वायुशक्ति में चीन और पाकिस्तान से भारत को कैसे मिल रही कड़ी चुनौती?
चीन को अपने तेजी से बढ़ते सैन्य-औद्योगिक परिसर से पांचवीं पीढ़ी के जे-20 और जे-35 स्टेल्थ विमान सहजता से मिलते रहे हैं, और अब को छठी पीढ़ी के दो लड़ाकू विमानों के डिजाइन से पर्दा उठाकर वह तेजी से बहुत आगे निकल गया है

कहावत है कि किसी समस्या को आधे-अधूरे मन से सुलझाएं तो वह बढ़कर और विकट हो जाती है. लंबे वक्त से सब मानते रहे हैं कि भारतीय वायु सेना (आईएएफ) की दाहिनी भुजा यानी उसके लड़ाकू विमान बल को तत्काल और खासे अच्छे ढंग से बढ़ाने की जरूरत है. फिलहाल आईएएफ की लड़ाकू ताकत घटकर महज 31 स्क्वाड्रन (हरेक में 18 विमान) रह गई है जो 1965 के बाद सबसे कम है.
आईएएफ की स्वीकृत ताकत लड़ाकू विमानों की 42 स्क्वाड्रन है. यह आंकड़ा पाकिस्तान और चीन के साथ दो मोर्चों पर संभावित टकराव से पैदा खतरे से निबटने के लिए तय किया गया है. चिंताजनक स्थिति को देखते हुए रक्षा मंत्रालय ने दिसंबर के शुरू में इस पर विचार के लिए उच्चस्तरीय समिति बनाने का ऐलान किया.
रक्षा सचिव की अध्यक्षता में रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अफसर, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के चेयरमैन समीर वी. कामत और आईएएफ के वरिष्ठ अधिकारी समिति के सदस्य होंगे. यह विमानों, हथियारों और दूसरे साजो-सामान की कमी पर विचार करेगी और समाधान सुझाएगी, जिसमें स्वदेशी उत्पादन तेज करना और विदेशी सहयोग लेना शामिल होगा. रिपोर्ट दो-तीन महीने में आने की उम्मीद है.
रक्षा मंत्रालय की चिंता बेजा नहीं है, क्योंकि जरूरी संख्या में तेज गिरावट तो समस्या का महज आधा हिस्सा है—21वीं सदी में हवाई दबादबा पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों और उनसे आगे चला गया है. और भारत इस मामले में फिसड्डी है. इसके उलट चीन को अपने तेजी से बढ़ते सैन्य-औद्योगिक परिसर से पांचवीं पीढ़ी के जे-20 और जे-35 स्टेल्थ विमान सहजता से मिलते रहे हैं, और अब 26 दिसंबर को छठी पीढ़ी के दो लड़ाकू विमानों के डिजाइन से पर्दा उठाकर वह तेजी से बहुत आगे निकल गया है.
ये दो नए विमान हैं—ज्यादा बड़ा और दुमहीन स्टेल्थ लड़ाकू विमान जे-36, जिसके परीक्षण चल रहे हैं, और बनिस्बतन छोटा जे-50. इससे पता चलता है कि चीन आसमान में अपना दबदबा कायम करने और अमेरिका के हवाई दबदबे को चुनौती देने के अथक अभियान में किस कदर जुटा हुआ है. फिक्र की बात यह है कि पाकिस्तान भी अपनी हवाई क्षमताओं में तेजी से इजाफा कर रहा है.
दक्षिण एशिया में हवाई दबदबे को नाटकीय ढंग से बदलने वाला कदम उठाते हुए पाकिस्तान ने चीन से 40 जे-35 स्टेल्थ लड़ाकू विमानों की खरीद को तेज किया, जो उसे 2026 तक मिलने की उम्मीद है. आशंका यही है कि ये दोनों वायु सेनाएं निकट भविष्य में आईएएफ को आसमान से खदेड़ सकती हैं. बांग्लादेश को चीन के उन्नत लड़ाकू विमानों की संभावित बिक्री भी नई दिल्ली के लिए चिंता बढ़ाने वाली बात है.
