'इंडसइंड बैंक' को किस नए फ्रॉड के कारण हुआ 2300 करोड़ रुपए का घाटा?
संदिग्ध धोखाधड़ी की बात सामने आने के बाद भारत के पांचवें सबसे ज्यादा कर्ज देने वाले बैंक को 2,300 करोड़ रु. का तिमाही घाटा झेलना पड़ा.

इंडसइंड इंटरनेशनल होल्डिंग्स लिमिटेड (आइआइएचएल) के चेयरमैन और इंडसइंड बैंक के प्रमोटर 76 वर्षीय अशोक पी. हिंदुजा के लिए 22 मई सचमुच एक बुरा दिन था. करीब दो दशक में पहली बार इस बैंक को किसी तिमाही में 2,328 करोड़ रुपए का चिंताजनक शुद्ध घाटा हुआ.
वजह: अकाउंटिंग की गड़बड़ियां, संदिग्ध धोखाधड़ी और उसके माइक्रोफाइनेंस पोर्टफोलियो में बढ़ता दबाव. डरे हुए निवेशकों ने शेयर बाजारों में बैंक के शेयरों को पटक दिया. इसके बाद सीईओ सुमंत कठपालिया और डिप्टी सीईओ अरुण खुराना दोनों ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया.
28 मई को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने कथित इनसाइडर ट्रेडिंग को लेकर कठपालिया और खुराना के खिलाफ अंतरिम आदेश जारी कर दोनों के प्रतिभूति बाजारों में हिस्सा लेने पर रोक लगा दी. इससे पहले 22 मई को सेबी प्रमुख तुहिन पांडे ने कहा था, ''यह रिजर्व बैंक का मामला है. पर किसी ने गंभीर उल्लंघन किया है कि नहीं, सेबी अपनी शक्ति के तहत उसकी जांच कर रहा है.''
निराशाजनक नतीजों के बाद हिंदुजा ने साहस दिखाया और कहा कि बैंक के बोर्ड ने मसलों से निबटने के लिए 'उचित, त्वरित' कदम उठाए हैं. लेकिन संदिग्ध धोखाधड़ी और घाटे ने भारत के पांचवें सबसे बड़े ऋणदाता बैंक को हिलाकर रख दिया है, जिसके 4.1 करोड़ से ज्यादा ग्राहक हैं और जिसके पास 4 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की जमा राशि है.
हालांकि बैंक ने दावा किया है कि उसके पास पर्याप्त पूंजी है. लेकिन हाल की घटनाओं ने उसकी प्रतिष्ठा को आंच पहुंचाने का जोखिम पैदा कर दिया है. यहां तक कि अकाउंटिंग की गलतियों और गड़बड़ियों के और भी मामले सामने आते जा रहे हैं. वित्तीय सलाहकार आश्विन पारेख कहते हैं, ''लगता है कि इंडसइंड बैंक सुरक्षा के हर स्तर पर गड़बड़ियों को पकड़ने में नाकाम रहा है. मुझे यकीन है कि व्यापक जांच निश्चित ही की जाएगी, खासकर यह जानने को कि कहीं जान-बूझकर तो अनुपालन में अनदेखी की गई.''
हिंदुजा भाइयों में सबसे बड़े और हिंदुजा समूह के पूर्व अध्यक्ष श्रीचंद पी. हिंदुजा ने इसकी अवधारणा पेश की थी और 1994 में इंडसइंड बैंक स्थापित किया. आर्थिक उदारीकरण के बाद के दौर में यह नई पीढ़ी के निजी बैंकों में पहला था. दिवंगत श्रीचंद के तीन भाइयों में सबसे छोटे अशोक भारत में हिंदुजा समूह की कंपनियों के अध्यक्ष हैं.
मॉरिशस स्थित आइआइएचएल के पास बैंक की लगभग 16 फीसद हिस्सेदारी है और भारतीय रिजर्व बैंक ने इसे 26 फीसद तक बढ़ाने की सहमति दे रखी है (देखें चार्ट). उसके प्रमुख ग्राहकों में बड़ी कंपनियां, छोटे और मझोले उद्यम (एसएमई) और खुदरा ग्राहक शामिल हैं और उसका फोकस वाणिज्यिक वाहनों को वित्त उपलब्ध कराने पर है. वित्त वर्ष 2024 तक बैंक के पास 2,984 शाखाओं और 2,956 एटीएम का नेटवर्क था.
