'शुगर फ्री' के नाम पर कंपनियां कैसे डायबिटीज के मरीजों को धोखा दे रहीं?
चीनी आज के समय में सेहत के लिए दुश्मन नंबर-1 है. लेकिन, शुगर फ्री प्रोडक्ट बेचने वाली कंपनियां इन्हें हेल्थ के लिए सुरक्षित बताकर लाखों "डायबिटीज" मरीजों को गुमराह कर रही हैं.

गुरुग्राम निवासी 51 वर्षीया गृहिणी शांता बोस के लिए शुगर-फ्री मिठाइयां किसी वरदान से कम नहीं थीं, जिन्हें 47 वर्ष की उम्र में मधुमेह होने का पता चला था. बोस बताती हैं, ''मैं जहां भी जाती, वहां तमाम मिठाइयां नजर आतीं लेकिन मैं उन्हें खा नहीं सकती थी.’’ फिर उन्हें अपने घर के नजदीकी डिपार्टमेंटल स्टोर की शुगर-फ्री शेल्फ कुकीज, केक, कैंडी, सॉफ्ट ड्रिंक और आइसक्रीम से भरी नजर आई तो उन्होंने उसे खरीदना शुरू कर दिया.
उन्होंने यह भी पढ़ा कि ग्लाइसेमिक इंडेक्स (जीआइ) कम होना कितना फायदेमंद है, जो खाद्य पदार्थों की रैंकिंग इस आधार पर करने का पैमाना है कि खाने के कितनी देर बाद ये रक्त शर्करा का स्तर बढ़ाते हैं, और फल, बाजरा, पत्तेदार सब्जियां और बीन्स जैसे खाद्य पदार्थ मधुमेह रोगियों के लिए अच्छे होते हैं. इस जानकारी ने उन्हें ब्राउन राइस, बाजरा, साबुत गेहूं और प्राकृतिक स्वीटनर जैसे एगेव, टैपिओका, खजूर, याकॉन, नारियल और मोंक फ्रूट से बने सीरप खरीदने को प्रेरित किया.
तीन महीने तक वे ऐसी ही चीजों का सेवन करती रहीं लेकिन एक दिन जब उठीं तो उन्हें सब कुछ धुंधला नजर आ रहा था. जांच कराने पर पता चला कि रक्त शर्करा असामान्य रूप से बढ़ चुका था. लगभग पूरे देश में इसी तरह की स्थिति है.
चीनी के इन तमाम बीमारियों की जड़ के तौर पर बदनाम होने से शुगर-फ्री उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ी है, और कंपनियां भी इस मौके का पूरा फायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहीं. 2019 में मार्केट रिसर्च फर्म मिंटेल के एक अध्ययन में पाया गया कि हर पांच में से तीन भारतीय सेहतमंद जीवनशैली के लिए कम चीनी का सेवन करना चाहते हैं, और 2025 के एक सर्वे में पाया गया कि एक-तिहाई भारतीय माता-पिता बच्चों के लिए कम चीनी वाली कैंडी चाहते हैं.
चीनी के ज्यादा इस्तेमाल से जुड़ा डर पूरी तरह निराधार भी नहीं है. भारत दुनिया की मधुमेह राजधानी है. 2023 में लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, 10 करोड़ से ज्यादा भारतीय मधुमेह से पीड़ित हैं और करीब 13.6 करोड़ प्री-डायबिटिक हैं. आज, चीनी सिर से पैर तक कई विकारों का कारण बन रही है. पोषण विशेषज्ञ इशी खोसला कहती हैं, ''हर इंसान चाहे वह मधुमेह का मरीज हो-न हो या प्री-डायबिटिक हो, शुगर-फ्री उत्पाद चाहता है.’’
वैश्विक रुझानों की देखा-देखी भारतीय खाद्य उद्योग कम कैलोरी, कम जीआइ उत्पादों में भारी निवेश कर रहे हैं. आइएमएआरसी समूह का एक बाजार विश्लेषण बताता है कि शुगर-फ्री और मधुमेह मरीजों के अनुकूल खाद्य और पेय पदार्थों का भारतीय बाजार 2024 में 9,586 करोड़ रुपए का था और 2033 तक इसके 22,082 करोड़ रुपए तक पहुंचने के आसार हैं.
