प्रधान संपादक की कलम से

भारत केवल इतना चाहता है कि पाकिस्तान अपने तौर-तरीके सुधारे, मगर पाकिस्तान अपनी छद्म युद्ध रणनीति से बाज आते नहीं दिखता

इंडिया टुडे कवर : जंग!
इंडिया टुडे कवर : जंग!

- अरुण पुरी

कहावत है कि हर देश की सेना होती है, लेकिन पाकिस्तान फौज का एक देश है, जो फिलहाल जारी लड़ाई में खुद-ब-खुद साबित हो रहा है. पहलगाम में 22 अप्रैल को पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकवादियों ने 26 लोगों को मौत के घाट उतार दिया तो पूरे देश में क्रोध की ज्वाला धधक उठी.

कश्मीर में पहले भी आम लोगों को मारा गया है, धर्म पूछ-जानकर भी मारा गया है, लेकिन पत्नियों के सामने पतियों को करीब से और सामने खड़ा करके गोली मारने जैसी दरिंदगी कभी नहीं हुई. भारत को जवाबी कार्रवाई करनी ही थी. तो, 7 मई को उसने जवाब दिया.

उसके सभी लक्ष्य आतंकवादी गुटों और उनके ठिकानों से जुड़े थे. बहावलपुर में जैश-ए-मोहम्मद का मुख्यालय और मुरीदके में लश्कर-ए-तैयबा का मुख्यालय, दोनों पंजाब में थे. भारत ने 1971 के बाद पहली बार पाकिस्तान की जमीन पर उसके केंद्र को निशाना बनाया.

ऑपरेशन सिंदूर की योजना सटीक रणनीतिक लक्ष्य चिह्नित करके तैयार की गई. किसी फौजी ठिकाने या आम लोगों की बस्तियों पर निशाना नहीं साधा गया. नई दिल्ली ने हर चंद ख्याल रखा कि उसकी कार्रवाई टकराव में इजाफे की ओर न जाए. संदेश साफ था—पाकिस्तान की शह पर आतंकवाद को और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

अलबत्ता, पाकिस्तान के फौज प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने जवाब देने का फैसला किया, जो असलियत में सर्वेसर्वा और इस्लामी राष्ट्रवाद के कट्टर पैरोकार हैं. 7-8 मई की रात पाकिस्तान ने कश्मीर के अवंतीपोरा से लेकर गुजरात में कच्छ के भुज तक पश्चिमी सीमा पर भारतीय सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया.

भारत ने ऑपरेशन सिंदूर 2.0 के साथ जवाबी कार्रवाई की. ड्रोन से पाकिस्तान में अहम ठिकानों पर हमले किए गए, लाहौर में हवाई रक्षा प्रणाली को भी नष्ट कर दिया गया. पाकिस्तान ने जम्मू, उधमपुर और पठानकोट सैन्य चौकियों सहित मिसाइल और ड्रोन के झुंड से हमले किए, नियंत्रण रेखा पर भारी गोलाबारी की. जैसे-जैसे युद्ध के बादल घिरते जा रहे हैं, दुष्प्रचार और फर्जी खबरों का जहर हवा में घुलता जा रहा है, प्रतिशोध का चक्र तेजी से ऊपर चढ़ता जा रहा है.

पाकिस्तान टूटा-फूटा देश है. उसकी अर्थव्यवस्था बेदम है. आंतरिक कलह और सशस्त्र विद्रोह से वह तार-तार है. उसका सबसे लोकप्रिय नेता जेल में बंद है. एक बेमेल कठपुतली गठबंधन नाममात्र के लिए सत्ता में है और असल हुक्मरान फौज है. खुद को सही ठहराने और घरेलू दुश्वारियों से ध्यान बंटाने के लिए फौजी मुखिया जनरल आसिम मुनीर ने जान-बूझकर मुल्क को युद्ध की स्थिति में धकेल दिया.

आधुनिक असलहों के जमाने में युद्ध के दौरान अब भू-भाग पर कब्जा करने के मकसद से सैनिकों को बड़ी तादाद में लामबंद नहीं करना पड़ता. आज के युद्ध सरहद पार किए बिना जमीन और हवा से लंबी दूरी की मिसाइलों और उनके साथ टिड्डियों की तरह दुश्मन पर झपटने वाले ड्रोन के झुंड दागकर लड़े जा सकते हैं. औपचारिक युद्ध की घोषणा किए बिना पाकिस्तान और भारत के बीच अभी यही हो रहा है. करगिल को न गिनें तो दुनिया में यह पहली बार है जब परमाणु शस्त्रधारी दो देश आधुनिक और टेक्नोलॉजी की ताकत से लैस सरगर्म युद्ध लड़ रहे हैं.

