क्या है 'नैनो यूरिया', क्यों इसके इस्तेमाल से परहेज कर रहे हैं किसान?

नैनो खाद मुख्य रूप से पीठ और साइकिल पर लाद खेत में पहुंचाई जाने वाली खाद से निजात दिलाने को बाजार में उतारी गई थी. लेकिन, चार साल बाद भी किसान इसे लेकर ठिठके हुए हैं

नैनो खाद का छिड़काव करता किसान

अट्ठाइस मई, 2022 को गुजरात में राजधानी गांधीनगर के पास औद्योगिक कस्बे कलोल में एक बड़ी घटना घट रही थी. खादों की कमी से हमेशा से जूझते आए देश को पहला नैनो यूरिया प्लांट मिल रहा था. भारत के खेतों और किसानों के लिए इसके गेमचेंजर साबित होने की उम्मीद थी. कैसे?

प्लांट का लोकार्पण करते हुए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे स्पष्ट किया था: ''अब यूरिया की एक बोरी की ताकत एक बोतल में समा गई है. यानी नैनो यूरिया की आधा लीटर की बोतल किसान की एक बोरी यूरिया की जरूरत को पूरा करेगी. ढुलाई का, बाकी सब चीजों का खर्चा कितना कम हो जाएगा. और कल्पना कीजिए, छोटे किसानों के लिए यह कितना बड़ा संबल है...''

कलोल के इस प्लांट ने वैसे उत्पादन 2021 में खरीफ सीजन से पहले शुरू कर दिया था. और इसी के साथ भारत नैनो उर्वरकों का उत्पादन शुरू करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया था.

कृषि प्रधान मुल्क भारत के लिए खाद एक संवेदनशील मसला रहा है. रबी और खरीफ के फसली सत्रों में खासकर यूरिया और डीएपी सरीखी पारंपरिक खादों की अनुपलब्धता केंद्र और किसी भी राज्य की सरकार की चूलें हिलाने वाली साबित होती आई है. याद कीजिए जरा, 2021 में पड़ोसी देश श्रीलंका में विदेशी मुद्रा की कमी के चलते खादों के आयात पर रोक की वजह से उपज घटी और वहां खासा बड़ा आर्थिक-राजनैतिक संकट खड़ा हो गया. भारत सरकार ने 2024-25 में आयातित और देश में बनने वाली खाद पर 1.91 लाख करोड़ रुपए सब्सिडी दी.

यह रकम हरियाणा के 2025-26 के पूरे बजट के आसपास बैठती है. दरअसल, फसलों को मुख्य रूप से नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की जरूरत होती है और इन्हें कारखानों में बनी यूरिया, डीएपी और म्यूरेट ऑफ पोटाश जैसी रासायनिक खादों के जरिए पूरा किया जाता है. बोरियों में आने वाली इन खादों के न सिर्फ आयात और देश में उत्पादन का बिल बहुत बड़ा है बल्कि इनकी ढुलाई, स्टोरेज और मिलावट भी अहम मुद्दा रही है. मिलावट के खिलाफ अभियान चला रहे राजस्थान के कृषि मंत्री किरोड़ीलाल मीणा ने तो केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को चिट्ठी लिखकर दावा किया है कि देश के 16-20 राज्यों में घटिया खाद बेची जा रही है.

ऐसे परिदृश्य में दुनिया में पहली बार भारत में ही नैनो खाद का आना खासी राहत देने वाली खबर थी. इसकी खोज करने वाले वैज्ञानिक रमेश रालिया 2009 से ही इस उपक्रम में लगे थे. उनके मुताबिक, ''पारंपरिक यूरिया में से सिर्फ 30 फीसद ही पौधे सोख पाते थे. 70 फीसद बर्बाद जाती थी. यह बात मुझे साल रही थी.'' शोध के लिए 2013 में वे वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी गए और इसमें कामयाबी हासिल की. किसानों को किफायती कीमत पर नैनो यूरिया उपलब्ध कराने की शर्त पर उन्होंने यह तकनीक भारत को दे दी. भारत में इफको भी इस दिशा में काम कर रहा था और 2017 में उसने गुजरात के कलोल में इफको-नैनो जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र (एनबीआरसी) की स्थापना की थी. रालिया भी इफको के साथ जुड़ गए. और इस तरह से नैनो यूरिया तैयार हुई.

