क्या चीन-पाकिस्तान के मुकाबले एक जेनरेशन पुराना फाइटर जेट इस्तेमाल कर रहा भारत?
अमेरिका ने छठी पीढ़ी के एफ-47 उतारे और चीन हवाई युद्ध को नया स्वरूप देने के लिए कई प्रोटोटाइप के साथ आगे बढ़ा. ऐसे में भारत को पांचवीं पीढ़ी के स्टेल्थ फाइटर उतारने और वायु सेना के आधुनिकीकरण की दिशा में तेजी लाने की जरूरत

अमेरिका ने 21 मार्च को नेक्स्ट जेनरेशन एयर डोमिनेंस (एनजीएडी) कार्यक्रम के तहत अपने छठी पीढ़ी के लड़ाकू जेट बोइंग एफ-47 का उद्घाटन किया. इसका ऐलान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने ओवल कार्यालय से किया. इससे अमेरिका छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान तैनात करने वाला पहला देश हो जाएगा, जिसे इस दशक के अंत तक तैनात करने का लक्ष्य है.
पांचवीं पीढ़ी के एफ-22 रैप्टर की जगह लेने के लिए डिजाइन किए गए एफ-47 में अत्याधुनिक तकनीकें हैं, जिसमें सुपरक्रूज के लिए ज्यादा कुशल और उच्च-थ्रस्ट इंजन, स्टेल्थ एन्हांसमेंट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से लैस है. 1,000 लड़ाकू ड्रोन के संग 200 जेट की योजना के साथ एनजीएडी कार्यक्रम 'सिस्टम ऑफ सिस्टम्स’ नजरिए की ओर बदलाव को दिखाता है, जिसमें पारंपरिक लड़ाई के बजाए युद्ध क्षेत्र के मुताबिक रणनीतिक बदलाव हो जाता है.
भारत के लिए यह घटनाक्रम माकूल वक्त में नहीं आया है. दुनिया की प्रमुख शक्तियां छठी पीढ़ी के हवाई युद्ध की तैयारी कर रही हैं, लेकिन हिंदुस्तान अपने पहले पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) को ही लाने के लिए जूझ रहा है. एएमसीए के विकास के लिए नोडल निकाय एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (एडीए) का कहना है कि पहली उड़ान 2028-29 तक होगी और 2030 के दशक में इसे वायु सेना में शामिल किया जाएगा.
लेकिन सैन्य विमानन विशेषज्ञों का मानना है कि इस समय सीमा में पहले ही काफी देर हो चुकी है. ऐसा इसलिए क्योंकि चीन अपने पांचवीं पीढ़ी के जे-20 लड़ाकू विमानों का बड़े पैमाने पर उत्पादन कर रहा है, कुछ को वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तैनात भी कर चुका है और अपने छठी पीढ़ी के जे-36 प्रोटोटाइप के साथ प्रयोग कर रहा है, जिसका दिसंबर 2024 में अनावरण किया गया. और तो और, पाकिस्तान भी चीन के दूसरे पांचवीं पीढ़ी वाले लड़ाकू जेट जे-35ए के 40 विमानों का बेड़ा खरीदने की तैयारी में है.
फिर, अचानक ट्रंप ने फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे के दौरान भारत को एफ-35 स्टेल्थ फाइटर विमान देने की पेशकश कर दी. अमेरिका अभी तक इसे कुछ नाटो देशों और अन्य प्रमुख सहयोगियों को ही देता आया था. यह पेशकश रूस के प्रस्ताव के फौरन बाद आई, जो पांचवीं पीढ़ी की क्षमताओं वाला अमेरिका और चीन के अलावा इकलौता दूसरा देश है.
उसने भारत में अपने शीर्ष एसयू-57ई लड़ाकू विमान के सह-उत्पादन की पेशकश की. इन महंगे प्रस्तावों के बीच रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय समिति भारतीय वायु सेना में एएमसीए की तैनाती में तेजी लाने के लिए व्यावहारिक उत्पादन मॉडल को अंतिम रूप देने में जुटी है. समिति में वाइस-चीफ एयर मार्शल एसपी धारकर और रक्षा उत्पादन सचिव संजीव कुमार के अलावा एडीए और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन के शीर्ष अधिकारी शामिल हैं और उम्मीद है कि वह अप्रैल के अंत तक अपनी रिपोर्ट सौंप देगी.
