व्यापार से साझेदार तक, कैसे भारत-अमेरिकी संबंधों के लिए खास रहा उपराष्ट्रपति जेडी वेंस का दिल्ली दौरा?

व्यापार समझौते के अलावा भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी और अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वैंस ने ऊर्जा, रक्षा और रणनीतिक प्रौद्योगिकियों पर भारत-अमेरिका सहयोग की भी समीक्षा की.

21 अप्रैल को नई दिल्ली में अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वैंस और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

अब नुक्ताचीनी करने वाले कह सकते हैं कि लक्षण शुभ नहीं थे. नई दिल्ली पहुंचने के एक दिन के भीतर ही अमेरिका के उपराष्ट्रपति जे.डी. वैंस को कश्मीर में आतंकी वारदात की त्रासदी देखनी पड़ी. और यह भी क्या संयोग कि उनके इटली से होकर भारत आते ही वेटिकन में शोक की लहर छा गई. उस पीड़ा की तो हम बात ही नहीं कर रहे जो उनके बॉस ने दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं को पहुंचाई है.

उसके बारे में वैंस से सीधे पूछा जा सकता था और वे जवाब देने को तैयार भी थे. 22 अप्रैल को जयपुर में राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में अपनी चार दिवसीय यात्रा के दौरान एकमात्र सार्वजनिक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, ''हम यहां यह उपदेश देने नहीं आए हैं कि आप इस खास तरीके से चीजें करो. हम साझेदार बनकर आपके पास आए हैं, अपने संबंधों को मजबूत बनाने की गरज से.''

इन शब्दों से भारत के लोग आश्वस्त हुए होंगे. अधिकांश लोगों ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के साथ उनका लाइव टीवी मुकाबला देखा होगा, कुछ लोग यूरोपीय नेताओं को संबोधित फरवरी में उनके आक्रामक भाषण के दृष्टिकोण से हतोत्साहित हुए होंगे. लेकिन भारत के साथ समीकरण अलग हैं. और नई दिल्ली की रणनीतिक सूझबूझ भी अच्छी-खासी है.

सभी पैमानों पर वैंस का भारत दौरा दोनों पक्षों के लिए सफल माना गया. सबसे उत्साहवर्धक बात वैंस का यह आश्वासन था कि उनकी सरकार प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बाइलेटरल ट्रेड अग्रीमेंट या बीटीए) के माध्यम से भारत के साथ कारोबारी रिश्तों को मजबूत बनाएगी. इस समझौते पर दोनों पक्ष फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान काम करने के लिए सहमत हुए थे.

चीजें तो वैसे पटरी पर ही दिख रही थीं. दोनों एक दिशा में बढ़ रहे थे. पर यह राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से 2 अप्रैल को लगाए गए जवाबी टैरिफ के अपने 'मुक्ति दिवस' के बाण को तरकश में वापस लेने से पहले की बात है. भले ही अब असर हल्का हो गया हो मगर भारत ने भी 26 प्रतिशत टैरिफ का झटका झेला है. फिर ट्रंप ने पूरी कवायद पर 90 दिन के लिए विराम लगा दिया, लेकिन इससे भविष्य की अनिश्चितता खत्म नहीं हुई.

भारत के लिए इसका मतलब है कि अपनी शर्तों पर बीटीए हासिल करने को कुछ ज्यादा ही मशक्कत करनी होगी. ऐसे वक्त में वैंस की 21 से 24 अप्रैल की यात्रा ने घबराहट कम करने में मदद की और संकेत दिया कि सर्दियों से पहले मौसम सुधर जाएगा.

उनके आने के एक दिन के भीतर ही प्रधानमंत्री कार्यालय और व्हाइट हाउस की ओर से बयान जारी किए गए जिनमें कहा गया कि बीटीए बातचीत के लिए विचारार्थ मसलों को अंतिम रूप दे दिया गया है और इस तरह एक खाका तैयार किया गया है. दरअसल आमने-सामने की बातचीत का दूसरा दौर 23 अप्रैल को वाशिंगटन डीसी में शुरू हुआ.