'धोखाधड़ी' का खुलासा
किसी ने भी बैंक में घटनाओं के ऐसे नाटकीय मोड़ लेने का अंदाज नहीं लगाया होगा. मार्च की शुरुआत में यह बैंक रिजर्व बैंक की नजर में आया, तब केंद्रीय बैंक ने कठपालिया का कार्यकाल तीन साल के बजाए महज एक साल बढ़ाया.
दस मार्च को बैंक के वरिष्ठ प्रबंधन ने विश्लेषकों के साथ कॉन्फ्रेंस कॉल की और कहा कि डेरिवेटिव्ज कारोबार के पोर्टफोलियो में गड़बड़ियां पाई गई हैं और इस कारण बैंक को 1,900-2,000 करोड़ रुपए का वित्तीय झटका लगने का अंदेशा है. डेरिवेटिव्ज ऐसे वित्तीय सौदे होते हैं जिनका मूल्य किसी अंतर्निहित परिसंपत्ति जैसे शेयर, बॉन्ड, कमोडिटी या मुद्राओं की कीमत से तय होता है.
उनका उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है, जिनमें जोखिम कम करना, कीमतों के उतार-चढ़ाव पर अनुमान लगाना और संभावित रूप से लाभ कमाना शामिल है. कठपालिया ने कहा कि समस्या विशेष रूप से विदेशी मुद्रा देनदारियों के आंतरिक सौदों से जुड़ी थी.
विदेशी मुद्रा की विनिमय दर में उतार-चढ़ाव से संभावित नुक्सान घटाने के लिए बैंकों में करेंसी हेजिंग एक मानक परिपाटी है. इंडसइंड बैंक ने भी ऐसे जोखिमों का प्रबंध करने के लिए डेरिवेटिव साधनों का इस्तेमाल किया. लेकिन जब निवेश पोर्टफोलियो पर रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों, जो अप्रैल 2024 से लागू हुए, का पालन करने के लिए बैंक की प्रक्रियाओं की समीक्षा की गई तो पता चला कि उसकी डेरिवेटिव पोजीशनों में 'कुछ अंतर' है.
कठपालिया ने मीडिया को बताया कि बैंक को पिछले साल अक्तूबर-नवंबर के आसपास गड़बड़ी का पता चला था और उसने आंतरिक जांच कराने के साथ पड़ताल के लिए एक बाहरी एजेंसी की सेवाएं लीं. अजीब यह है कि बैंक के सीएफओ गोविंद जैन ने जनवरी में 'बैंक के बाहर अवसर' तलाशने के लिए इस्तीफा दे दिया, उसके बाद खुराना उनकी भूमिका में आ गए.
पारेख कहते हैं, ''डेरिवेटिव्ज जटिल साधन हैं. आम तौर पर कई अंतर्निहित परिसंपत्तियां होती हैं जिन पर जोखिम होता है. इस कारण जटिल मूल्यांकन के साथ अकाउंटिंग ट्रीटमेंट किया जाता है. अंतर्निहित जोखिम में ब्याज दर, बाजार दर या विनिमय दर शामिल हो सकती है, जो गतिशील और उतार-चढ़ाव वाली होती हैं. ऐसे अंतर्निहित सभी जोखिमों के लिए जोखिम पर मूल्य का उचित मूल्यांकन जरूरी होता है.''
20 मार्च को बैंक ने घोषणा की कि उसने मूल कारण का विश्लेषण करने और जवाबदेही तय करने के लिए एक बाहरी एजेंसी नियुक्त की है. 27 अप्रैल को बैंक ने कहा कि एजेंसी ने पता लगाया है, गड़बड़ियों के कारण उसे 1,960 करोड़ रुपए का वित्तीय नुक्सान होगा. खुराना ने अगले दिन इस्तीफा दे दिया और एक दिन बाद कठपालिया ने भी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए त्यागपत्र सौंप दिया.
