96 दिनों की तलाश के बाद कैसे मारा गया पहलगाम का आतंकी?
भारत ने 22 अप्रैल के पहलगाम हमले को अंजाम देने वाले तीन पाकिस्तानी आतंकवादियों को मारकर करारा जवाब दिया, लेकिन कुछ सवाल अब भी बाकी है

अगर इत्तेफाक कभी ऐतिहासिक तौर पर याद रखा जाने लायक हो तो वह यही था. पूरे 96 दिनों की तलाश के बाद और 22 अप्रैल को पहलगाम के नरसंहार से उपजे राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर संसद में बहस शुरू होने से ठीक पहले, इसे अंजाम देने वाले आतंकवादियों को कश्मीर में खोज निकालकर मौत के घाट उतार दिया गया.
उनका अंत 28 जुलाई की सुबह श्रीनगर के नजदीक दाचीगाम के जंगलों में हुआ. दूसरे दिन फॉरेंसिक जांच से उनकी पहचान की तस्दीक हुई और खबर ठीक उस वक्त आई जब संसद में पहलगाम और उसके जबाव में पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय सेना की कार्रवाई रूपी ऑपरेशन सिंदूर पर बहस शुरू हो रही थी.
स्वाभाविक ही इससे विपक्ष की वे तोपें कुंद पड़ गईं जिनसे ऊंची और फायदे की जगह से गोले दागते हुए खुफिया तंत्र, परिचालन रणनीति और विदेश नीति की खामियों पर केंद्रित आलोचना की उम्मीद की जा रही थी. हुआ यह कि नरेंद्र मोदी सरकार के बड़े चेहरे अपनी श्रेष्ठता का नैतिक डंका पीटने और साथ ही पाकिस्तान के साथ चीन की मिलीभगत और लड़ाकू विमानों के कथित नुक्सान सरीखे ज्यादा पेचीदा सवालों से चतुराई के साथ कन्नी काटने में कामयाब रहे.
ऑपरेशन महादेव को यह नाम इसलिए दिया गया क्योंकि यह मुठभेड़ दाचीगाम के महादेव पार्क इलाके में हुई. इसके पूरे ब्योरे मिले जब केंद्रीय गृह मंत्री ने 29 जुलाई को लोकसभा को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि सेना की 4 पैरा, सीआरपीएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवानों की संयुक्त कार्रवाई में तीन 'ए-लिस्ट' आतंकवादी—लश्कर-ए-तैयबा का कमांडर सुलेमान शाह, हमजा अफगानी और जिबरान—मारे गए.
शाह ने कहा कि सुरक्षा बल दाचीगाम में उनकी मौजूदगी की खुफिया जानकारी मिलने के बाद 22 मई से ही इन पाकिस्तानी आतंकवादियों का परछाई की तरह पीछा कर रहे थे. उन्होंने कहा कि इंटेलिजेंस ब्यूरो और सेना ने आतंकवादियों के संचार की फ्रीक्वेंसी को बीच में पकड़ने के लिए हीट सिग्नेचर ड्रोन और उपग्रह की तस्वीरों सरीखे खास उपकरणों का इस्तेमाल और दो महीने से ज्यादा लगातार उनका पीछा किया.
ऑपरेशन में शामिल अधिकारियों के मुताबिक खुफिया एजेंसियों ने सीआरपीएफ, सेना और जेऐंडके पुलिस के साथ घने और पहाड़ी जंगलों में लगातार गश्त की. और बीच में ही पकड़े गए एक संदेश से जब तस्दीक हो गई तो आतंकवादियों के घिर जाने के बाद 22 जुलाई को निर्णायक तलाशी अभियान शुरू किया. शाह ने कहा, ''ऑपरेशन सिंदूर ने आतंकवादियों के आकाओं को मार गिराया था...ऑपरेशन महादेव ने आतंकवादियों को मार गिराया.'' आतंकवादियों के हाथों इस्तेमाल की गई एम9 और दो एके-47 राइफलों के सघन फॉरेंसिक विश्लेषण से और चंडीगढ़ स्थित केंद्रीय फॉरेंसिक साइंस लैब में इनसे निकले गोला-बारूद के खोखों का पहलगाम से बरामद कारतूसों के खोखों से 100 फीसद मिलान हुआ.
कुल मिलाकर सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर की कामयाबी पर जोर दिया. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर सटीक निशाने लगाने के लिए सेना की तारीफ की. शाह ने अपने बयान में सुरक्षा में ढिलाई बरते जाने के आरोप का असरदार ढंग से जवाब दिया, लेकिन इसका जवाब नहीं मिला कि कड़ी सुरक्षा से घिरी नियंत्रण रेखा में सेंध आखिर कैसे लगी. कांग्रेस के राहुल गांधी, गौरव गोगोई और प्रियंका गांधी के साथ अखिलेश यादव (समाजवादी पार्टी), सुप्रिया सुले (एनसीपी-एसपी) और कल्याण बनर्जी (तृणमूल कांग्रेस) सरीखे विपक्ष के स्टार वक्ताओं के असलहे में 'खुफिया चूक' प्रमुख हथियार थी.