हाल यह है कि अब चार साल बाद भी आम किसान इसे लेने से झिझक रहे हैं. खाद विक्रेता पसोपेश में हैं. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से सटे सीहोर में प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र के माध्यम से खाद बेचने वाले एक विक्रेता नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि ''अब तक 6,000 बोतल नैनो खाद एक्सपायर हो चुकी है. हम दशकों से इस बिजनेस में हैं तो कंपनियों का दबाव झेलकर नुक्सान उठा लेते हैं इस उम्मीद में कि कभी न कभी यह नीति बदलेगी और मेरे नुक्सान की भरपाई हो जाएगी.'' वे कहते हैं कि खाद कंपनी उन जैसे डीलरों पर बोरी वाली खाद के साथ एक अनुपात में बोतलबंद नैनो खाद उन पर थोप देती हैं.

''तमाम समझाने के बाद किसान किसी तरह से एक बार तो खरीद लेते हैं लेकिन इसकी स्वाभाविक मांग नहीं बन पा रही.'' बिहार के औरंगाबाद जिले के इंद्रार गांव के कृषि में उच्च शिक्षित प्रगतिशील किसान राजेश कुमार बताते हैं कि ''नैनो खाद लॉन्च होने पर मैं बहुत खुश था क्योंकि गांव से 15 किमी दूर के बाजार से खाद की बोरी लादकर लानी पड़ती थी. नैनो यूरिया की आधी लीटर की बोतल आराम से थैले में आ जाती है. लेकिन सचाई अब भी यही है कि पारंपरिक खादों पर निर्भरता घट नहीं पा रही.''

उधर, नैनो यूरिया के बाद इफको ने अक्तूबर 2023 में नैनो डीएपी भी लॉन्च कर दिया. नैनो खाद बोरी वाली दानेदार खाद के मुकाबले बेहद छोटे यानी नैनो कणों के रूप में लिक्विड फॉर्म में तैयार की जाती है. इसके एक कण का आकार सामान्यत: 20 से 50 नैनोमीटर के बीच होता है. पारंपरिक यूरिया के एक दाने का आकार 1-4 मिलीमीटर होता है. विशेषज्ञों की राय में, नैनो खाद के सूक्ष्म कण पौधों की पत्तियां आसानी से सोख लेती हैं. 50 किलो की बोरी वाली खाद जितना पोषण पौधों को आधा लीटर नैनो खाद में मिल जाता है.

इतनी खूबियों के बाद आखिर इसका ऐसा हश्र क्यों? भारतीय किसानी में गहरे पैठा रुढ़िवाद यहां आड़े आ रहा है. राजेश की राय में, ''जागरूकता की कमी के चलते ज्यादातर किसान वही करते रहना चाहते हैं जो वे वर्षों से करते आ रहे हैं, वही करते रहें.'' उत्तर प्रदेश में गोंडा के नवाबगंज क्षेत्र के 14 एकड़ के एक किसान नवीन सिंह मजे से अपने खेतों में नैनो खाद का उपयोग कर रहे हैं. वे अपना आकलन बताते हैं, ''दरअसल, इस मामले में जागरूकता बढ़ाने का काम तो हुआ नहीं, उलटे भ्रम और पैदा हो गया.

किसी भी दानेदार यूरिया में नाइट्रोजन 46 फीसद होता है जबकि नैनो यूरिया की बोतल में सिर्फ चार प्रतिशत नाइट्रोजन है. ऐसे में किसान यह मानने को तैयार नहीं कि दानेदार यूरिया की एक बोरी के बराबर का पोषण आधे लीटर की बोतल से मिल सकता है. उसे नहीं पता कि दानेदार यूरिया का 70 फीसद नाइट्रोजन बह या बर्बाद जाता है. इस भ्रम की स्थिति से निबटने के लिए बाद में खाद कंपनियों ने 16 प्रतिशत नाइट्रोजन वाला नैनो यूरिया बाजार में उतारा. फिर भी भ्रम दूर नहीं हो पा रहा.''

