प्रधान संपादक की कलम से

कोविड-19 के बाद छह तिमाहियों तक दबी हुई मांग ने हमें उछाल के खुशगवार आंकड़े दिए, लेकिन वह दौर बीत चुका है. नई मांग के उभरने के लिए वास्तविक वेतन वृद्धि बेहद अहम है

इंडिया टुडे कवर : तगड़ी मार से हलकान
इंडिया टुडे कवर : तगड़ी मार से हलकान

—अरुण पुरी

इतिहास के ज्यादातर वित्त मंत्रियों की तरह निर्मला सीतारमण भी केंद्रीय बजट 2025 में सही संतुलन साधने में जोशो-खरोश से जुटी होंगी. राजकोषीय लाचारियों के दायरे में अधिकतम वृद्धि के बीज रोपना कठिन काम है. इसी तरह अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए माहवार और सालाना बजट के साथ खींचतान करते करीब 57 करोड़ भारतीयों की दुश्वारियां शायद उनके मन को छुएं.

यही वह मशहूर मध्यमवर्ग है जो 1990 के दशक से भारत की कहानी का नाभिकेंद्र रहा है. भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि की राह ज्यों-ज्यों डोल रही है, यह वर्ग तिहरी मार से थरथरा रहा है—तनख्वाह में ठहराव, मायूस करने वाले करों का जाल, और लगातार बढ़ती महंगाई. खपत के आंकड़े देखें, तो आर्थिक पिरामिड के शिखर पर आसीन तो अच्छा कर रहे हैं, और जो इसके बिल्कुल निचले छोर पर हैं, उनका संकट मुफ्त अनाज, नकद सहायता और दूसरी खैरातों से कम हुआ है.

कॉर्पोरेट के पास भी शिकायत की कोई वजह नहीं है, खासकर जब 2019 में ही उनकी कर दरों में खासी कटौती कर दी गई. यह मझौला ही है जो दबाव महसूस कर रहा है.

मध्यम वर्ग मोटे तौर पर उन लोगों को माना जाता है जो न अमीर हैं और न गरीब. मगर वे बहुस्तरीय इकाई हैं. दिल्ली स्थित थिंक-टैंक पीपल रिसर्च ऑन इंडियाज इकोनॉमी (पीआरआइसीई या प्राइस) इसे उस वर्ग के रूप में परिभाषित करता है जिसकी सालाना पारिवारिक आमदनी 6 लाख से 36 लाख रुपए के बीच है. इस हफ्ते की आवरण कथा समाज के इसी तबके पर है, जो फिलहाल आबादी का 38 फीसद आंका जाता है, जो 2020-21 के 31 फीसद से बड़ा हो गया है.

वे भारत के घर-परिवारों की आमदनी का आधे से ज्यादा कमाते हैं और कुल खपत में 50 फीसद का योगदान देते हैं. मगर इस वर्ग को भारत के आयकर के बोझ का काफी बड़ा हिस्सा अपने कंधों पर उठाना पड़ता है, अप्रत्यक्ष करों के हजार जख्मों से हलकान रहता है, सो अलग. जब उपभोक्ता वर्गों का यह विशाल मूलभाग दबाव में हो, तो जो होना ही था, वह हो रहा है—खपत की मांग आहिस्ता-आहिस्ता घट रही है और उसके नतीजे अर्थव्यवस्था के तमाम हिस्सों पर दिख रहे हैं. वित्त वर्ष 2024-25 में जीडीपी की वृद्धि साफ तौर पर सुस्त पड़ी है, जिसे अब पहले के अनुमान 7-8 फीसद से घटाकर 6.4 फीसद कर दिया गया है, वह भी तब जब इसे तेज कुलांचे भरना चाहिए.

नौकरियों के मायूस बाजार में शहरी कॉर्पोरेट क्षेत्र में वास्तविक वेतन वृद्धि महज दो साल पहले के 10 फीसद से घटकर अब 3-4 फीसद पर आ गई. वह भी तब जब उपभोक्ता मूल्य महंगाई की जबरदस्त मार पड़ रही थी, जो अक्तूबर में 14 महीनों के सबसे ऊंचे स्तर 6.2 फीसद पर पहुंच गई. इसके बढ़ने में एक अहम कारक खाद्य वस्तुओं की कीमतें थीं; अकेले सब्जियों की महंगाई 57 महीनों के सबसे ऊंचे स्तर 42.2 फीसद पर पहुंच गई. जैसा कि हमारे असल जिंदगी के उदाहरण तस्दीक करते हैं, सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार के खर्चों में 30 फीसद का उछाल आया है. उन्हें अपने बजट का ज्यादा बड़ा हिस्सा खान-पान, किराये और ऊंची ब्याज दरों सरीखी भरण-पोषण की बुनियादी मदों में उलीचना पड़ रहा है.

