प्रधान संपादक की कलम से

विश्व व्यापार को एक ठोकर लगी है पर वह गिरकर बेहोश नहीं हुआ है. लेकिन बड़ी तस्वीर साफ तौर पर यह है: ट्रंप ने भारत को यह जो असामान्य किस्म के व्यापार का मौका मुहैया किया है, उसे उसको दोनों हाथों से दबोच लेना चाहिए

इंडिया टुडे कवर : कैसे निबटें ट्रंप से
इंडिया टुडे कवर : कैसे निबटें ट्रंप से

—अरुण पुरी

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ सूनामी ने कयामत के तपे-तपाए तीसमारों को भी चौंका दिया. हालांकि उन्होंने कहा कि टैरिफ 'शब्दकोश का सबसे खूबसूरत शब्द' है, फिर भी इसकी मार का दायरा अप्रत्याशित था. शेयर बाजारों में चारों ओर कोहराम.

दरअसल बॉन्ड बाजारों में इस कदर उथलपुथल मच गई कि ट्रंप दुनिया को बदलने के अपने मंसूबों पर 90 दिन का विराम लगाने को मजबूर हो गए. अब बस चीन के साथ मारकाट जारी है.

ट्रंप की टैरिफ दरें 2 अप्रैल को ऐसी दनदनाती हुई निकलीं मानो वे उस छोटी नली वाली शॉटगन से दागी गई हों जो दोस्त और दुश्मन में भेद नहीं करती. भारत की अर्थव्यवस्था में वैसे तो रक्षात्मक परतें हैं, लेकिन अमेरिका हमारा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जिसके साथ 2023-24 में वस्तु व्यापार ही 120 अरब डॉलर का था.

हमारे पक्ष में 35.3 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष है. ट्रंप इसे कम करना चाहते हैं, ऐसे ही तमाम दूसरे देशों के साथ भी. दांव पर है 77.5 अरब डॉलर की वस्तु निर्यात बास्केट, जबकि आने वाले साजो-सामान 42.2 अरब डॉलर के हैं. शर्तों पर नए सिरे से बातचीत को अब हमारे पास 90 दिन हैं.

आर्थिक मुसीबत के खतरे से घिरा हर देश या गुट अपना रास्ता टटोल रहा है. अमेरिका का अव्वल दुश्मन चीन ईंट का जवाब पत्थर से दे रहा है. 25 फीसद के रिटर्न गिफ्ट पर शुरुआती सोच-विचार के बाद यूरोपीय यूनियन शायद 'शून्य के बदले शून्य' की पेशकश की तरफ लौटे. सबसे ताजातरीन यह कि 75 देश कमोबेश रहम के लिए वाशिंगटन डीसी से गुहार लगा रहे थे. सबको लग रहा था कि टैरिफ का ताबड़तोड़ हमला मोलभाव की ज्यादा गुंजाइश पैदा करने की युक्ति है.

भारत ने शांत और समझदार राह चुनी. पूर्वानुमान के साथ नुक्सान को न्यूनतम पर लाने का यह सयाना कदम था, खासकर जब फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा ने दोतरफा व्यापार समझौते की नींव रखी. कई देशों के मुकाबले हमें थोड़ी हल्की धमकी जरूर मिली, लेकिन सभी वस्तुओं पर 26 फीसद का मूल्यानुसार कर बड़ा सिरदर्द बनने वाला है.

अगर घोषित थोक टैरिफ दरें लागू होती हैं, तो गिरे दर्जे में 5.7 अरब डॉलर का कुल जमा संभावित असर होगा, जो 6 फीसद से थोड़ा ज्यादा है. यही नहीं, 10 फीसद के बेसलाइन टैरिफ और इस्पात, एल्यूमिनियम और ऑटो/ऑटो कलपुर्जों पर 25 फीसद टैरिफ फिलहाल तो घोषित ही है.

जहां तक परोक्ष असर की बात है, तो उसका आकलन ही मुश्किल है क्योंकि हम डब्ल्यूटीओ-आधारित विश्व व्यापार व्यवस्था को पूरी तरह छिन्न-भिन्न होता देख रहे हैं. अभी तक इससे अछूती रही सेवाओं पर पैनी नजर रखते हुए व्यापार के हर क्षेत्र में उम्दा सौदेबाजी के बूते हम इस धक्के के असर को हल्का कर सकते हैं. अप्रैल-फरवरी 2024-25 में भारत का कुल सेवा निर्यात तेजी से बढ़कर 355 अरब डॉलर हो गया. और हमारी 56 फीसद टेक सेवाएं अमेरिका की जरूरतें पूरी करती हैं.

