तीनों सेनाओं के मेल से कैसे पाकिस्तान में तबाह हुए आतंक के ठिकाने?
तीनों सेनाओं को सभी क्षेत्रों में जंग लड़ने के लिए एकीकृत करने के प्रयासों का नतीजा ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सटीक कार्रवाई के रूप में सामने आया

ऑपरेशन सिंदूर नाम से भारत ने पहलगाम में हुए पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकी हमले का जो नपा-तुला जवाब दिया, उसकी मुख्य खासियत पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों और बाद में उसके सैन्य ढांचे पर सटीक और तबाहकुन हमले थे.
इसे कामयाबी से लागू कर पाने की एक वजह तीनों सेनाओं के बीच बहुत ऊंचे स्तर का आपसी तालमेल या एकीकरण था, जिसे बीते कुछ सालों में रक्षा प्रमुख (सीडीएस) और एकीकृत रक्षा स्टाफ मुख्यालय की अगुआई में अंजाम दिया गया. इस साझा एकता को बढ़ावा देने के लिए करीब 200 कामों और पहलकदमियों की पहचान की गई.
समयबद्ध ढंग से लागू करने के लिए इन्हें आठ स्पष्ट क्षेत्रों में बांटा गया. ये थे इंटेलिजेंस, लॉजिस्टिक्स, प्रशिक्षण, क्षमता विकास, संचार, मानव संसाधन, रखरखाव और प्रशासन.
एक साथ दो समानांतर रास्तों पर काम किया गया. एक में संयुक्तता की दिशा में उठाए गए कदम अवधारणा या विचार की शक्ल में थे, जिनका असर संज्ञानात्मक या मानसिकता के रूप में है और यह सेनाओं के बीच समझ और विश्वास बनाता है. इसे मुमकिन बनाया हर सेना की बेस्ट प्रैक्टिस से किए गए चुनाव और उनके बीच एक अनूठी साझा संस्कृति के विकास ने. साझा प्लानिंग और ट्रेनिंग, तीनों सेनाओं के कोर्स और एक से दूसरे में पोस्टिंग ने इसमें मदद की.
दूसरे रास्ते में ढांचे, नेटवर्क, कंप्यूटर ऐप्लिकेशन और नियम-कायदे बनाकर एकीकरण के उपाय लागू किए गए ताकि लड़ाकू शक्ति, संचार, खुफिया जानकारी, लॉजिस्टिक्स और प्रशासन के इस्तेमाल में साझा ऊर्जा और तालमेल लाया जा सके. संयुक्त परिचालन योजना प्रक्रिया, संयुक्त सिद्धांत, एकीकृत खुफिया और संचार नेटवर्क के निर्माण और जॉइंट लॉजिस्टिक्स नोड की स्थापना: इन सभी ने परिचालन दक्षता में योगदान दिया और तीनों सेना के साझा अभ्यासों तथा युद्धाभ्यासों के दौरान इसकी तस्दीक भी हो गई.
राष्ट्रीय स्तर पर कैडेट से लेकर मध्य-सेना स्तर पर रक्षा सेवा स्टाफ कॉलेज तक संयुक्त प्रशिक्षण इस कायापलट का मजबूत आधार रहा. सेनाओं के अपने-अपने वार कॉलेजों में कर्नल या समकक्ष सैन्य अफसरों के लिए संयुक्त विषय सामग्री, एक दूसरे के प्रशिक्षणों में मौजूदगी और संयुक्त संकाय बढ़ाए गए, जिससे एकीकृत ढंग से युद्ध लड़ने की समझ गहरी हुई, जो राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज में एक-सितारा प्रतिभागियों की शक्ल में और भी पुख्ता हो गई. इन उपायों को खुफिया, साइबर और मानव रहित हवाई प्रणाली जैसे क्षेत्रों में नए संयुक्त सेना प्रशिक्षण संस्थान बनाकर और मजबूत किया गया.
ये कोशिशें ऑपरेशन सिंदूर के दौरान बहुत-से क्षेत्रों में कार्रवाई करने में गेमचेंजर साबित हुईं. अधिकार और शक्तियों से लैस त्रि-सेना संगठनों, यानी रक्षा साइबर एजेंसी (डीसीवाइए), रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (डीएसए) और रक्षा खुफिया एजेंसी (डीआइए) को क्रमश: साइबर, अंतरिक्ष और सूचना के नए क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल है.
आतंकी शिविरों और पाकिस्तान के फौजी ठिकानों की खुफिया जानकारियां डीआइए के तहत बहुत-सी खुफिया धाराओं का मेल करके जुटाई गईं. डीएसए के समन्वय से उपग्रह की विस्तृत तस्वीरें मिलने से लक्ष्यों पर सटीक निशाना लगाना मुमकिन हो सका.
देश के ऊपर वायु रक्षा छत्र का असरदार परिचालन दो नेटवर्क आइएएफ की एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण प्रणाली और सेना के आकाशतीर के एकीकरण का नतीजा था, जिन्होंने त्रि-सेना रक्षा संचार नेटवर्क की तरफ से दी गई प्रबल सहायता की बदौलत निर्बाध ढंग से काम किया.
प्रत्येक सेना के परिचालन महानिदेशक या डायरेक्टर जनरल ऑफ ऑपरेशंस ने जिस तरह साझा प्रेस ब्रीफिंग के जरिए बातचीत की, वह भी समन्वित प्रतिक्रिया का प्रमाण था. एचक्यू आइडीएस का आदर्श वाक्य 'विक्टरी थ्रू जॉइंटनेस' या 'संयुक्तता के जरिए जीत' ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जमीन पर साकार हुआ.
इसकी असंदिग्ध कामयाबी इस जरूरत की तस्दीक करती है कि भारतीय सुरक्षा ढांचा संयुक्तता और एकीकरण, स्वदेशीकरण, क्षमता विकास और क्षमता निर्माण के विभिन्न पहलुओं की और गहराई से छानबीन करे.
ले. जनरल विपुल सिंघल (एकीकृत रक्षा स्टाफ मुख्यालय में डिप्टी चीफ हैं.)