एसयूवी के उभार से कैसे सड़कों से गायब हो रही छोटी कारें?
सुरक्षा और उत्सर्जन संबंधी नियम हुए सख्त. इसके चलते लागत में हुआ इजाफा. दूसरी ओर एसयूवी की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी. ऐसे में छोटी कारों की बिक्री को बड़ा सदमा पहुंचना ही था. इस सेगमेंट में जान डालने को कार निर्माता अब करों में छूट की लगा रहे गुहार

कभी मध्य वर्ग की सवारी और सामूहिक आकांक्षा का प्रतीक रहीं छोटी कारें अब भारतीय सड़कों से तेजी से गायब हो रही हैं. 5 लाख रुपए से कम कीमत की एंट्री-लेवल (सस्ती) कारों की बिक्री वित्त वर्ष 2025 में घटकर सिर्फ 25,402 रह गई जबकि वित्त वर्ष 2016 में ऐसी करीब दस लाख गाड़ियां बिकी थीं.
कारों की कुल बिक्री में हैचबैक की हिस्सेदारी 2020 में 47 प्रतिशत थी जो 2024 में घटकर 24 प्रतिशत यानी लगभग आधी रह गई है. भारत की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी की हैचबैक की बिक्री 2020 में 7,71,478 से घटकर 2024 में 7,30,766 रह गई.
2025 में भी गिरावट जारी रही और कंपनी के मिनी सेगमेंट (ऑल्टो और एस-प्रेसो) की बिक्री में मई के दौरान सालाना आधार पर 31.5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई. पिछले साल मई में उसकी ऐसी 9,902 कारें बिकीं थीं जो इस वर्ष मई में घटकर 6,776 रह गईं. छोटी कारों की दूसरी सबसे बड़ी निर्माता हुंडई मोटर इंडिया की हैचबैक कारों की बिक्री में भी गिरावट आई है—2020 में 1,92,080 गाड़ियों से घटकर 2024 में यह 124,082 वाहन रह गई.
इससे वाहन निर्माता चिंतित हो गए. मारुति सुजुकी के वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारी (मार्केटिंग और सेल्स) पार्थो बनर्जी ने 2 जून को मीडिया से बातचीत में कहा, ''कहीं न कहीं सरकार को यह समझना होगा कि अगर वह ऑटो उद्योग की वृद्धि चाहती है तो उसे देखना होगा कि समस्या कहां है और छोटी कारों की बिक्री कैसे बढ़ाई जाए.''
वे कहते हैं, ''कुछ प्रोत्साहनों की जरूरत है ताकि जो ग्राहक कार खरीदने में समर्थ नहीं है, उसे प्रोत्साहन मिले जिससे वह दोपहिया से चार पहिया का रुख कर सके.'' 2024 में मारुति सुजुकी की कुल कार बिक्री में हैचबैक का हिस्सा 40 प्रतिशत था. कंपनी के चेयरमैन आर.सी. भार्गव ने इंडिया टुडे को बताया कि 2018 तक छोटी कारों की बढ़िया बिक्री हो रही थी. ''लेकिन अब कार बाजार का एक बड़ा हिस्सा नहीं बढ़ रहा है. ऑटो सेक्टर की समग्र वृद्धि तभी होती है जब सभी सेगमेंट बढ़ते हैं.'' उन्हें चिंता है कि अगर इस मसले को हल करने के लिए कुछ नहीं किया गया तो छोटी कारों की बिक्री में गिरावट होती रहेगी और वाहन निर्माताओं को भारी नुक्सान होगा.
अनुपालन की ज्यादा लागत
छोटी कारों की बिक्री में गिरावट का एक कारण यह है कि बढ़ती नियामकीय जरूरतों के कारण उनकी कीमतें बढ़ गई हैं. भार्गव कहते हैं, ''इन जरूरतों के कारण कारों की कीमत में अनुपात से ज्यादा वृद्धि हुई है. इस साल हमें कुछ छोटी कारों के दाम बढ़ाने पड़े क्योंकि उनमें एयर बैग लगाना जरूरी हो गया है. इससे खुदरा बाजार में गिरावट आई है.''
