देश का मिज़ाज सर्वे 2025 : विदेश नीति के मामले में तूफान से गुजरती कश्ती

भारत पर दंडात्मक ट्रेड टैरिफ थोपने और पाकिस्तान को लुभाने की ट्रंप की युक्तियों के चलते कूटनीतिक प्राथमिकताओं के लिहाज से भारत के लिए यह मुश्किल वक्त. राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखने के सरकार के रवैए पर भारतीयों ने लगाई मुहर.

Mood Of The Nation Foreign Affairs
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13 फरवरी, 2025 को व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप के साथ

देश नीति के क्षेत्र में भारत बीते छह महीनों में बेहद अहम घटनाओं का गवाह बना, जो उसके लंबे वक्त की दशा-दिशा पर असर डाल सकती हैं. पहले मई में पहलगाम के आतंकी हमले के जवाब में ऑपरेशन सिंदूर और उसके बाद अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करने को सुनियोजित कूटनीतिक प्रयास हुए. फिर डोनाल्ड ट्रंप का हथौड़ा चला.

भारत की ऊंची टैरिफ दरों का हवाला देते हुए ट्रंप ने भारतीय आयात पर 25 फीसद टैरिफ थोप दिए. इतना ही नहीं, रूसी तेल खरीदने के लिए और 25 फीसद का जुर्माना लगा दिया, जिससे कुल टैरिफ 50 फीसद हो गया. इससे बात बाजार तक ही नहीं रह गई; इसने भारत को रूस के साथ अपने ऐतिहासिक रिश्तों को नजाकत के साथ अब तक संभाले रखने के प्रयासों और अमेरिका के साथ बढ़ते कूटनीतिक रिश्तों को गहरा धक्का पहुंचाया. ट्रंप के एकाएक पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक पींगें बढ़ाने से भारत का असमंजस और बढ़ गया. चीन के साथ जारी तनावपूर्ण संबंध और बांग्लादेश के अपने प्रभाव क्षेत्र से निकल जाने से भारत के क्षेत्रीय तौर पर घिर जाने के अंदेशे को बल मिला.

अमेरिकी टैरिफ का असर 48.2 अरब डॉलर (4.13 लाख करोड़ रुपए) के भारतीय निर्यात पर पड़ेगा. कपड़ा, दवा, ऑटोमोबाइल के कलपुर्जे, स्टील और एल्युमिनियम सरीखे क्षेत्रों के सबसे ज्यादा चपेट में आने का अंदेशा है. कपड़ा उद्योग को मिलने वाले ऑर्डर में खासी कमी आ सकती है क्योंकि अमेरिकी खरीदार इसके लिए वियतनाम और बांग्लादेश सरीखे देशों का रुख कर सकते हैं. इसकी वजह से नौकरियां जा सकती हैं और भारत के निर्यात की वृद्धि पर असर पड़ सकता है.

वैसे सरकार ने कहा है कि वह राष्ट्रीय हितों और निर्यातकों की रक्षा के लिए जरूरी कदम उठाएगी, फिर भी कई भारतीय चिंतित हैं. अगस्त 2025 के इंडिया टुडे देश का मिज़ाज सर्वे में 63 फीसद लोगों ने ऊंचे टैरिफ को लेकर चिंता जाहिर की. हालांकि उनमें से 27 फीसद से ज्यादा बहुत चिंतित नहीं. विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिकी टैरिफ से निबटने के लिए भारत को कूटनीतिक बातचीत, टैरिफ से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों को सहारा देने और दूसरी जगहों पर बाजार खोजने पर जोर देना चाहिए.

विदेश मंत्री एस. जयशंकर 18 अगस्त को दिल्ली में चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ

भारत को टैरिफ विवाद से कैसे निबटना चाहिए? इसके जवाब में 60.7 फीसद का मानना था कि भारत को अपने हितों के साथ समझौता न करते हुए बातचीत जारी रखनी चाहिए, जबकि 23 फीसद का कहना था कि भारतीय अर्थव्यवस्था में अमेरिका के ऊंचे टैरिफ से निबटने का बूता है. दिलचस्प तौर पर 8.7 फीसद का कहना था कि भारत को अमेरिका की मांगें मान लेनी चाहिए. भारत-अमेरिका व्यापार वार्ताओं के ठप पड़ने की वजह भिन्न प्राथमिकताएं रही हैं.

अमेरिका कृषि, डेयरी और ऑटोमोबाइल के क्षेत्रों में भारतीय बाजार को ज्यादा खोलने पर जोर दे रहा है, तो भारत अपने कपड़ा और परिधान सरीखे ज्यादा श्रम सघन निर्यातों पर टैरिफ में सार्थक रियायतों की मांग कर रहा है. गतिरोध के लिए जहां 53.5 फीसद लोगों ने अमेरिका को दोषी ठहराया, वहीं 22 फीसद से ज्यादा भारत की गलती मानते हैं और 15 फीसद दोनों देशों को.