इस युद्ध का कोई नतीजा निकलना नहीं है. कोई भी पक्ष दूसरे के भू-भाग पर कब्जा करना नहीं चाहता. भारत केवल इतना चाहता है कि पाकिस्तान अपने तौर-तरीके सुधारे. मगर पाकिस्तान अपनी छद्म युद्ध रणनीति और भारत के खिलाफ 'हजार घावों की जंग' की नादानी मानने से इनकार करता है.

बीते 25 साल में पाकिस्तान के सरकार-प्रायोजित आतंक को लेकर दोनों देशों के बीच यह छठा बड़ा टकराव है. दिसंबर 2002 में संसद पर हमले और 2008 में मुंबई में बड़े पैमाने पर गोलीबारी के बाद भारत ने अमेरिका की अगुआई वाली उस मध्यस्थता को मानकर हाथ रोक लिए जो पाकिस्तान से आतंकी धड़ों को खत्म करवाने के वादे पर टिकी थी और जिसमें धन पर वैश्विक अंकुश लगाना भी शामिल था. 2016 और 2019 में उड़ी और पुलवामा के हमलों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दंडात्मक भय प्रतिरोध की नीति अपनाई.

मगर तब टकराव बढ़ा नहीं, क्योंकि बड़े देशों ने दखल देकर गरमागरमी शांत करवा दी. उसके उलट इस बार यह बढ़कर पूर्ण टकराव में बदल गया क्योंकि खतरे की घंटी बजाने वाली कोई महाशक्ति नहीं है. राष्ट्रपति ट्रंप का ध्यान खुद उनके अस्त-व्यस्त एजेंडे ने भटका रखा है. रूस भी यूक्रेन में तल्लीन है.

चीन वैसे भी तटस्थ नहीं है क्योंकि पाकिस्तान हथियारों और अर्थव्यवस्था के लिए उसका एहसानमंद है. इससे उसे किसी दूसरे देश के मुकाबले ज्यादा गुंजाइश मिल जाती है, लेकिन उसकी विदेश नीति को समझ पाना मुश्किल है. ऐसे में भू-राजनैतिक स्थिति पहले की तरह आपसी तौर पर संतोषजनक युद्धविराम की दिशा में बाहरी बीच-बचाव के अनुकूल नहीं है.

इस अंक में ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर राज चेंगप्पा और डिप्टी एडिटर प्रदीप आर. सागर पाकिस्तान की खतरनाक चाल का विश्लेषण कर रहे हैं और बता रहे हैं कि भारत इसे कैसे नाकाम कर सकता है. पारंपरिक लिहाज से भारत को लॉजिस्टिक बढ़त हासिल है, चाहे वह सैन्य शक्ति (12 लाख बनाम 5,50,000 लाख) हो या हथियार प्रणालियां (4,200 बनाम 2,627 टैंक).

इसकी आंशिक भरपाई भू-भाग, जिनमें से कुछ पहाड़ी इलाके हैं, और उनके आकार-प्रकार से हो जाती है. लंबी सरहदों के साथ भारत के पास विचार के लिए दूसरे मोर्चे भी हैं. सारी दिलचस्पी अब नई पीढ़ी के हथियारों में है: सटीक आक्रमण और प्रतिरक्षा मिसाइल प्रणालियां, आत्मघाती ड्रोन सरीखे नए-नवेले उपकरण, और सटीक जासूसी.

पाकिस्तान की करतूतों का वास्तविक भयप्रतिरोधक यह है कि भारत रक्षा में ज्यादा निवेश करे और अकाट्य श्रेष्ठता बनाए रखे. भारत यह कर सकता है. पाकिस्तान नहीं कर सकता. अलबत्ता 'मेक इन इंडिया' सराहनीय लक्ष्य तो है, पर नतीजे देने में धीमा है.

तत्काल जरूरी यह है कि खरीद प्रक्रिया को आसान बनाया जाए और दुनिया भर से बेहतरीन हथियार खरीदे जाएं. स्थायी शांति तभी होगी जब पाकिस्तान अपनी पुरानी रणनीतियों से हमेशा के लिए तौबा कर ले. सत्ता को सही ठहराने के लिए भारत को हौवा बनाकर रखने की रणनीति बहुत पहले उपयोगिता खो चुकी है. इसे तिलांजलि देकर ही यह उपमहाद्वीप बम से बातचीत की तरफ बढ़ सकता है.

— अरुण पुरी, प्रधान संपादक और चेयरमैन (इंडिया टुडे समूह).​​​​​​

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