कभी ठेले पर बेचते थे बांस की बोतलें, अब 2.50 करोड़ की कंपनी के CEO बने सत्यम सुंदरम
बिहार के छोटे-से गांव से शुरू हुआ ईको-एंटरप्राइज आज बना रहा बांस के 300 तरह के प्रोडक्ट, जो देश भर के 25 राज्यों में बिक रहे

अगर बांस मजबूती की निशानी है, तो 27 साल के सत्यम सुंदरम भी उसी की मिसाल हैं. पूर्णिया की साधारण पृष्ठभूमि से निकलकर आज वे एक कामयाब ईको-एंटरप्राइज चला रहे हैं, जो 25 राज्यों में 300 तरह के हैंडक्राफ्टेड बांस प्रोडक्ट सप्लाइ करता है.
सत्यम का बचपन ऐसे घर में बीता जहां गुजारे का सहारा उनके पिता की नौकरी थी, जो बिहार पुलिस मेस में खाना बनाते थे. उन्होंने काफी मेहनत से सरकारी नौकरी पाने की कोशिश की लेकिन कामयाब न हो पाए. फिर कोलकाता से एमबीए करना उनकी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ. बड़ी कंपनियों में इंटर्नशिप ने उन्हें मनाने की कला, मार्केट स्ट्रैटेजी और सेलिंग के बेसिक सिखाए. यही स्किल्स बाद में उनके करियर की पहचान बनीं. फिर भी अपना काम शुरू करना इतना आसान न था.
कोविड के बाद जब 'प्रकृति की तरफ लौटें' वाली सोच तेज हुई तो सत्यम को बांस में प्लास्टिक का ऐसा विकल्प दिखा जिसे अभी तक खास आजमाया नहीं गया था. पर बात फाइनेंस जुटाने की थी. कई महीनों तक दफ्तरों के चक्कर लगाने के बाद आखिरकार फरवरी 2022 में उन्हें प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) के तहत 7.91 लाख रुपए का लोन मिला. लेकिन फैक्ट्री और फ्रेंचाइज शुरू करने से पहले उन्होंने बांस की बोतलें बेचते हुए पूर्णिया की सड़कों पर लंबे दिन गुजारे. वे बताते हैं, ''मुझे शुरुआती सेल्स ने सब्र सिखाया. अगर आप अपने प्रोडक्ट पर भरोसा करते हैं तो वहीं खड़े रहते हैं जब तक कोई और भी उस पर यकीन न करने लगे.''
आज तस्वीर बिल्कुल बदल चुकी है. पूर्णिया के मारंग इलाके में स्थित मणिपुरी बंबू आर्किटेक्चर के हेडक्वार्टर में कदम रखते ही हवा में लकड़ी की मीठी खुशबू-सी महसूस होती है. शो-रूम खचाखच भरा है—एक तरफ सोफा सेट रखे हैं तो दूसरी तरफ नाजुक हैंडबैग. दीवारों पर टूथब्रश, थर्मस फ्लास्क, पेन होल्डर, खिलौने. सैकड़ों तरह के बांस के शिल्प सजे हुए हैं.
डिस्प्ले के उस पार फैक्ट्री है, जो पिता की खरीदी लगभग 2,800 वर्ग फुट जमीन पर बनी है. अंदर बांस काटने वाली मशीन काम कर रही है. पॉलिशिंग व्हील्स एक सधी हुई लय में घूमते रहते हैं. बड़े ऑर्डर आने पर चलाने के लिए जनरेटर भी तैयार खड़ा है. आज सत्यम 2.50 करोड़ की कंपनी के मालिक हैं.
मई 2022 में बिहार के तत्कालीन उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन ने मणिपुरी बंबू आर्किटेक्चर का उद्घाटन किया था. तब से यह 40 लाख रुपए सालाना टर्नओवर वाली कंपनी बन चुकी है. चुनिंदा शहरों के लिए तीन फ्रैंचाइज पार्टनर हैं. ऑनलाइन सेल्स खुद सत्यम देखते हैं, जबकि उनकी मां आशा अनुरागिनी लोकल आउटलेट संभालती हैं. वर्कशॉप की टीम बेहद सटीक तरीके से काम करती है. रोजमर्रा की कटलरी से लेकर बारीकी से तराशी गई पोर्टेट्स और भारत के बंबू मैप्स तक, हर क्रिएशन प्लास्टिक को चुनौती देता है और मजबूती का जश्न मनाता है. सत्यम कहते हैं, ''बांस झुकता है, टूटता नहीं. मेरी कहानी भी यही है.''
सत्यम सुंदरम के मुताबिक, ''एमबीए की पढ़ाई ने मुझे मार्केटिंग के गुर और सप्लाइ में गैप पहचानना सिखाया. पर आंकड़े और हालात जब मुझे रुकने को कह रहे थे, उस वक्त मां की अडिग हिम्मत ने ही मुझे आगे बढ़ाया.''