बहरहाल, विशेषज्ञों का कहना है कि शुगर-फ्री खाद्य पदार्थों के प्रति जुनून का विपरीत प्रभाव पड़ रहा है, जैसा बोस के साथ हुआ. वे 1990 के दशक का हवाला देते हैं जब लोगों में वसारहित पदार्थों को लेकर एक जुनून छाया हुआ था. लेकिन वसा को खलनायक के तौर पर चित्रित किए जाने के बावजूद मोटापे की दर लगातार बढ़ती रही.
मेदांता गुरुग्राम में एंडोक्राइनोलॉजी और डायबिटीज विभाग के प्रमुख डॉ. जसजीत वसीर कहते हैं, ''केवल हवा और पानी ही चीनी-रहित हैं. अच्छी सेहत के लिए संतुलन बहुत जरूरी है, आप पोषण के सिर्फ एक पहलू पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते.’’
चीनी और मधुमेह
हम जो कुछ खाते हैं, उसमें चीनी किसी न किसी रासायनिक रूप में मौजूद होती है (इसकी संरचना में एक अणु फ्रक्टोज का और एक ग्लूकोज का होता है) और शरीर में पहुंचने के बाद यह अणु विघटित हो जाता है. सामान्य रूप से काम करने के लिए मनुष्यों को ग्लूकोज की जरूरत पड़ती है.
जब आंतें भोजन से ग्लूकोज सोखकर इसे रक्त में छोड़ती हैं तो इसे रक्त शर्करा कहा जाता है. बढ़ी हुई रक्त शर्करा इंसुलिन बनाने वाली अग्न्याशय की बीटा कोशिकाओं पर दबाव डालती है. इंसुलिन ऐसा हॉर्मोन है जो ग्लूकोज को कोशिकाओं तक पहुंचाता है. इससे ही हमारे शरीर को ऊर्जा मिलती है. बीटा कोशिकाओं पर दबाव ज्यादा बढ़ने पर अंतत: मांसपेशियां, वसा और यकृत कोशिकाएं इंसुलिन पर प्रतिक्रिया ही नहीं करतीं, और अतिरिक्त ग्लूकोज रक्तप्रवाह में घुलने से मधुमेह की बीमारी होती है.
यह मानना बेमानी है कि अगर कोई उत्पाद 'शुगर-फ्री’ है तो शरीर में पहुंचने के बाद चीनी के अणु विघटित नहीं होंगे. डॉ. वसीर कहते हैं, ''सभी खाद्य पदार्थ ब्लड ग्लूकोज में टूटते हैं.’’ इसलिए भले ही शुगर-फ्री केक में सीधे तौर पर चीनी न हो लेकिन साबुत गेहूं का आटा, अंडे, चॉकलेट और मक्खन पचने के बाद शरीर में लैक्टोज और ग्लूकोज में परिवर्तित होंगे. कैलोरी भोजन में ऊर्जा की मात्रा दर्शाती है और शरीर की जरूरत से ज्यादा कैलोरी पहुंचने पर वजन बढ़ता है. डॉ. वसीर कहते हैं, ''कुछ शुगर-फ्री उत्पाद बहुत ज्यादा कैलोरी वाले हो सकते हैं. यह न केवल वजन बढ़ाते हैं, बल्कि मधुमेह और अन्य बीमारियों का जोखिम भी उत्पन्न करते हैं.’’
चीनी के विभिन्न विकल्प, जैसे शहद, गुड़, खजूर, मोंकफ्रूट और एगेव जैसे प्राकृतिक स्वीटनर भी कम कैलोरी के बावजूद हमारे शरीर में ग्लूकोज का स्रोत बनते हैं. खोसला कहती हैं, ''बेशक, इन्हें शुद्ध चीनी की तुलना में बेहतर कहा जा सकता है लेकिन ज्यादा मात्रा में इनका सेवन भी नुक्सान ही पहुंचाता है.’’