समस्या का एक पहलू खाद के छिड़काव से जुड़ता है. दानेदार खाद तो किसान खुद छिड़क लेते हैं लेकिन लिक्विड खाद के स्प्रेयर से छिड़काव के लिए मजदूर लगाने होंगे जो अब आसानी से मिल नहीं रहे. नैनो खाद का फोलियर स्प्रे होता है यानी खेत में फसल उग आने पर उसके पत्तो पर इसका छिड़काव किया जाता है. ऐसे में फसल में पहला छिड़काव तो दानेदार खाद का ही करना पड़ता है. ऐसे में कम पढ़े-लिखे किसानों को एक छिड़काव के लिए पारंपरिक खाद और बाकी के लिए नैनो खाद लाना थोड़ा जटिल लग रहा है.

नैनो खाद का छिड़काव ड्रोन से भी हो सकता है. और ड्रोन का हाल देखें: 2023 में शुरू केंद्र सरकार की नमो ड्रोन दीदी योजना के तहत मार्च 2026 तक देश भर में 15,000 महिलाओं को ड्रोन दिए जाने के साथ उन्हें इसको उड़ाने का प्रशिक्षण दिए जाने का लक्ष्य था. ड्रोन दीदी योजना की कामयाबी नैनो खादों के इस्तेमाल को खासा बल देती. लेकिन दिसंबर 2024 तक सिर्फ 1,500 महिलाओं को ड्रोन दिया जा सका था. और सूत्रों की मानें तो इनमें भी काम बमुश्किल 500 ही कर रहे हैं. यानी नमो ड्रोन दीदी के माध्यम से भी नैनो खादों की मांग बढ़ाने की योजना रफ्तार नहीं पकड़ पा रही. हरियाणा की एक ड्रोन दीदी इसमें एक और पहलू जोड़ती हैं. वे बताती हैं कि ड्रोन एक बार खराब हो जाए तो इसकी मरम्मत का आसपास कोई इंतजाम नहीं. इस वजह से कई-कई दिन काम ठप रहता है. 

नैनो खादों के इस्तेमाल पर अभी कोई जमीनी अध्ययन नहीं हुआ है. लेकिन कृषि विशेषज्ञों का इसमें अपना एक आकलन है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में कृषि विज्ञान के प्रोफेसर मनोज कुमार कहते हैं, ''हमारे संपर्क में आने वाले किसानों से बातचीत में एक बात उभरती है कि उन्हें इसके बारे में अभी ज्यादा पता ही नहीं. उन्हें यह मार्के की बात भी नहीं पता कि पत्तों पर छिड़काव से नैनो खाद पारंपरिक खादों के मुकाबले फसल को बेहतर पोषण दे सकती है.''

वे एक और अहम सुझाव जोड़ते हैं, ''आपको पता है कृषि विस्तार कार्यक्रम के तहत देश भर में 700 से ज्यादा कृषि विज्ञान केंद्र काम करते हैं. खेती से संबंधित तमाम नए प्रयोगों के बारे में किसानों को समझाना-बताना इनका काम है. नैनो खाद को लेकर किसानों में सहमति बनाने में इनका बड़ा रोल हो सकता है, बशर्ते इनका उस ढंग से इस्तेमाल किया जाए.''

वैसे व्यवस्था तंत्र के लोग किसानों के मनोविज्ञान ने नावाकिफ नहीं हैं. एक सरकारी उर्वरक कंपनी के वरिष्ठ अफसर साफ कहते हैं, ''प्रयोगशील किसान तो गिने-चुने ही होते हैं. महज 1-2 फीसद. दूसरे किसान इन्हीं की देखादेखी धीरे-धीरे चीजें अपनाते हैं.'' 

बोतलबंद नैनो खाद उत्पादन प्लांट का मुआयना करते केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह

और अभी भले किसान नैनो खाद बड़े पैमाने पर स्वीकार न कर रहे हों लेकिन इसमें संभावनाएं भरपूर हैं. इफको के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी यू.एस. अवस्थी इसके लाभ गिनाते हैं: ''नैनो यूरिया की कीमत एक बोरी यूरिया के मुकाबले 16 फीसद कम है. इसे किसान आसानी से खेत में ले जा सकते हैं. परिवहन और भंडारण में तो खासा लाभ है. एक रेलवे रैक जिसमें यूरिया की 69,600 बोरियां लादी जा सकती थीं, उसके नैनो यूरिया की 29 लाख बोतलें ले जाई जा सकती हैं. और किसान एक बार नैनो खाद खरीदकर चार सीजन यानी दो साल तक इसे काम में ले सकते हैं.'' यूरिया की बोरी 267 रुपए में और नैनो यूरिया की बोतल 240 रुपए में पड़ती है. ढुलाई का खर्च न के बराबर हो गया है. दावा यह भी है कि फोलियर और फिर इस्तेमाल क्षमता काफी बेहतर होने से उर्वरकों के पानी में बह जाने की समस्या और जमीन का प्रदूषण भी कम होगा.