बैंक ने कहा है कि फिलहाल परिचालन का प्रबंधन कार्यकारी समिति करेगी और वह नए सीईओ की तलाश में है. 9 मई को बैंक के एक डिस्क्लोजर में कहा गया कि कठपालिया और खुराना के खिलाफ इनसाइडर ट्रेडिंग के आरोपों की जांच चल रही है. इसके बाद माइक्रोफाइनेंस डिवीजन में दर्ज 674 करोड़ रुपए की 'गलत ब्याज आय' का और अन्य परिसंपत्तियों के तहत 595 करोड़ रुपए की बिना सबूत वाली राशि का खुलासा हुआ. बैंक ने कहा कि दोनों मुद्दे हालांकि जनवरी तक बंद हो चुके थे. माइक्रोफाइनेंस शाखा भारत फाइनेंशियल इन्क्लूजन के कार्यकारी उपाध्यक्ष जे. श्रीधरन ने भी इस्तीफा सौंप दिया है.
विशेषज्ञों का मानना है कि बैंक कई मोर्चों पर विफल रहा. नियोस्ट्रैट एडवाइजर्स के संस्थापक एबिजर दीवानजी कहते हैं, ''ऐसा लगता है कि बैंक की आंतरिक संस्कृति और शासन व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो गई थी. बैंक किसी भी रफ्तार से बढऩे की कोशिश कर रहा था. जब भी गड़बड़ियां नजर आईं तो उन्हें सिरे से नजरअंदाज कर दिया किया.''
मझोले आकार के बैंक हमेशा बाजार की धारणाओं के प्रति संवेदनशील होते हैं. व्यवसाय करने की ज्यादा लागत के कारण वे अक्सर अपने बड़े समकक्षों की तुलना में ज्यादा जोखिम वाली गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं. ऐसे मामलों में बैंकों को लेनदारों के लिए अपने खातों में लगातार प्रावधान करना चाहिए. दीवानजी कहते हैं, ''इंडसइंड ने ज्यादा कमाई और असुरक्षित एसएमई सेगमेंट में बढ़ने की कोशिश की और जब चीजें हाथ से बाहर निकलने लगीं तो उनके पास प्रावधान के लिए कवर नहीं था और उनको डेरिवेटिव अकाउंटिंग जैसी चीजें करनी पड़ीं...जब आप वांछित नतीजों के लिए अकाउंटिंग में जोड़तोड़ करते हैं तो आप संचालन में भी गड़बड़ी करते हैं.'' रिलायंस कैपिटल के अधिग्रहण के वास्ते धन जुटाने के लिए हिंदुजा इंडसइंड के शेयरों के एवज में उधार भी ले रहे थे और शायद उन्होंने यह नहीं चाहा होगा कि बैंक के शेयर की कीमतें गिरें.
अगर बैंक ने जोखिम में मूल्य की उचित मात्रा के साथ अपनी परिसंपत्तियों का अच्छे से और नियमित रूप से मूल्यांकन किया होता तो वह 'अंतर' को पकड़ सकता था और मूल्य में हुए नुक्सान को दूर करने के उचित उपाय कर सकता था. पारेख कहते हैं, ''लेकिन यहां अंतर्निहित मूल्यांकन पर ही सवाल खड़ा होता है और इससे यह धारणा बनती है कि तीनों कार्यालय इसमें शामिल थे—फ्रंट ऑफिस जो व्यापार करता है, डेरिवेटिव्ज रखता है या इन्हें खरीदने का फैसला करता है; मिड-ऑफिस, जिससे उम्मीद की जाती है कि वह जोखिम का नियमित और गतिशील रूप से मूल्यांकन करेगा; और बैक ऑफिस जिसको इसका हिसाब-किताब रखना होता है.'' वे कहते हैं, ''ऐसा लगता है कि तीनों या तो विफल हो गए या फिर उनकी मिलीभगत थी.''
