अंतरराष्ट्रीय बाजार में मची उथल-पुथल के बीच भारत के लिए आपदा को अवसर में बदलने की घड़ी क्यों?
भारत को 90 दिनों की मोहलत का फायदा उठाकर खंगालना चाहिए कि कैसे वह पुनर्गठित ट्रेड नियमों और उभरती प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर अपनी आर्थिक दशा-दिशा को बदल सकता है

हालांकि डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने दुनिया को अपने नए टैरिफ से राहत दी है, लेकिन जब से टैरिफ की घोषणा हुई है, वैश्विक बाजारों में उथल-पुथल मची हुई है. अस्थिरता और अनिश्चितता बढ़ गई है. वैश्विक बाजारों से करीब 6 खरब डॉलर का सफाया हो चुका है.
अमेरिका द्विपक्षीय वार्ताओं में लगा है. इसके साथ ही बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था, जहां विकसित, विकासशील और कम विकसित देशों के बीच भेद किया गया था, खत्म की जा रही है. वैश्वीकरण का आकार ले रहा नया स्वरूप हमें एक बड़ा भारी अवसर दे रहा है. लेकिन इन बदलावों के मुताबिक चलने के लिए ठोस नीतिगत कार्रवाई की जरूरत होगी.
सबसे पहले हमें कारोबारी सहूलियत पर नए सिरे से जोर बढ़ाना होगा. अगर हमें भारत में मैन्युफैख्चरिंग और निवेश को आकर्षित करना है तो यह महत्वपूर्ण कदम होगा. नियमों और प्रक्रियाओं को बड़े पैमाने पर खत्म करना होगा, साथ ही व्यापार की समूची प्रक्रिया को नए सिरे से तैयार करना जरूरी है.
भूमि, भवन और निर्माण मानदंडों में सुधार जरूरी है. नई श्रम संहिताओं के तहत नियमों को जल्द से जल्द अधिसूचित करना होगा. यह पहल सरकार के नेतृत्व में होनी चाहिए. मुनाफे के लिए सार्वजनिक नीतियों में हेराफेरी के रास्ते खत्म करना जरूरी है. हमें नियामकीय हस्तक्षेप के मुद्दे से भी निबटना होगा.
हमारे नियामकों को आधुनिक बनाया जाना चाहिए और उन्हें 'कमांड और कंट्रोल’ के अपने कामकाज के तरीके से बाहर निकलकर विकास के निकायों के रूप में काम करना चाहिए. भारत में हमें मानसिकता में बदलाव की जरूरत है. मुक्त उद्यम को बढ़ावा दिया जाना जरूरी है. मुक्त उद्यम निवेश, नवाचार और रोजगार सृजन के माध्यम से अर्थव्यवस्था का निर्माण करेगा.
दूसरा, हमें महत्वपूर्ण इनपुट (कच्चे माल) के लिए व्यापार व्यवस्था को उदार बनाना होगा. इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, परिवहन और अन्य क्षेत्रों में हम प्रतिस्पर्धियों की तुलना में ज्यादा टैरिफ लगाते हैं, जिससे हमारी मैन्युफैक्चरिंग की प्रतिस्पर्धी क्षमता को नुक्सान पहुंचता है.
उद्योग के प्रमुख इनपुट के लिए मुक्त व्यापार व्यवस्था अपनाना जरूरी है. गैर-शुल्क अवरोध (एनटीबी), विशेष रूप से गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (क्यूसीओ) बहुत बढ़ गए हैं, जिससे कपड़ा जैसे उद्योगों के लिए कच्चा माल जुटाना महंगा हो गया है.
अध्ययनों से संकेत मिलता है कि गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों की संख्या सैकड़ों से बढ़कर हजारों हो गई है, जिससे विदेशी फर्मों की भारत में बिक्री करने की क्षमता जटिल हो गई है. हमें अहम कच्चे माल के लिए इन गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों को खत्म कर देना चाहिए. इसके साथ ही हमें हितों की रक्षा और खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए सक्रिय पहल के जरिए व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर करने चाहिए, जिससे लाखों नौकरियां पैदा हो सकती हैं.
तीसरा, हमें अपने बुनियादी ढांचे के निर्माण की रफ्तार को फिर से बढ़ाना होगा. फ्रेट कॉरिडोर और हाइ-स्पीड रेल जैसी बड़ी परियोजनाओं की लागत और समय में वृद्धि हुई है. इन परियोजनाओं को फिर से पटरी पर लाना होगा और बुनियादी ढांचे में निजी निवेश को फिर से बढ़ाना होगा.