इसके मुकाबले हवा में दबदबा हासिल करने की भारत की कोशिशें अधर में हैं. बेंगलूरू स्थित एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (एडीए) में 100 से ज्यादा एयरोस्पेस इंजीनियर भारत के पांचवीं पीढ़ी के स्टेल्थ लड़ाकू विमान—एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए)—का डिजाइन तैयार कर रहे हैं, लेकिन प्रगति तकलीफदेह ढंग से बहुत धीमी है.
2009 में कार्यक्रम की शुरुआत से ही एएमसीए के विकास की समय सीमा लगातार बढ़ाई जाती रही. इसका सबसे शुरुआती प्रोटोटाइप 2028 तक तैयार होने की उम्मीद है और 2035 तक बड़ी तादाद में उत्पादन की उम्मीद नहीं है. पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों में स्टेल्थ और सुपरक्रूज (लंबे समय तक सुपरसोनिक क्रूज) क्षमताएं हैं और ये लो-प्रोबेबिलिटी ऑफ इंटरसेप्ट रडार (एलपीआईआर) यानी रडार से पकड़े जाने की कम संभावना और डेटा फ्यूजन के साथ एवियोनिक्स की खूबियों से लैस हैं.
तत्काल कोई राहत नजर नहीं आई तो आईएएफ के प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह ने अक्टूबर में कहा कि वायु सेना के हाथ में "जो कुछ भी हमारे पास है, उसी के बूते लड़ने" के अलावा कोई विकल्प नहीं है. साथ ही आईएएफ मुख्यालय ने उपलब्ध संसाधनों के अभीष्टतम इस्तेमाल की योजना तैयार की—पाकिस्तान और चीन की तरफ पड़ने वाले सेक्टरों के लिए समर्पित अलग-अलग हवाई संपत्तियां रखने के बजाए वे उन्हें इस तरह तैनात करेंगे कि दोनों दिशाओं को कवर कर सकें.
एक सेवारत एयर मार्शल ने इंडिया टुडे को बताया कि योजना मुख्य लड़ाकू स्क्वाड्रन को अंबाला, चंडीगढ़ या यहां तक कि जम्मू और कश्मीर में अवंतीपोरा सरीखे पश्चिमी कमान बेस पर रखने की है ताकि वे दोनों मोर्चों को एक साथ कवर कर सकें. उन्होंने कहा, "जब तक हम तादाद नहीं बढ़ा लेते, हमने उन्हें उन जगहों पर तैनात करने की योजना बनाई है जहां से उन्हें पश्चिम और साथ ही पूर्वी सेक्टर में ले जा सकें. हम हर सेक्टर के लिए समर्पित स्क्वाड्रन नहीं रख सकते."
आईएएफ के घटते लड़ाकू विमानों की जड़ दशकों की देरी और सुस्त खरीद प्रक्रिया में रही है, वहीं एएमसीए और दूसरी स्वदेशी परियोजनाओं की मंथर गति की वजह विमान इंजन मिलने में देरी और अनुसंधान व डिजाइन (आरऐंडडी) तथा उत्पादन प्रक्रियाओं के बीच कोई तालमेल नहीं होना रहा है. इस कमी ने आईएएफ को अभी भी उस मिग-21 सरीखे पुराने प्लेटफॉर्मों के भरोसे रहने को मजबूर कर दिया जिसे आने वाले महीनों में चरणबद्ध तरीके से हटाया जा रहा है. गौरतलब है कि 2027 में जगुआर के चार स्क्वाड्रन भी रिटायर होने लगेंगे.
