GDB सर्वे: मध्य प्रदेश के लोग विविधता के सबसे बड़े विरोधी, आखिर क्यों?

इंडिया टुडे का हालिया GDB सर्वे बताता है कि विविधता पसंद राज्यों में केरल सबसे ऊपर है, तो वहीं मध्य प्रदेश सबसे निचले पायदान पर है

लखनऊ के अर्जुनगंज में सरकारी राशन की दुकान पर मुफ्त राशन का वितरण
लखनऊ के अर्जुनगंज में सरकारी राशन की दुकान पर मुफ्त राशन का वितरण

अपनी विविधता पर गर्व से भरा देश भारत स्वीकृति और भेदभाव के मामले में गहराई तक बंटा हुआ नजर आता है. इंडिया टुडे सकल घरेलू व्यवहार सर्वे ने पांच प्रमुख सवालों के जरिए सामाजिक समावेश के बारे में लोगों के रवैयों का पता लगाया.

राष्ट्रीय बहुमत धार्मिक और जातिगत विविधता को लेकर जरूर खुलेपन का दावा करता है, लेकिन आंकड़ों से गहरी जड़ें जमाए पूर्वाग्रह सामने आते हैं, जो विभिन्न राज्यों में बहुत अलग-अलग हैं.

केरल समावेशिता की मशाल बनकर उभरा और पहले पायदान पर आया, जबकि मध्य प्रदेश पिछड़कर सबसे निचले पायदान पर है, जो देश भर के सामाजिक रवैयों में निपट क्षेत्रीय असमानताओं का उदाहरण है.

केरल के उत्तरदाता खानपान की आदतों पर पाबंदियों को बढ़चढ़कर खारिज करते हैं, रोजगार में भेदभाव का विरोध करते हैं, और अंतरधार्मिक तथा अंतर-जाति विवाहों का स्वागत करते हैं. फलक के दूसरे छोर पर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड हैं, जहां अंतरधार्मिक गठबंधनों का भारी विरोध है और रोजगार में धार्मिक भेदभाव की ओर कहीं ज्यादा झुकाव है.

सर्वे पास-पड़ोस की विविधता के बारे में उत्साहजनक खबरें लेकर आया, जहां 70 फीसद उत्तरदाताओं ने अलग-अलग धर्मों के पड़ोसियों के साथ रहने में सहजता व्यक्त की. पश्चिम बंगाल सबसे आगे है, जहां 91 फीसद ने अपने समुदायों में धार्मिक विविधता का स्वागत किया, तो उत्तराखंड में प्रतिरोध देखने को मिला, जहां 72 फीसद ऐसे समावेश को लेकर असहज हैं.

शायद सबसे हैरतअंगेज अंतरविवाहों के प्रति रवैये हैं—61 फीसद उत्तरदाता अंतरधार्मिक विवाहों का विरोध करते हैं, तो 56 फीसद अंतर-जाति विवाहों को खारिज करते हैं. राज्यों में कर्नाटक के 94 फीसद उत्तरदाता अंतरधार्मिक विवाहों के खिलाफ हैं, तो उत्तर प्रदेश के 84 फीसद उत्तरदाता दूसरी जाति में शादी के खिलाफ हैं.

कार्यस्थल पर 60 फीसद भारतीय भर्तियों में धार्मिक भेदभाव का विरोध करते हैं. केरल सबसे आगे है, जहां 88 फीसद ने इस मामले में नियोक्ता के अधिकार को खारिज कर दिया.

ये निष्कर्ष समावेशिता की दिशा में भारत की राह की बारीकी से परिपूर्ण तस्वीर का खाका खींचते हैं—यह क्षेत्रीय असमानताओं के सांचे में ढली यात्रा है, जिससे गहरी जड़ें जमाए बैठे सामाजिक बंटवारों के साथ अपने बहुलतावादी आदर्शों का संतुलन बिठाने के राष्ट्र के लगातार जारी संघर्ष की झलक मिलती है.

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