सुरक्षा बल अलबत्ता कमियों को पाटने में जुटे हैं. कश्मीर में कार्यरत सेना के शीर्ष अधिकारी कहते हैं, ''हमें तकनीक और जमीन पर मौजूद सैनिकों के मेल से बने स्मार्ट घुसपैठ-रोधी जाल की जरूरत है.'' उन्हें लगता है कि सेना को सिग्नल इंटेलिजेंस, मानव इंटेलिजेंस और निगरानी टेक्नोलॉजी के बीच तालमेल बनाने में निवेश करना चाहिए.
एक पूर्व कोर कमांडर सुझाव देते हैं, ''आतंकवाद-रोधी ग्रिड की समीक्षा की जानी चाहिए, जिसमें अंदरूनी कतार में सीएपीएफ (केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल) और पुलिस हो और बाहरी दायरे में सेना/राष्ट्रीय राइफल्स हों, ताकि ऊंची चोटियों और बाहरी इलाकों में सेना का दबदबा पुख्ता किया जा सके.'' एक अन्य अधिकारी का कहना है कि सेना के पास आतंकी हमलों के पैमाने के हिसाब से आकस्मिक योजनाएं होनी चाहिए और दुश्मन को तैयारी का वक्त नहीं मिलना चाहिए, जैसा पहलगाम में उन्हें मिला.
अखिलेश और राहुल सरीखे नेताओं ने इस पर भी सवाल उठाए कि जब भारत को बढ़त हासिल थी, तब संघर्ष विराम क्यों किया गया? अखिलेश ने पूछा, ''जब हमारी सेना पाकिस्तान को घुटनों पर ले आई तो हम संघर्ष विराम के लिए क्यों राजी हुए?'' फिर उन्होंने भाजपा की तरफ से की गई पहले की बयानबाजियों की तरफ इशारा करते हुए कहा, ''पीओके की तरफ बढ़ने का यही तो सबसे अच्छा समय था.''
राहुल ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शांति बहाल करने में बीचबचाव के बार-बार किए जा रहे दावों पर तीखे सवाल पूछे. व्यापार वार्ताओं के समय खासकर अनुपयुक्त शब्दों का चुनाव करते हुए उन्होंने मांग की कि अगर वे गलत हैं तो 'झूठा' करार दिया जाए. प्रधानमंत्री मोदी ने जोर देकर कहा कि दुनिया के किसी भी नेता ने भारत से ऑपरेशन सिंदूर रोकने के लिए नहीं कहा; यह भी कि भारत अपने सभी उद्देश्य पूरे करने और पाकिस्तान के इसके लिए गिड़गिड़ाने के बाद संघर्ष विराम के लिए राजी हुआ.
एक प्रमुख सरकारी अफसर स्वीकार करते हैं कि इस कहानी की और भी परतें हैं. वे कहते हैं, ''यह साफ है कि मुख्य राह से हटकर तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप हुआ था. एटमी युद्ध रुकवाने के श्रेय का दावा ट्रंप के चरित्र के अनुरूप ही है, जो बारीक अर्थ वाली कूटनीति का अतिसरलीकरण कर देता है...इस हस्तक्षेप को स्वीकार करना भारत के लिए राजनैतिक तौर पर चुनौतियों भरा हो सकता है.''
'बस एक विराम'
राजनाथ सिंह ने फिर आक्रामक मुद्रा अपनाकर हर संदेह के निराकरण की कोशिश की. उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर को फिलहाल रोका गया है, अगर पाकिस्तान प्रायोजित एक और आतंकी हमला होता है तो भारत कार्रवाई करने के लिए तैयार है. मगर सरकार ने पाकिस्तान-चीन की साठगांठ और भारतीय विमानों के नुक्सान से जुड़े सवालों को टाल दिया.
सैन्य पर्यवेक्षकों का कहना है कि चीनी उपग्रहों से पाकिस्तान को युद्धक्षेत्र के लाइव इनपुट दिए गए, जिसकी तरफ 4 जुलाई को फिक्की के कार्यक्रम में डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने भी इशारा किया था. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने भी 31 मई के एक इंटरव्यू में 'रणनीतिक गलती' की वजह से विमानों के नुक्सान की बात स्वीकार की थी.
भारत की कूटनीतिक पहलकदमियों के बारे में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि तीन को छोड़ संयुक्त राष्ट्र के सभी 193 सदस्य भारत के साथ खड़े थे. हालांकि उन्होंने राहुल के उठाए एक और मसले पर कुछ नहीं कहा—वह था ट्रंप की तरफ से पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को व्हाइट हाउस में आमंत्रित करने और टकराव बढ़ने से रोकने के लिए उनकी तारीफ करने का मुद्दा.
हालांकि सरकार ने कुछ सवाल दरकिनार कर दिए, लेकिन उसने बेहद अहम बातों को स्पष्ट किया. अहम यह कि पहलगाम के अपराधियों को इंसाफ के हवाले कर दिया.
गौरतलब मुद्दे
विपक्ष की तरफ से उठाए गए अनुत्तरित सवालसंभावित खुफिया नाकामी जिससे पहलगाम के आतंकवादी नियंत्रण रेखा में सेंध लगा सके
> ऑपरेशन सिंदूर के पहले दिन विमानों के नुक्सान के दावों पर स्पष्टता की दरकार
> ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तुरत के तुरत पाकिस्तान को दी गई चीन की सहायता की बात को स्वीकार करना
> राष्ट्रपति ट्रंप की तरफ से पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर की मेजबानी और तारीफ करने से भारत की कूटनीतिक शर्मिंदगी