कौन हैं भारत के सबसे शक्तिशाली ब्यूरोक्रेट्स?
भारत के सबसे शक्तिशाली ब्यूरोक्रेट्स की इस सूची में प्रधानमंत्री मोदी के प्रिंसिपल सेक्रेटरी पी.के. मिश्र से लेकर अजित डोभाल, राहुल नवीन और सीडीएस अनिल चौहान तक के नाम शामिल हैं

लंबे वक्त से माना जाता रहा है कि प्रतिष्ठित शख्सियतें बड़े बदलाव की बातें करते हुए सियासी मैदान में लंबे-लंबे डग भरती हैं, वहीं किसी का काम अगर टिकता है तो वह अफसरशाही है. वे बदलाव को तरतीब देते हैं, बारीकियों के बीच रास्ता बनाते हैं, और उन महीन ब्योरों को कागजों पर उकेरते हैं जो अक्सर नीति का मुख्य पाठ भी होते हैं.
व्यापक नजरिया अपनाते हुए यहां हमने अफसरशाही से ऐसे 10 शख्स को चुना है जो भारत के राजकाज के ढांचे की रीढ़ हैं और सुरक्षा से लेकर वित्तीय स्थिरता तथा न्याय मुहैया कराने तक देश के हर पहलू को प्रभावित करने वाली भूमिका निभा रहे हैं. मसलन, प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी पी.के. मिश्र कई मंत्रालयों की नीतियों का तानाबाना बुनते हैं.
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल भू-रणनीति से लेकर प्रतिरक्षा और आतंकवाद से निबटने तक हर चीज संभालते हैं. आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास देश की वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करते हैं. संविधान के रखवाले भारत के प्रधान न्यायाधीश के साथ प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई के प्रमुख भी हमारी सूची में हैं, जिनका आदेश अहम होते हुए भी अक्सर न्यायिक सवालों के दायरे में आता है.
उच्च पदों पर आसीन ये दस लोग एक तरह से उन बंटी हुई जिम्मेदारियों और अनिवार्यताओं का निर्वाह करते हैं जो भारत जैसे जटिल देश को चलाने के लिए जरूरी हैं. ये कई बार कार्यपालक का काम करते हैं, तो कई बार अंत:करण के रखवाले का या सियासी तबके के सलाहकार का.
बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम और अरविंद पानगड़िया फाइल के हाशिये पर कुछ ऐसा लिख सकते हैं जो सुदूर भविष्य पर असर डाले. उनके प्रभाव का कोई सानी नहीं. वे सत्ता ही नहीं बल्कि उस जवाबदेही का भी मूर्त रूप हैं जो देश की संवैधानिक-लोकतांत्रिक अखंडता की रक्षा के लिए जरूरी है. इस लौ को जलाए रखने के लिए विजन की जरूरत होती है, जिसका कोई श्रेय तक नहीं मिलता.
1. पी.के. मिश्र, 76 वर्ष, प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी
• क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे भरोसेमंद अफसरशाह होने के नाते वे कामकाज को इतने चुपचाप और यंत्रवत अंजाम देते हैं कि राजकाज में जमाने भर का बदलाव आ जाता है. वे मितभाषी और अत्यंत निष्पक्ष तथा ईमानदार और भारत के मजबूत ढांचे के ऐन शिखर पर विराजमान हैं और उनके कक्ष से आने वाले इशारे देश की कार्यपालिका के लिए फरमान बन जाते हैं.
इससे वे रोजमर्रा के असल कामकाज से कट नहीं जाते: ब्योरों को पकड़ने की बारीक नजर और चौबीस घंटे की उपलब्धता उन्हें प्रतिष्ठान के लिए बेहद लाजिमी बनाती है, नीतिगत कागजों और कैबिनेट नोट में गलतियां कम से कम होती हैं तथा पीएमओ में निर्णय लेने की रफ्तार तेज हो जाती है.
• क्योंकि मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति को भेजी जाने वाली तमाम फाइलें उनकी डेस्क से होकर गुजरती हैं और अफसरशाही/राजनयिक तैनातियों की सारी सूचियां उनकी नीली पेंसिल के अंतिम स्पर्श के बाद ही प्रधानमंत्री तक पहुंचती हैं. नियुक्तियों को लॉबीइंग और अनुचित प्रभाव से मुक्त करने के लिए उन्होंने 360-डिग्री की आकलन प्रणाली शुरू की है.
पढ़ने का शौक
किताबों के वे उत्साही पाठक हैं. इन दिनों मारेक कोवाल्कीविज की द इकोनॉमी ऑफ एल्गोरिम्स के पन्नों में डूबे हैं.
