा करने का दावा करती है.
देश का मिज़ाज सर्वे विपक्ष की एक ऐसी तस्वीर सामने रखता है जो अब लगातार कमजोर पड़ने की स्थिति में तो नहीं है लेकिन फिलहाल अभी तक पूरी तरह उभार पर नहीं पहुंच पाया है. जनता की धारणा में मामूली सुधार, नेतृत्व के सवालों पर कुछ हद तक स्थिरता और एकजुटता बनाए रखने को मिला समर्थन, उसे एक ऐसी राजनैतिक ताकत के तौर पर पेश करता है जिसने अपनी गिरती साख पर काबू पा लिया और धीरे-धीरे इसमें इजाफा करना भी शुरू कर दिया है. लेकिन भाजपा के वर्चस्व को ठोस चुनौती देने के लिए उसे अभी एक लंबा रास्ता तय करना होगा. विपक्ष की असली परीक्षा सिर्फ सत्तारूढ़ दल से मुकाबले में निहित नहीं है, बल्कि उसे साबित करना होगा कि वह भारत के विविधता से भरे मतदाताओं को अपने पक्ष में लामबंद करने की ताकत भी रखता है.
47 फीसद लोगों ने पिछली बार के 40 फीसद के मुकाबले विपक्षी पार्टी के तौर पर कांग्रेस के प्रदर्शन को 'बेहतरीन' या 'अच्छा' बताया
40 फीसद दक्षिण भारत के लोग चाहते हैं कि राहुल गांधी विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करें, यह सभी क्षेत्रों में सबसे ज्यादा है