भारत का हीरा उद्योग अपनी चमक क्यों खो रहा है?
भारत के हीरा उद्योग में भूचाल जैसी स्थिति है और इसे तराशने वाले कुशल कारीगर घटती आय और अनिश्चित भविष्य से जूझ रहे हैं. इसकी एक बड़ी वजह यह है कि लैब में तैयार हीरे की बढ़ती मांग के आगे प्राकृतिक पत्थर की असली चमक फीकी पड़ती जा रही है

बगैर चमक का कैसा हीरा? खैर, मांग में कमी और गिरती कीमतों से इसकी दमक घटी है, साथ ही नया प्रतिद्वंद्वी लैब ग्रोन डायमंड (एलजीडी) या प्रयोगशाला में बना हीरा तेजी से खरीदारों के बीच अपनी जगह बनाता जा रहा है. और ये सब सूरत में सबसे ज्यादा देखा जा सकता है जो देश में हीरा उद्योग का गढ़ है.
हीरा पॉलिश करने में दक्ष 30 साल के सुरेश सोलंकी की आपबीती पूछिए जो कभी हर महीने आराम से 60,000 रुपए तक कमा लेते थे लेकिन आज छोटे-मोटे काम करके 300 रुपए रोज कमाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. गुजरात की डायमंड सिटी में वे अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ 20 वर्ग फुट के बिना खिड़की वाले छोटे से घर में रहते हैं, जहां सोने, खाना पकाने से लेकर कपड़े धोने तक का सब काम इतनी ही जगह में होता है.
उनकी पत्नी का वर्कस्टेशन यानी सिलाई मशीन ठीक कराने के लिए 1,600 रुपए की जरूरत है और यह उसी तरह एक कोने में पड़ी है जैसे परिवार की अच्छे दिन आने की उम्मीदें.
हीरा और आभूषण उद्योग से जुड़े स्वतंत्र न्यूज प्लैटफॉर्म रैपापोर्ट के मुताबिक, पिछले एक साल में असली हीरों की थोक कीमतों में करीब 30 फीसद की गिरावट आई है. चीन और हांगकांग से हीरों की मांग महामारी से पहले के स्तर की तुलना में एक-तिहाई तक घट गई है, जबकि अमेरिकी मांग 2021 की तुलना में आधी रह गई है. इस बीच, लैब में तैयार हीरे की थोक कीमतों में 2018 की तुलना में 70 फीसद तक गिरावट आई है. हालांकि, इन सिंथेटिक रत्नों की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है.
वैश्विक मंदी
भारत के हीरा कारोबारी वैश्विक संकेतों के मुताबिक चलते हैं. रैपापोर्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के सबसे बड़े हीरा उत्पादक और वितरक डी बियर्स ने 2024 की पहली छमाही में बिक्री में 26 फीसद गिरावट के बाद उत्पादन में 15 फीसद की कटौती की. जुलाई में कंपनी ने बताया कि उसके कच्चे हीरे की बिक्री साल-दर-साल आधार पर 22 फीसद घटकर 1.95 अरब डॉलर (करीब 16,000 करोड़ रुपए) रह गई, जबकि कच्चे हीरे के मूल्य सूचकांक में 20 फीसद की गिरावट आई.
डी बीयर्स ने 2018 में अपना एलजीडी ब्रांड लाइटबॉक्स ज्वेलरी लॉन्च किया था लेकिन इस साल जून में उसने अचानक एलजीडी उत्पादन बंद करने की घोषणा कर दी.
अप्रैल में एक अन्य प्रमुख खननकर्ता रियो टिंटो ने पहली तिमाही में कच्चे हीरे के उत्पादन में 22 फीसद कटौती की जानकारी दी. कंपनी ने जुलाई में जलवायु वजहों का हवाला देते हुए कनाडा में अपनी डियाविक पिट खदान अस्थायी रूप से बंद करने की घोषणा की. दक्षिण अफ्रीका, बोत्सवाना और तंजानिया में खदानों का संचालन करने वाली कंपनी पेट्रा ने भी अगले दो वर्षों में उत्पादन 18-19 फीसद घटाने की योजना बनाई है. अमेरिकी व्यापार विश्लेषक एडहन गोलान ने मुंबई में कहा कि खनन में उल्लेखनीय गिरावट के बावजूद भंडार बढ़ रहा है.
बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था किम्बरली प्रॉसेस की तरफ से जुलाई की शुरुआत में जारी आंकड़ों की मानें तो 2023 में कुल हीरा उत्पादन 8 फीसद घटकर 111.5 मिलियन कैरेट रह गया, जो दो दशक पहले डेटा प्रकाशन शुरू करने के बाद से सबसे कम है. अगर मूल्य के लिहाज से देखें तो उत्पादन में 20 फीसद (12.73 अरब डॉलर या एक लाख करोड़ रुपए) की गिरावट आई, जबकि औसत मूल्य 14 फीसद घटकर 114 डॉलर (9,500 रुपए) प्रति कैरेट रह गया.
घरेलू मुश्किलें
भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक, इन सबकी वजह से भारत में हजारों छोटे हीरा पॉलिश करने वाले, ट्रेडर और निर्यातकों को अपना काम बंद करना पड़ा है. एक अनुमान के मुताबिक, 50,000 कटिंग और पॉलिशिंग कारीगरों को या तो काम से निकाल दिया गया है या फिर वे लंबे ब्रेक के साथ कुछ ही घंटे काम कर रहे हैं.
सोलंकी के मुताबिक, ''पहले मैं एक दिन में 60 हीरे पॉलिश करता था लेकिन छह महीने पहले संख्या घटकर 20 हो गई. अब, हमें महीने में केवल पांच दिन काम पर बुलाया जाता है.'' डायमंड वर्कर्स यूनियन गुजरात के अध्यक्ष भावेश टांक का मानना है कि पिछले दो वर्षों में 65 आत्महत्याओं के लिए उद्योग में वित्तीय संकट जिम्मेदार है. ऐसी घटनाओं को रोकने के उद्देश्य से जून मध्य में यूनियन ने वित्तीय संकट झेल रहे कारीगरों की काउंसिलिंग और सहायता के लिए 24x7 हेल्पलाइन शुरू की. इस पर अब तक 2,000 से अधिक कॉल आ चुकी हैं. यह इंडस्ट्री 8,00,000 कारीगरों को रोजगार देती है.
रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद (जीजेईपीसी) के अध्यक्ष विपुल शाह कहते हैं, ''यह उद्योग एक चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहा है, मांग और आपूर्ति में अड़ंगे इसकी प्रमुख वजह है. मांग इतनी घट गई है कि युद्ध प्रतिबंधों के कारण रूसी खनन फर्म अलरोसा से सीमित मात्रा में कच्चे हीरे मिलने के बावजूद आपूर्ति मांग की तुलना में अधिक है.''
कच्चे हीरों में एक-तिहाई की आपूर्ति अलरोसा से ही होती रही है. उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय संघर्षों के कारण पश्चिम एशिया में मांग घटी है, जबकि उच्च ब्याज दरों के कारण अमेरिकी बाजार सुस्त हो गया है. वे कहते हैं, ''हालांकि, घरेलू (भारतीय) बाजार में स्थिति काफी बेहतर बनी हुई है.'' छोटे कारोबारियों, हीरे तराशने और पॉलिश करने वाले कारीगरों पर पड़े असर को मानते हुए शाह ने चेताया कि अगर अभी भी कड़े फैसले (मसलन, आपूर्ति नियंत्रित करने के लिए काम के घंटे तय करना) नहीं किए गए तो ''बड़ा नुक्सान हो सकता है.''
हालत इतनी खराब हो गई कि 2023 के अक्तूबर से दिसंबर के बीच जीजेईपीसी ने कच्चे हीरे के आयात पर पाबंदी लगाने की सलाह दी. इस साल जनवरी में आयात फिर शुरू हुआ लेकिन मई तक कच्चा माल काफी जमा हो गया, लिहाजा तराशने के काम पर पाबंदी लगाई गई. शाह कहते हैं कि मांग फिर तेज करने के लिए ट्रेडर अब मार्केटिंग में निवेश के इच्छुक हैं.