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2. अजित डोभाल, 79 वर्ष, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए)
• क्योंकि आप उन्हें चाहे जो कहें—जासूस प्रमुख, सुरक्षा सिद्धांतकार या अदृश्य शक्ति—भारत के लिए लौह-कवच गढ़ने में उनकी सर्वव्यापी मौजूदगी उसकी सरहदों या महज उनके उस पार तक सिमटी नहीं है, जैसा कि आईबी के बॉन्ड सरीखी जासूसी और दुस्साहसी कार्रवाई के दिनों में होती थी.
उनके रणनीतिक-कूटनीतिक पदचिह्न अद्वितीय ढंग से कई देशों तक फैले हैं. दुनिया में आखिर कितने लोग व्लादिमीर पुतिन और जेक सुलिवन सरीखे परस्पर विरोधी श्वेतरक्त और बेहद सख्त हाव-भाव वाले शीत योद्धाओं के साथ फुसफुसाकर बात करने जितनी दूरी के भीतर हो सकते हैं? या जिनका तेहरान में भी उतना ही स्वागत होता हो जितना तेल अवीव में?
• क्योंकि 80 साल से चंद महीने कम उम्र में उन्होंने एनएसए के रूप में अपने तीसरे कार्यकाल में प्रवेश किया है—जो मोदी सरकार के कार्यकाल से जुड़ा रहा है. इसकी बदौलत वे स्वतंत्र भारत के सबसे लंबे समय तक सेवारत एनएसए बन गए हैं, जहां उनका और भी ताकतवर सचिवालय सीधे पीएमओ के तहत काम करता है.
सुरक्षा और रणनीतिक मामलों में प्रधानमंत्री के सबसे भरोसेमंद सहयोगी होने के नाते उनकी वैश्विक मेल-मुलाकातें मोदी के तौर-तरीकों का अभिन्न हिस्सा हैं.
• क्योंकि चुपचाप चली उनकी कूटनीति ने फरवरी में कतर से भारतीय नौसेना के आठ पूर्व कर्मियों की रिहाई पक्की की, जो बड़ी कूटनीतिक जीत थी.
महाकाल की दुआ
अत्यंत धार्मिक व्यक्ति होने के नाते उनकी नियमित तीर्थयात्राओं का एक पड़ाव मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर है.
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3. शक्तिकांत दास, 67 वर्ष, गवर्नर, भारतीय रिजर्व बैंक
• क्योंकि उन्होंने वृद्धि के लक्ष्यों के साथ ब्याज दरों की समझदारी और रुपए के दक्ष प्रबंधन का संतुलन बिठाया, हाजिर और वादा बाजार हस्तक्षेपों के जरिए मुद्रा की स्थिरता फिर हासिल की. यह सब महामारी और दो युद्धों की चुनौतियों से भरे वैश्विक माहौल में किया.
• क्योंकि उन्होंने भारत के वित्तीय क्षेत्र पर शांतिकारक प्रभाव डाला और केंद्रीय बैंक की नीतियों के जरिए अनिश्चितता और अविश्वास के माहौल को पलटा. आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति के बतौर अध्यक्ष, उन्होंने महंगाई पर काबू पाने की बड़ी जंग छेड़ रखी है. वृद्धि को तेजी देने के आदी लोगों को रेपो दर पर उनकी कड़ी पकड़ से कभी-कभार भले मायूसी होती हो, खासकर जब अमेरिकी फेड और उस तरह के केंद्रीय बैंकों ने ढील देने का विकल्प चुना, मगर उन्होंने पुख्ता उपाय किए.
हाल में उन्होंने कहा, ''हम जश्न से चूकेंगे नहीं. हम इंतजार करेंगे और जब महंगाई के आंकड़े स्थिर तौर पर सीध में आ जाएंगे, हम जश्न मनाएंगे.'' सितंबर में महंगाई का आंकड़ा 5.49 फीसद पहुंचा जो अगस्त के 3.65 फीसद से अचानक तेज वृद्धि है. ऐसे में उनका संरक्षणवादी नजरिया जरूरी जान पड़ता है.
• क्योंकि उन्होंने बैंकों पर कड़ी नजर रखी और वित्तीय प्रणाली में जोखिम बढ़ने से रोका, उपभोक्ता ऋणों में बेलगाम वृद्धि को काबू किया और कारोबारी जोखिम पर लगाम कसने के लिए बोर्ड की निगरानी में प्रक्रियाएं स्थापित कीं.
