लेबनान में हुआ पेजर ब्लास्ट भारत के लिए क्यों है खतरे की घंटी?
लेबनान में हिजबुल्ला को निशाना बनाने के लिए जिस सधे अंदाज में पेजर हमले किए गए, उससे भयावह साइबर काइनेटिक जंग का अंदेशा बढ़ गया है. भारत के लिए खतरा बड़ा है क्योंकि इसकी ज्यादातर कनेक्टेड डिवाइसेज चीन में या दूसरे देशों में बने उपकरणों पर निर्भर है

वह बेरुत में 17 सितंबर को दोपहर में करीब 3:30 बजे का समय था. अचानक पूरे लेबनान में हजारों की संख्या में पेजर फटने लगे. इनका इस्तेमाल शिया उग्रवादी समूह हिजबुल्ला के लोग करते थे. धमाकों में 11 लोग मारे गए और 2,700 अन्य घायल हो गए. अगले दिन, वॉकी-टॉकी में धमाके हुए, जिसमें 20 से ज्यादा लोग मारे गए और 450 अन्य घायल हो गए.
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल कर बड़े पैमाने पर तबाही मचाने वाली इस घटना को इज्राएली डिफेंस फोर्स (आईडीएफ) ने देश की खुफिया एजेंसी मोसाद के साथ मिलकर अंजाम दिया. और इस तरह से इलेक्ट्रॉनिक युद्ध में एक नया अध्याय जोड़ दिया गया. पेजर/वॉकी-टॉकी हमलों ने दुनियाभर में हथियारों की होड़ बढ़ने और निजी इस्तेमाल वाले गैजेट्स को मौत का सामान बनाए जाने की आशंका बढ़ा दी है.
वैसे फोन में विस्फोटक डालकर धमाके करना खुफिया एजेंटों की पुरानी तरकीब है. लेकिन जो चीज कथित रूप से इज्राएल के इस हमले को अनूठा बनाती है वह है भारी संख्या में डिवाइसेज की सप्लाइ चेन में घुसपैठ और उनमें से तमाम में विस्फोटक लगाकर एक ही समय विस्फोट करना.
हालांकि हिजबुल्ला के खिलाफ ताजा इज्राएली कार्रवाई पारंपरिक माध्यमों से ही हो रही है और 27 सितंबर को उसके हवाई हमले में हिजबुल्ला प्रमुख हसन नसरल्ला की मौत ने लड़ाई को खतरनाम मोड़ दे दिया है. इज्राएल के मुख्य प्रतिद्वंद्वी ईरान ने 1 अक्तूबर को उस पर 200 बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं, जिनमें से अधिकांश को इज्राएल ने नाकाम कर दिया.
सैन्य विशेषज्ञ इलेक्ट्रॉनिक गैजेट के जरिए धमाकों की इस घटना को इसलिए महत्वपूर्ण मान रहे हैं क्योंकि इसने इंटरनेट से जुड़े लक्ष्यों को निशाना बनाए जाने की आशंका बढ़ा दी है—इसके जरिए नागरिक और सैन्य संचार प्रणाली, या फिर पावर ग्रिड आदि को निशाना बनाकर युद्ध में विरोधी देश को एकदम पंगु बनाया जा सकता है. यह आशंका सिर्फ साइबर जंग को लेकर नहीं है, बल्कि साइबर काइनेटिक जंग यानी कि विनाशकारी साइबर जंग होने की है.
साइबर हमले में तो वायरस अटैक या फिर सेवाएं बाधित करने वाले हमलों के जरिए किसी अन्य देश के कंप्यूटर या सूचना नेटवर्क को नुक्सान पहुंचाने का प्रयास किया जाता है लेकिन साइबर काइनेटिक हमले में तो साइबर हमलों का इस्तेमाल बुनियादी ढांचे को भौतिक नुक्सान पहुंचाने और लोगों को चोट पहुंचाने या उनकी जान लेने के लिए किया जाता है. वाहन, विमान, निजी गैजेट और घरेलू उपकरणों (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) से लेकर बड़ी राष्ट्रीय/सैन्य संपत्तियों तक हर चीज साइबर भौतिक प्रणाली से जुड़ी होने के कारण साइबर के साथ-साथ भौतिक स्तर पर क्षति पहुंचाए जाने का जोखिम बढ़ जाता है.