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने छोटी कारों को सुरक्षित बनाने के लिए उनमें छह एयरबैग अनिवार्य कर दिए हैं. उद्योग के अनुमान के मुताबिक, एयरबैगों की लागत और जरूरी संरचनात्मक बदलावों से वाहन की कीमत 60,000 रुपए तक बढ़ सकती है. हालांकि नियामकीय जरूरतों और उत्सर्जन मानदंडों के कारण सभी तरह की कारों की कीमतों में इजाफा हो रहा है, लेकिन सबसे ज्यादा मार खाने वाली श्रेणी छोटी कारों की है. 5 लाख रुपए के बजट वाले खरीदारों के लिए इस तरह की अतिरिक्त लागत से उनके हाथ निराशा लग सकती है.
अब नवी मुंबई के पनवेल में फैब्रिकेशन की दुकान चलाने वाले 35 वर्षीय अंजनी कुमार को देखिए जो महीने में 50,000 रु. कमाते हैं. वे वैगनआर या 5 लाख से कम कीमत का वाहन खरीदना चाहते हैं. वे 2 लाख रु. अदा कर बाकी रकम फाइनेंस कराना चाहते हैं. हालांकि वे कहते हैं कि कारों की शुरुआती कीमत ही 5.8 लाख रु. है. उनके शब्दों में, ''मुझे नहीं लगता कि जल्दी ही नई कार खरीद पाऊंगा.'' बिहार के सासाराम निवासी और तीन बच्चों के पिता अंजनी कहते हैं, ''मुझे शायद सेकंड हैंड कार लेनी होगी.''
कार निर्माता इस बात से नाराज हैं कि जापान जैसे विकसित बाजार में भी ऐसे सख्त नियम नहीं हैं. वहां के बाजार में एक-तिहाई हिस्सा रखने वाली केई कारों में छह एयरबैग की कोई अनिवार्यता नहीं है. उनका मानना है कि ग्राहकों के पास विकल्प होने चाहिए. भार्गव कहते हैं कि अगर बाजार में छह एयरबैग की मांग है तो निर्माताओं को उपलब्ध कराने होंगे.
वे कहते हैं, ''हमारे मामले में ग्राहक के पास कोई विकल्प नहीं है. हमें नहीं पता कि क्या सभी ग्राहक स्कूटर के साथ चलते रहना चाहेंगे और छह एयरबैग या कुछ अन्य सुविधाओं वाली छोटी कार नहीं खरीदना चाहेंगे.''
छह एयरबैगों के अलावा सेफ्टी सेंसर और ऐंटी-लॉक ब्रेकिंग सिस्टम जैसे फीचर एंट्री-लेवल वाहनों की कीमत में इजाफा करते हैं. यही नहीं वाहनों को प्रदूषण घटाने के भारत स्टेज VI उत्सर्जन मानक भी पूरे करने होते हैं. इससे अफोर्डेबिलिटी (खरीद क्षमता) पर असर पड़ रहा है क्योंकि यह काफी हद तक कार की शुरुआती कीमत से तय होती है. यहां तक कि कर्ज के लिए शुरुआती भुगतान भी वाहन की प्रारंभिक कीमत पर आधारित होता है.
भार्गव अपनी बात साबित करने के लिए दोपहिया वाहनों की बिक्री की मिसाल देते हैं. वे कहते हैं, ''2018 में दोपहिया वाहनों की बिक्री 2 करोड़ तक पहुंच गई थी. और यूरो 6 आने के बाद उनकी बिक्री में तेजी से गिरावट आई. यही बात छोटी कारों के साथ भी होती है. साथ ही, यह अजीब लगता है कि जहां स्कूटरों में शायद ही कोई सुरक्षा फीचर होता है, वहीं नीति निर्माता चाहते हैं कि किसी कार में बड़ी कारों वाले सभी 100 फीसद सुरक्षा फीचर हों.'' कार निर्माताओं को जिस बात की कमी लगती है, वह है शून्य सुरक्षा और पूर्ण सुरक्षा के बीच का श्रेणियां न होना.