भुवनेश्वर में जन्मे, मगर तमिलनाडु काडर के आईएएस अफसर दास को अपनी मातृभाषा ओड़िया, हिंदी और अंग्रेजी के साथ तमिल भी आती है.
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4. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश
• क्योंकि उनसे पहले कुछ ही लोग संविधान के सर्वोच्च प्रहरी के रूप में प्रशंसा और यहां तक कि सम्मान के इस स्तर तक पहुंच पाए. उनका कार्यकाल भारत के इतिहास के उस दौर में आया जब इसके बुनियादी सिद्धांतों को शास्त्रार्थ की असामान्य चुनौती झेलनी पड़ी. उनका आचरण ज्यादातर गरिमा, संकल्प और सटीक वाकपटुता से परिपूर्ण रहा.
• क्योंकि इलेक्टोरल बॉन्ड, राज्यपालों के अधिकार क्षेत्र, जमानत के नियमों, 'बुलडोजर न्याय' आदि पर उनके चिर-परिचित फैसलों ने संवैधानिकता और उदारतावादी अधिकारों के ऐसे मानक कायम किए जिन पर शायद वे हमेशा खरे न उतरे हों. समलैंगिक विवाह पर उनका फैसला थोड़े ही फासले से ऐतिहासिक नजीर होने से रह गया.
• क्योंकि उन्होंने नवाचार को बढ़ावा दिया. वे उस पीठ में शामिल थे जिसने 2018 में सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाहियों की लाइव-स्ट्रीमिंग के पक्ष में फैसला दिया, और उस वक्त भी वे सीजेआई की कुर्सी पर विराजमान थे जब 2024 में पहली सुनवाई—एनईईटी या नीट पर—लाइव दिखाई गई.
खास रिश्ता
सीजेआई और उनकी पत्नी कल्पना दास की दो दिव्यांग बेटियां हैं जिनको उन्होंने 2015 में गोद लिया था.
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5. टी.वी. सोमनाथन, 59 वर्ष, भारत के कैबिनेट सचिव
• क्योंकि विद्वान और कर्मठ पूर्व वित्त सचिव और अब भारत के सबसे शीर्ष सेवारत अफसरशाह को मोदी 3.0 के लिए शीट एंकर के रूप में बल्लेबाजी करने के लिए भेजा गया है—जो सुधारों के रन रेट पर नजर रखने के साथ यह भी पक्का कर सके कि सामाजिक क्षेत्र की ध्वजवाहक योजनाओं का कोई विकेट न गिरे.
अतिरिक्त तथा संयुक्त सचिव के तौर पर काम करते हुए मोदी के भरोसमंद सिपहसालारों में अपनी पहचान बनाने के बाद पीएमओ की अनूठी लय-तालों के साथ उनका पूरा तालमेल है.
• क्योंकि वे जनसेवकों की दक्षताओं में सुधार के लिए फिलहाल चल रहे विशाल मानव संसाधन क्षमता निर्माण कार्यक्रम मिशन कर्मयोगी की देखरेख में निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं.
एक यह पहलू
साल 1966 में वे प्रतिष्ठित यंग प्रोफेशनल्स प्रोग्राम के जरिए विश्वबैंक से जुड़े.
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6. राहुल नवीन, 57 वर्ष, निदेशक, प्रवर्तन निदेशालय
• क्योंकि अगर दो संयुक्त अक्षर—'ईडी'—भ्रष्टाचारियों में डर का जलजला पैदा करते हैं और भारतीय राजनैतिक इतिहास में उथल-पुथल का पूरा दौर ला सकते हैं, तो इसके तोपों से लैस इस जहाज को चलाने के लिए आपको पर्याप्त हुनरमंद कप्तान की जरूरत होती है.
आर्थिक अपराध रोकने वाली भारत की सबसे अहम एजेंसियों में से एक के प्रमुख होने के नाते उन्हें हुकूमत के भरोसेमंद और पसंदीदा प्रवर्तक के रूप में देखा जाता है, तकरीबन उस तलवारधारी भुजा के रूप में, जो अड़ियल विपक्षी नेताओं और कारोबारी शख्सियतों को खुशामदी पिछलग्गू के दायरे में लाने में निपुण है. उनका कार्यकाल दो मुख्यमंत्रियों अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन की सुर्खियां बनाने वाली गिरफ्तारियों से शुरू हुआ.