भारत ने भारतीय अर्थव्यवस्था और ग्राहकों की सेवा के अपने दृढ़ रुख पर कायम रहते हुए अमेरिकी और पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद रियायती दरों पर रूसी तेल खरीदना जारी रखा और कहा कि तेल की वैश्विक कीमतों को स्थिर रखने के लिए अमेरिका ने ही उसे ऐसा करने को प्रोत्साहित किया था. ऐसे में सर्वे के 68.7 फीसद लोगों को लगता है कि मॉस्को से तेल खरीदना भारत के राष्ट्रीय हित में है. सिर्फ 15.9 फीसद की राय इससे उलट है.

पाकिस्तान-अमेरिकी गलबहियां
पर विदेश नीति केंद्रित चर्चाओं में तो ऑपरेशन सिंदूर और उससे जुड़े नैरेटिव ही हावी रहे. ब्यौरों पर तमाम असहमतियों के बावजूद इस पर सभी सहमत थे कि 'दूसरे तरीकों से युद्ध’ लड़ने की पाकिस्तान की नीति को खासी महंगी कीमत चुकानी पड़ी. 88 घंटे की लड़ाई में भारतीय सेना पाकिस्तान के ठेठ भीतरी इलाकों में उसके संवेदनशील सैन्य संपत्तियों-असलहों तक जा पहुंची.

इस तरह से उसने ईंट का जवाब पत्थर से देने का एक नया पैमाना सेट किया. जनमानस भी इस सबके साथ दिखा. क्या भारत को आतंक के प्रायोजक देश पाकिस्तान के साथ खेल और खासकर क्रिकेट खेलना चाहिए? इस पर 68 फीसद से ज्यादा का कहना था कि नहीं; केवल 24.5 फीसद की सोच इसके उलट थी. गौरतलब है कि केंद्र ने तय किया है कि भारत पाकिस्तान के साथ दोतरफा सीरीज नहीं खेलेगा, लेकिन दो से ज्यादा टीमों वाले टूर्नामेंटों में उसके खिलाफ मुकाबलों में उतरेगा.

ट्रंप प्रशासन की आक्रामक टैरिफ नीतियां ही नहीं बल्कि अमेरिका की ओर से पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर को खुलेआम रिझाना और उनकी मेजबानी करना भी भारत के कूटनीतिक संकल्प का इक्वतहान ले रहा है. अमेरिका अगर पाकिस्तान को सियासी/सैन्य समर्थन बढ़ाए तो भारत को क्या करना चाहिए?

इसके जवाब में 59 फीसद से ज्यादा ने रूस सरीखे सहयोगी देशों के साथ रिश्ते मजबूत करने की वकालत की. 29 फीसद ने सैन्य तैयारी बढ़ाने की तरफदारी की. 5.5 फीसद ने ही पाकिस्तान के साथ बातचीत को कहा, जो छह महीने पहले बातचीत का समर्थन करने वाले 44.7 फीसद के मुकाबले खासी बड़ी गिरावट है. पहलगाम ने खासकर पड़ोसियों के मामले में भारत की कई पुरानी तयशुदा धारणाओं उलट-पलटकर रख दिया लगता है.

भारत-अमेरिका रिश्तों में तनाव ने भारत को मॉस्को के साथ वक्त की कसौटी पर खरे उतरे रिश्तों को आगे बढ़ाने और चीन की तरफ जाने वाले कूटनीतिक रास्तों को फिर सावधानी से खोलने के लिए उकसाया. अगस्त में चीनी विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने 31 अगस्त से 1 सितंबर तक तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हिस्सा लेने की आधिकारिक घोषणा की.

दोनों पक्ष कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर शुरू करने, व्यापार रास्ते फिर खोलने और सीधी उड़ानों की शुरुआत सरीखे कदमों के साथ दोतरफा रिश्तों को पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं. फिर भी अविश्वास कायम है. पूर्वी लद्दाख में 2020 की चीनी घुसपैठ को याद करते हुए भारतीय सैन्य प्रतिष्ठान चौकन्ना है. जनता भी इस पक्ष में है. चीन के साथ भारत के रिश्तों की प्राथमिकताएं गिनाने को कहने पर 56.5 फीसद ने सरहदों पर सुरक्षा बढ़ाने की वकालत की, जबकि 22 फीसद ने व्यापार को प्राथमिकता दी.

