नौकरी छोड़कर MBA निशांत बने मछुआरा, अब 300 परिवारों को दे रहे रोजगार

रांची के निशांत कुमार ने नौकरी छोड़ पांच तकनीकों से मछली उत्पादन शुरू किया. अब वह तीन राज्यों के 300 परिवारों को रोजगार दे रहे हैं

निशांत कुमार पकड़ी गई मछलियों के साथ

हिम्मत ही वह ताकत है जो सपनों को सच करने का रास्ता दिखाती है. मुश्किलें भी आती हैं लेकिन सफर में उठना-गिरना-संभलना, यही जीवन है. झारखंड की राजधानी रांची के रहने वाले निशांत कुमार के सपनों का सफर कुछ ऐसा ही रहा. अपने साथ उन्होंने 300 से ज्यादा परिवारों की आंखों में चमक पैदा की. 

निशांत मीडिया इंडस्ट्री के मार्केटिंग डिपार्टमेंट में काम करते थे. इसी दौरान उन्होंने स्मॉल स्केल का एक साइड बिजनेस शुरू करना चाहा. कई तरह के बिजनेस एक्सप्लोर करते हुए उनकी दिलचस्पी मछली उत्पादन में जागी. उन्होंने तीन दोस्तों के साथ मिलकर 40 लाख रुपए की जमा-पूंजी से 26 जून, 2018 को किंग फिशरीज की शुरुआत की. 

निशांत कहते हैं, ''थ्योरी का ज्ञान था, प्रैक्टिकल का नहीं. नवंबर का महीना मछली निकालने का होता है, पर हमने स्टॉक कर ली. इससे 28 लाख रुपए का नुक्सान हो गया. लगा, सब खत्म हो गया. कुछ करीबियों ने हिम्मत दी. इसके बाद तो भारत में कहीं भी फिशरीज से जुड़ा ट्रेनिंग प्रोग्राम होता, मैं वहां पहुंच जाता.'' 

वे यह भी कहते हैं, ''साल 2019 में जब मैं इंडोनेशिया गया तो वहां बायोफ्लॉक तकनीक के जरिए लोग मछली पालन कर रहे थे. मैंने डेढ़ महीने वहां रुककर वह तकनीक सीखी. वापस लौटा और फिर से 40 लाख रुपए की पूंजी के साथ 15,000 लीटर क्षमता वाले 24 बायोफ्लॉक टैंक लगाए. इनमें पंगास और मोनोसेक्स तेलापिया मछली का जीरा डाला.'' निशांत ने मई 2020 में पहली बार मछली निकाली और लगभग 4,500 किलो बेची. इससे उन्होंने लगभग पांच लाख रुपए का व्यापार किया. 

इस छोटी सफलता के बाद उन्होंने साल 2020 में दो एकड़ का तालाब लीज पर लिया और पारंपरिक तरीके से मछली उत्पादन शुरू किया. इसके साथ ही एक बड़े जलाशय में केज के जरिए भी मछली उत्पादन की शुरुआत की. नतीजतन, 26 टन का उत्पादन हुआ. साल 2021 में उन्होंने बायोफ्लॉक टैंक में बढ़ोतरी की और उनके पास कुल 74 टैंक हो गए. कुछ दिन बाद उन्होंने 10 लाख लीटर पानी की क्षमता वाला इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आइओटी) सपोर्टेड सिस्टम लगाया. इसमें उन्हें पानी में ऑक्सीजन, अमोनिया और डिजॉल्व्ड ऑक्सीजन के डेटा के साथ पानी की गुणवत्ता का रियल टाइम अपडेट फोन पर मिलने लगा. इस तकनीक से मछली के नुक्सान की संभावना न के बराबर रह गई और सालाना उत्पादन बढ़कर 150 टन हो गया.

निशांत बताते हैं कि 160 से 170 टन सालाना उत्पादन को वे साल के अंत तक 200 टन तक ले जाना चाहते हैं. वे पंगास और तेलापिया के अलावा रोहू, कतला, नैनी, पाबदा, सिंघी, रूपचंद, ग्रासकार्प, कॉमन कार्प, कोई (कवई) और सजावटी मछली जैपनीज कोई का उत्पादन कर रहे हैं. सालाना टर्नओवर अब लगभग 2.50 करोड़ रुपए हो गया है. निशांत दावा करते हैं कि किंग फिशरीज भारत का पहला कमर्शियल फार्म है जहां एक साथ पांच तकनीकों (पेन कल्चर, जलाशय, तालाब, बायोफ्लॉक कल्चर और आरएस कल्चर) से मछली का उत्पादन किया जा रहा है. उन्होंने वहां पहले से चल रहे एक्वा टूरिज्म, जिसमें वाटर पार्क, रिजॉर्ट, एम्यूजमेंट पार्क आदि शामिल हैं, से भी खुद को जोड़ा है. उनके इस बिजनेस से सीधे तौर पर झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के 300 से ज्यादा परिवार जुड़े हुए हैं.

सरकारी मदद को याद करते हुए निशांत कहते हैं, ''साल 2021 में पीएम मत्स्य संपदा योजना के जरिए मुझे 20 लाख रुपए की सब्सिडी मिली. इसी वजह से मैं बायोफ्लॉक के  50 अतिरिक्त टैंक लगा पाया.'' चूंकि भारत सरकार की इस योजना को विश्व बैंक फंड कर रहा है, ऐसे में इसकी सफलता देखने विश्व बैंक के प्रतिनिधि भी साल 2025 में आए. निशांत के मुताबिक, एक प्रतिनिधि ने उनके तकनीकी मछली उत्पादन को इंडिया ही नहीं, वैश्विक स्तर पर दुर्लभ बताया.

पीएमओ के अधिकारी जी. रेघू, मत्स्य उत्पादन विभाग की केंद्रीय सचिव अभिलाषा लेखी, नेशनल फिशरीज डायरेक्टरेट बोर्ड के सीईओ बी.के. बेहरा, सेंट्रल इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट बैरकपुर पश्चिम बंगाल के निदेशक बी.के. दास ने भी निशांत का हुनर देखा और सराहा. इसके अलावा इजिप्ट (मिस्र), बांग्लादेश, नॉर्वे, भूटान, नेपाल, थाइलैंड, नाइजीरिया से भी लोग एक्सपोजर विजिट के लिए आ चुके हैं.

उनके जुनून और अलहदा सोच को झारखंड सरकार भी सम्मानित कर चुकी है. निशांत साल 2021-22 में इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च के तहत आने वाले सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरीज एजुकेशन की तरफ से डॉ. हीरालाल चौधरी बेस्ट फिश फार्मर और साल 2022-23 में बेस्ट फिश प्रोग्रेसिव फार्मर अवार्ड के विजेता भी रह चुके हैं.

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