प्राकृतिक स्वीटनर भी कैलोरी-सघन और मीठे खाद्य पदार्थों को खाने की इच्छा बढ़ा सकते हैं. कृत्रिम शर्करा के लिए शून्य जीआइ एक रामबाण की तरह लगता है, लेकिन उनसे भी कुछ मीठा खाने की इच्छा तीव्र होती हैै. एस्परटेम जैसे कई शुगर अल्कोहल कैंसर का कारण बन सकते हैं.
चिकित्सकीय स्तर पर एक दृढ़ धारणा है कि कृत्रिम स्वीटनर का अत्यधिक इस्तेमाल आंतों और अंतत: मेटाबोलिक तंत्र को नुक्सान पहुंचा सकता है. खोसला कहती हैं, ''रासायनिक स्वीटनर इंसुलिन प्रतिरोध को बिगाड़ते हैं और आपकी आंतों की सेहत के लिए बेहद हानिकारक साबित होते हैं, जो हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य का आधार है.’’
'शुगर-फ्री’ एक मुगालता
कई एंडोक्राइनोलॉजिस्ट और पोषण विशेषज्ञ शुगर-फ्री उत्पादों के अत्यधिक सेवन को लेकर फिक्रमंद हैं, जिनमें उच्च वसा और कैलोरी पाई जाती है और रासायनिक स्वीटनर और/या चीनी के प्राकृतिक विकल्प इस्तेमाल होते हैं. पुणे की आहार विशेषज्ञ रूपल सचदेवा कहती हैं, ''मधुमेह रोगियों के लिए आइसक्रीम खाना कब से ठीक हो गया? जिन उत्पादों को कभी-कभार खाया जाना चाहिए, उनकी मार्केटिंग के आगे लोगों के सामान्य ज्ञान ने भी काम करना बंद कर दिया है.’’
दरअसल, जर्नल न्यूट्रिएंट्स में प्रकाशित 2016 के एक अध्ययन से पता चलता है कि स्वास्थ्य संबंधी दावों से उपभोक्ता को किसी खाद्य पदार्थ के बारे में सकारात्मक धारणा बनाने में मदद मिलती है. भले ही वह सेहत के लिए लाभकारी न हो. इसलिए, 'शुगर-फ्री’ बताकर बेचे जा रहे उत्पादों का इस्तेमाल मधुमेह के मरीजों के लिए स्वस्थ विकल्प नहीं है. संयम बरतना सबसे ज्यादा जरूरी है और उन्हें अन्य खाद्य पदार्थों की तरह इनके प्रति भी सावधान रहना चाहिए.
2023 में मेजरमेंट: फूड जर्नल में प्रकाशित छोटे नमूने पर आधारित एक अध्ययन के तहत भारत में बिकने वाले 230 फूड पैकेटों पर अंकित दावों के साथ-साथ भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआइ) के दिशानिर्देशों के अनुपालन की सीमा की जांच की गई. इसमें बेक्ड यानी सिंके उत्पादों के अलावा कन्फेक्शनरी, अनाज, डेयरी, सूप, सलाद और प्रोटीन उत्पाद शामिल थे. इसमें पाया गया कि एफएसएसएआइ की तरफ से स्पष्ट परिभाषा निर्धारित न किए जाने की वजह से बड़ी संख्या में दावों को सत्यापित नहीं किया जा सकता.
हालांकि, कई व्यवसायों ने गलत दावों के बजाए 'स्पष्ट लेबल’ लगाना शुरू कर दिया है. अपनी आइसक्रीम में महज 4.5 फीसद वसा और चीनी मिलाए बिना प्रति ग्राम 0-2 कैलोरी का दावा करने वाली ब्रुकलिन क्रीमरी यह स्पष्ट करती है कि वह मठास के लिए सुरक्षित स्वीटनर इस्तेमाल करती है. इसी तरह, 'रिफाइंड शुगर फ्री’ स्नैक्स बेचने वाले द सिनेमन किचन के उत्पाद भी सरल और साफ जानकारी वाली लेबल के साथ आते हैं. सिनेमन किचन की संस्थापक प्रियाशा सलूजा कहती हैं, ''हम अपने उत्पादों में इस्तेमाल हर सामग्री का जिक्र करते हैं, इसमें कुछ भी छिपा हुआ नहीं है.’’