उभरती सांठगांठ

एक बार फिर से विश्वास बहाल करने की कोशिश में चीन ने भारत की तीन अहम चिंताओं—उर्वरक, रेयर अर्थ मटीरियल और टनल-बोरिंग मशीनों की आपूर्ति—को दूर करने का वादा किया. इन आश्वासनों को विश्वास बहाली के उपायों के तौर पर देखा गया, जो रिश्तों में सालों के ठंडेपन के बाद व्यावहारिक सहयोग की नई कोशिश की तरफ इशारा करते हैं

भारत और चीन चौकन्ने इरादों के साथ व्यापार और कूटनीति के मंचों पर वाकई दोबारा जुड़ते दिखाई दे रहे हैं. जनमत में भी यही कशमकश झलकती है. इस नई गरमाहट के बारे में पूछे जाने पर 51.7 फीसद का कहना था कि चीन के साथ करीबी आर्थिक जुड़ावों से भारत की वैश्विक स्थिति मजबूत होगी. 26.3 फीसद को फिक्र है कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा की कीमत पर हो सकता है.

रक्षा प्रमुख जनरल अनिल चौहान ने पिछले महीने आगाह किया कि चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच बढ़ता रणनीतिक गठजोड़ क्षेत्रीय स्थिरता और भारत की सुरक्षा के लिए गहरे असर वाला है. गौरतलब है कि चंद हफ्तों पहले 19 जून को बीजिंग ने तीनों देशों के बीच पहली त्रिपक्षीय बैठक की मेजबानी की थी. विशेषज्ञों का कहना है कि इस बैठक में शामिल हरेक देश का अपना एजेंडा है.

चीन अपनी बेल्ट ऐंड रोड पहल (बीआरआइ) परियोजनाओं का विस्तार करने और दक्षिण एशिया में भारत का असर कम करने की फिराक में है. पाकिस्तान उस बांग्लादेश तक रणनीतिक पहुंच हासिल करने की उम्मीद कर रहा है जो भारत के खिलाफ खतरे पेश करने का संभावित मैदान हो सकता है.

ढाका के लिए इनाम है बीजिंग से बुनियादी ढांचे में और ज्यादा निवेश और राजनैतिक समर्थन हासिल करना. इस उभरती सांठगांठ को लेकर भारतीय कितने फिक्रमंद हैं? 47.5 फीसद का कहना था कि वे 'बहुत ज्यादा चिंतित’ हैं, वहीं 23.7 फीसद 'कुछ हद तक चिंतित’ हैं. 12.1 फीसद ही बेफिक्र दिखाई देते हैं.

विपक्षी दल एनडीए सरकार पर ऑपरेशन सिंदूर के बाद देश को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग कर देने का आरोप लगा रहे हैं. इस आरोप का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में कहा कि संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से केवल तीन ने पाकिस्तान का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि बाकी ने आतंक के खिलाफ भारत की लड़ाई का समर्थन किया, जिनमें ब्रिक्स गुट भी शामिल था.

देश का मिज़ाज सर्वे के ज्यादातर उत्तरदाता सरकार के दावे का समर्थन करते हैं, जिसमें 66.7 फीसद ने कहा कि एनडीए की छत्रछाया में भारत की वैश्विक हैसियत बढ़ी है, हालांकि ये फरवरी के 72.6 फीसद के मुकाबले कुछ कम हैं. असहमति में भी थोड़ा इजाफा हुआ है:

इस साल की शुरुआत के 25.4 फीसद के मुकाबले अब 27.4 फीसद भारत की कूटनीतिक प्रभावशीलता को लेकर सवाल उठा रहे हैं. वैश्विक प्रभाव के ज्यादा बड़े पैमाने पर 60 फीसद को लगता है कि हाल के वर्षों में भारत का वैश्विक सम्मान बढ़ा है, जबकि 21.7 फीसद का मानना है कि इसमें कोई बदलाव नहीं आया. 14.5 फीसद का ही कहना है कि इसमें गिरावट आई.

76 फीसद दक्षिण भारत के लोगों का मानना है कि एनडीए की विदेश नीति के तहत दुनिया में भारत का रुतबा बढ़ा है; उत्तर और पश्चिम में ऐसा मानने वालों की तादाद 63-63 फीसद

56 फीसद सवर्ण हिंदुओं का मानना है कि भारत-चीन की घनिष्ठता से दुनिया में भारत की स्थिति मजबूत होगी—किसी भी जातिगत समूह के लिहाज से यह आंकड़ा सर्वाधिक

33 फीसद मुसलमान उत्तरदाता अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता टूटने के लिए भारत को जिक्वमेदार मानते हैं—धार्मिक समूहों के लिहाज से यह आंकड़ा सबसे ज्यादा है.

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