प्रधान संपादक की कलम से

साइबर जंग के दौर में भारत को केवल साइबर रेडी नहीं, बल्कि साइबर-जागरूक समाज की जरूरत है. भारत और पाकिस्तान तनाव के वक्त साइबर संघर्ष हमारे लिए एक चेतावनी थी.

इंडिया टुडे हिंदी मैगजीन
इंडिया टुडे हिंदी मैगजीन

—अरुण पुरी.

मई 2025 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ आमना-सामना, जिसकी शुरुआत पहलगाम आतंकी हमले से हुई और समापन 'ऑपरेशन सिंदूर’ के साथ सिर्फ कश्मीर के जंगलों या सैन्य कमान सेंटर्स में नहीं लड़ा गया. यह टकराव साइबरस्पेस की परछाइयों में भी उतनी ही तीव्रता से चला, जहां दुश्मन अदृश्य था, मोर्चे लगातार बदल रहे थे, और दांव बेहद खतरनाक थे.

इस संघर्ष के दौरान बड़े पैमाने पर ताबड़तोड़ साइबर हमले और उनकी परिष्कृत प्रकृति एक नई और गंभीर हकीकत को उजागर करती है: साइबर जंग अब कोई हाशिये की चिंता नहीं, बल्कि आधुनिक युद्ध का एक मुख्य मंच बन चुकी है.

सात से 10 मई के बीच की घटनाओं को खास बनाने वाली बात सिर्फ इसका पैमाना नहीं है (जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया, 100 करोड़ से ज्यादा साइबर हमले हुए) बल्कि इसमें शामिल कारकों की समन्वित योजना, मंशा और विविधता भी है. वैसे तो इस हमले की अगुआई पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के समूह कर रहे थे, पर ये साइबर हमले एक व्यापक, अंतरराष्ट्रीय कोशिश की बानगी भी पेश करते हैं.

बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्किए, ईरान और यहां तक कि चीन के हैकरों ने मिलकर एक डिजिटल युद्ध छेड़ा, जिसका मकसद केवल वेबसाइटों को विकृत करना या अस्थायी व्यवधान पैदा करना नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा की नींव को ही हिला देना था. रक्षा अनुसंधान डेटा से छेड़छाड़ की गई, बिजली ग्रिड को निशाना बनाया गया, और वित्त तथा शिक्षा क्षेत्रों को खंगाला गया. यह उस हाइब्रिड युद्ध का सबसे खतरनाक रूप था, जिसमें आतंकवाद, मनोवैज्ञानिक युद्ध और साइबर तोड़फोड़ एक साथ चलती है.

गनीमत है कि भारत की साइबर सुरक्षा व्यवस्था इसके लिए तैयार थी और इसी वजह से उसने बड़े पैमाने पर इन हमलों को रोका. सर्ट-इन, एनसीआइआइपीसी और डिफेंस साइबर एजेंसी जैसे संस्थानों ने ज्यादातर हमलों को नाकाम कर दिया. पंद्रह लाख हमलों में से केवल 150 का सफल होना इस बात का प्रमाण है कि भारत की साइबर सुरक्षा संरचना कितनी परिपक्व हो चुकी है.

लेकिन इसमें एक चेतावनी भी छुपी है कि किसी भी आधुनिक राष्ट्र की डिजिटल नींव कितनी नाजुक हो सकती है. दुश्मन केवल एक कामयाब सेंध से भी अपूरणीय क्षति पहुंचा सकता है, जैसे टी-90 टैंकों की अपग्रेड योजनाओं या रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) की संवेदनशील जानकारी जुटा लेना.

चिंताजनक यह है कि डिजिटल युद्धक्षेत्र अब सिर्फ जासूसी या तोड़फोड़ तक सीमित नहीं रहा. यह अब मनोवैज्ञानिक युद्ध का भी एक औजार बन चुका है. राजस्थान शिक्षा विभाग की वेबसाइट हैक कर पहलगाम हमले के बारे में झूठी जानकारी फैलाना या मलेशियाई हैक्टिविस्टों की ओर से समन्वित सोशल मीडिया अभियान चलाना यह दिखाता है कि साइबरस्पेस का इस्तेमाल सिर्फ तबाही मचाने के लिए नहीं, बल्कि भ्रम फैलाने के लिए भी किया जा रहा है. ऐसे युग में जब डिजिटल भरोसा शासन, वित्तीय व्यवस्था और जनभावना की नींव है, इस तरह के हमले किसी भी राष्ट्र की साख को खोखला कर सकते हैं.