पीछे न रहने की दौड़
लड़ाकू विमानों की पीढ़ियों का विकास हवाई युद्ध में प्रगति की कहानी बताता है. रूस के एसयू-30एमकेआई और अमेरिका के एफ-16 जैसे चौथी पीढ़ी के लड़ाकू विमानों का रफ्तार और वजनी हथियार वाले भार के साथ 20वीं सदी के उत्तरार्ध के युद्धों में दबदबा रहा. एफ-35 और जे-20 जैसे पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों की आमद से नए दौर की शुरुआत हुई, जिसमें स्टेल्थ और सेंसर फ्यूजन ने पारंपरिक हवाई युद्ध को लगभग बेमानी बना दिया.
उनकी 'पहले देखो, पहले दागो’ की क्षमता पायलटों को दुश्मन के लड़ाकू विमानों को मार गिराने या संभलने का मौका दिए बिना उनकी हवाई सुरक्षा को बेअसर करने की ताकत देती है. अब एफ-47 और जे-36 जैसे छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान एआई, ड्रोन विंगमैन और हाइपरसोनिक हथियारों से लैस एक और छलांग लगा सकते हैं. मतलब साफ है—जब तक भारत का एएमसीए चालू होगा, तब तक उसकी तकनीक पुरानी पड़ सकती है और वह अत्याधुनिक विमानों का सामना नहीं कर सकती.
इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में 8 मार्च को एयर चीफ मार्शल ए.पी. सिंह ने चीन से प्रतिस्पर्धी दबाव और भारत के अपने लड़ाकू जेट खासकर एएमसीए के विकास में तेजी लाने की जरूरत पर प्रकाश डाला था. उनका कहना था, ''भारत को नवीनतम तकनीक अपनाने और अपने पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू जेट कार्यक्रम को ऐसे समय में तेज करने की आवश्यकता है, जब चीन ने अपने छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमानों का प्रदर्शन किया है." वायु सेना प्रमुख ने उत्पादन बढ़ाने की भी बात की और ''कमी को पूरा करने के लिए हर साल 35 से 40 लड़ाकू जेट जोड़ने की जरूरत" पर जोर दिया.
दुनिया में हवाई ताकत और दबदबे पर जोर है, लेकिन भारतीय वायु सेना अपने मंजूर बेड़े की संख्या को भरने के लिए ही जूझ रही है. उसके पास 42 स्क्वाड्रन की स्वीकृत क्षमता है, लेकिन बमुश्किल 30 ही बचे हैं, और अगले दशक में कम से कम आठ और स्क्वाड्रन रिटायर होने वाले हैं. हर स्क्वाड्रन में आम तौर पर 18-20 जेट विमान होते हैं, जिसका मतलब है कि भारतीय वायु सेना के पास फिलहाल लगभग 540-600 लड़ाकू विमानों का बेड़ा है.
घटती संख्या और वायु सेना के आधुनिकीकरण के लिए, पिछले रक्षा सचिव के नेतृत्व वाली समिति ने 3 मार्च को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को एक विस्तृत रोडमैप सौंपा था. तात्कालिक लक्ष्य स्वीकृत शक्ति तक पहुंचना और फिर 2047 तक उसे 60 स्क्वाड्रन तक बढ़ाना है. एएमसीए इस विजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
पांचवीं पीढ़ी की चुनौती
एएमसीए परियोजना अब तक लेट-लतीफी का शिकार रही है. 2009 में केंद्र सरकार ने उसकी व्यावहारिकता का अध्ययन शुरू किया था, लेकिन मार्च 2024 में जाकर इस परियोजना को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी मिली, जिसमें पांच प्रोटोटाइप के विकास के लिए 15,000 करोड़ रुपए (1.8 अरब डॉलर) का शुरुआती आवंटन किया गया.