लैब ग्रोन डायमंड ऐंड ज्वेलरी प्रमोशन काउंसिल के अध्यक्ष शशिकांत शाह का कहना है कि 90 फीसद छोटे ऑपरेटर एलजीडी ट्रेडिंग या पॉलिशिंग से जुड़ चुके हैं. शाह कहते हैं, ''मौजूदा समय में भारत में करीब 40 मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां हैं, जिनके पास 12,000 से 14,000 एलजीडी मशीनें हैं. मांग बनी हुई है और उद्योग अगले पांच वर्ष में 25,000 मशीनों तक पहुंच जाएगा. असली हीरे का व्यापार काफी हद तक भू-राजनैतिक और जलवायु संबंधी अनिश्चितताओं से जुड़ा होता है, जिससे उसकी लागत अप्रत्याशित होती है, जबकि एलजीडी में लागत तय है. इससे उत्पाद को स्थिरता मिलती है.''
एलजीडी की ओर झुकाव
एलजीडी वर्ष 2018 के आसपास खान से निकलने वाले प्राकृतिक हीरे का एक व्यावहारिक विकल्प बनकर उभरा, जब व्यापारियों और जौहरियों ने यह मानना शुरू कर दिया कि ये पत्थर देखने में प्राकृतिक हीरों के समान ही हैं. शुरुआत में एलजीडी की कीमत प्राकृतिक हीरों के 40 फीसद के करीब थी. तब उद्योग दिग्गजों को लगा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है और एलजीडी से सदियों पुराने प्राकृतिक हीरा उद्योग को कोई क्षति नहीं पहुंचेगी.
भारत के सबसे बड़े एलजीडी रिटेल ज्वेलरी ब्रांड्स में से एक लाइमलाइट डायमंड्स की संस्थापक और प्रबंध निदेशक पूजा शेठ माधवन कहती हैं, ''प्राकृतिक हीरे की कीमत गिरी है, इससे उपभोक्ता की नजर में अब अब यह संपत्ति या सहेजकर रखने वाली चीज नहीं रहा.'' उनकी राय है कि बदलाव युद्धों या कोविड महामारी के कारण नहीं आया, बल्कि असल वजह यह है कि दुनियाभर में उपभोक्ता एलजीडी पसंद कर रहे हैं. यह एक ऐसी हकीकत है जिसे उद्योग से जुड़े दिग्गज और साइटहोल्डर्स (दुनिया के सबसे बड़े हीरे उत्पादक और वितरक डी बीयर्स से कच्चे हीरे खरीदने के लिए अधिकृत कुछ चुनिंदा कंपनियां) स्वीकारने में हिचकिचा रहे हैं, जबकि उनके पास हजारों करोड़ रुपए का हीरा भंडार है.
और अगर एलजीडी की कीमतें गिर रही हैं तो माधवन के अनुसार, अंतर मुनाफे में आया है, न कि उत्पाद संबंधी धारणा में, क्योंकि खुदरा कीमतों में कोई गिरावट नहीं आई है. वे कहती हैं, ''चूंकि बाजार में उतरने में कोई बाधा नहीं थी, इसलिए अधिक उत्पादकों ने इस तरफ रुख किया और प्रतिस्पर्धा तो कीमत को लेकर ही थी. इसलिए, थोक मूल्य में गिरावट दर्ज की गई, जिसके लिए हम तैयार थे.''
हालांकि, नेचुरल डायमंड काउंसिल के सीईओ डेविड केली रिटेलर्स के लिए एलजीडी के बिजनेस मॉडल को लेकर आश्वस्त नहीं हैं. वे कहते हैं, ''असली हीरे से जो लाभ मिलता है, उसकी कोई तुलना नहीं हो सकती. कीमतों में गिरावट के साथ एलजीडी आभूषणों को बढ़ावा देने की खुदरा विक्रेताओं की इच्छा बाजार में इसकी संभावनाएं निर्धारित करेगी.'' आभूषणों में जड़े असली हीरों की खुदरा कीमतों पर 10 फीसद से अधिक प्रभाव नहीं पड़ा है, और खुदरा विक्रेताओं के लिए यह फायदे का सौदा बना हुआ है. गोलान का मानना है कि भले ही एलजीडी कंपनियों ने उपभोक्ताओं की पसंद को ध्यान में रखकर इस क्षेत्र में कदम रखा हो, लेकिन इस कारोबार में प्रासंगिक बने रहने के लिए उन्हें खुद को नए सिरे से तैयार करना होगा ताकि उपभोक्ताओं पर उनकी पकड़ी बनी रहे.