घटनाओं के ऐसे प्रचंड आवेग के परिप्रेक्ष्य में इस हफ्ते की हमारी आवरण कथा का खास पैकेज गहरे विश्लेषणों से भरपूर है. जलवायु के गहरे विक्षोभों के खिलाफ सबसे अच्छा दांव पूर्वानुमान और संभावित खतरे का मॉडल बनाना है. हम यह दो स्तरों पर कर रहे हैं. पांच जाने-माने आलादिमाग भू-राजनीति और विश्व व्यापार के वृहद पहलुओं पर अपनी राय रख रहे हैं. हमने उन 13 क्षेत्रों पर भी पैनी नजर डाली है जिनका अमेरिकी बाजारों से ज्यादा वास्ता रहा है.

इस्पात पर 12 मार्च को घोषित 25 फीसद टैरिफ अभी कायम है, और उसका असर 17.6 अरब डॉलर के इंजीनियरिंग सामान पर पड़ेगा. तीन महीनों में पूरे किए जाने वाले करीब 7 अरब डॉलर के ऑर्डर इंजीनियरिंग सामान के निर्यातकों का मुंह ताक रहे हैं, जिनका अब कोई लेवाल नहीं. ऑटो कलपुर्जे (6.8 अरब डॉलर) भी खड़खड़ाएंगे, जिन पर 26 मार्च को 25 फीसद का शुल्क लगाया गया. चीन पर 125 फीसद टैरिफ के साथ भारत के लिए मौका है लेकिन चीनी डंपिंग को लेकर उसे ज्यादा सतर्क भी रहना होगा.

पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन का सुझाव है कि ''भू-राजनीति में चरणबद्ध ढंग से हो रहे कायापलट का इस्तेमाल हमें अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने और ऐसा कुछ करने में करना चाहिए जो शांतिकाल में मुश्किल लगता है.'' वे गैर-अमेरिकी जियोपॉलिटिक्स के संदर्भ में भारत की प्राथमिकताओं को व्यावहारिक ढंग से तय किए जाने की वकालत करते हैं.

इन आलेखों का रुझान आपदा को अवसर में बदलने की तरफ है. भारत के उदारीकरण के युग के अग्रणी चेहरे मोंटेक सिंह अहलूवालिया 1991 के क्षण की वापसी देखते हैं. उनका मुख्य तर्क है: ''शुल्क घटाने का मामला बनता है और यह हमारे हित में है क्योंकि वे बहुत ज्यादा हैं.''

भारत के जी20 शेरपा और नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत को लगता है कि सावधानी और युक्तिपूर्वक बनाई गई नीति यहां 'जबरदस्त अवसर' पैदा कर सकती है. आज जब वैश्विक पूंजी अच्छे ठिकाने की तलाश में है, भारत के पास खुद को खुले व्यापार के भरोसेमंद ठिकाने के तौर पर पेश करने की मुकम्मल वजह है. उनका कहना है कि इसके लिए भारत को नियम-कायदों की जरूरत से ज्यादा बंदिशें खत्म करके अपने को नए सिरे से तैयार करना चाहिए.

ऑटो क्षेत्र के अगुआ आर.सी. भार्गव ग्रोथ की खातिर बदलाव को ताकत के रूप में इस्तेमाल करने में माहिर रहे हैं. उनके लिए सकारात्मक बात यह दिखती है कि ट्रंप की तरफ से की गई 'आर्थिक कानूनों की आमूलचूल व्याख्या' उद्योग के अगुआओं को पुरानी आदतें छोड़ने के लिए मजबूर कर देगी.

वे लिखते हैं, ''हम सीमा शुल्क की दीवारों के पीछे नहीं छिप सकते.'' टम्ट्स यूनिवर्सिटी में ग्लोबल बिजनेस पर आधिकारिक विद्वान भास्कर चक्रवर्ती का भी यही कहना है कि भारत को 'वियतनाम (46%), थाइलैंड (36%) या बांग्लादेश (37%)' सरीखे प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ छोटे वक्त के टैरिफ समझौते पर निर्भर रहने के बजाए व्यवस्थागत बदलावों पर ध्यान देना चाहिए.

विश्व व्यापार को एक ठोकर लगी है पर वह गिरकर बेहोश नहीं हुआ है. लेकिन बड़ी तस्वीर साफ तौर पर यह है: ट्रंप ने भारत को यह जो असामान्य किस्म के व्यापार का मौका मुहैया किया है, उसे उसको दोनों हाथों से दबोच लेना चाहिए. इसका इस्तेमाल वे बेड़ियां तोड़ने में करना चाहिए जो भारत को चीन की तरह वैश्विक व्यापारिक ताकत नहीं बनने देतीं. संरक्षणवाद का मुकाबला कम नहीं बल्कि ज्यादा भूमंडलीकरण से कीजिए.

—अरुण पुरी, प्रधान संपादक और चेयरमैन (इंडिया टुडे समूह).​​​​​​

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