कॉन्स्टिट्यूशन क्लब : क्या BJP के किसी बड़े नेता के इशारे पर रूडी के खिलाफ चुनाव लड़े थे संजीव बालियान?

ऐतिहासिक कॉन्स्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया की गवर्निंग काउंसिल के सचिव (प्रशासन) पद पर लंबे समय से काबिज राजीव प्रताप रूडी को उनकी ही पार्टी भाजपा के संजीव बालियान से चुनौती मिली. इस बार भी वो जीतने में कामयाब रहे.

नई दिल्ली में रफी मार्ग पर स्थित कांस्टीट्यूशन क्लब.

नई दिल्ली में 12 अगस्त को एक ऐसा चुनाव हुआ, जिसकी मतदाता सूची में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देश के सभी शीर्ष राजनेता शामिल हैं. यह चुनाव है संसद भवन से महज कुछ कदम की दूरी पर स्थित कॉन्स्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया का.

यही कोई 25 साल से इसकी गवर्निंग काउंसिल के सचिव (प्रशासन) पद पर भारतीय जनता पार्टी के नेता राजीव प्रताप रूडी काबिज हैं. लेकिन उनके ही दल के सियासी बिरादर भाजपा के संजीव बालियान ने अब उन्हें ललकारने का फैसला किया था. 

हालांकि, इस चुनाव में एक बार फिर से रूडी जीत गए हैं. अव्वल तो यही कम हैरत की बात नहीं कि यहां चुनाव चौथाई सदी बाद हुआ. तो ऐसे में यह जानना जरूरी है कि ऐसे कौन-से हालात पैदा हुए जिनकी वजह से 25 साल बाद चुनाव कराना जरूरी हो गया?

एक तो लंबे अरसे से एक ही सोच वाले नेतृत्व के तहत चलते आने से उसके संचालन में आ जाने वाली व्यवस्थागत एकरसता. बालियान समेत दूसरे कई सांसदों का यही तो कहना था कि पिछले कुछ सालों में क्लब पूरी तरह से कॉमर्शियलाइज हो गया.

दूसरे यह कि नए संसद भवन में सेंट्रल हॉल नहीं है. पुरानी संसद में सेंट्रल हॉल ही एक ऐसी जगह थी, जहां मौजूदा और पूर्व सांसद मिलते-जुलते और खुलकर बातें करते थे. बालियान उस कमी को पूरा करने के लिहाज से कॉन्स्टीट्यूशन क्लब को विकसित करने की बात कह रहे थे. इससे इस तथ्य को खासा बल मिलता है कि इस चुनावी मैदान में उतरने के लिए उन्हें भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की ओर से इशारा किया गया हो.

भाजपा के एक सांसद ने तो सीधे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का नाम लेकर कहा कि बालियान को पर्चा दाखिल करने के लिए कहा गया था. हालांकि, बालियान ने इस बात को खारिज किया. उन्होंने कहा था, ''इस बारे में किसी भी शीर्ष नेता से मेरी कोई बात नहीं हुई. मैंने तो छह महीने पहले ही क्लब की मीटिंग में कह दिया था कि रूडी जी, आप मेरे बड़े भाई हो, क्लब के कामकाज के तौर-तरीकों को बदलो, नहीं तो मैं चुनाव लड़ूंगा. अमित शाह जी से वोट मांगने जरूर जाऊंगा. प्रधानमंत्री जी का भी टाइम मांगूंगा.''

चुनाव से पहले उन्होंने कहा कि अधिकांश सांसद भी सेंट्रल हॉल की कमी महसूस कर रहे हैं. विपक्षी दलों की तरफ से यह मुद्दा सार्वजनिक तौर पर उठाया भी गया है. सेंट्रल हॉल के अलावा पहले भी दिल्ली में कुछ ऐसे केंद्र रहे हैं जहां सांसदों, नेताओं, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों का जमावड़ा लगता था.

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष और दशकों तक संसदीय राजनीति की गहराई से थाह लेते आए वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय बताते हैं, ''अभी जिस जगह पालिका बाजार है, वहां कभी थिएटर कम्युनिकेशन बिल्डिंग होती थी. 30-40 सांसद और नेता हर दिन शाम को वहां मौजूद रहते थे.