2019 से स्पेशल डायरेक्टर के नाते उन्होंने काफी मेहनत की. बीते छह साल में ईडी ने राजनेताओं से जुड़े 132 मामलों की जांच की. निशाने की जद में राहुल और सोनिया गांधी, लालू और तेजस्वी यादव, और अभिषेक बनर्जी सरीखी शख्सियतें आईं. यह पोते-पोतियों को सुनाने लायक किस्सा है, और शायद 808 पन्नों की मोटी किताब (इन्फॉर्मेशन एक्सचेंज ऐंड टैक्स ट्रांस्परेंसी: टैकलिंग ग्लोबल टैक्स इवेजन ऐंड एवॉयडेंस, 2016) के लेखक के लिए इस बार कुछ रोचक बातें लिखने का मौका भी.
• क्योंकि उन्होंने धनशोधन पर वैश्विक निगरानी संस्था फाइनेंशियल ऐक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की तरफ से भारत के साझा मूल्यांकन के मार्गदर्शन में अहम भूमिका निभाई.
मूलत: बिहार के रहने वाले, आईआईटी कानपुर से ग्रेजुएट, स्विनबर्न से एमबीए और 1993 बैच के आईआरएस अफसर संगीतकारों के परिवार से आते हैं. बॉलीवुड संगीतकार आनंद-मिलिंद उनके रिश्तेदार हैं.
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7. प्रवीण सूद, 60 वर्ष निदेशक, केंद्रीय जांच ब्यूरो
• क्योंकि आज के भारत को शासित करने वाली पटकथा में उनकी कहीं ज्यादा बड़ी भूमिका है. हमारी सर्वश्रेष्ठ पुलिसिया जांच एजेंसी के कर्ता-धर्ता होने के नाते वे ऐसे मामलों को नतीजे की तरफ ले जाने की स्थिति में हैं जो नए सिरे से देश का सियासी अफसाना गढ़ सकते हैं और सामाजिक माहौल पर असर डाल सकते हैं: कोलकाता आरजी कर रेप और हत्या मामला, नीट पेपर लीक और दिल्ली शराब घोटाला तो कुछेक उदाहरण भर हैं.
मई 2023 में पद संभालकर और खासकर परेशानकुन साल से शुरू करके कर्नाटक के पूर्व डीजीपी ऐसे समय आए जब सीबीआई की सियासी धार और तेज हो रही थी (अरविंद केजरीवाल: पकड़ में; हेमंत सोरेन: पकड़ में; डी.के. शिवकुमार: पकड़ में). तो 'पिंजरे में बंद तोता' रूपक कहीं ओझल नहीं हुआ है.
• क्योंकि उनके सख्त आंतरिक प्रशासनिक और बढ़-चढ़कर काम करने वाले नेतृत्व ने एजेंसी को चुस्त-दुरुस्त रखने में मदद की—और 'सीबीआइ जांच' की मांग उन तमाम धुंधलके से घिरे अपराध स्थलों से अब भी सुनाई देती है जहां दूध का दूध और पानी का पानी करने की जरूरत होती है.
आईआईटी दिल्ली से ग्रेजुएट और गोल्फ खिलाड़ी आगे बढ़कर काम करने के लिए मशहूर हैं. सीबीआई निदेशक बने तो पहले उन्होंने इसके सभी 58 दफ्तरों का दौरा किया.
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8. बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम, 62 वर्ष, सीईओ, नीति आयोग
क्योंकि उन्होंने ऐसे काम किए हैं जो आम लोगों को डरा सकते हैं. जैसे कि राष्ट्रीय परिसंपत्ति मुद्राकरण कार्यक्रम चलाना—सड़क और बिजली सहित 10 क्षेत्रों में ब्राउनफील्ड कोर इन्फ्रास्ट्रक्चर परिसंपत्तियों के लिए—जिसका चार साल का लक्ष्य वित्त वर्ष 25 तक 6 लाख करोड़ रुपए है.
• क्योंकि वे भारत की खातिर एक ग्रीन मैप बनाने के लिए जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञों के शक्तिशाली समूह का नेतृत्व करते हैं जो इसे 2070 तक अपने शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को हासिल करने में सक्षम बनाएगा.
• क्योंकि उन्हें भारत को एआई के क्षेत्र में ग्लोबल लीडर बनाने की खातिर खाका तैयार करने के लिए एक फ्रंटियर टेक हब स्थापित करने का काम सौंपा गया है.
• क्योंकि उन्होंने यह पता लगाने के लिए एक कार्यक्रम तैयार किया है कि भारत वैश्विक मूल्य शृंखला का एक अभिन्न अंग कैसे बन सकता है.
• क्योंकि वे 12 मुख्यमंत्रियों के साथ मिलकर उनके राज्यों के लिए विजन दस्तावेज तैयार करने का काम कर रहे हैं.
