इंडिया टुडे कॉन्क्लेव 2025: लेखक विलियम डेलरिम्पल चीन के सिल्क रूट की धारणा को क्यों खारिज करते हैं?

लेखक विलियम डेलरिम्पल के मुताबिक अगर आप बौद्ध धर्म के असर के नक्शे को देखें तो आपको उसकी उत्पत्ति लुम्बिनी, बोधगया और सारनाथ जैसी जगहों पर मिलेगी

विलियम डेलरिम्पल, लेखक

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में इस सत्र का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था और लेखक विलियम डेलरिम्पल ने निराश भी नहीं किया. 'द गोल्डन रोड' के लेखक ने किस्से, ऐतिहासिक साक्ष्य, प्राचीन और आधुनिक नक्शों और कई स्लाइडों से लैस अपने भाषण में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया.

उन्होंने ''भारत के उदय को उसके ऐतिहासिक संदर्भ में दिखाने की कोशिश की क्योंकि इतिहास बहुत साफ-साफ दर्शाता है कि अधिकांश पुराने दौर में भारत दुनिया का सबसे समृद्ध इलाका रहा है.'' उन्होंने सिल्क रूट को किसी तरह के भू-राजनैतिक व्यापार मार्ग के रूप में पेश करने के विचार को खारिज कर दिया.

डेलरिम्पल ने दलील दी कि भारत ही रोमन साम्राज्य का प्रमुख व्यापारिक साझीदार था और हर साल सैकड़ों जहाजों के बेड़े मिस्र के तट से निकलकर लाल सागर में उतरते थे और चीन नहीं बल्कि भारत पहुंचते थे.

बौद्ध धर्म के प्रसार, भारत की ज्ञान प्रणालियों और चीन पर भारत के असर के बारे में डेलरिम्पल ने कहा कि बौद्ध भारतीय धर्म है जो कुछ समय के लिए चीन का राजकीय धर्म बन गया था. उन्होंने कहा, ''भारत के लोगों को चीन पर बौद्ध धर्म और भारतीय विचारों के प्रभाव के बारे में पूरी जानकारी नहीं है. आज चीन और भारत को अक्सर प्रतिद्वंद्वी ध्रुवों के रूप में देखा जाता है. लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी चीनी धर्म ने भारत में आकर अपनी जगह बना ली हो.''

उन्होंने बताया, ''अगर आप बौद्ध धर्म के असर के नक्शे को देखें तो आपको उसकी उत्पत्ति लुम्बिनी, बोधगया और सारनाथ जैसी जगहों पर मिलेगी...200-300 साल के भीतर वह पाकिस्तान, गांधार, अफगानिस्तान और मध्य एशिया में फैल गया, और चीन, मंगोलिया, कोरिया और जापान तक पहुंच गया. फिर वह वियतनाम, लाओस, थाइलैंड, कंबोडिया और फिलीपींस तक पहुंच गया. वह भारतीय बौद्धिक ताकत का स्वर्णिम युग था.''

सिर्फ धार्मिक और दार्शनिक विचार ही नहीं, बल्कि भारतीय भाषाएं और लिपियां भी फैलीं. डेलरिम्पल ने कहा, ''आज भी दक्षिण-पूर्व एशिया की हर एक लिपि पल्लव लिपि का ही विकास है, यही वजह है कि अगर आप तमिल या मलयालम भाषी हैं, तो आप थाई और मोन और खमेर की शुरुआत पढ़ सकते हैं.''

नालंदा विश्वविद्यालय अपने समय का हार्वर्ड, ऑक्सब्रिज, नासा जैसा था. वह यूनिवर्सिटी क्वाड की पहली योजना थी, जैसा कि आप आज ऑक्सफोर्ड या कैम्ब्रिज में देखते हैं.

अमेरिका, ब्रिटेन, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा में हर कोई आपको आर्किमिडीज और पाइथागोरस के बारे में बता सकता है, लेकिन भारत के बाहर कोई भी आर्यभट्ट या ब्रह्मगुप्त के बारे में नहीं जानता, जो उसी तरह चोटी के गणितज्ञ थे, जिन्होंने उस संख्या प्रणाली की नींव रखी जिसका पूरी दुनिया में सिर्फ नौ अंकों और शून्य के साथ प्रचलन है.

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