कई लोग हैरान हैं कि ऐसे तौर-तरीकों का वरिष्ठ प्रबंधन को सालों तक पता नहीं चला. बचाव का पहला स्तर ट्रेडर है; दूसरा वरिष्ठ प्रबंधक हैं, जिन्होंने शायद जरूरी सवाल नहीं पूछे होंगे. तीसरे स्तर में बैंक के कार्यकारी निदेशक शामिल हैं. यह साफ नहीं है कि उन्होंने उचित नियंत्रण लागू किए या उन्हें ऐसा करने से रोका गया था. इन तीनों के अलावा यह भी उम्मीद की जाएगी कि आंतरिक और बाहरी ऑडिटरों के साथ मिलकर ऑडिट कमेटी मूल्यांकन और अकाउंटिंग प्रक्रियाओं की जांच करेगी.
इसके बाद निदेशक मंडल और प्रमोटर निगरानी रखेंगे. आइआइएचएल का अनुमान है कि इन सभी 'धोखाधड़ी' के कारण इंडसइंड को अपने लाभ और हानि विवरण पर लगभग 4,700 करोड़ रुपए का झटका लगा है. ब्रोकरेज ने इंडसइंड बैंक के शेयर को डाउनग्रेड कर दिया है. बैंक के शेयर 28 मई को बीएसई पर 804.75 रुपए पर बंद हुए जो एक साल पहले के 1,550 रुपए के उच्च स्तर से लगभग आधे हैं.
चलता रहे बैंक
हालांकि इंडसइंड बैंक में समस्याएं कॉर्पोरेट प्रशासन की गंभीर विफलताओं की ओर इशारा करती हैं लेकिन अभी इसकी वित्तीय सेहत को लेकर चिंता की कोई बात नहीं है. हिंदुजा ने स्पष्ट किया है कि बैंक के पास पर्याप्त पूंजी है, मार्च तक उसका पूंजी पर्याप्तता अनुपात 16.24 फीसद था. रिजर्व बैंक ने 15 मार्च को यह भी कहा कि बैंक ''अच्छी तरह से पूंजीकृत है और बैंक की वित्तीय स्थिति संतोषजनक बनी हुई है.'' बैंक के चेयरमैन सुनील मेहता ने 21 मई को विश्लेषकों से कहा कि वे ''आंतरिक नियंत्रणों और प्रक्रियाओं को बेहतर बनाने के लिए और कदम उठा रहे हैं ताकि ऐसी चूक फिर न हो.''
दीवानजी कहते हैं कि इस बैंक को ज्यादा लागत वाले कर्ज के अपने कारोबारी मॉडल पर गौर करना चाहिए. बोर्ड को आंतरिक घटनाक्रम पर नजर रखनी चाहिए और व्हिसलब्लोअर्स की शिकायतों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए. जैसे कि जनवरी में जैन के इस्तीफा देने पर सवाल उठाए जाने चाहिए थे. आखिरी बात, प्रबंधन को विश्वास फिर से बहाल करना होगा और इसकी शुरुआत कार्य संस्कृति में बदलाव के साथ होनी चाहिए.
इंडसइंड बैंक से एक-एक कर धोखाधड़ी के मामले बाहर आ रहे हैं. ऐसे में बैंक को अपने मौजूदा मसलों को हल करने के तरीकों पर काम करना होगा. साथ ही ऐसी घटनाओं को दोबारा होने से रोकने और अपने निवेशकों और ग्राहकों का विश्वास बहाल करने के लिए नया सिस्टम बनाना होगा.
सेबी के चेयरमैन तुहिन पांडेय ने कहा, ''यह आरबीआइ का मामला है, पर किसी ने गंभीर उल्लंघन किया है कि नहीं, सेबी अपनी शक्ति के तहत इसकी जांच कर रहा है.'' वहीं, इंडसइंड इंटरनेशनल होल्डिंग्स लिमिटेड के चेयरमैन अशोक पी. हिंदुजा ने कहा, ''हालांकि बैंक की पूंजी पर्याप्तता बेहतर स्थिति में है लेकिन कारोबार की ग्रोथ के लिए भविष्य में पूंजी की जरूरत होगी. आइबीएल की प्रोमोटर आइआइएचएल बैंक को मदद करने के लिए प्रतिबद्ध है और वह यह काम पिछले 30 साल से कर रही है.''