इंडियन एयरफोर्स के लिए क्यों इतना खास है स्वदेशी 'प्रचंड' हेलीकॉप्टर?

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड की योजना ‘प्रचंड’ की पहली खेप 2028 के मध्य तक देने की है, उसके बाद हर साल करीब 30 हेलिकॉप्टरों की आपूर्ति की जाएगी. यह ऑर्डर 2033 तक पूरा हो जाएगा

ऊंचे आकाश का उस्ताद अक्तूबर 2022 में भारतीय वायु सेना में शामिल हल्का युद्धक हेलिकॉप्टर एचएएल प्रचंड

भारत की हवाई ताकत बढ़ाने की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए रक्षा मंत्रालय (एमओडी) ने 156 प्रचंड लड़ाकू हेलिकॉप्टर खरीदने के लिए 62,700 करोड़ रुपए के सौदे पर हस्ताक्षर किए हैं.

यह देश के सैन्य आधुनिकीकरण अभियान के तहत सबसे बड़ी खरीद में से एक है. इससे न केवल वायु सेना (आइएएफ) और सेना की रोटरी-विंग क्षमताएं बढ़ेंगी, बल्कि रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भरता की देश की प्रतिबद्धता भी दिखती है.

विदेश निर्मित जंगी हेलिकॉप्टरों के विपरीत प्रचंड को भारत की अलग किस्म की परिचालन चुनौतियों, खासकर काफी ऊंचाई वाले इलाकों के लिए जरूरी युद्धक क्षमताओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है. अक्तूबर 2022 में इसके बेड़े में शामिल होने के बाद से वायु सेना 10 हेलिकॉप्टर इस्तेमाल कर रही है, जबकि सेना के पास पांच हैं.

चीन अपना हवाई शस्त्रागार तेजी से बढ़ा रहा है और पाकिस्तान भी युद्धक हेलिकॉप्टरों के बेड़े को मजबूत कर रहा है. ऐसे में बड़े पैमाने पर प्रचंड हेलिकॉप्टरों को शामिल किया जाना हिमालय की बर्फीली चोटियों से लेकर राजस्थान के तपते रेगिस्तान तक विविध युद्धक्षेत्रों में वर्चस्व कायम रखने के भारत के संकल्प को मजबूत करता है.

दरअसल, प्रचंड की उत्पत्ति 1999 की करगिल जंग की वजह से हुई, जिसने बेहद ऊंचाई वाले इलाकों में संघर्षों के दौरान हवाई क्षमता को लेकर भारत की चुनौतियों को प्रमुखता से उजागर किया. फ्रांस के को-डेवलपर सफ्रां आर्दिदेन के टर्बोशैफ्ट इंजन से विकसित किए गए इसके जुड़वां 'शक्ति' इंजनों का ऐसे भूगोल में व्यापक परीक्षण किया गया. हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की तरफ से विकसित प्रचंड का शाब्दिक अर्थ 'भीषण' होता है और यह भारत का पहला स्वदेशी हल्का लड़ाकू हेलिकॉप्टर (एलसीएच) है.

हरेक की 1,384 हॉर्सपावर की क्षमता वाले दोहरे पावर इंजन से लैस यह हेलिकॉप्टर पर्याप्त पेलोड लेकर 5,000 मीटर से ज्यादा की ऊंचाई से उड़ान भर सकता है और उतर सकता है. इस पेलोड में कुछ कारगर हथियारों का टोकरा शामिल है: 20 मिमी की एक नोजगन, 70 मिमी के रॉकेट पॉड और इसके अलावा भारत की ध्रुवास्त्र ऐंटी टैंक गाइडेड मिसाइलें और फ्रांस की हवा से हवा में मार करने वाली मिस्त्राल-2 मिसाइलें तैनात करने की क्षमता.

चीन के जेड-10 और तुर्किये के टी-129 एटीएके के अलावा यह तीसरा ऐसा लड़ाकू हेलिकॉप्टर है जो इतने ऊंचे इलाकों में कारगर है. हालांकि, जेड-10 और टी-129 दोनों की इंजन क्षमता इतनी दमदार नहीं है इसलिए अत्यधिक ऊंचाई पर उनके प्रदर्शन को लेकर शंका रहती है. दूसरी तरफ, प्रचंड ने हिमालयी क्षेत्रों में हर बार परीक्षण के दौरन अपनी असीमित क्षमताओं को साबित किया है.

आक्रामक और तेज हमलों को अंजाम देने के लिए डिजाइन किया गया प्रचंड 288 किमी प्रति घंटे की तीव्र गति के साथ 500 किमी के दायरे में हमला करने में सक्षम है. इसका बख्तरबंद कॉकपिट चालक दल की सुरक्षा सुनिश्चित करता है. 5.8 टन वजनी यह हेलिकॉप्टर आतंकवाद विरोधी अभियानों में तो कारगर है ही, आबादी वाले क्षेत्रों में अचूक निशाना साधने से लेकर विशेष बलों की सुरक्षा और दुश्मन की हवाई सुरक्षा रणनीति को नाकाम करने तक कई भूमिकाओं में काम आ सकता है.

इसके खरीद संबंधी करार को पिछले 28 मार्च को अंतिम रूप दिया गया, जिसमें भारतीय वायु सेना को 66 और सेना को 90 हेलिकॉप्टर मिलने हैं. इनकी आपूर्ति 2028 के मध्य तक शुरू होगी. एचएएल की योजना तब तक पहली खेप देने की है, उसके बाद हर साल करीब 30 हेलिकॉप्टरों की आपूर्ति की जाएगी. सौदे के तहत पूरी आपूर्ति 2033 मध्य तक हो जाएगी. नवीनतम सौदे के तहत सरकार इस खरीद के दौरान प्रचंड में कुल 65 फीसद स्वदेशी घटकों के इस्तेमाल का लक्ष्य हासिल करना चाहती है.

रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, इसमें 250 से अधिक घरेलू कंपनियों की भागीदारी होगी, जिनमें ज्यादातर एमएसएमई हैं. 8,500 से अधिक प्रत्यक्ष और परोक्ष रोजगार पैदा होंगे. बेंगलूरू स्थित टाइमटूथ टेक्नोलॉजीज की तरफ से 2024 में विकसित रोटर डैम्पर सिस्टम जैसे नवाचार पहले ही विदेशी कलपुर्जों पर निर्भरता घटा चुके हैं.

दरअसल, सैन्य जरूरतें पूरी करने के अलावा दमदार ढंग से आत्मनिर्भर बनाने का यह पहलू ही प्रचंड को एक अलग कतार में खड़ा करता है. यह एक के बिना पर दूसरे की कुर्बानी लेने की बजाए दो के बीच तालमेल कायम करता है. तभी तो केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह एक ऐसी ''दमदार मशीन'' बताकर प्रचंड की तारीफ करते हैं जो भारतीय सशस्त्र बलों को अग्रिम मोर्चों पर निर्णायक बढ़त प्रदान करेगी.

भारत के युद्धक हेलिकॉप्टर बेड़े में बदलाव हो रहा है क्योंकि लंबे समय तक भारत की हवाई सुरक्षा की रीढ़ माने जाते रहे पुराने रूसी एमआइ-25 और एमआइ-35 हेलिकॉप्टरों को चरणबद्ध तरीके से हटाया जा रहा है. प्रचंड और बोइंग एएच-64ई अपाचे उनकी जगह लेने वाले हैं. दुनिया के सबसे बेहतरीन बहुआयामी युद्धक क्षमता वाले हेलिकॉप्टर माने जाने वाले अपाचे 2019 से ही वायु सेना की सेवा में हैं. भारत अभी केवल 22 हेलिकॉप्टर ही इस्तेमाल कर रहा है. आपूर्ति शृंखला में व्यवधान के कारण अमेरिका के साथ 2020 में किए गए 60 करोड़ डॉलर (5,200 करोड़ रु.) के सौदे के तहत सेना को छह अतिरिक्त अपाचे मिलने में देरी हो रही है.

कुछ विश्लेषकों का तर्क है कि पश्चिम एशिया जैसे क्षेत्रों में कम ऊंचाई पर युद्ध लड़ने के अनुकूल अपाचे हिमालयी क्षेत्र में उतना प्रभावी नहीं है. इसके विपरीत प्रचंड को खासकर बेहद ऊंचे इलाकों में युद्ध के लिहाज से विकसित किया गया है. और आधिकारिक तौर पर बेड़े में शामिल होने से पहले ही यह अपनी क्षमता प्रदर्शित कर चुका है, जब इसे चीन के साथ 2020 के गलवान संघर्ष के दौरान लेह में तैनात किया गया था.

करगिल में महसूस की गई जरूरत के बाद प्रचंड के इस तरह के विकास और फिर उस ऊंचाई पर परीक्षण ने इसे पूरी तरह से फिट साबित किया. इसके बाद सरकार ने भारत में, भारत द्वारा, भारत के लिए बनाए गए स्वदेशी एलसीएच की जरूरत को समझा. एचएएल के डिजाइन को 2006 में मंजूरी मिली. पहले प्रोटोटाइप ने मार्च 2010 में उड़ान भरी, फिर दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन की चरम स्थितियों में व्यापक परीक्षण किया गया, जिसने इसकी परिचालन क्षमताओं पर मुहर लगा दी.

इसका सुडौल आकार, दुश्मन की नजरों से बचाने वाला खास डिजाइन और रडार और इन्फ्रारेड सिग्नेचर की पकड़ में न आने की क्षमता इसे विवादित हवाई क्षेत्रों से भी आराम से गुजरने में सक्षम बनाती है.

एचएएल के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक डी.के. सुनील के मुताबिक, यह परियोजना भारत की स्वदेशी इंजीनियरिंग के लिहाज से खास मायने रखती है, और रक्षा क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी को प्रोत्साहित करती है. उन्होंने इंडिया टुडे से कहा, ''यह पूरी तरह भारत में विकसित पहला स्वदेशी युद्धक हेलिकॉप्टर है और दुनियाभर में 5,000 मीटर की ऊंचाई पर संचालित होने वाला एकमात्र हेलिकॉप्टर है.'' उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि एचएएल तय समय से पहले ही 15 हेलिकॉप्टरों की शुरुआती खेप पहुंचा चुका है. चाहे लद्दाख के दुर्गम पड़ाड़ी इलाके हों या फिर आतंकवाद विरोधी अभियानों को अंजाम देना, प्रचंड अपने नाम के अनुरूप ही दुश्मन पर कहर बनकर टूट पड़ने के लिए तैयार है.

एचएएल की योजना प्रचंड की पहली खेप 2028 के मध्य तक देने की है, उसके बाद हर साल करीब 30 हेलिकॉप्टरों की आपूर्ति की जाएगी. ऑर्डर 2033 मध्य तक पूरा हो जाएगा.

प्रचंड हल्का युद्धक हेलिकॉप्टर है जिसे एचएएल ने विकसित किया है. यह आत्मरक्षा के साथ जंग के मैदान में, खासकर ऊंचाई वाले इलाकों में अनेक तरह के हथियार-गोला बारूद फुर्ती से पहुंचाने में सक्षम है. रक्षा मंत्रालय ने एचएएल से 156 प्रचंड हेलिकॉप्टर खरीदने के लिए 62,700 करोड़ रुपए का सौदा किया.

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