अनिकेत धर ने जलकुंभी को कैसे बनाया कमाई का जरिया?

तालाबों और झीलों का गला घोंट रही जलकुंभी से अनिकेत धर ने कागज बनाना शुरू कर दिया. इससे तालाब और झीलें तो साफ हो ही रहीं, लोगों को कमाई और रोजगार का नया जरिया भी मिला

अनिकेत धर असम में गुवाहाटी के पास दीपोर बील पर कुंभी कागज के साथ

जब से ब्रिटिश शासन में इसे बड़े पैमाने पर फैलाया गया, भारत के ज्यादातर जलाशय जलकुंभी से पट गए हैं. इस खरपतवार ने जैव विविधता को नुक्सान पहुंचाया, जलीय जीवन को बर्बाद किया और लोगों की रोजी-रोटी पर असर डाला.

असम में गुवाहाटी के पास स्थित झील दीपोर बील भी इसी का शिकार हुई. लेकिन अब इसी जगह से एक नई पहल ने पूरी कहानी पलट दी है: कुंभी कागज, यानी इसी पारिस्थितिकीय अभिशाप से तैयार किया गया कागज.

इसके सह-संस्थापक और वन्यजीव प्रेमी, 28 वर्षीय रूपंकर भट्टाचार्य अपने मेंटॉर और मशहूर सरीसृपवेत्ता (हर्पेटोलॉजिस्ट) जयादित्य पुरकायस्थ के साथ दीपोर बील में फोटो खींचने के लिए एक अजगर का पीछा कर थे. तभी सांप जलकुंभी के बिंधे हुए जाल के नीचे घुस गया और उनकी कोशिश नाकाम हो गई. पुरकायस्थ ने इस जाम हो चुके जलाशय पर दुख जताया तो रूपंकर सोच में पड़ गए.

उन्होंने यह बात अपने दोस्त और सह-संस्थापक, 25 वर्षीय अनिकेत धर से साझा की. कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान रूपंकर की रिसर्च से पता चला कि इस पौधे में रेशे की मात्रा बहुत ज्यादा होती है, जो कागज बनाने के लिए बेहतरीन है. इसी से बिजनेस आइडिया ने आकार लिया और 2022 में कुंभी कागज की शुरुआत हुई. इस उपक्रम का नाम जलकुंभी से ही लिया गया है.

रूपंकर और अनिकेत ने ब्रिटेन की वेस्टएड संस्था के जीरो वेस्ट सिटी चैलेंज से 10,000 यूरो (लगभग 8.3 लाख रुपए) लिए. उन्होंने इस फंड से गुवाहाटी के अजरा इलाके में अपनी फैक्ट्री शुरू की. उनका कारोबार पिछले वित्तीय वर्ष में 15.5 लाख रुपए का टर्नओवर दर्ज कर चुका है. रूपंकर उत्पादन और मशीनरी देखते हैं, जबकि अनिकेत बिजनेस ऑपरेशन संभालते हैं. इन्हें सहयोग मिलता है जयादित्य पुरकायस्थ की पत्नी मधुरिमा दास से, जो रिसर्च और वैज्ञानिक पहलुओं की जिम्मेदारी उठाती हैं.

कुंभी कागज की खासियत उसकी अनोखी तकनीक है. जहां एक ओर जलकुंभी को दूसरे पदार्थों के साथ मिलाकर कागज बनाया जाता था, वहीं कुंभी कागज ने एक ऐसी प्रक्रिया विकसित की है जिससे ''100 फीसद जलकुंभी'' से कागज तैयार होता है. अनिकेत धर कहते हैं, ''हम न तो किसी केमिकल का इस्तेमाल करते हैं और न ही किसी एसिड का.'' इसका राज है उनकी खुद डिजाइन की हुई मिश्रण मशीन, जो रेशों को कुशलता से तोड़ देती है, जिससे वे आपस में मजबूती से जुड़ जाते हैं.

कुंभी कागज ने पर्यावरण को संवारने और लोगों को रोजगार से जोड़ने का काम भी किया है. इस पहल के जरिए 2023 से अब तक दीपोर बील से 42 टन जलकुंभी हटाई जा चुकी है. अब यह कोशिश काजीरंगा नेशनल पार्क और ग्वालपाड़ा के उरपाड़ बील तक पहुंच चुकी है. इन पहलकदमियों ने स्थानीय मछुआरा समुदायों को भी राहत दी है, जिन्हें पहले जलकुंभी की सफाई पर भारी खर्च करना पड़ता था. अब यह बोझ उनके सिर से हट चुका है और उनकी आजीविका पर सकारात्मक असर दिख रहा है.

कुंभी कागज को शुरुआती दिनों में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. उत्पादन का कोई अनुभव न था, इसलिए संस्थापकों को खुद कारीगर और मैकेनिक बनकर काम सीखना पड़ा. पूर्वोत्तर की नमी ने मुश्किलें भी बढ़ा दीं, जिससे कागज सुखाने की प्रक्रिया बहुत धीमी हो गई और उत्पादन सीमित रह गया. लेकिन तभी असम स्टार्टअप, केंद्र सरकार की अमृत 2.0 प्रतियोगिता के तहत आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय से ग्रांट मिली. इसके अलावा जीएपी फंड से 54 लाख रुपए की सहायता भी मिली. जीएपी फंड को अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष (आइएफएडी) का समर्थन प्राप्त है.

इसकी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम में कुंभी कागज का जिक्र किया. इसके बाद पूरे भारत में विस्तार के प्रस्ताव आए, लेकिन संस्थापकों ने पहले असम में मजबूती से खड़े होने का फैसला किया. उनका विजन है कि जलकुंभी से बने हैंडीक्राफ्ट्स को जीआइ (भौगोलिक संकेतक) टैग दिलाया जाए, ताकि वह चाय के साथ असम की पहचान बन सके.

रोडमैप बिल्कुल साफ है. पहले दो साल स्टेशनरी मार्केट में मजबूत उपस्थिति बनाने और ईको-फ्रेंडली कागज को सस्ता करने पर ध्यान रहेगा. स्टेशनरी के बाद अगला बड़ा कदम पैकेजिंग है. अनिकेत कहते हैं, ''अभी हमारा कागज आम कागज से थोड़ा महंगा है. हम चाहते हैं कि इसकी कीमत बराबरी पर आ जाए, ताकि टिकाऊ विकल्प सबके लिए आसानी से उपलब्ध हों. इको-फ्रेंड्ली चीजें खरीदना कोई लग्जरी नहीं होना चाहिए.''

अनिकेत धर ने कहा, ''हमारा कागज अभी आम कागज से थोड़ा महंगा है. हम चाहते हैं कि इसकी कीमत बराबरी पर आ जाए, ताकि यह सबके लिए सुलभ हो. इको-फ्रेंड्ली चीजें खरीदना लग्जरी नहीं होना चाहिए.''

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