देरी और चुनौतियां
लड़ाकू विमानों की कमी का पता 2001 में ही लग गया था और 126 नए विमानों के लिए प्रस्ताव पर काम शुरू हुआ था. 2008 में मीडियम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) के लिए टेंडर 2012 में तैयार हुआ और राफेल छह दावेदारों में सबसे आगे रहा. हालांकि, मेक इन इंडिया घटक की जटिलताओं से दसो एविएशन और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के बीच बातचीत में अड़चन आ गई और आखिरकार, मुल्तवी कर दिया गया. 2016 में, सिर्फ 36 राफेल विमानों के लिए सरकारों के बीच करार पर हस्ताक्षर हुए. 2000 के दशक की शुरुआत में सुखोई एसयू-30एमकेआई ही ऑफ-द-शेल्फ करार वाला इकलौता विदेशी लड़ाकू विमान था.
उम्मीद थी कि स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) तेजस एमके1 जल्द वायु सेना बेड़े में आ जाएगा, लेकिन उसमें भी देरी हुई. उसे पहली उड़ान के 14 साल बाद 2015 में बेड़े में शामिल किया गया. अब वायु सेना के पास सिर्फ दो एलसीए एमके1 स्क्वाड्रन हैं जबकि एमके1ए वैरिएंट 2024 में डिलिवरी शेड्यूल से एक साल पीछे है. सरकारी वैमानिकी संगठनों की डिलिवरी की गति चिंता का विषय है. वायु सेना प्रमुख ने हाल ही में कहा, "टेक्नोलॉजी में देरी, टेक्नोलॉजी नामंजूर करने जैसा है."
चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स (पीएलएएफ) के लड़ाकू जेट बेड़े से तुलना करें तो हालत और बदतर दिखती है. पाकिस्तान की जे-35 की खरीद इसका संकेत है कि दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन कैसे बदल रहा है. विशेषज्ञ बताते हैं कि जैसे-जैसे यह क्षेत्र हवाई युद्ध के मामले में बड़े बदलाव के लिए तैयार हो रहा है, भारत की चुनौतियां भी बढ़ती जा रही हैं.
सेंटर फॉर एयर पावर स्टडीज के पूर्व महानिदेशक एयर मार्शल (रिटायर्ड) अनिल चोपड़ा कहते हैं, "लड़ाकू विमान के विकास के लिए राष्ट्रीय टास्क फोर्स की जरूरत है, जिसे समय सीमा और टीम चुनने की स्वतंत्रता हो. जैसे हमारे विरोधी अपनी हवाई शक्ति बढ़ा रहे हैं, भारत के पास बहुत देर होने से पहले रफ्तार से अभियान चलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है."
तेजस एलसीए एमके1 और एमके1ए जैसे स्वदेशी प्लेटफॉर्म बनाने वाली कंपनी एचएएल ने देर के लिए अमेरिकी फाइटर जेट इंजन निर्माता जीई एयरोस्पेस की आपूर्ति में रुकावट और नए सिस्टम के लिए लंबित प्रमाणन को जिम्मेदार ठहराया है. हालांकि, एचएएल जल्द ही अपने नासिक डिविजन में उत्पादन शुरू कर देगा, जो बेंगलूरू में अपनी दो मौजूदा उत्पादन लाइनों से जुड़ जाएगा, जिसमें प्रत्येक लाइन सालाना आठ एलसीए एमके1ए विमान बनाएगी. इससे एचएएल की संयुक्त उत्पादन क्षमता बढ़कर सालाना 24 जेट हो जाएगी. एचएएल के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, "नासिक लाइन चालू होने के बाद वहां सालाना आठ विमान बनेंगे. हम बैकलॉग कवर करने के लिए तीनों लाइनों में तेजी लाने की योजना बना रहे हैं."