मुख्य वार्ताकार राजेश अग्रवाल के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने सेक्टरों के हिसाब से टैरिफ कटौती के दायरे और समय पर अमेरिकी अधिकारियों के साथ शुरुआती विचारों का आदान-प्रदान किया. उम्मीद है कि भारत कुछ अमेरिकी वस्तुओं पर कम आयात शुल्क के बदले अपने कुछ निर्यात पर टैरिफ कम कराने में सफल होगा. भारत में भी वैंस ने ट्रंप की बात दोहराई और पीएम मोदी को 'सख्त वार्ताकार' बताया और कहा कि यही कारण है कि अमेरिका उनका सम्मान करता है.

अगर कई सेक्टर में साझेदारी करार की सफलता चाहिए तो दोस्ताना संबंध महत्वपूर्ण होंगे. इसकी मूल योजना यह थी कि वर्ष 2030 तक कुल द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर (43.4 लाख करोड़ रुपए) तक बढ़ाकर भारत के व्यापार अधिशेष पर अमेरिकी नाराजगी दूर की जाए. इस कारोबार में वस्तु और सेवा दोनों निर्यात शामिल हैं.

कैलेंडर वर्ष 2023 में दोनों के बीच कारोबार 194 अरब डॉलर (16.6 लाख करोड़ रुपए) था. मगर ट्रंप के टैरिफों ने इसे हिलाकर रख दिया. उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि केवल बीटीए से ही अमेरिका के साथ भारत के मौजूदा व्यापार का कम से कम एक हिस्सा बच सकता है. अगर भारत को अपने कृषि क्षेत्र की रक्षा करनी है और अमेरिकी बाजार में ज्यादा पहुंच के लिए जोर लगाना है, तो इसके बदले में कुछ देना होगा.

शायद ऊर्जा में. अमेरिका अपने ऊर्जा निर्यात (एलएनजी, कच्चा तेल, एथेनॉल, कोयला) के लिए भारत के तेजी से बढ़ते ऊर्जा बाजार तक ज्यादा पहुंच चाहता है. भारत ने ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान अमेरिकी ऊर्जा खरीद में वृद्धि की थी और ऐसे संकेत मिले हैं कि भारत इसमें और इजाफा कर सकता है.

निश्चित तौर पर व्यापार का संबंध महज वस्तुओं से नहीं है, इसका भू-राजनैतिक सहसंबंध भी है. 21 अप्रैल की अपनी बैठक के दौरान मोदी और वैंस ने ऊर्जा, रक्षा और रणनीतिक प्रौद्योगिकियों जैसे क्षेत्रों में भारत-अमेरिका सहयोग की समीक्षा की. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भागीदारी, क्वाड, चीन की सैन्य मौजूदगी, यूक्रेन-रूस की लड़ाई और पश्चिम एशिया के हालात-सभी बड़े मसले बातचीत में शामिल रहे.

अपने जयपुर संबोधन में वैंस ने भारत से ज्यादा अमेरिकी रक्षा सामान खरीदने और ऊर्जा खरीद बढ़ाने का आग्रह किया और ट्रंप की बात दोहराते हुए भारत को एफ-35 स्टेल्थ विमानों की पेशकश की. अमेरिका निर्मित जैवलिन ऐंटी-टैंक मिसाइल और स्ट्राइकर बख्तरबंद वाहनों की भी पेशकश की गई, साथ ही गोला बारूद और सामान के सह-उत्पादन की भी बात कही गई.

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के उपाध्यक्ष डॉ. हर्ष पंत के मुताबिक, वैंस की यात्रा से सबसे बड़ी बात यह निकली है कि भारत और अमेरिका न केवल प्रारंभिक व्यापार समझौते को जल्द अंतिम रूप देना चाहते हैं, बल्कि द्विपक्षीय संबंधों को भी बढ़ाना चाहते हैं. वे इंडिया टुडे से कहते हैं, वैंस ने संकेत दिया है कि ''भारत ट्रंप प्रशासन की विदेश नीति के समीकरण में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहेगा.''