एक और अड़चन कार का बीमा है: कार खरीदते समय तीन साल की बीमा पॉलिसी अनिवार्य है. इसका मतलब है कि तीन साल के लिए प्रीमियम का अग्रिम भुगतान ताकि तीसरे पक्ष के नुक्सान या चोटों के कारण होने वाली किसी भी देनदारी का कवरेज सुनिश्चित हो. साथ ही, रोड टैक्स और माल और सेवा कर (जीएसटी) भी अतिरिक्त बोझ हैं.
मसलन, महाराष्ट्र में ईंधन और वाहन की कीमत के साथ रोड टैक्स बदलता है—10 लाख रु. तक के पेट्रोल वाहनों पर 11 प्रतिशत, डीजल पर 13 प्रतिशत और सीएनजी पर 7 प्रतिशत का टैक्स देना पड़ता है. इसी तरह से दिल्ली में पेट्रोल (6 लाख रु. तक की) और सीएनजी कारों पर 5 फीसद और डीजल वाली पर 6.25 फीसद रोड टैक्स लगता है. इसके अलावा 1200 सीसी से कम इंजन क्षमता वाली छोटी कारों पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगता है. इससे भी कार की कीमत में 10 प्रतिशत इजाफा हो जाता है.
एसयूवी का उभार
छोटी कारों की बिक्री में गिरावट का एक बड़ा कारण सबकॉम्पैक्ट स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल्स (एसयूवी) के प्रति खरीदारों की बढ़ती ललक है. टाटा नेक्सन, मारुति सुजुकी की ब्रेजा और हुंडई की वेन्यू जैसे मॉडलों की ज्यादा मांग है—इसलिए नहीं कि उनकी कीमत 10 लाख रुपए से कम है, बल्कि इसलिए कि लोग अब बड़ी साइज की कारों को पसंद करने लगे हैं.
एसयूवी का मुख्य आकर्षण है, सड़क पर ठसक के साथ मौजूदगी, बैठने की शानदार स्टाइल और सहजता के साथ सफर. एसयूवी की बिक्री 2020 में महज 7,16,976 वाहनों से बढ़कर 2024 में 23.4 लाख वाहनों तक पहुंच गई जबकि मल्टी पर्पज व्हीकल्स (एमपीवी) की बिक्री 2020 के 2,87,663 से बढ़कर 2024 में 5,86,467 वाहन हो गई.
एसयूवी की 2024 में कार बाजार में 54 प्रतिशत हिस्सेदारी रही जबकि चार साल पहले यह 29 फीसद ही थी. सलाहकार फर्म जेएटीओ डायनेमिक्स के अध्यक्ष और निदेशक रवि भाटिया कहते हैं, ''जैसे-जैसे आय बढ़ती है और कर्ज ज्यादा आसान होता है, खरीदार महंगे बाजार का रुख करते हैं.'' लोग ज्यादा फीचर, ज्यादा आराम और अधिक अपील वाला ब्रांड चाहते हैं. ''कार निर्माता के लिए साधारण हैचबैक की तुलना में एक सुसज्जित मिड-साइज की एसयूवी से पैसे कमाना ज्यादा आसान है.''
छोटी कारों के निर्माता अब घटती बिक्री के कारण डीलरों के पास बढ़ते कार भंडार से चिंतित और सतर्क हो गए हैं. भार्गव कहते हैं, ''पिछले साल तक यह सब थोक में हो रहा था. हममें से कई लोग डीलरों को कारें भेजे जा रहे थे और इससे उनके पास कारों का भंडार बढ़ रहा था. डीलरों को भेजे गए वाहनों को बिक्री के रूप में बताया जाता था. पर अब हम खुदरा आंकड़ों की ओर ज्यादा बढ़ रहे हैं. डीलरों को कारें भेजने और संख्या बढ़ाने और फिर उन कारों पर बड़ी छूट देने का कोई मतलब नहीं.''
साथ ही, पुरानी कारों की खरीद भी बढ़ रही है. भाटिया कहते हैं, ''आज 5-6 साल पुरानी कार वैसी नहीं रही, जैसी पहले होती थी. यह सुरक्षित है, अच्छे से बनी है और इसमें भरपूर तकनीक है. पहली बार कार खरीदने वालों के लिए यह बेहतर विकल्प बन जाती है: कम पैसे में बेहतर कार. इससे नए एंट्री-लेवल मॉडल पर दबाव पड़ता है, जो तुलना करने पर अक्सर कमजोर दिखता है.''