योजना के मुताबिक, राफेल के करीबी क्षमता वाले 4.5 जेनरेशन का मीडियम वेट फाइटर (एमडब्ल्यूएफ) एचएएल तेजस मार्क 2 अपनी पहली उड़ान 2026 में भरेगा. 2029 में बड़े पैमाने पर उत्पादन की योजना बनाई गई है. लेकिन ये उम्मीदें खुशफहमी ज्यादा हैं, क्योंकि विदेशी सबसिस्टम और, खासकर एलसीए एमके1ए के जेट इंजन के लिए जीई के एफ 404-आइएन 20 इंजन पर निर्भर है. एक वरिष्ठ सैन्य योजनाकार ने गहरी शंका व्यक्त की, "विदेशी ओईएम (मूल उपकरण निर्माता) से आश्वासन के आधार पर समय-सीमा निर्धारित करना खामख्याली भर है."
भारत के पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान एएमसीए का विकास, पीएलएएएफ का मुकाबला करने के लिए अहम है. योजना दो वैरिएंट विकसित करने की है, जिसमें मार्क 2 संस्करण में अधिक शक्तिशाली इंजन और उन्नत तकनीकें होंगी. केंद्र सरकार ने व्यवहार्यता अध्ययन के लिए 2009 में 90 करोड़ रु. और उसके बाद अतिरिक्त 447 करोड़ रु. आवंटित किए थे.
कई वर्षों की देर के बाद, एएमसीए को मार्च 2024 में केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी मिली. रकम के इंतजार के अलावा, भारत में जेट इंजनों के लाइसेंस प्राप्त उत्पादन पर अमेरिका की हील-हवाली से और देरी होने की आशंका है. एडीए की योजना आगामी जेट के उत्पादन और रखरखाव के लिए पूरी तरह से एचएएल पर निर्भर रहने के बजाए निजी खिलाड़ियों को शामिल करने की है. सरकार जल्द ही इस बारे में फैसला कर सकती है.
समस्या का समाधान
एयर मार्शल ने इंडिया टुडे से परियोजनाओं में देरी के पीछे 'मूल कारण’ पर बात की. उन्होंने बताया कि आरऐंडडी स्वतंत्र प्रक्रिया है, जिसमें उत्पादन की जवाबदेही नहीं होती, उत्पादन अलग प्रक्रिया होती है, और देरी के लिए आरऐंडडी को दोषी ठहराया जाता है. उनके अनुसार, किसी भी प्रमुख सैन्य-औद्योगिक परिसर में आरऐंडडी और उत्पादन के बीच भारी अंतर नहीं है.
वे कहते हैं, "आरऐंडडी को केवल प्रोटोटाइप बनाने का अधिकार है और बजट भी उसी हिसाब से मंजूर किया जाता है. इसलिए, आरऐंडडी का ध्यान प्रोटोटाइप को उड़ाने पर केंद्रित होता है, जबकि उत्पादन से संबंधित पहलुओं पर जरूरी ध्यान नहीं दिया जाता है." उन्होंने बताया कि एलसीए तेजस के रखरखाव में गंभीर समस्याओं का सामना करने का यही मुख्य वजह है, क्योंकि एचएएल ने उत्पादन के लिए प्रोटोटाइप डिजाइन की नकल की थी.
आरऐंडडी में देरी होती है, तो उत्पादन एजेंसी पर विमान बनाने का दबाव बढ़ता है और बाद में वह उन प्लेटफॉर्म को पास कर देती है, जिनमें क्षमताएं नहीं होती हैं, और फिर उसे पेश करने का वादा करती है. उनका दावा है, "उपकरणों और फिक्स्चर के लिए उत्पादन प्रक्रिया पर सटीक काम करने के बजाए हड़बड़ी की जाती है, जिससे उत्पादन मानक मेल नहीं खाते. तेजस के कई पैनल विमानों में आपस में बदले नहीं जा सकते हैं."