• क्योंकि वे सऊदी अरब और यूके के साथ साझेदारी से जुड़े एफडीआइ मुद्दों को सुलझाने के लिए जाने-माने व्यक्ति हैं.
• क्योंकि वे विकसित भारत@2047 के लिए पीएम के विजन को तैयार करने और उसे आगे बढ़ाने वाले मुख्य व्यक्ति हैं.
गजब की कर्तव्यपरायणता
उनकी दुर्लभ विशेषता यह है कि उन्होंने मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी, दोनों के पीएमओ में काम किया है; दिन की शुरुआत वे पूजा से करते हैं.
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9. जनरल अनिल चौहान, 63 वर्ष, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ
• क्योंकि भारत का सर्वोच्च सैन्य रैंक उन्हें स्वाभाविक तौर पर तीनों सेवाओं के अलावा रणनीतिक और रक्षा नीति पर अहम अधिकार प्रदान करता है. उत्तराखंड के इस 'शांत, विनम्र' अधिकारी पर सरकार को इतना भरोसा है कि उन्हें सेवानिवृत्ति से वापस लाकर यह पद देने के लिए नियमों में संशोधन तक किया गया.
जनरल चौहान उस पर खरे भी उतरे. जहां सेना, नौसेना और वायु सेना को एकीकृत कमान के तहत एकजुट करने के लिए दूसरों को जूझना पड़ा था, वहीं चौहान ने इस चुनौतीपूर्ण काम को कर दिखाया. वास्तव में, जैसा कि उन्होंने हाल ही में कहा, हम ''संयुक्तता की बात से आगे बढ़ चुके हैं'' और वास्तविक तालमेल की ओर आगे बढ़ गए हैं.
• क्योंकि वे अग्निवीर भर्ती योजना को लेकर मची रार को दूर करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं. उस योजना को 30 सितंबर, 2022 को उनके पदभार संभालने के कुछ दिन पहले लागू किया गया था और विभिन्न राज्यों में उसका विरोध होता रहा है.
बालाकोट हवाई हमले के दौरान 2019 में वे सैन्य अभियानों के महानिदेशक थे, और सेवानिवृत्ति के बाद तथा सीडीएस बनकर फिर नौकरी पर वापस लौटने से पहले वे कुछ वक्त तक एनएसए के सैन्य सलाहकार रहे.
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10. अरविंद पानगड़िया, 72 वर्ष, वित्त आयोग के चेयरमैन
• क्योंकि अर्थशास्त्री पानगड़िया 16वें वित्त आयोग की अगुआई केंद्र-राज्य संबंधों के मद्देनजर बहुत नाजुक दौर में कर रहे हैं, जब भारतीय संघीय सियासत के हर तरफ सरकारी कर्ज और खराब बैंलेस-शीट बिखरी पड़ी है. कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे, मुक्त व्यापार के समर्थक और जन नीति इन्फ्लूएंसर पानगड़िया के करियर में कई स्टार जुड़े हैं जिनमें आइएमएफ, डब्ल्यूटीओ, यूएनसीटीएडी, एडीबी, यूएसआइएसपीएफ, आइसीआरआइईआर शामिल हैं.
2015-17 में नीति आयोग के पहले उपाध्यक्ष के तौर पर मोदी सरकार के साथ शुरुआत से ही वे काम कर चुके हैं. हालांकि वह कुछ खास नहीं चला, मगर वह उन्हें ऐतिहासिक जिम्मेदारी लेने से नहीं रोक सका.
• क्योंकि मोदी ने कभी उनके योगदान को 'चमत्कारी' करार दिया था. उन्हें अब वैसा कर दिखाना होगा, जब अधिक विकसित राज्यों में अलग-थलग किए जाने की धारणा बढ़ रही है. ऐसे में वित्तीय प्रतिवेदन में सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए केंद्र के जनादेश के साथ राज्यों की आकांक्षाओं को संतुलित करते हुए राज्यों को धन के हस्तांतरण के लिए एक नया फॉर्मूला तैयार करना होगा. उनकी इनायत के लिए मुख्यमंत्रियों की कतार लगी हुई है.
जड़ें
वे ओसवाल जैन समुदाय से हैं और राजस्थान के एक मशहूर हिंदी लेखक-पत्रकार के यहां पैदा हुए. उनका सरनेम उनके गांव के नाम पानगढ़ से लिया गया है.
—एम.जी. अरुण, कौशिक डेका, अनिलेश एस. महाजन और प्रदीप आर. सागर