किसी को राम मनोहर लोहिया से या फिर बलराज मधोक से कोई बात करनी हो तो वहां पहुंच जाते थे. इमरजेंसी के दिनों में संजय गांधी ने उसे ध्वस्त करवा दिया.'' पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की जेल डायरी में इसका उल्लेख है. जाहिर है, फिर एक ऐसी जगह की जरूरत आन पड़ी. राय जोड़ते हैं, ''जनता पार्टी की सरकार आने पर देश भर के लोकतंत्र के सेनानियों के लिए विठ्ठल भाई पटेल हाउस और कॉन्स्टीट्यूशन क्लब उनका दूसरा घर बन गया. इस परिसर के लॉन में लोग मीटिंग करते थे. मावलंकर हॉल के बेसमेंट में एक रेस्तरां था. धीरे-धीरे यह परिसर सामान्य लोगों की पहुंच से बाहर होता चला गया.''

वे सवाल करते हैं कि उसकी बहाली आज के समय में कैसे हो, ताकि देश भर से आने वाले राजनैतिक कार्यकर्ता मिलने-जुलने के लिए इसे अपने परिसर के तौर पर देख सकें?

क्लब में छोटे-बड़े तीन रेस्तरां के अलावा जिम, स्वीमिंग पुल, मीटिंग रूम, कॉन्फ्रेंस हॉल, गेस्ट हाउस आदि सुविधाएं हैं. वह भी संसद भवन से चंद कदम दूर. बताते हैं, इन दिनों क्लब की सुविधाएं सांसदों और पूर्व सांसदों तक सीमित नहीं, मनमाने ढंग से बाहर के लोगों को इनका लाभ उठाने की छूट दी जा रही है. एक महिला सांसद का दावा है, ''एक दिन स्वीमिंग पूल का इस्तेमाल करने गई तो देखा कि वहां मौजूद अधिकांश लोग बाहरी हैं. सांसद इक्का-दुक्का ही थे. मैं वापस आ गई.''

पहली बार लोकसभा पहुंचे भाजपा के एक युवा सांसद बताते हैं, ''एक दिन बैडमिंटन खेलने गया था. अपनी बारी का इंतजार ही करता रहा. कोर्ट खाली नहीं हुआ. ज्यादातर लोग बाहरी थे.'' उत्तर प्रदेश के चंदौली से समाजवादी पार्टी के लोकसभा सांसद वीरेंद्र सिंह साफ कहते हैं, ''क्लब का संचालन तय नियमावली के हिसाब से होना चाहिए. कर्मचारी मनमाने ढंग से इसे चला रहे हैं. अच्छा है कि इस दफा चुनाव हो रहा है. अब तक चली कॉमर्शियल एक्टिविटी का ऑडिट और जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए.''

कॉन्स्टीट्यूशन क्लब दरअसल देश के सांसदों का क्लब है. 1947 में संविधान सभा के सदस्यों के लिए इसकी शुरुआत की गई थी. 1965 में उस समय के राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इसका औपचारिक उद्घाटन किया था.

संसद के दोनों सदनों के सदस्यों के अलावा पूर्व सांसद भी इसके सदस्य बन सकते हैं. यही लोग इसके मतदाता भी होते हैं. इस वक्त क्लब के सदस्यों की संख्या 1,296 है. सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन ऐक्ट, 1860 के तहत गठित इस क्लब की गवर्निंग बॉडी के पदेन अध्यक्ष लोकसभा स्पीकर होते हैं. राज्यसभा के उपसभापति और केंद्रीय शहरी विकास मंत्री इसके पदेन उपाध्यक्ष होते हैं. इस नाते हरिवंश और मनोहर लाल खट्टर क्लब के उपाध्यक्ष हैं. सचिव के तीन पद होते हैं: प्रशासन, खेल और संस्कृति से संबंधित. एक कोषाध्यक्ष और 11 कार्यकारी सदस्य होते हैं. गवर्निंग बॉडी का कार्यकाल पांच साल का होता है.

क्लब के कामकाज के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण पद प्रशासन सचिव का होता है. सियासत की गलियों के तगड़े खिलाड़ी और सभी दलों-विचारों के लोगों से दोस्ती गांठने में माहिर कांग्रेस नेता राजीव शुक्ल क्लब के खेल सचिव के पद पर न सिर्फ अरसे से विराजमान हैं बल्कि फिर से निर्विरोध चुने जा चुके हैं.