निजी कंपनियों के आने से इस क्षेत्र में इनोवेशन पर जोर बढ़ा है. रे नैनो के निदेशक सिद्धार्थ दोषी बताते हैं, ''हमारे उर्वरक एक अत्याधुनिक स्वदेशी फाइटिओन तकनीक पर आधारित हैं. ये सूखा और अत्यधिक गर्मी जैसे हालात में भी नियंत्रित और स्थायी रूप से नाइट्रोजन की सप्लाइ पक्का करती हैं. एक और अहम बात: ये फंगल और बैक्टीरियल संक्रमण से भी पौधों को बचाती हैं.''

पारंपरिक उर्वरकों पर सरकार की सब्सिडी से उलट नैनो खादों पर सरकार कोई सब्सिडी नहीं देती. उसे नए प्लांट लगाने पर भी कम पैसे खर्च करने पड़ेंगे. केंद्र सरकार के उर्वरक विभाग के एक अफसर बताते हैं, ''2,000 टन रोजाना उत्पादन क्षमता वाला यूरिया प्लांट लगाने में सरकार को 7,500-10,000 करोड़ रुपए खर्चने पड़ते हैं जबकि इसके बराबर उत्पादन वाला नैनो यूरिया प्लांट लगाने पर सिर्फ 300-350 करोड़ रुपए ही खर्चने होंगे.''

अब नैनो खाद के कारखाने बढ़ रहे हैं. अभी इफको के चालू तीन नैनो यूरिया प्लांट की सालाना उत्पादन क्षमता 16.95 करोड़ बोतल की है. नवंबर 2025 तक आठ सरकारी प्लांट उत्पादन करने लगेंगे. रे नैनो जैसी निजी कंपनी भी उत्पादन कर रही है. पर खपत के लिए काफी कुछ किए जाने की जरूरत है. 2024-25 में अकेले इफको ने 3.72 करोड़ बोतल नैनो यूरिया बनाई, जिसमें से 2.97 करोड़ बोतल बिकी. अपेक्षित मांग पैदा न होने से फिलहाल उत्पादन क्षमता मांग से ज्यादा हो गई है.

नैनो खाद का उपयोग बढ़ाने को सरकार और कंपनियां प्रयासों में जुटी हैं. किसान सभा, क्षेत्र-परीक्षण, खेत दिवस, सहकारिता सम्मेलन, फसल संगोष्ठी, विक्रेता प्रशिक्षण कार्यक्रम आदि में नैनो उर्वरकों को प्राथमिकता दी जा रही है ताकि व्यापक स्तर पर किसानों तक जानकारी पहुंचाई जा सके. आदर्श नैनो ग्राम क्लस्टर योजना चलाई गई है. और भले किसान अपेक्षित गति से नैनो खाद न अपना रहे हों पर कंपनियां उत्साहित हैं क्योंकि इसमें निर्यात की संभावनाएं हैं. अवस्थी बताते हैं, ''नैनो यूरिया विदेश में भी पहुंच रहा है.

यह 'मेक इन इंडिया-मेड फॉर द वर्ल्ड' की आदर्श मिसाल है. 2024-25 तक हमने पांच लाख से ज्यादा नैनो यूरिया बोतल का निर्यात किया है.'' दोषी को लगता है कि भारत नैनो उर्वरकों के उत्पादन का ग्लोबल हब बन सकता है. कलोल के भाषण में मोदी ने कहा ही था: ''इस नैनो टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भरता की तरफ जो कदम हमने रखा है, वह कितना महत्वपूर्ण है, मैं चाहूंगा कि इसे हर देशवासी को समझना चाहिए.''

केंद्रीय रसायन और उर्वरक राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल ने कहा कि जागरूकता शिविरों, वेबिनार, नुक्कड़ नाटक, क्षेत्रीय प्रदर्शनों, किसान सम्मेलनों और क्षेत्रीय भाषाओं में फिल्मों जैसी गतिविधियों के जरिए नैनो यूरिया के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है. 

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