कड़े उड़ान परीक्षणों के लिए 10 साल के रोडमैप को अंतिम रूप दिया गया है. परियोजना को मंजूरी देते समय सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीएस) ने यह साफ कर दिया कि लागत में किसी भी तरह की वृद्धि और देरी के लिए रक्षा मंत्रालय के बजाए सीधे समिति से संपर्क किया जाना चाहिए. अलबत्ता, कुछ विशेषज्ञ उच्च लागत की बात करते हैं, लेकिन एएमसीए अन्य स्टेल्थ जेट कार्यक्रमों की तुलना में काफी किफायती है.
अमेरिका के एनजीएडी की लागत 40 अरब डॉलर से अधिक होने का अनुमान है, जिसमें एफ-47 और उसका अगली पीढ़ी का इंजन शामिल है. इसी तरह, ब्रिटेन-इटली-जापान ग्लोबल कॉम्बैट एयर प्रोग्राम (जीसीएपी) की लागत के 43.2 अरब डॉलर होने की संभावना है. इसके विपरीत, भारत के संयुक्त लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) एमके2, ट्विन इंजन डेक-बेस्ड फाइटर (टीईडीबीएफ) और एएमसीए कार्यक्रमों की लागत 4.6 अरब डॉलर होने का अनुमान है.
इस बीच एएमसीए के उत्पादन में साझेदारी पर बहस भी छिड़ गई है कि सरकारी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को काम सौंपा जाए या निजी उद्योग को जोड़ लिया जाए. एचएएल ने कंसोर्शियम बनाने का प्रस्ताव दिया है, जिसमें वह 50 फीसद हिस्सेदारी रखेगा और विशिष्ट कार्यों की देखरेख के लिए 12.5 फीसद हिस्सेदारी वाली चार निजी फर्मों को शामिल किया जाएगा.
लेकिन सरकार का रुझान निजी साझेदारी की ओर दिखता है. एडीए के सूत्र संकेत देते हैं कि एचएएल को अन्य निजी फर्मों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ सकती है, जो संयुक्त उद्यमों के मामले में इसके खराब ट्रैक रिकॉर्ड की ओर इशारा करते हैं. यह भारत के रक्षा उत्पादन में संभावित बदलाव का संकेत है, जिसमें कई निजी खिलाड़ी बड़ी भूमिका के लिए होड़ कर रहे हैं.
हालांकि, निजी क्षेत्र की भागीदारी पर संदेह बना हुआ है. एक वरिष्ठ एयर मार्शल ने लड़ाकू जेट उत्पादन इकाई स्थापित करने के लिए भूमि अधिग्रहण, इन्फ्रास्ट्रक्चर, कुशल कार्यबल की भर्ती और प्रशिक्षण समेत भारी निवेश की जरूरत बताई. उन्होंने इंडिया टुडे से कहा, ''यह भारी निवेश वाला बहुत बड़ा काम है," उन्होंने निजी फर्मों के लिए व्यावहारिक व्यवसाय मॉडल की जरूरत पर जोर दिया.
इसकी मुख्य चिंताओं में एडीए के आरऐंडडी पर नियंत्रण, लागत और एचएएल और निजी निर्माताओं के बीच जिम्मेदारियों का बंटवारा शामिल है. एक दूसरे एयर मार्शल ने एचएएल और भारतीय निजी क्षेत्र के खिलाड़ियों दोनों की क्षमता के बारे में संदेह व्यक्त किया, इसे ''दो अवांछनीय स्थितियों" का विकल्प बताया.
उन्होंने कहा, ''हमारे निजी क्षेत्र के किसी भी दिग्गज को छोटे या मध्यम आकार के विमानों की अंतिम असेंबली और डिलिवरी का कोई अनुभव नहीं है. शायद हमें इस जटिल कार्य में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए किसी विदेशी खिलाड़ी की मदद की दरकार है."
पहले से ही कई परियोजनाओं के बोझ तले दबे एचएएल को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. यह 83 तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) एमके-1ए का उत्पादन कर रहा है, जिसकी डिलिवरी में इंजन की कमी के कारण पहले ही देर हो चुकी है और उसे अतिरिक्त 97 विमानों के लिए मंजूरी मिल गई है. साथ ही उसे तेजस एमके-2 के चार प्रोटोटाइप विकसित करने का काम सौंपा गया है, जिसके 2026 तक पहली उड़ान भरने की उम्मीद है.