संचार नेटवर्क के लिए चीनी उपकरणों और चीन निर्मित निगरानी कैमरों पर अत्यधिक निर्भरता भारत को ऐसे हमलों के लिहाज से कुछ ज्यादा ही असुरक्षित बनाती है. हालांकि, चीनी निगरानी और एम्बेडेड मैलवेयर के जरिए सिस्टम को क्षति पहुंचाने की आशंकाओं को देखते हुए उपयुक्त कार्रवाई की जा रही है. लेकिन पूर्व में पेजर की तरह हार्डवेयर के साथ छेड़छाड़ के प्रयासों को साइबर हमलों में तब्दील करने या मैलवेयर को विनाश का हथियार बनाने की आशंकाओं को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता.
सेना की उत्तरी कमान के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल डी.एस. हुड्डा कहते हैं, ''आतंकवादी हथियारबंद इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल कर सकते हैं. लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने के लिए किसी व्यापक हमले या व्यापक निगरानी को अंजाम देने का काम कोई देश ही कर सकता है.'' उनका कहना है कि साइबर हमले और निगरानी कोई नई बात नहीं है लेकिन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को मौत के सामान में बदल देना एक नई चीज है.
भारत के लिए खतरे
भारतीय खुफिया एजेंसियां देश के संचार नेटवर्क को लेकर आगाह करती आई हैं, जिनके हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर बड़े पैमाने पर मूलत: चीन या किसी अन्य देश के हैं, जिन्हें सामान्य दिनों में भारत की जासूसी करने और भविष्य के किसी संघर्ष के दौरान साइबर हमले के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
सरकारी स्वामित्व वाले भारत संचार निगम (बीएसएनएल), उसकी सहायक कंपनी महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (एमटीएनएल) के साथ-साथ भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया जैसी भारतीय दूरसंचार कंपनियां चीनी उपकरणों पर निर्भर हैं. 2020 में ही केंद्र की तरफ से यह अनिवार्य किया जा चुका है कि दूरसंचार कंपनियों को केवल उन्हीं विक्रेताओं के उपकरण इस्तेमाल करने हैं, जिन्हें सरकार से 'विश्वसनीय स्रोत' का प्रमाणपत्र दे रखा हो.
चीनी कंपनी हुआवेई और जेडटीई को अब तक यह प्रमाणन हासिल नहीं है. 26/11 के मुंबई हमलों के बाद गठित एक खुफिया इकाई के पूर्व कमांडर कर्नल हनी बख्शी (सेवानिवृत्त) कहते हैं, ''जब तक हमारे पास स्वदेशी सामग्री के इस्तेमाल वाला अपना संचार नेटवर्क नहीं होगा, तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं.''
भारतीय सेना में सूचना प्रणाली के महानिदेशक रहे लेफ्टिनेंट जनरल प्रकाश कटोच (सेवानिवृत्त) कहते हैं, ''चीन के पास कहीं भी साइबर काइनेटिक हमले करने की क्षमता है क्योंकि वह वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रॉनिक बाजार पर हावी है. भारत में हमारे पास एम्बेडेड मैलवेयर के लिए आयातित वस्तुओं की 100 फीसद जांच की व्यवस्था भी नहीं है.''