इसमें चीन की भूमिका हालांकि पाकिस्तान के मुकाबले ज्यादा सूक्ष्म थी, लेकिन एक डरावने रणनीतिक पक्ष को उजागर करती है. एपीटी41 और मस्टैंग पांडा जैसे समूह केवल विघटन के इच्छुक नहीं थे, वे भारतीय साइबर बुनियादी ढांचे की मजबूती को आजमा रहे थे. इसके आधार पर वे भविष्य की किसी बड़ी सैन्य कार्रवाई की व्यूह रचना कर सकते हैं. उनका ध्यान भारत की लॉजिस्टिक्स, टेलीकॉम और पावर ग्रिड पर था, जो उसके दीर्घकालिक इरादों को दर्शाता है.

भारत की जवाबी कार्रवाई काफी तेज थी, जिसे सरकारी एजेंसियों और देशभक्त हैकर समूहों ने अंजाम दिया. पाकिस्तानी सैन्य वेबसाइटों को भेदने से लेकर उनके प्रचार तंत्र को बाधित करने तक, मुंहतोड़ जवाबी हमले किए गए. लेकिन इस 'जैसे को तैसा’ नीति के आगे बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत साइबरस्पेस में एक प्रभावी प्रतिरोध नीति बना सकता है, जैसा कि उसने पारंपरिक युद्ध में किया है? इस मामले में केवल इंतकाम ही काफी नहीं. लचीलापन और पूर्वानुमानित खुफिया प्रणाली ही साइबर युग के असली प्रतिरोधक हैं.

खुशकिस्मती से भारत शून्य से शुरू नहीं कर रहा. सर्ट-इन को मजबूत करना और संयुक्त साइबर टास्क फोर्स का गठन यह दिखाता है कि अब देश को यह एहसास हो गया है कि साइबर सुरक्षा ही राष्ट्रीय सुरक्षा है. डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन ऐक्ट, 2023 एक ठोस नियामक आधार देता है, और अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों से फायदा भी मिल रहा है. निजी क्षेत्र, जो अक्सर ऐसे हमलों का पहला शिकार होता है, को इस सुरक्षा तंत्र का अभिन्न हिस्सा बनाया जाना चाहिए.

इस हफ्ते की आवरण कथा 'हैकरों से दो-दो हाथ’ रक्षा मामलों के विशेषज्ञ डिप्टी एडिटर प्रदीप आर. सागर ने लिखी है. दूसरी रिपोर्ट भी प्रतिरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी है. असिस्टेंट एडिटर सुमित सिंह बता रहे हैं कि गूगल अर्थ पर भारत के सैन्य ठिकानों, एयरबेस, नैवल बेस और न्यूक्लियर साइट्स तक की हाइ-रेजोल्यूशन इमेजरी उपलब्ध है, जिन्हें 50 मीटर तक जूम कर देखा जा सकता है.

दूसरी ओर, रूस, फ्रांस, अमेरिका जैसे देश अपने संवेदनशील स्थलों को ब्लर करवा चुके हैं. इससे आतंकियों और नक्सलियों को बड़ा फायदा मिल सकता है. पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने 2005 में इसके खतरे की चेतावनी दी थी, लेकिन अब तक ठोस कार्रवाई नहीं हुई. विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत को अपना स्वतंत्र मैपिंग सिस्टम विकसित करना चाहिए और गूगल पर निर्भरता खत्म करनी चाहिए.

बहरहाल, साइबर जंग के दौर में भारत को केवल साइबर रेडी नहीं, बल्कि साइबर-जागरूक समाज की जरूरत है. कई मायनों में यह साइबर संघर्ष एक चेतावनी थी. भविष्य के युद्ध केवल जमीन, समुद्र या आसमान में नहीं लड़े जाएंगे—वे कोड, सर्वर और केबल के जरिए लड़े जाएंगे. और उस भविष्य में, सबसे बड़ा खतरा होगी—लापरवाही. इस बार भारत डटा रहा, लेकिन साइबर युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है. हमें चौकन्ना बने रहना होगा.

- अरुण पुरी, प्रधान संपादक और चेयरमैन (इंडिया टुडे समूह)

Read more!