कामिनी सिंह ने सहजन की पत्तियों से कैसे खड़ा किया करोड़ों का कारोबार?

कामिनी सिंह की कंपनी सहजन की पत्तियों से चाय, साबुन, पाउडर और कुकीज बना रही है. इससे सैकड़ों महिलाओं और किसानों को रोजगार मिल रहा है

78 Years of independence  the micromoguls
लखनऊ के मुबारकपुर में डॉक्टर मोरिंगा के प्लांट में डॉ. कामिनी सिंह

लखनऊ आइआइएम के पास मुबारकपुर की यह एक उमस भरी दोपहरी है. लेमनग्रास की हल्की खुशबू सूखते पत्तों की मिट्टी जैसी गंध के साथ घुल रही है. दुमंजिला इमारत के भीतर महिलाएं काम कर रही हैं—पाउडर तोलना, साबुन पैक करना, ग्रीन टी के पाउच को करीने से लगाना. एक दीवार पर कतार में रखे जार और पैकेट अलग-अलग हरे रंगों में चमक रहे हैं. हरेक पर नाम और बैच की तारीख लिखी है. लगभग सबका संबंध एक निहायत साधारण-से लेकिन अद्भुत सहजन के पेड़ से है जिसने चुपचाप लेकिन तेजी के साथ पूरी दुनिया में अपनी जगह बना ली है.

सहजन को मोरिंगा या ड्रमस्टिक ट्री भी कहते हैं. यह मजबूत और तेजी से बढ़ने वाला पौधा है, जो लंबे समय से भारतीय रसोई का हिस्सा रहा है. हाल के वर्षों में इसे विदेशों में 'सुपरफूड’ का दर्जा मिला है क्योंकि इसमें प्रोटीन, विटामिन, मिनरल और एंटीऑक्सिडेंट की भरपूर मात्रा होती है. पत्तियां, फली, बीज यानी पौधे का लगभग हर हिस्सा खाने या दवा में काम आता है.

डॉ. कामिनी सिंह के लिए सहजन सिर्फ एक फसल भर नहीं. यह डॉक्टर मोरिंगा की नींव बना, वह कंपनी जिसे उन्होंने 9 लाख रुपए के कर्ज से शुरू किया और आज इसका 2 करोड़ रुपए से ज्यादा का सालाना टर्नओवर है. इसका नेटवर्क पांच राज्यों तक फैला है और उत्पाद मलेशिया, कनाडा और यूएई तक पहुंच रहे हैं.

बनारस में पलीं-बढ़ीं और बाद में लखनऊ में बसीं कामिनी सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर सबट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर (सीआइएसएच) में सीनियर रिसर्च फेलो के रूप में फसलों पर शोध और किसानों के साथ काम कर रही थीं. 2015 तक आते-आते, पीएचडी के बीच ही उन्होंने निजी कारणों से नौकरी छोड़ दी. किसानों के साथ सीधे काम करने की उनकी इच्छा ने 2016 में जैविक विकास कृषि संस्थान को जन्म दिया. इसका मकसद था: जैविक खेती को बढ़ावा देना और ग्रामीण आजीविका को मजबूत करना.

इसी बीच यूं ही संयोगवश एक नर्सरी की विजिट ने उनका रास्ता बदल दिया. वहां सलीके से कतारों में सहजन के पेड़ लगे थे, जिन्हें उस इलाके के व्यावसायिक किसानों ने लगभग नजरअंदाज कर रखा था. कामिनी उनकी असली कीमत जानती थीं, और यह भी समझ रही थीं कि बाजार में इनकी कमी है. लेकिन किसानों को इसके लिए मनाना आसान न था. उन्होंने कभी इसे उगाया ही न था और उस समय जैविक उपज के दाम लागत निकालने लायक भी नहीं थे. कामिनी उन्हें खेतों की मेड़ पर सहजन लगाने के लिए कहतीं लेकिन अक्सर गांवों से उन्हें सिर्फ विनम्रता भरी नकार ही मिलती. पर कुछ किसानों ने हिम्मत दिखाते हुए हां कर दी.

कामिनी ने 2018 में लखनऊ से करीब एक घंटे की दूरी पर स्थित सिधौली में सात एकड़ जमीन लीज पर ली और वहां इसकी खेती की. इसके साथ उन्होंने लेमनग्रास को इंटरक्रॉप के रूप में लगाया. फसल भरपूर हुई—प्रति एकड़ लगभग 400 किलो पत्तियां—लेकिन आसपास कोई खरीदार न था. ताजा पत्तियों को ढोकर ले जाना व्यावहारिक नहीं था. इसलिए कामिनी ने फैसला किया कि वे खुद ही प्रोसेसिंग करेंगी.

उन्होंने अपनी योजना आइआइटी-बीएचयू के सामने रखी और 9 लाख रुपए का लोन हासिल कर लिया. इसके बाद उन्होंने एक छोटी यूनिट लगाई, जहां पत्तियों को सुखाकर पाउडर बनाया जाने लगा और फिर उन्हें टैबलेट में प्रेस किया जाने लगा. आइआइटी-बीएचयू ने तकनीकी मदद दी और बाद में 25 लाख रुपए की ग्रांट भी मिली.

फिर आया कोविड-19 का दौर. सेहत पर पडऩे वाले सहजन के अच्छे प्रभाव जब सुर्खियों में आए तो डिमांड अचानक बढ़ गई. कामिनी का प्रोडक्ट रेंज तेजी से फैलकर चाय, साबुन, एनर्जी बार, मच्छर भगाने वाले स्प्रे और रेडी-टू-ईट स्नैक्स जैसे मोरिंगा कुकीज और फ्लेवर्ड मखाने तक पहुंच गया.

आज डॉक्टर मोरिंगा सिर्फ लखनऊ में ही 1,050 किसानों के साथ काम करता है, जिनमें 210 महिलाएं हैं. पांच राज्यों में मिलाकर 5,000 से ज्यादा लोग खेती, तुड़ाई और प्रोसेसिंग से जुड़े हैं. यह काम करीब 200 एकड़ जमीन पर फैला हुआ है. बिक्री का 15 फीसद हिस्सा निर्यात होता है. कामिनी अब अर्जेंटीना के खरीदारों से बातचीत कर रही हैं. वे कहती हैं कि अब हालात बदल गए हैं, किसान खुद उनके पास आ रहे हैं. कंपनी अपने प्रोडक्ट्स ऑनलाइन बेचती है, अपना खुद का ऐप है और चुनिंदा दुकानों पर भी बिक्री करती है.

फैक्ट्री के दरवाजे एक तंग गली में खुलते हैं लेकिन कामिनी की नजरें उससे कहीं आगे हैं—नई खेती, नए प्रोडक्ट्स और नए देश, जहां उनका चमकदार हरा पाउडर पहुंच सकता है. वे कहती हैं, ''पत्तों की खेती और तुड़ाई महिलाओं के लिए आसान है. इसलिए हम इसे बढ़ावा दे रहे हैं.’’ कामिनी के लिए सहजन सिर्फ एक फसल नहीं बल्कि इज्जत के साथ काम देने का तरीका है.

कामिनी सिंह ने कहा कि सहजन को लोगों की जिंदगी का हिस्सा बनाना हमारा लक्ष्य है. हम चाहते हैं कि महिलाओं को कुछ ढंग का काम मिले. पत्तों की खेती और प्रोसेसिंग उनकी दिनचर्या में आसानी से फिट होकर आय का स्रोत बनती है.

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