विशेषज्ञों ने देशभर में चीन निर्मित क्लोज सर्किट टेलीविजन (सीसीटीवी) कैमरों के बड़े पैमाने पर अनियंत्रित ढंग से इस्तेमाल को लेकर चिंता जताई है. इनका इस्तेमाल नौसेना प्रतिष्ठानों और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) जैसे महत्वपूर्ण सरकारी संस्थानों में भी किया जा रहा है. इन उपकरणों के जरिए दूरस्थ निगरानी और डेटा उल्लंघन संभव है और बीजिंग कभी भी इसका फायदा उठा सकता है. गृह मंत्रालय अब भारतीय परियोजनाओं के साथ चीनी कंपनियों की भागीदारी की निगरानी के लिए खुफिया अधिकारियों की एक शाखा स्थापित कर चुका है. सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र के भीतर चीनी उपकरणों को चरणबद्ध तरीके से हटाने पर भी काम कर रही है.
विशेषज्ञ इस बात से भी खासे चिंतित हैं कि सेलुलर आईओटी मॉड्यूल (सीआईएम) की वैश्विक आपूर्ति में चीनी निर्माताओं का दबदबा है, जो कि सेलुलर नेटवर्क (4जी/5जी) के माध्यम से रोजमर्रा के कामों में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों को कनेक्टिविटी प्रदान करके इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) को उपयोग लायक बनाता है. सीआइएम निजी गैजेट्स, सीसीटीवी और ड्रोन से लेकर उत्पादन लाइनों और पावर ग्रिड तक कई तरह के उपकरणों में इस्तेमाल होते हैं. सीआइएम अंतिम यूजर की जानकारी के बिना दूर से फर्मवेयर अपडेट हासिल कर सकते हैं. इनमें मैलवेयर हो सकता है, जिससे चीनियों के लिए डिवाइस में हेरफेर करना, उन्हें बंद करना या डेटा चुराना संभव हो सकता है.
दुनियाभर में साइबर काइनेटिक हमले का सबसे ज्यादा खतरा विमानन क्षेत्र में है, जिसमें इन-फ्लाइट वाइ-फाइ और फ्लाइ-बाइ-वायर सिस्टम का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है. फ्लाइ-बाइ-वायर सिस्टम एक कंप्यूटर-संचालित विमान उड़ान नियंत्रण प्रणाली है जिसने यांत्रिक/मैनुअल उड़ान नियंत्रण को इलेक्ट्रॉनिक इंटरफेस में बदल दिया.
सेंटर फॉर डिजिटल इकोनॉमी पॉलिसी रिसर्च के अध्यक्ष जयजीत भट्टाचार्य किसी भी क्षेत्र को साइबर काइनेटिक जंग का निशाना बनाए जाने की आशंका जाहिर करते हुए कहते हैं, एक स्मार्ट कार में विस्फोटक लगाए जा सकते हैं और साइबर निगरानी के जरिए यात्री के बारे में पता लगाने के बाद विस्फोट से उसे उड़ाया जा सकता है. भट्टाचार्य कहते हैं, ''साइबर को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और काइनेटिक्स के साथ जोड़ने की संभावनाएं काफी हैरान करने वाली हैं.''
लेबनान हमलों के तुरंत बाद भारतीय सेना ने अधिकारियों के लिए एक कोर्स शुरू किया, जिससे उन्हें यह समझने का मौका मिलेगा कि भविष्य में लड़े जाने वाले युद्ध कैसे साइबर, अंतरिक्ष और विद्युत चुंबकीय क्षेत्रों से जुड़े होंगे और एआइ, मशीन लर्निंग और हाइपरसोनिक्स का असर कितना ज्यादा होगा. 17-18 सितंबर की घटनाओं ने जंग के मैदान को और व्यापक रूप दे दिया. भारत के लिए जरूरी है कि वह खुद को भी आने वाले समय के लिए पूरी तरह तैयार करे.