पिछले वर्षों में सार्वजनिक पूंजीगत व्यय जीडीपी के 3.5 से 4 फीसद पर स्थिर रहा है, इसे और बढ़ाकर 6 फीसद किया जाना चाहिए. क्षेत्रीय संपर्क, जैसे क्षेत्रीय परिवहन प्रणाली और हवाई अड्डे और हमारे बंदरगाहों को उन्नत करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए.
चौथा, जब हम मैन्युफैक्चरिंग और सेवाओं दोनों में वैल्यू चेन को आगे बढ़ाना चाहेंगे तो इसके लिए अनुसंधान और विकास (आरऐंडडी) महत्वपूर्ण होगा. जुलाई 2024 के बजट में घोषित 1 लाख करोड़ रुपए के आरऐंडडी फंड को जल्द से जल्द चालू किया जाना चाहिए.
फरवरी 2025 के बजट में घोषित डीपटेक फंड ऑफ फंड्स को भी शीघ्रातिशीघ्र शुरू करना जरूरी है. अतीत की प्रौद्योगिकी क्रांतियों की तरह हमें एआइ और इन अग्रणी तकनीकों को कुछ देशों या कंपनियों के एकाधिकार में नहीं रहने देना चाहिए. हमें डीपटेक और स्वच्छ तकनीक जैसे उन्नत सेल केमिस्ट्री (एसीसी) बैटरियों, सौर पैनल और इलेक्ट्रोलाइजर में निवेश बढ़ाने की जरूरत है.
अंत में ऊर्जा सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक योजनाओं पर अभी से अमल शुरू कर देना चाहिए. हालांकि तेल की कीमतें प्रतिक्रिया में चढ़ी नहीं हैं, लेकिन भू-राजनैतिक झटके लगभग हमेशा ऊर्जा कीमतों का झटका देते हैं, हम फरवरी 2022 में यह देख चुके हैं. यह अनुसंधान और विकास से बहुत करीब से जुड़ा मसला है. ऊर्जा भंडारण और जैव ईंधन पर अति निर्भरता वाले क्षेत्रों के लिए वैकल्पिक ईंधन की व्यवस्था से दीर्घावधि में हमारी ऊर्जा सुरक्षा पक्की होगी.
हमें अपना ज्ञान और अनुभव भी दुनिया के साथ साझा करना चाहिए. भारत का विकास मॉडल, डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा और जलवायु की बेहतरी के उपाय, जिनकी बदौलत स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और पर्यावरण निरंतरता में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं, विकासशील देशों के लिए मॉडल हो सकते हैं. इससे भारत और भारतीय कंपनियों के लिए व्यापार और निवेश के महत्वपूर्ण अवसर खुलेंगे.
वैश्वीकरण का नया स्वरूप, जिसमें व्यापार नियमों में बदलाव और उभरती हुई प्रौद्योगिकियां शामिल हैं, भारत के लिए विशाल अवसर पेश करता है. यह नया बदलाव कोई खतरा नहीं है, यह हमारा समय है. अतीत की प्रौद्योगिकी क्रांतियों की तरह हमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इन अग्रणी तकनीकों को कुछ देशों या कंपनियों के एकाधिकार में नहीं रहने देना चाहिए.
इसे कैसे भारत का लम्हा बनाएं
● ज्यादा से ज्यादा नियंत्रण मुक्त: भारत को कारोबार करने की सबसे आसान जगह बनाएं. बेकार के नियम-कायदों और प्रक्रियाओं को हटाया जाए.
● नियामकों का आधुनिकीकरण: ये विकास निकाय के रूप में काम करें, 'कमांड और कंट्रोल’ के अपने कामकाज के तरीके से बाहर निकलें.
● श्रम कानून लागू करें: इस काम को फौरन से पेश्तर किया जाना चाहिए.
● शुल्क घटाएं: मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात से जुड़े इनपुट और कंपोनेंट्स पर शुल्क शून्य किया जाना चाहिए.
● क्यूसीओ को तर्कसंगत करें: यह जरूरी है क्योंकि विशेष रूप से गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (क्यूसीओ) बहुत बढ़ गए हैं, जिससे कपड़ा जैसे उद्योगों के लिए इनपुट्स और कंपोनेंट्स पर असर पड़ रहा है.
●राज्यों को और सक्रिय होना चाहिए: वैश्विक बाजार में पैठ बनाने में इन्हें अगुआ होना चाहिए.