अनसुलझी पहेली की तरह क्यों है भारत और चीन का रिश्ता?

भारत-चीन अपने रिश्तों पर जमी गहरी बर्फ को तोड़ने में तो कामयाब रहे हैं लेकिन इनका भविष्य बहुत हद तक मौजूदा भू-राजनैतिक बदलावों पर निर्भर करने वाला है

पीएम नरेंद्र मोदी के साथ चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (फाइल फोटो)
पीएम नरेंद्र मोदी के साथ चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (फाइल फोटो)

सीमा विवाद पर उपजी नई स्थिति और व्यापक स्तर पर बदले भू-राजनैतिक हालात से निबटने के साथ-साथ भारत-चीन धीमी गति से ही सही लेकिन संतुलित रिश्ते बनाने की दिशा में कदम आगे बढ़ा रहे हैं. शांति और स्थिरता के लिए 1993 में किए गए समझौते और उसके बाद भरोसा बहाली के लिए उठाए गए कदमों की वजह से पिछले तीन दशकों में सीमा पर आम तौर पर स्थिति शांतिपूर्ण ही रही है.

हालांकि, 2022 में पूर्वी लद्दाख में चीन की आक्रामक सैन्य गतिविधियों से इसमें बाधा उत्पन्न हो गई. अच्छी बात यह रही कि 2004 से भारत की तरफ से सीमा पर जारी बड़े बुनियादी ढांचे बनाने की वजह से भारतीय सशस्त्र बल अपने क्षेत्र में चीनी घुसपैठ रोकने के लिए तत्परता के साथ अपेक्षित सैन्य बल तैनात करने में सक्षम थे.

फिलहाल, वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के कुछ हिस्सों से सेना हटा ली गई है और कुछ अन्य हिस्सों में गश्त बहाल हो गई है. पर सैन्य बलों की फिर से अपने-अपने क्षेत्रों में आधारभूत ठिकानों में तैनाती की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है. जब तक यह नहीं होता, तब तक यह नहीं कहा जा सकता कि स्थिति पूरी तरह पहले जैसी हो गई है.

रूस के कजान में 23 अक्तूबर, 2024 को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच एक शिखर बैठक हुई, और इससे पहले दोनों देशों के सैन्य और राजनयिक कर्मियों ने कई दौर की बातचीत के जरिए इस द्विपक्षीय वार्ता की जमीन तैयार की. लगभग पांच वर्षों के अंतराल के बाद हुई दोनों नेताओं की इस बैठक में वरिष्ठ अधिकारियों, विशेष प्रतिनिधियों और विदेश मंत्रियों के स्तर पर वार्ता फिर से शुरू करने पर सहमति बनी.

इसके बाद कैलाश मानसरोवर की तीर्थयात्रा, नाथू ला दर्रे से सीमा व्यापार, सीधी उड़ानें और मीडिया कर्मियों को परस्पर एक-दूसरे के यहां आने-जाने देना शुरू करने का फैसला किया गया. हालांकि, दोनों देशों की कई वर्षों की मेहनत ने संबंधों को जिस मुकाम पर पहुंचाया था, उसकी तुलना में यह प्रगति काफी कम नजर आती है.

और अब पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव ने इन रिश्तों को थोड़ा और उलझा दिया है. चीन स्वतंत्र जांच के पाकिस्तानी प्रस्ताव का समर्थन कर रहा है जबकि भारत इसके लिए कतई तैयार नहीं. यह रुख भारत-चीन रिश्तों की बहाली में बाधक बन सकता है.

हालांकि, भारत ने चीन के साथ राजनैतिक और सुरक्षा संबंधों को न्यूनतम स्तर पर बना रखा है लेकिन निरंतर बढ़ते आर्थिक और वाणिज्यिक संबंधों पर नियंत्रण में असमर्थ रहा है. चीन सभी प्रमुख वैश्विक आपूर्ति और मूल्य शृंखला का एक अभिन्न अंग है. तैयार उत्पादों के अलावा महत्वपूर्ण और मध्यवर्ती घटकों के लिए चीन पर निर्भरता को रातोरात कम नहीं किया जा सकता. यह आर्थिक स्तर और सुरक्षा मोर्चे पर भारत के लिए जोखिम भरा हो सकता है.

यही नहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की कड़ी घरेलू और विदेश नीति के कारण बदली भू-राजनैतिक स्थितियां भी भारत-चीन के रिश्तों का भविष्य तय करने में काफी अहम साबित होंगी. ट्रंप एक तरफ चीन के साथ बड़ा व्यापार युद्ध छेड़ने की बात करते हैं तो दूसरी तरफ उसके साथ एक 'बड़ी सौदेबाजी' के लिए भी तैयार दिखते हैं.

ऐसा लगता है कि वे दूसरे देशों को लेकर अमेरिकी प्रतिबद्धताओं से पीछे हट रहे हैं लेकिन क्या यह हिंद-प्रशांत में उपस्थिति बनाए रखने और इसे बढ़ाने के लिए है? या फिर वे अमेरिका की तरफ से अमेरिकी महाद्वीपों और ग्रीनलैंड जैसे आस-पास के क्षेत्रों पर प्रभुत्व का दावा करते हुए एशिया में चीनी प्रभाव क्षेत्र को स्वीकार कर सकते हैं? चीन के प्रति भारत का रुख इसी आधार पर तय हो पाएगा.

लेकिन एक लंबे समय से चीनी आधिपत्य को खारिज किए जाने और बहध्रुवीय एशिया और दुनिया की प्राथमिकता को बदलना संभव नहीं होगा. भले ही संबंधों में कितने भी सकारात्मक और रणनीतिक सुधार हो जाएं लेकिन वैमनस्य का भाव पूरी तरह खत्म होने की गुंजाइश नजर नहीं आती.

-  श्याम सरन, पूर्व विदेश सचिव  

Read more!