25 मार्च को जीई एयरोस्पेस ने आखिरकार एमके-1ए के लिए एचएएल को 99 एफ404-आइएन20 इंजनों में से पहला इंजन दिया. एएमसीए के साथ इसी तरह की नाकामियों से बचने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) जेट के इंजन विकास की सीधे निगरानी करने के लिए आगे आ रहा है.
एएमसीए मार्क-1 शुरू में जीई एफ414 (98 केएन) इंजन के साथ उड़ान भरेगा, डीआरडीओ के गैस टर्बाइन रिसर्च एस्टैब्लिशमेंट (जीटीआरई) की ओर से उन्नत एएमसीए मार्क-2 फाइटर के लिए महत्वपूर्ण 110-120 केएन का अधिक शक्तिशाली इंजन विकसित किया जा रहा है. विदेशी सहयोग के लिए योजनाएं चल रही हैं. फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका और रूस की कंपनियां इंजन के सह-विकास में रुचि दिखा रही हैं, जो वैश्विक विशेषज्ञता के साथ स्वदेशी क्षमता को बढ़ाएगा.
लेकिन यह सवाल बना हुआ है कि एएमसीए का निर्माण कौन करेगा. पूर्व वायु सेना उप-प्रमुख एयर मार्शल एस.बी.पी. सिन्हा (सेवानिवृत्त) कहते हैं, ''कम से कम यह तो स्पष्ट है कि एचएएल तेजस एमके-1ए और एमके-2 लड़ाकू विमानों का उत्पादन करेगा. लेकिन अभी कोई नहीं जानता कि एएमसीए कौन बनाएगा."
फिर भी, वे एएमसीए की प्रासंगिकता का बचाव करते हैं, और कहते हैं कि वह कभी भी एफ-47 या जे-36 से होड़ के लिए नहीं, बल्कि भारत को ''बहुत सक्षम पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान’’ प्रदान करने के लिए था. लेकिन छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमानों का खुलासा यह बताता है कि एएमसीए के प्रासंगिक बने रहने का मौका तेजी से सिकुड़ रहा है, लिहाजा, भारत को उसके उत्पादन में तेजी लानी होगी.
रोडमैप@2047: वायु सेना की विस्तार योजना
भारतीय वायु सेना को स्वीकृत 42 स्क्वाड्रन के मुकाबले सिर्फ 31 से काम चलाना पड़ रहा है. ऐसे में 2030 तक पुराने हो चुके मिग-21, जगुआर और मिराज 2000 को चरणबद्ध तरीके से हटाकर बेड़े में नए विमानों को शामिल किया जाएगा, जो मौजूदा संख्या की तुलना में कहीं ज्यादा होंगे. लक्ष्य: स्क्वाड्रन को जल्द से जल्द और 2047 तक 60 (यानी 1,080-1,200 लड़ाकू विमान) तक पहुंचाना है.
2025-30: कमी दूर करना
● तेजस मार्क-1ए
मार्क-1 की तुलना में 40 से ज्यादा सुधार वाला संस्करण, 4.5-पीढ़ी वाले ऐसे 180 हल्के लड़ाकू विमान मिग-21 (9-10 स्क्वाड्रन) की जगह लेंगे. जीई एफ404 इंजन मिलने में देरी के कारण आपूर्ति 2025 के अंत या 2026 तक शुरू होने के आसार.
● राफेल बढ़ेंगे
भारतीय वायु सेना ने फ्रांस से ऐसे 36 लड़ाकू विमान खरीदे हैं. फिर 2023 में 26 नौसेना संस्करण के लिए ऑर्डर दिए जाने की रिपोर्ट भी सामने आई. हरी झंडी मिली तो 2028 तक आपूर्ति शुरू होगी.
● उन्नत सुखोई एसयू-30एमकेआई
मूलत: रूसी और लाइसेंस के तहत भारत में निर्मित इन 272 लड़ाकू विमानों के बेड़े में से 84 को 2026 से उन्नत एईएसए रडार और एस्ट्रा मिसाइलों से लैस किया जाएगा. एचएएल नए एएल-31एफपी इंजन भी देने वाला है.