वैंस 21 अप्रैल को अपने परिवार के साथ नई दिल्ली पहुंचे और अगले कुछ दिनों में जयपुर, आगरा और दिल्ली के लोकप्रिय स्थलों का दौरा किया. आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले का वडलुरु गांव उपराष्ट्रपति की पत्नी उषा वैंस का पैतृक गांव है. लेकिन वैंस की यात्रा में जो चीज महत्वपूर्ण थी, वह थी पर्दे के पीछे की कूटनीति.

जयपुर में वैंस का फोकस डेटा सेंटर, फार्मास्यूटिकल्स और समुद्र के भीतर केबल जैसे क्षेत्रों पर रहा जिससे टेक्नोलॉजी से जुड़े क्रिटिकल उद्योगों में आर्थिक परस्पर निर्भरता बढ़ाने का संकेत मिलता है. भारत का डेटा सेंटर बाजार 2023 में 6 अरब डॉलर (51,306 करोड़ रुपए) था जिसके बढ़कर 2028 तक 10 अरब डॉलर (85,510 करोड़ रु.) हो जाने का अनुमान है.

अमेजन, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी अमेरिकी तकनीकी दिग्गज कंपनियां बुनियादी ढांचे में निवेश कर रही हैं. दोनों देश इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल ऐंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज (आइसीईटी) के तहत सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग करते हैं. साथ ही, अमेरिका अपनी दवा आपूर्ति शृंखला में चीन को दूर करते हुए विविधता लाना चाहता है और भारतीय फार्मा इसका एक स्वाभाविक निवेश गंतव्य है, जो अमेरिकी जेनेरिक दवाओं के बाजार में 40 प्रतिशत की आपूर्ति करता है. 

''भारत-अमेरिका संबंध 21वीं सदी को आकार देंगे'' जैसी वैंस की उत्साहित करने वाली टिप्पणियां व्यावहारिक व्यापार समझ से निकली थीं. लेकिन राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल के अंतिम दौर (खालिस्तानी नेता गुरपटवंत सिंह पन्नू की हत्या की कोशिशों के बाद) में संबंधों में आई ठंडक स्पष्ट रूप से दूर हो गई है. अब दोनों पक्षों को इसे स्थिर और एक दूसरे के लिए फायदेमंद तरीकों से सार्थक बनाना होगा.

व्यापार समझौते के अलावा मोदी और वैंस ने ऊर्जा, रक्षा और रणनीतिक प्रौद्योगिकियों पर भारत-अमेरिका सहयोग की भी समीक्षा की.

वैंस के आने से आखिर क्या हुआ

> वैंस की यात्रा से नई दिल्ली को भरोसा मिला कि द्विपक्षीय व्यापार समझौता सही दिशा में आगे बढ़ रहा है.

> पीएमओ, व्हाइट हाउस ने कहा कि बीटीए के लिए रोडमैप तैयार है; अमेरिका में वार्ता शुरू हुई.

> इससे 50 करोड़ डॉलर के व्यापार तक पहुंचने के द्विपक्षीय लक्ष्य को हासिल करने, अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ कम करने और भारत को अपने कृषि क्षेत्र की रक्षा करने में मदद मिलेगी.

> वैंस ने भारत से अमेरिकी रक्षा उत्पाद और ऊर्जा खरीद को और बढ़ाने का आग्रह किया; एफ-35 जेट, जेवलिन ऐंटी-टैंक मिसाइल, स्ट्राइकर बख्तरबंद वाहन की पेशकश की.

> भारत-प्रशांत में भारत-अमेरिका सहयोग, पश्चिम एशिया की स्थिति, यूक्रेन भी मोदी-वैंस वार्ता का हिस्सा.

> वैंस ने कहा कि भारत-अमेरिका संबंध 21वीं सदी को आकार देंगे, मोदी की 'कठोर वार्ताकार' होने के लिए प्रशंसा की.

परिवार का वक्त जे.डी. और उषा वैंस 21 अप्रैल को दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर में अपने बच्चों के साथ

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