भारत के लिए खतरे की घंटी
साइबर हमलों के लिए संवेदनशील क्षेत्र और उनके हथियारों के रूप में इस्तेमाल का अंदेशा
दूरसंचार नेटवर्क
भारत के संचार नेटवर्क मुख्य रूप से चीनी और विदेशी हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर पर निर्भर हैं. इसकी वजह से उन्हें साइबर हमलों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है
सीसीटीवी
देश के 90 फीसद से ज्यादा सरकारी प्रतिष्ठानों में चीनी डिवाइस लगी हैं. इसकी वजह से मैलवेयर के जरिए निगरानी, डेटा चोरी और तोड़फोड़ का साफ खतरा बना हुआ है
सीआईएम
सेलुलर इंटरनेट ऑफ थिंग्स मॉड्यूल डिवाइस और महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों के बीच कनेक्शन को सक्षम बनाने के लिए सेलुलर नेटवर्क का उपयोग करते हैं. फर्मवेयर अपडेट मैलवेयर लगा सकते हैं/एम्बेडेड विस्फोटकों को सक्रिय कर सकते हैं
विमानन
मैलवेयर फ्लाई-बाई-वायर फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम और इन-फ्लाइट वाइ-फाइ में गड़बड़ी पैदा कर उन्हें नाकाम कर सकते हैं और उनमें विस्फोट कर सकते हैं
पेजर को कैसे बना दिया घातक हथियार
लेबनान में पेजर और वॉकी-टॉकी को बम से उड़ाने और विस्फोट करने के ऑपरेशन में जटिल सप्लाइ-चेन में तोड़फोड़ और तकनीकी कौशल शामिल थे. माना जाता है कि इसके पीछे इज्राएल की मोसाद और शिन बेट एजेंसियों का हाथ है.
हिजबुल्ला प्रमुख हसन नसरल्ला ने फरवरी 2024 में लड़ाकों से ऐसे मोबाइल फोन का इस्तेमाल बंद करने को कहा, जिन्हें ट्रैक किया जा सकता था; वे कम तकनीक वाले पेजर/वॉकी-टॉकी का इस्तेमाल करने लगे; पिछले कुछ महीनों में लगभग 5,000 खरीदे गए.
अल्फान्यूमेरिक पेजर में एलसीडी स्क्रीन होती हैं, जिस पर टेक्स्ट और नंबर दिखता है. पेजर रेडियो फ्रीक्वेंसी पर काम करते हैं और एकतरफा डिवाइस होते हैं, जिसका मतलब है कि वे केवल संदेश हासिल कर सकते हैं.
एआर-924 पेजर मॉडल ताइवानी निर्माता गोल्ड अपोलो का उत्पाद था. ताइवान की कंपनी ने कहा कि इसे हंगरी की फर्म बीएसी ने लाइसेंस के तहत तैयार करके बेचा था.
इज्राएली जासूसी एजेंसी मोसाद ने कथित तौर पर सप्लाइ चेन में घुसपैठ के जरिए पेजर को इंटरसेप्ट किया. यह भी मुमकिन है कि बीएसी कंसल्टिंग मोसाद की बनाई कोई शेल कंपनी हो. डिवाइस के निर्माण या उनके इंटरसेप्शन के दौरान पेजर बैटरियों में विस्फोटक पेंटाएरीथ्रिटोल टेट्रानाइट्रेट (पीईटीएन) मिलाकर उन्हें एक चिप से जोड़ा गया था.
इसके बाद उन्हें लेबनान भेजा गया, ताकि इलेक्ट्रॉनिक संदेश भेजकर विस्फोट किया जा सके. 17 सितंबर को बेरुत के समय के अनुसार दोपहर 3.30 बजे के आसपास हिजबुल्ला के लड़ाकों के इस्तेमाल किए जाने वाले हजारों पेजर बाजारों, घरों और वाहनों में फट गए. इन विस्फोटों की वजह से 11 लोग मारे गए और हजारों घायल हो गए.
अगले दिन उन वॉकी-टॉकी में भी उसी तरह के विस्फोट हुए जिन्हें हिजबुल्ला लड़ाके इस्तेमाल करते थे. इन विस्फोटों में 20 से ज्यादा लोग मारे गए. जापानी फर्म आइकॉम की ओर से बनाए गए आइसी-वी82 मॉडल वॉकी-टॉकी का उत्पादन एक दशक पहले बंद हो गया था. जिन उपकरणों में विस्फोट हुआ, वे संभवत: नकली थे.