कार्स24 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में भारत के पुरानी कारों के बाजार ने नई कारों की बिक्री को पीछे छोड़ दिया—42 लाख नई कारों की बिक्री के मुकाबले 54 लाख पुरानी कारें बेची गईं. रिपोर्ट में पुरानी कारों की बिक्री में 13 प्रतिशत की सालाना चक्रवृद्धि दर (साएजीआर) का भी अनुमान लगाया गया है जिससे 2030 तक इनकी बिक्री बढ़कर 1.08 करोड़ वाहन हो जाएगी. भाटिया कहते हैं, ''एक तरह से पुरानी कारों का बाजार अब नया एंट्री-लेवल सेगमेंट बन गया है.''
कर में चक्कर
नियामकीय जरूरतें मजबूती से लागू हैं. अब कार निर्माता केंद्र और राज्य सरकारों से करों का बोझ कम करने और छोटी कारों को किफायती बनाने की अपील कर रहे हैं. भार्गव सुझाते हैं: ''सबसे पहले, जीएसटी की समीक्षा करनी होगी और इसे कम करना होगा. दूसरा, रोड टैक्स हर साल ही लिया जाए. तीन साल के बीमा की जगह वार्षिक बीमा होना चाहिए.''
अगर रोड टैक्स को वार्षिक कर दिया जाए तो इससे शुरुआती मूल्य 10 प्रतिशत घट जाएगा. विकसित देशों की अपेक्षा भारत में प्रति व्यक्ति कारों की संख्या कम है. मोटे तौर पर, हर 1,000 लोगों पर 34 कार हैं जो अमेरिका (1,000 लोगों पर 860 कार) या जापान (1,000 लोगों पर 612 कार) जैसे देशों की तुलना में काफी कम है.
अधिक लोगों के लिए उन्हें वहन करने लायक बनाना है तो भारत को छोटी कारों की कीमतें कम करने की जरूरत है. कार बाजार बेहतर सुरक्षा फीचर वाले बड़े वाहनों की ओर बढ़ रहा है, तो कीमतों के कारण दोपहिया वाहनों से कारों की ओर लाना चुनौतीपूर्ण हो गया है. भारत में प्रति व्यक्ति कार स्वामित्व में सुधार के लिए वहनीयता की इस बाधा को दूर करना आवश्यक—और अत्यावश्यक है.
क्यों घट रही है छोटी कारों की बिक्री
> अनुपालन की ज्यादा लागत: अनिवार्य छह एयरबैग, सुरक्षा सेंसर और ऐंटी-लॉक ब्रेकिंग सिस्टम एंट्री लेवल के वाहनों की लागत बढ़ाते हैं. उत्सर्जन मानदंड का पालन करने से अतिरिक्त खर्च बढ़ जाता है.
> अनिवार्य 3-वर्षीय बीमा: कार खरीदारों के पास खरीद के समय तीन साल की बीमा पॉलिसी होनी चाहिए. इससे वाहन तुरंत ही महंगा हो जाता है.
> ज्यादा रोड टैक्स और जीएसटी: महाराष्ट्र में पेट्रोल वाहनों (10 लाख रु. तक) को 11%, डीजल वाहनों को 13% और सीएनजी को 7% रोड टैक्स देना पड़ता है. दिल्ली में पेट्रोल वाहनों (6 लाख रु. तक) पर 5% और डीजल वालों पर 6.25% है. 1,200 सीसी तक की कारें 18% की चपेट में आती हैं.
> एसयूवी में उछाल: खरीदार तेजी से 10 लाख रु. से कम कीमत वाली सबकॉम्पैक्ट एसयूवी को पसंद कर रहे हैं, प्रतिस्पर्धी कीमतों पर बड़े वाहन का आकर्षण.
> पुरानी कारों का बढ़ता बाजार: पांच-छह साल पुरानी कारों में बेहतर सुरक्षा, निर्माण गुणवत्ता और तकनीक उपलब्ध.