केन नदी के किनारे रिजॉर्ट बनाकर कैसे वन्यजीव पर्यटन को बढ़ावा दे रहे श्यामेंद्र सिंह?
केन नदी किनारे श्यामेंद्र सिंह एक अनोखा रिजॉर्ट चला रहे हैं, जो काफी फल-फूल रहा है. अब श्यामेंद्र सिंह वन्यजीवन से जुड़े दूसरे रोमांचक स्थलों पर भी नया रिजॉर्ट बना रहे हैं

वे अपनी जिंदगी में हमेशा धारा के विरुद्ध तैरते रहे हैं. मध्य प्रदेश के सतना जिले में नागोद के पूर्व राजघराने में जन्मे श्यामेंद्र सिंह बचपन से ही पर्यटन के क्षेत्र में काम करने के लिए लालायित थे. वे कहते हैं, ''हम परिवार के साथ नेपाल के चितवन नेशनल पार्क में ट्री टॉप्स की यात्रा पर गए थे, तभी से मैंने वाइल्डलाइफ टूरिज्म में करियर बनाने का फैसला कर लिया था.''
तकदीर का खेल देखिए, 1986 में सेवानिवृत्त मेजर और 1971 की जंग के तपे-तपाए सेनानी चंद्रकांत सिंह ने श्यामेंद्र को पन्ना जिले में केन नदी के किनारे बसे नीरव और शांत-से गांव मड़ला में वन्यजीव पर्यटन परियोजना में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया. पन्ना नेशनल पार्क कुछ ही साल पहले अधिसूचित किया गया था और मड़ला इसके प्रवेश द्वारों में से एक था. उसी साल 2.5 एकड़ खेत पर मिट्टी की चार झोपड़ियों के साथ केन रिवर लॉज की शुरुआत हुई. कारोबार शुरू होने के साल भर बाद श्यामेंद्र ने मेजर की हिस्सेदारी खरीद ली और अकेले चलने का फैसला किया.
तब से केन रिवर लॉज बढ़ते-बदलते 50 एकड़ पर 26 कमरों की प्रॉपर्टी में बदल चुकी है. हालांकि यह सफर चुनौतियों से कम नहीं था. 1992 में केन नदी अपना तट तोड़कर भीतर आ गई और बाढ़ में सब कुछ बह गया. श्यामेंद्र ने तब ऐसा मॉडल अपनाने का फैसला किया जिसमें कम निवेश लगे. ऐसे में उन्होंने टेंट लगाए. चार साल बाद 10 कमरे बने, फिर 16. सब कुछ धीरे-धीरे पटरी पर लौट रहा था, तभी 2005 में अगली बड़ी बाढ़ आ धमकी. एक बार फिर श्यामेंद्र तकरीबन सब कुछ गंवा बैठे. वे कहते हैं, ''वह मेरी जिंदगी का निर्णायक मोड़ था. मुझे तय करना था कि सब कुछ समेटकर चला जाऊं या फिर उबरने की एक और कोशिश करूं.''
अंतत: उन्होंने 'फिर उबरकर कामयाब' होना चुना. छह महीने के भीतर उन्होंने प्रॉपर्टी को दोबारा खड़ा किया और अगले टूरिस्ट सीजन के लिए तैयार कर लिया. वे कहते हैं, ''मेरे स्टाफ ने कम सैलरी पर काम किया. मैंने बिल्डिंग मटीरियल उधार पर खरीदा. तनख्वाह का भुगतान करने और कर्ज चुकाने में मुझे तीन साल लगे.''
अब भी श्यामेंद्र और उनकी पत्नी भावना कुमारी लॉज के रोजमर्रा के काम संभालते हैं. संकट की मार ने उन्हें दूसरे रिजर्व क्षेत्रों में कारोबार का विस्तार करने की सोच दी. उन्होंने बांधवगढ़ में ट्री हाउस हाइडअवे ऐंड किंग्ज लॉज (2006) और कान्हा में अर्थ लॉज (2008) बनाए. केन रिवर लॉज की मार्केटिंग का काम संभाल रहे उनके दोस्त मानव खंडूजा भी साथ गए और 2008 में दोनों ने पगडंडी सफारीज की स्थापना की. पगडंडी ने उसके बाद दूसरे साझेदारों के साथ मिलकर ताड़ोबा, सतपुड़ा और पेंच टाइगर रिजर्व में तीन और प्रॉपर्टी खड़ी कीं. सभी सातों प्रॉपर्टी का कुल टर्नओवर करीब 30 करोड़ रुपए है.
श्यामेंद्र को 2009 में मध्य प्रदेश वन्यजीव सलाहकार बोर्ड में मनोनीत किया गया. अब वे पन्ना और बांधवगढ़ रिजर्व के बीच के गलियारे पारसमनिया जंगल को कंजर्वेशन रिजर्व घोषित करवाने के लिए काम कर रहे हैं. वे कहते हैं, ''मैं जब पहली बार मड़ला आया तो लोगों ने कहा कि तुम गलती कर रहे हो. लेकिन 1986 में 800 लोगों के उनींदे गांव से अब इसका कायापलट ऐसे गांव के तौर पर हो चुका है, जहां 50 सफारी गाड़ियां और आठ जंगल रिजॉर्ट हैं. पर्यटन से अब यहां का कुल टर्नओवर करीब 20 करोड़ रुपए है.'' यह कहना सही होगा कि प्राकृतिक चुनौतियों के बावजूद श्यामेंद्र का प्रकृति के प्रतिप्रेम कम नहीं हुआ और पन्ना के एक छोटे-से कोने में अपनी सोच और जज्बे से उन्होंने ढेरों जिंदगियों को छुआ.
श्यामेंद्र सिंह के मुताबिक, ''मेरे स्टाफ ने कम सैलरी पर काम किया. मैंने बिल्डिंग मटीरियल उधार पर खरीदा. सैलरी का भुगतान करने और कर्ज चुकाने में मुझे तीन साल लगे.''