एक दूसरे वायु सेना अधिकारी का कहना है कि आरऐंडडी के एक हिस्से को उत्पादन एजेंसी से वित्तपोषित किया जाना चाहिए ताकि तय हो सके कि डिजाइन में उसकी भी भूमिका हो और प्रोटोटाइप यथासंभव उत्पादन के करीब हो. वे कहते हैं, "एक विकल्प यह है कि सरकार एडीए को आरऐंडडी में लागत साझा करने के लिए एक निजी क्षेत्र की फर्म साथ जोड़े."
लड़ाकू विमानों की संख्या पूरी करने के लिए उनके अधिग्रहण में तेजी लाना और नई स्वदेशी डिजाइन के विकास और उत्पादन को सुव्यवस्थित करना, दोनों ही दक्षिण एशिया में तेजी से बढ़ती प्रतिस्पर्धा में भारत की वायु रक्षा क्षमताओं को सुरक्षित करने के लिए जरूरी हैं.
आसमान में कौन ज्यादा ताकतवर
चीन और पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों की तुलना में कहां हैं भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमान
भारत
कुल लड़ाकू विमान
600+
दसो राफेल
कुल: 36
फ्रांस का 4.5-जनरेशन बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमान, जो भारतीय वायु सेना का सबसे आधुनिक जेट है
मिग-29
कुल : 65
बहुउद्देश्यीय रूसी जेट, जिसे मिग-29 यूपीजी में अपग्रेड किया गया है
सुखोई-
30 एमकेआइ
कुल: 248
रूसी मूल का बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमान, जिसे भारत
में लाइसेंस के तहत
तैयार किया गया है
तेजस
एलसीए एमके 1
कुल : 32
स्वदेशी सुपरसोनिक बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमान
मिग-21 बाइसन
कुल : 40
सोवियत युग का भारतीय वायु सेना का लड़ाकू विमान, जिसे वर्तमान में चरणबद्ध तरीके से हटाया जा रहा है
मिराज 2000
कुल : 45
फ्रांसीसी बहुउद्देश्यीय चौथी पीढ़ी का लड़ाकू विमान
सेपेकैट जैगुआर
कुल : 130
ब्रिटिश जेट, जो एयर सपोर्ट और जमीनी हमलों के लिए माकूल है
निर्माणाधीन :
एलसीए एमके 1 ए, एमके 2, एएमसीए
चीन
कुल लड़ाकू विमान
1,200-1,300
जे-20
कुल :200 से अधिक
चीन का पहला बहुउद्देश्यीय पांचवीं पीढ़ी का स्टेल्थ
लड़ाकू विमान
जे-35 (एफसी 31)
कुल: प्रारंभिक तैनाती
नवीनतम पांचवीं पीढ़ी का स्टेल्थ लड़ाकू विमान
जे-16
कुल :250
बहुउद्देश्यीय 4.5-जेनरेशन लड़ाकू विमान, राफेल की तरह का
जे-11 (जे-11बी बीएस)
कुल : लगभग 350
बहुउद्देश्यीय चौथी पीढ़ी का लड़ाकू विमान
जे-10 (जे-10
ए/बी/सी/एस)
कुल : लगभग 300
बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमान जो आधुनिक अमेरिकी एफ-16
के जैसा है
किस्तान कुल लड़ाकू विमान : 445
एफ-16
फाइटिंग फाल्कन
कुल : 85
अमेरिका निर्मित चौथी पीढ़ी का बहुउद्देश्यीय
लड़ाकू विमान
जेएफ-17 थंडर
कुल : 161
बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमान जिसे पाकिस्तान एयरोनॉटिकल और चेंगदू एयरोस्पेस कॉर्पोरेशन ने विकसित किया हैे
जे-10
कुल : 20
चीन निर्मित बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमान
अधिग्रहण:
चीन से संभवत:
40 जे 35 की खरीद
मिराज 2000,
मिराज 5
कुल : 87, 92
मिग-21, मिराज 2000 और मिराज 5 की तरह, ये भी पुराना पड़ चुका लड़ाकू विमान है