2030-35: ताकत में वृद्धि
● तेजस मार्क-2
एक दमदार तेजस विमान 2026 में पहली उड़ान भरेगा और 2032-33 तक सैन्य बेड़े का हिस्सा बनेगा. योजना: 120-200 लड़ाकू विमान (6-10 स्क्वाड्रन) शामिल करना.
● एमआरएफए सौदा
114 ट्विन-इंजन 4.5-पीढ़ी के बहुआयामी लड़ाकू विमान (एमआरएफए) की योजना पर काम जारी, विदेशी भागीदारों के साथ सौदा तेज गति से बढ़ा तो 2030-32 तक बेड़े में शामिल होने की उम्मीद.
● एएमसीए मार्क-1
भारत के पांचवीं पीढ़ी के पहले स्टेल्थ एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के लिए पांच प्रोटोटाइप विकसित करने का क्रम जारी, 2035 तक बेड़े में मिल सकती है जगह, शुरू में दो स्क्वाड्रन (40 जेट) में जीई एफ-414 इंजन का होगा इस्तेमाल.
2035-47: अगली पीढ़ी पर ध्यान
●एएमसीए मार्क-2
शक्तिशाली 110-120 केएन इंजन के साथ उन्नत स्टेल्थ जेट. 2047 तक 160-200 जेट (7-10 स्क्वाड्रन) चाहती है वायु सेना. एएमसीए की कुल संख्या 240-300 तक पहुंचने की उम्मीद.
● टीईडीबीएफ
ट्विन-इंजन डेक-बेस्ड फाइटर एएमसीए का नौसेना संस्करण. आइएनएस विक्रांत जैसे विमानवाहकों के लिए 45-60 जेट खरीदने की योजना, जिन्हें 2035-2040 तक बेड़े में शामिल किया जाएगा. इसके साथ नौसेना की विमान क्षमता दोगुना हो जाएगी.
● नेक्स्ट-जेन वाइल्डकार्ड
2040 तक वायु सेना का लक्ष्य एएमसीए अपग्रेड या नए प्लेटफॉर्म के माध्यम से छठी पीढ़ी की तकनीक को अपनाना है, वैकल्पिक तौर पर मानवयुक्त जेट, स्वचालित ड्रोन या हाइपरसोनिक्स. हालांकि, अभी तक कोई ठोस फैसला नहीं हुआ लेकिन इरादा स्पष्ट है.
लड़ाकू विमानों के विकास की कहानी
● लड़ाकू विमानों की पहली तीन पीढ़ियों के विकास की कहानी द्वितीय युद्ध के समय शुरू हुई. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पहली पीढ़ी के जर्मन एमआई-262 और कोरियाई युद्ध में इस्तेमाल एफ-86 (अमेरिका) और मिग-15 (सोवियत संघ) से लेकर वियतनाम युद्ध का हिस्सा रहे सुपरसोनिक एफ-4 फैंटम और मिग-21 (दूसरी/तीसरी पीढ़ी) तक विकसित होती गईं. हर पीढ़ी के विकास के साथ विमानों की गति तेज हुई और उन्नत मिसाइलों के साथ बहुउद्देशीय क्षमताएं बढ़ीं.
● रूस के एसयू-30एमकेआई और अमेरिका के एफ-16 जैसे चौथी पीढ़ी के लड़ाकू विमानों ने गतिशीलता और भारी हथियार ले जाने में सक्षम होने के साथ 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में संघर्षों के दौरान अपना दबदबा स्थापित किया. राफेल भारतीय वायु सेना का सबसे उन्नत जेट है, जो 4.5-पीढ़ी का फ्रांसीसी बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमान है.
● 21वीं सदी में 5वीं पीढ़ी के युद्धक विमान आए, जिनमें अमेरिका का एफ-35 और चीन का जे-20 शामिल है. इसके साथ ही एक नए युग की शुरुआत हुई जिसमें स्टेल्थ और सेंसर फ्यूजन ने परंपरागत युद्धशैली को एकदम पीछे छोड़ दिया.
● अब एफ-47 और जे-36 जैसे छठी पीढ़ी के जंगी विमान एक और लंबी छलांग के लिए तैयार हैं और एआइ, ड्रोन विंगमैन और हाइपरसोनिक हथियारों से लैस हैं.