केरल : दो बड़े हादसे और मछुआरों के लिए कैसे समुद्र बन गया संकटों का समंदर!
पिछले दिनों केरल के समुद्र तट पर दो बड़े जहाजों के हादसे के साथ ही वहां के मधुआरों को एक गहराते हुए समुद्री आपातकाल का सामना करना पड़ा.

महज दो हफ्ते के भीतर केरल के 600 किलोमीटर लंबे तटीय इलाके, जहां हरे-भरे बैकवाटर और मछुआरों की बस्तियां आबाद हैं, उस इलाके को दो बड़े समुद्री हादसों ने झकझोर कर रख दिया. इन घटनाओं से तटीय समुदायों में दहशत फैल गई और पर्यावरण को लेकर गंभीर चेतावनी सामने आई.
पहला हादसा 25 मई को हुआ, जब लाइबेरियन झंडे वाले जहाज एमएससी एलसा 3, जिस पर 643 कंटेनर लदे हुए थे. संभावित तकनीकी खराबी की वजह से थोट्टापल्ली तट से 14.6 समुद्री मील दूर पानी में समा गया. यह जहाज विझिंजम से कोच्चि के बीच सफर कर रहा था. इसके 24 क्रू मेंबरों को वक्त रहते बचा लिया गया, मगर असली मुसीबत समुंदर के नीचे छिपी थी: खतरनाक रसायनों से भरे कई कंटेनर पानी में डूबे हुए हैं या तट पर बहकर आ रहे हैं.
खासकर तिरुवनंतपुरम, कोल्लम और आलप्पुझा में. बचाव टीमें अभी भी ईंधन टैंक से तेल रिसाव को रोकने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं. लेकिन एक और बड़ा खतरा है. 'प्लास्टिक नर्डल्स', यानी प्लास्टिक निर्माण में इस्तेमाल होने वाले छोटे-छोटे कण, जो मछलियों की प्रजनन ऋतु में समुद्र में फैल गए हैं.
केरल का तट अभी उस हादसे से उबरा भी नहीं था कि समुंदर ने दूसरी चोट पहुंचा दी. 9 जून को सिंगापुर के झंडे वाला जहाज एमवी वान हाइ 503, जो 650 कंटेनरों के साथ एक चलता-फिरता गोदाम था, अझिक्कल तट (कुन्नूर) से 43 समुद्री मील दूर विस्फोट और आग की चपेट में आ गया. यह जहाज कोलंबो से मुंबई जा रहा था. इसमें 22 सदस्य थे, जिनमें से चार लापता हैं और 18 में से दो गंभीर रूप से जल गए हैं.
तटरक्षक बल की पांच नौकाएं और नौसेना का आइएनएस सूरत मदद के लिए भेजे गए, मगर ज्वलनशील माल जैसे नाइट्रोसेल्यूलोज, बेंजोफेनोन, मैग्नीशियम, टर्पेंटाइन, एथनॉल वगैरह से लगी आग बुझने का नाम नहीं ले रही थी. इसके साथ ही जहाज पर मौजूद 2,000 टन समुद्री तेल, 240 टन डीजल और 32 टन शराब एक विनाशकारी मिश्रण बन गए. रक्षा प्रवक्ता कमांडर अतुल पिल्लै ने इंडिया टुडे को बताया, ''हमारी प्राथमिकता बचाव कार्य करना और तेल रिसाव को न्यूनतम रखना है. यह बहुत चुनौतीपूर्ण काम है.''
हादसे के बाद
कोच्चि में प्रशासनिक तंत्र अब सक्रिय हो गया है. मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने दो उच्चस्तरीय समितियां बनाई हैं—एक राज्य स्तर पर और दूसरी जिला स्तर पर—जो राहत कार्य और पर्यावरणीय आकलन का समन्वय करेंगी. मुख्य सचिव ए. जयतिलक ने बताया, ''राज्य ने समुद्री दुर्घटनाओं से निबटने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए हैं और पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों का अध्ययन किया जा रहा है. अब हमारी प्राथमिकता फौरन नुक्सान का आकलन करना और तटीय समुदायों को राहत देना है.'' थोड़ी हिचकिचाहट के बाद, राज्य ने एमएससी एलसा 3 के संचालक—जिनेवा स्थित मेडिटेरेनियन शिपिंग कंपनी—के खिलाफ फोर्ट कोच्चि तटीय थाने में आपराधिक मामला भी दर्ज किया है.
दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की शुरुआत और 10 जून से राज्यव्यापी ट्रॉलर बैन के बीच, ये दोनों हादसे केरल की 11.3 लाख मछुआरों की आबादी के लिए दोहरा झटका हैं. ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के राज्य अध्यक्ष टी.जे. अंजालोज कहते हैं, ''इन जहाज दुर्घटनाओं ने मछुआरों की परेशानियां बढ़ा दी हैं. उन्हें मछली से ज्यादा अब समुद्र में प्लास्टिक मिल रहा है. राज्य को उनके नुक्सान की भरपाई करनी चाहिए और शिपिंग महानिदेशालय से पूरी जांच की मांग करनी चाहिए.''
समुद्र से सटे इस राज्य में मछली मुख्य रूप से खाई जाती है. ऐसे में तटों पर आ रही जहरीली गंदगी को लेकर चिंता और गहराती जा रही है. कोच्चि स्थित केरल यूनिवर्सिटी ऑफ फिशरीज ऐंड ओशन स्टडीज (केयूएफओएस) की डॉ. अनु गोपीनाथ ने चेताया है कि इसके गंभीर दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं. वे कहती हैं, ''हमें इन जहाजों के डूबने से होने वाले प्रभावों की गहन निगरानी करनी होगी.
वान हाइ जहाज में कई ज्वलनशील और विषैले रसायन थे, जिनमें कीटनाशक भी शामिल हैं, जो जलीय जीवन प्रणाली को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं.'' पहले एमएससी एलसा 3 की वजह से प्रदूषण का अध्ययन कर रहा सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएमएफआरआइ) अब वान हाइ के आसपास के इलाके में भी समुद्री जल के नमूने लेकर हानिकारक रसायनों की जांच कर रहा है.
एक तरफ बचाव टीमें वक्त और लहरों से जूझ रही हैं, वहीं केरल खुद को एक अहम मोड़ पर खड़ा पा रहा है. केरल मैरीटाइम बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वी.जे. मैथ्यू कहते हैं कि विझिंजम बंदरगाह के विस्तार को देखते हुए, राज्य को एक स्थायी समुद्री निगरानी प्रणाली और सख्त कानूनी व्यवस्था विकसित करनी चाहिए. वे कहते हैं, ''शिपिंग कंपनियों को जिम्मेदार ठहराना चाहिए.''
मौजूदा संकट समय के साथ बीत जाएगा, जैसा हर संकट गुजरता है, लेकिन अगर अभी सुधार नहीं किए गए—खतरनाक माल की आवाजाही पर सख्त नियम और दीर्घकालीन पारिस्थितिकी निगरानी तंत्र नहीं बनाए गए—तो केरल के नाजुक समुद्री पारिस्थितिक तंत्र और उस पर निर्भर जिंदगियां बार-बार इसी तरह की त्रासदी झेलने को मजबूर होंगी.