क्या है कैंसर फैलाने वाला ऐनलॉग पनीर; कैसे करें पहचान?
पनीर के प्रति दीवानगी इस हद तक पहुंची कि ब्याह-बरातों में खाने को न मिलने पर लट्ठ चल रहे हैं और इधर ऐनलॉग/कृत्रिम पनीर भयंकर बीमारियों का सबब बन रही है

यह बताइए जरा कि आप खाते क्या हैं?’’ नई दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. नरेश कुमार ने 55 वर्ष के अपने उस पुराने मरीज से अंत में जानना चाहा. शुद्ध शाकाहारी.
पेट की बीमारियों की कोई मेडिकल हिस्ट्री नहीं. पर इधर कुछ दिनों से लगातार बदहजमी, पेट में जलन, खट्टी डकारें और पेट फूलना. जवाब था: रोज सुबह अंकुरित मूंग-चना, उस पर थोड़ा पनीर...
''एक मिनट!!! कौन-सा पनीर खाते हैं?’’ मरीज घर के पास की ही एक डेयरी से खुला पनीर लाकर खा रहा था, पैकेट वाले पनीर के मुकाबले नरम और खाने में भी बेहतर स्वाद की दलील के साथ. डॉ. कुमार को बीमारी की वजह मिल चुकी थी. कुछ हल्की-फुल्की दवाइयां लिखने के साथ ही उन्होंने कुछ समय के लिए वह पनीर खाना बंद करने को कहा. जल्द ही मर्ज दूर हो गया. मरीज दूध से बनने वाले पनीर की बजाए कृत्रिम ढंग से तैयार ऐनलॉग पनीर खा रहा था.
दरअसल, हाल के दिनों में आ रहे ऐसे ही मरीजों के अनुभवों के आधार पर डॉक्टर बिरादरी के जेहन में ऐनलॉग पनीर को लेकर अंदेशा बढ़ा है और इसे लेकर जागरूकता भी. वे खुले में बिकने वाला पनीर न खाने की नसीहत देने लगे हैं. इसके नुक्सानों पर कई अध्ययन हुए हैं. इसलिए अब जो मरीज हाजमे या लीवर से जुड़ी शिकायतें लेकर आ रहे हैं, उनसे यह भी पूछा जा रहा है कि क्या आप नियमित तौर पर पनीर का सेवन करते हैं?
ऐनलॉग पनीर का मामला इसी अप्रैल में उस वक्त खासा चर्चा में आया जब एक सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर सार्थक सचदेवा ने सेलिब्रिटी कारोबारी और शाहरुख खान की पत्नी गौरी खान के मुंबई स्थित रेस्तरां टोरी पर एक वीडियो पोस्ट किया. इसमें दावा किया गया कि यहां ऐनलॉग पनीर से बने व्यंजन परोसे जा रहे हैं. सचदेवा ने पनीर के एक व्यंजन से ऊपर की तली हुई परत हटाकर पनीर को पानी से धोकर उस पर आयोडीन टिंक्चर डाला.
इस जांच में पनीर का रंग नीला या काला पड़ जाए तो वह ऐनलॉग पनीर होता है और रंग न बदले तो सामान्य पनीर. इस मामले में रंग काला हो गया. हालांकि, टोरी ने आधिकारिक बयान जारी कर इसका खंडन किया: ''आयोडीन परीक्षण स्टार्च की मौजूदगी को दर्शाता है, पनीर की प्रामाणिकता नहीं. चूंकि डिश में सोया-आधारित सामग्री होती है, इसलिए ऐसा होना लाजिमी है. हम अपने पनीर की शुद्धता और टोरी में हमारे इनग्रेडिएंट्स की प्रामाणिकता पर अडिग हैं.’’
ऐनलॉग पनीर को लेकर बढ़ते विवादों ने केंद्र सरकार को भी चौंकाया है. उसके उपभोक्ता मामलों के विभाग में एक प्रस्ताव पर विचार चल रहा है: कोई भी रेस्तरां अपने व्यंजनों में सामान्य पनीर का इस्तेमाल कर रहा है या ऐनलॉग पनीर का, इसकी घोषणा अनिवार्य कर दी जाए. विभाग के अधिकारियों की मानें तो इस पर सहमति बन गई है और अब इसे लागू करने के तौर-तरीकों पर विचार चल रहा है. क्रियान्वयन की रूपरेखा बनते ही इस बारे में नियम सार्वजनिक कर दिए जाएंगे.
पनीर दरअसल दूध को फाड़कर तैयार किया जाने वाला ऐसा डेयरी प्रोडक्ट है जिसका उत्तर भारत में डंका बज रहा है. पिछले 15-20 वर्षों में इसका चलन तेजी से बढ़ते हुए गांवों-कस्बों तक जा पहुंचा है. शाकाहारियों के लिए यह प्रोटीन का बहुत अच्छा स्रोत है. मध्यवर्गीय घरों और सड़क किनारे के रेस्तरांओं से लेकर पांचतारा होटलों तक, सुबह-शाम की थाली से लेकर शादी-ब्याह, मीटिंग-पार्टी किसी भी मौके पर होने वाला खानपान इसके बगैर अधूरा-सा लगता है.