ऐसे में नतीजा यह है कि विवेकाधीन या गैर-जरूरी खर्चों में अच्छी-खासी गिरावट आई है, महंगी जरूरतों को टालना पड़ रहा है, और कुल मिलाकर वे अपने सामान्य रहन-सहन से कमतर स्तर पर चले गए हैं. अंग्रेजी के अक्षर 'के' आकार की वृद्धि के दो बड़े संकेतक तमाम क्षेत्रों में साफ देखे जा सकते हैं—ऊपरी छोर पर प्रीमियमीकरण और उसके नीचे कंगालीकरण. सबसे अच्छा संकेतक है मध्यम वर्ग का आखिरी सपना—नई कॉम्पैक्ट कार.

2024 के पहले 11 महीनों में हैचबैक की बिक्री में सालाना आधार पर 15.5 फीसद की तेज गिरावट देखी गई. बजट या सस्ती कारों का यह सेग्मेंट, जिससे 1999 में यात्री वाहनों की बिक्री का 70 फीसद और यहां तक कि 2020 में भी 47 फीसद हिस्सा आया था, 2024 में गिरकर 26 फीसद रह गया. यह वह साल भी था जब महंगी एसयूवी और क्रॉसओवर सेग्मेंट 50 फीसद का निशान पार कर गया. भारत की ग्रोथ स्टोरी की असमानताएं साफ हैं.

चेतावनी का एक और संकेत यह है कि फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एमएमसीजी) क्षेत्र की बड़ी कंपनियों को झटका लगा है. बिक्री मूल्य में वृद्धि सितंबर 2023-24 में घटकर तकरीबन आधी रह गई, 10 फीसद से 5.6 फीसद, जबकि बिक्री सपाट रही. रुझान के संकेतक इस क्षेत्र में, जहां नकारात्मक उपभोक्ता भावना की अक्सर पहली झलक मिलती है, मध्यम वर्ग ने जबरदस्त ढंग से सस्ती और अनब्रांडेड चीजों को चुना.

व्हाइट गुड्स और टिकाऊ टेक सामान के मामले में, जहां उपभोक्ता खरीद टालते या बदलाव के चक्र को लंबा खींच देते हैं, टीवी, रेफ्रिजरेटर और मोबाइल फोन सहित 60 श्रेणियों में बिक्री थमी रही. रियल एस्टेट की बात करें तो 50 लाख रुपए से नीचे के सेग्मेंट में अनबिका माल बहुतेरा है, जहां ऊंची ब्याज दरों से कोई मोहलत नहीं. इसके उलट 1 करोड़ रुपए से ऊपर का सेग्मेंट कुलांचे भर रहा है.

कोविड-19 के बाद छह तिमाहियों तक दबी हुई मांग ने हमें उछाल के खुशगवार आंकड़े दिए, लेकिन वह दौर बीत चुका है. नई मांग के उभरने के लिए वास्तविक वेतन वृद्धि बेहद अहम है. बजट '25 मध्यम वर्ग के पस्त पड़ते हौसले को कैसे ऊंचा उठा सकता है?

अनुमान अलग-अलग हैं, लेकिन सालाना 15 लाख रुपए और उससे ज्यादा कमाने वाले मोटे तौर पर 35 फीसद प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कर चुकाते हैं. उस तल को बढ़ाने और उस दर को कुल मिलाकर कम करने से इस वर्ग के निचले छोर के लाखों लोगों को संकट और अनिश्चितता से मुक्ति मिलेगी और उपभोग या खपत में जबरदस्त और चौतरफा उछाल आएगा.

बैंक ऑफ बड़ौदा के चीफ इकोनॉमिस्ट मदन सबनवीस कहते हैं, ''उन्हें महज निम्न मध्यम वर्ग के बजाए समूचे मध्यम वर्ग को लक्ष्य करना होगा.'' विशेषज्ञ जीएसटी के स्लैब को तर्कसंगत बनाने और ईंधन पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क कम करने की भी वकालत करते हैं, जिसमें 2022 के बाद कच्चे तेल की कीमतों में आई 40 फीसद गिरावट की कोई झलक नहीं मिली.

हमारी आवरण कथा में मैनेजिंग एडिटर एम.जी. अरुण और सीनियर एसोसिएट एडिटर सोनल खेत्रपाल भारत के जहाज के ढांचे को ही धातुई कवच पहनाने के लिए जरूरी प्रमुख रणनीतियां लेकर आए हैं, खासकर जब यह जहाज तेज रफ्तार पकड़ना चाह रहा है. अर्थव्यवस्था को स्थिर और संतुलित रखने के लिए वित्त मंत्री के सामने आगामी बजट में कुछ गंभीर चुनौतीपूर्ण विकल्प हैं.

— अरुण पुरी, प्रधान संपादक और चेयरमैन (इंडिया टुडे समूह)

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