कंस्टीट्यूशन क्लब चुनाव पहले उनके अलावा संस्कृति सचिव पद पर भी तमिलनाडु की सत्ताधारी द्रविड़ मुनेत्र कलगम के राज्यसभा सांसद त्रिची शिवा निर्विरोध निर्वाचित हो चुके हैं. कोषाध्यक्ष के पद पर तेलंगाना से कांग्रेस नेता जितेंद्र रेड्डी का भी निर्विरोध चुनाव हो चुका है. मामला फंसा है सचिव (प्रशासन) के अलावा 11 कार्यकारी सदस्यों के निर्वाचन का, जिसके लिए 14 प्रत्याशी मैदान में थे.

अब बात रूडी की. बीते करीब 25 साल से वे इस प्रतिष्ठित क्लब की गवर्निंग काउंसिल के सचिव (प्रशासन) पद पर जमे हैं. वे लोकसभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं. हर बार वे निर्विरोध ही चुने जाते रहे हैं. लोकसभा और राज्यसभा के कार्यकाल को मिला लें तो रूडी सात बार के सांसद हैं. वैसे एक बार बिहार में विधायक भी रह चुके हैं. रूडी भाजपा के कुछ उन गिने-चुने नेताओं में से हैं, जिन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी, दोनों प्रधानमंत्रियों की सरकार में केंद्रीय मंत्री के तौर पर काम किया है. वे कमर्शियल पाइलट हैं और अब भी यात्री जहाज उड़ाते हैं.

इतने लंबे अरसे में रूडी को पहली बार चुनौती मिल रही है. वे कहते हैं, ''करीब 25 साल पहले उस समय के लोकसभा स्पीकर जीएमसी बालयोगी ने मुझे नामित किया था. तब से सभी सदस्यों ने मेरे काम को सही पाया और हर बार मुझे चुना. बहुत अच्छी बात है कि इस बार चुनाव हो रहा है. हर बार निर्विरोध चुन लिया जाता था तो मुझे भी लगता था कि आखिर मुझमें ऐसा क्या है! चुनाव में जो मेरे सामने हैं, वे भी मेरे साथी ही हैं.'' क्या वे जीत को लेकर आश्वस्त हैं? रूडी जवाब देते हैं, ''यह देश का ऐसा चुनाव है जिसके मतदाता सांसद हैं. सभी नेता ही हैं. सांसदों को जो अपने लिए अच्छा लगेगा, उसे वे चुनेंगे. मैंने विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा के भी चुनाव लड़े हैं. चुनाव चुनाव होता है और हर चुनाव की अपनी परिस्थितियां होती हैं.''

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर से दो बार लोकसभा के सांसद रहे बालियान 2014 से लेकर 2024 तक मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं. इस दौरान वे अलग-अलग मंत्रालयों में राज्य मंत्री के तौर पर काम करते रहे. वे 2024 का लोकसभा चुनाव हार गए लेकिन कॉन्स्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया का चुनाव जीतने को लेकर उनके समर्थकों में एक भरोसा है. इस चुनाव को लेकर इंडिया टुडे से बातचीत में बालियान कहते हैं, ''कुछ सांसदों ने मुझे सुझाया कि कॉन्स्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया को अपने पुराने स्वरूप में लाना चाहिए. मेरे चुनाव लड़ने का मकसद यही है कि मैं इसका पुराना स्वरूप लौटाऊं.'' उन्हें इसका जिम्मा मिलेगा? यह 12 अगस्त को पता चलेगा.

भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूडी ने चुनाव से पहले इंडिया टुडे से कहा था कि मुझे करीब 25 वर्ष पहले उस समय के लोकसभा अध्यक्ष जीएमसी बालयोगी ने नामित किया था. तब से सभी सदस्यों ने मेरे कामकाज को सही पाया और हर बार मुझे चुना. अच्छी बात है कि इस बार चुनाव हो रहा है.

वहीं, पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान ने कहा कि एक जमाने में यहां नए-पुराने सांसद आते थे, एक दूसरे के साथ विचार साझा करते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है. पहले इसका सदस्य बनने की लोगों में होड़ होती थी, वह सब भी खत्म हो गया.

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