पनीर का व्यंजन न होने पर ब्याह-बरातों में अक्सर तनातनी तक के वाकए भी देखे-सुने गए हैं. इसी अप्रैल में उत्तर प्रदेश के मुगलसराय क्षेत्र के एक गांव में शादी के भोज में ज्यादा पनीर न मिलने पर एक युवक ने मिनी बस मंडप पर ही चढ़ा दी. दो साल पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बड़ौत में एक शादी के भोज के दौरान मटर-पनीर में पनीर न मिलने पर बरातियों-घरातियों में घमासान हो गया था. पुलिस बुलानी पड़ी थी.
पनीर के प्रति इसी दीवानगी को बाजार भुना रहा है. नकली पनीर बाजार में पट गया. बीते अप्रैल की शुरुआत में पंजाब के पटियाला में 1,300 किलो पनीर जब्त किया गया. जांच में पता चला कि वह नकली था. नकली पनीर पकड़े जाने की खबरों से उत्तर भारत के अखबार भरे पड़े हैं.
आम जनमानस दूध से बनने वाले पनीर के बारे में जानता और वही समझकर खरीदता-खाता है. जाहिर है, मांग के अनुपात में सप्लाइ के उपाय किए ही जाने थे. लंबे समय से तर्क दिया जाता रहा है कि भारत में दूध और इससे बनने वाले उत्पादों की जितनी मांग है, उसके मुकाबले उत्पादन कम ही है. इसी को आधार बनाकर कुछ सालों से चर्चा होती आई कि कृत्रिम तरीके से डेयरी उत्पाद बनाने के तरीके तलाशे जाएं. खाद्य पदार्थों के इस्तेमाल से ही कृत्रिम ढंग से डेयरी उत्पाद बनें.
सच पूछिए तो ऐनलॉग पनीर इसी के तहत शुरू हुए उपक्रमों की पैदाइश है. सरल भाषा में कहें तो यह एक गैर-डेयरी उत्पाद है. इसे रासायनिक और कृत्रिम अवयवों का इस्तेमाल करके बनाया जाता है: वनस्पति तेल, स्टार्च या आटा, इमलसिफायर, स्टैबिलाइजर, मिल्क सॉलिड्स या स्किम्ड मिल्क पाउडर, प्रिजर्वेटिव और कृत्रिम फ्लेवरिंग एजेंट्स इसमें मिलाए जाते हैं.
मांग के मुकाबले सप्लाइ में कमी है, इसी फासले को आधार बनाकर भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण यानी एफएसएसएआइ से ऐनलॉग पनीर बेचने के लिए मंजूरी मांगी गई. केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत आने वाली एफएसएसएआइ ही वह नियामक संस्था है जो खाने-पीने की चीजों की गुणवत्ता और मानक तय करती है. उसने 2011 में बनाए गए अपने विस्तृत नियमों में बदलाव करते हुए 12 अक्तूबर, 2017 को कृत्रिम पनीर ऐनलॉग पनीर के नाम से बेचने को मंजूरी दे दी. यह प्रावधान भी किया गया कि ऐसे पनीर के पैकेट पर 'नॉन डेयरी प्रोडक्ट’ लिखा हो.
पर पैकेट में बिकता कितना है? यह है समस्या का एक और पहलू, जिसकी गवाही उत्तर भारत के तमाम रेस्तरां वाले देते हैं. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के एक रेस्तरां संचालक कहते हैं, ''अधिकांश ऐनलॉग पनीर पैकेट में नहीं बल्कि खुले में बिक रहा है. स्थानीय डेयरी की दुकानें इसका बड़ा माध्यम हैं.
सबसे ज्यादा ऐनलॉग पनीर रेस्तरांओं को बेचा जा रहा है.’’ उनका तो दावा है कि इक्का-दुक्का रेस्तरां को छोड़ दें तो तकरीबन सभी पर ऐनलॉग पनीर ही इस्तेमाल हो रहा है. नियम-कायदों और असली-नकली के खौफ का आलम यह है कि न रेस्तरां वाले पहचान बताते हुए कुछ कहना चाहते हैं और न ही ऐनलॉग पनीर बनाने वाले. रेस्तरां संचालक ग्राहकों को अमूमन यह भी नहीं बताते कि वे व्यंजन डेयरी वाले नहीं बल्कि ऐनलॉग पनीर से बना रहे हैं.
इसका अर्थशास्त्र भी सीधा-साफ है. दूध से बनने वाले पनीर की लागत 350 से 400 रुपए प्रति किलो है. वहीं ऐनलॉग पनीर यही कोई 150 रुपए किलो की लागत पर बन जाता है. कम कीमत पर बेचने के बावजूद बनाने वाले का अच्छा-खासा मुनाफा. रेस्तरां वालों की भी लागत घट जाती है. वे अपने व्यंजनों की कीमत कम रख पाते हैं. ग्राहकों को लगता है कि सस्ते में वे पनीर के व्यंजन पीट रहे हैं. उनको अंदाजा नहीं रहता कि हार्ट, लीवर, पेट और किडनी जैसे बेहद अहम अंगों को खतरे की जद में लाकर वे इसकी कितनी बड़ी कीमत चुकाने जा रहे हैं.