विशेषज्ञों का कहना है कि भले ही किसी उत्पाद में कितने भी पारदर्शी तरीके से जानकारी दी गई हो लेकिन संयम बरतना सबसे महत्वपूर्ण है. मैक्स हेल्थकेयर, दिल्ली में पोषण एवं आहार विज्ञान की क्षेत्रीय प्रमुख रितिका समद्दार कहती हैं, ''एक चम्मच शुद्ध चीनी खाने की तुलना में बिना चीनी वाली ओटमील कुकी से ग्लूकोज रक्त में जाने में ज्यादा समय लगेगा. लेकिन उसे मीठा बनाने के लिए कुछ न कुछ तो इस्तेमाल ही किया जाता है. फिर सभी कुकीज में किसी न किसी रूप में वसा होती है.’’
इसलिए, महत्वपूर्ण यह है कि पोषण के केवल एक पहलू यानी कम वसा, कम कैलोरी, कम चीनी, कम जीआइ पर ही ध्यान केंद्रित न किया जाए बल्कि पोषक तत्वों के समग्र संतुलन पर भी गौर किया जाए. यहां तक कि कम वसा, कम चीनी, कम कैलोरी वाली कुकी भी चीनी की लालसा को बढ़ा सकती है. मधुमेह के मरीजों और अन्य लोगों के लिए संतुलित आहार और सही जानकारी लेना ही सही तरीका है. फिर कभी-कभार कुछ मीठा हो जाए तो बहुत नुक्सान नहीं होने वाला.
शुगर-फ्री चीजों को संतुलित मात्रा में ही खाना चाहिए. गुड़ जैसे स्वीटनर के इस्तेमाल से ज्यादा कैलोरी वाले मीठे भोजन की चाहत बढ़ जाती है.
9,586 करोड़ रु. था देश में शुगर-फ्री का बाजार 2024 में, आइएमएआरसी ग्रुप के बाजार विश्लेषण के मुताबिक
शुगर-फ्री खा रहे हैं तो रहें सावधान
दिल्ली के मैक्स हेल्थकेयर में पोषण और आहार विज्ञान की क्षेत्रीय प्रमुख रितिका समद्दार कहती हैं कि मधुमेह रोगी कम कैलोरी वाली मिठाइयां खा सकते हैं लेकिन उन्हें निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए.
● कम कैलोरी, कम जीआइ (ग्लाइसेमिक इंडेक्स) वाली मिठाइयों में कृत्रिम मिठास का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे रक्त शर्करा बढ़ सकती है, पाचन संबंधी समस्याएं पैदा होने और आंत की सेहत बिगड़ने का खतरा रहता है.
● बाजार में मिल रही कई मिठाइयों में घी और क्रीम वगैरह के इस्तेमाल के कारण वसा की मात्रा भरपूर होती है, जो हृदय के लिए असुरक्षित हो सकती है.
● कम चीनी वाले खाद्य पदार्थ भी अगर आप ज्यादा मात्रा में लेते रहें तो उससे शरीर में चीनी का स्तर बढ़ सकता है. इसलिए ऐसे खाद्य पदार्थों का सीमित इस्तेमाल ही सबसे महत्वपूर्ण है.
● आप कितनी बार खाते हैं, यह भी बहुत मायने रखता है. अगर हर रोज मिठाइयां खाएंगे तो धीरे-धीरे शरीर में इनकी मात्रा जरूरत से ज्यादा हो जाएगी.
● मधुमेह के मरीजों के लिए मेवे, सीड्स, खजूर, अंजीर और डार्क चॉकलेट स्वस्थ विकल्प हैं. फलों के साथ ग्रीक योगर्ट का इस्तेमाल करना भी अच्छा रहेगा.