जरा इसके खतरों पर नजर डालें: डॉ. कुमार बताते हैं, ''ऐनलॉग पनीर में दूध से बनने वाले पनीर के मुकाबले पोषक तत्वों की कमी होती है. इसमें ट्रांस फैट की मात्रा ज्यादा होती है. इससे शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल का स्तर और इसके नतीजे में हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ता है. ट्रांस फैट से होने वाली दीर्घकालिक सूजन डायबिटीज से लेकर कैंसर तक को बढ़ावा देती है. ऐनलॉग पनीर के सेवन से पेट फूलने, अपच, दस्त और उल्टी जैसी पाचन तंत्र की समस्याएं भी देखी जा रही हैं.’’
एफएसएसएआइ ने 'नॉन डेयरी प्रोडक्ट’ का लेबल लगाकर ऐनलॉग पनीर बेचने को कानूनी मंजूरी दे रखी है, इसलिए इसे बेचने वालों में किसी तरह का डर नहीं है.
यह सेहत के लिए कितना जोखिम भरा है, इस सवाल पर ऐनलॉग पनीर बनाने वालों का तर्क होता है कि सरकार की मंजूरी के बाद ही वे ऐसा कर रहे हैं. इस बारे में कोई भी फैसला लेने का जिम्मा सरकार का है. ऐनलॉग पनीर बनाने वाले गुजरात के एक कारोबारी कहते हैं, ''कंपनियां सरकार से मंजूरी के बाद ऐनलॉग पनीर बना रही हैं. हम कोई गैरकानूनी काम थोड़े ही कर रहे हैं.’’ गैरकानूनी भले न हो लेकिन स्वास्थ्य संबंधी खतरों को देखते हुए क्या यह अनैतिक नहीं? इस तरह का सवाल उठाने पर वे इधर-उधर की करने लगते हैं.
अब बात मांग और आपूर्ति की. ऐनलॉग पनीर को एफएसएसएआइ की मंजूरी दिलाने के लिए दूध और इसके उत्पादों की मांग और आपूर्ति के अंतर को आधार बनाया गया था. तथ्य यह है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है. दुनिया भर के दूध उत्पादन में तकरीबन 25 प्रतिशत यानी एक-चौथाई हिस्सेदारी भारत की है. केंद्र सरकार के आंकड़े बताते हैं कि 2023-24 में भारत में 23.92 करोड़ टन दूध का उत्पादन हुआ.
ग्लोबल एग्रीकल्चर इन्फॉर्मेशन नेटवर्क की हालिया रिपोर्ट बताती है कि 2025 में भारत में 9.1 करोड़ टन दूध की मांग रहेगी. वहीं अन्य दुग्ध उत्पादों में 12.55 करोड़ टन दूध की खपत का अनुमान है. यानी 2025 में कुल खपत 21.65 करोड़ टन रहने का अनुमान है. ऐसे में तो मांग के मुकाबले दो करोड़ टन दूध बचने का अनुमान है. यानी ऐनलॉग पनीर को बढ़ावा देने के पीछे असली वजह मांग-आपूर्ति का अंतर नहीं बल्कि अधिक मुनाफा कमाना है. क्या यह कोई साजिश है?
ऐनलॉग पनीर बनने की प्रक्रिया
सामग्री: वनस्पति तेल, स्टार्च या आटा, मिल्क सॉलिड्स, इमलसिफायर, स्टैबिलाइजर्स, प्रिजर्वेटिव और आर्टिफिशियल फ्लेवरिंग एजेंट्स.
प्रक्रिया:
पहला चरण: सारी सामग्रियों को पानी के साथ अच्छे से मिलाकर एक घोल तैयार किया जाता है.
दूसरा चरण: इस घोल को गर्म किया जाता है. इसके बाद यह दूध की तरह दिखने वाला मिश्रण बन जाता है.
तीसरा चरण: किसी एसिडिक यानी खट्टे-खारे एजेंट की मदद से इस घोल को फाड़ा जाता है.
चौथा चरण: इसके बाद इस घोल में ऐनलॉग पनीर के थक्के और पानी अलग—अलग हो जाते हैं.
पांचवां चरण: पानी से इन थक्कों को अलग करके किसी भारी चीज से दबाकर मनचाहे आकार का ब्लॉक बना लिया जाता है. इसके साथ ही विभिन्न रासायनिक सामग्रियों से बना ऐनलॉग पनीर तैयार हो जाता है.
छठा चरण: अगर खुले में बेचना हो तो इसकी पैकेजिंग अलग ढंग से होती है और अगर छोटे-बड़े पैकेट्स में बेचने हों तो उस हिसाब से पैकेजिंग होती है.