हालांकि, माधवन पूरी तरह इससे सहमत नहीं हैं क्योंकि उनका मानना है कि एलजीडी में असली हीरे की चमक वाली बात नहीं है. वे कंधे उचकाते हुए कहती हैं, ''लैब ने बने हीरों को जूतों या परिधानों की तरह ही देखा जाना चाहिए. जब कोई ब्रांडेड जूते या कपड़े खरीदता है, तो क्या उसे थोक बाजार में चमड़े या कपास की कीमत की परवाह होती है? एक उपभोक्ता के तौर पर वह कच्चे माल के लिए नहीं बल्कि ब्रांड के डिजाइन और गुणवत्ता पर भरोसा करके ही उसकी कीमत अदा करता है.'' माधवन उत्पाद से जुड़ी आकांक्षाओं और क्षमताओं को रेखांकित करते हुए कहती हैं कि केवल 5 फीसद महिलाओं ने ही कभी न कभी असली हीरा पहना है. वे उत्पाद के साथ जुड़ी आकांक्षाओं और संभावनाओं को रेखांकित कर रही थीं.
बहरहाल, हर किसी के मन में यही सवाल गूंज रहा है कि प्राकृतिक हीरे का भविष्य क्या होगा. केली का कहना है कि सवाल यह नहीं है कि क्या होगा बल्कि यह है कि असरी हीरों के बाजार में उछाल कब आएगा और 'हमेशा के लिए' स्थिरता आ जाएगी. उन्होंने बताया कि यह सब भावना या धारणा से नहीं, कारोबार के अर्थशास्त्र से जुड़ा है.
उन्होंने कहा, ''कम रिटर्न के कारण अगले पांच दशक में खदानें बंद होने लगेंगी तो आपूर्ति धीरे-धीरे कम होती जाएगी. अभी खनन पर निर्भर अफ्रीकी देश अंतत: कोई अन्य विकल्प खोज लेंगे. जल्द ही एलजीडी और असली हीरे एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करते नजर नहीं आएंगे.'' इसका आशय यह है कि प्राकृतिक हीरे खासकर बड़े पत्थर दुर्लभ और मूल्यवान संग्रह योग्य वस्तुओं में तब्दील हो जाएंगे और कला या प्राचीन वस्तुओं के समान अनमोल हो जाएंगे.
तब तक, यह अस्थिरता इसी तरह चलते रहने की संभावना है. ज्यादा कुछ दांव पर रखने वाले उद्योग छोटे खिलाड़ियों को बाहर करने में जुटे हैं और हजारों करोड़ रुपए का भंडार बनाए रखने में असमर्थ हैं. इससे हीरों को तराशने और चमकाने के काम के घंटों में कमी आ रही है. सोलंकी और उनकी पत्नी किरण जीवन में कुछ अच्छा होने की उम्मीद खोते जा रहे हैं, वहीं एक अन्य कारीगर दीपक घेटिया कोहिनूर बिल्डिंग के बाहर स्नैक्स बेचकर विपरीत परिस्थितियों से निबटने में जुटे हैं.
वे अभी भी पार्ट-टाइम हीरे चमकाने का काम करते हैं. वे बताते हैं, ''मेरी पत्नी घर पर घूघरा (गुजराती नाश्ता) बनाती है जिसे मैं गर्म करके अपनी मोटरसाइकिल के साथ जुड़े ठेले पर बेचता हूं. अगर सेठ (मालिक) मुझे बुलाते हैं तो मैं चार घंटे तक हीरे पॉलिश करने का काम कर लेता हूं और फिर छह घंटे या उससे अधिक समय तक स्नैक्स बेचता हूं. मेरा एक यूट्यूब चैनल भी है जिसमें मैं सूरत शहर की खबरों से जुड़ा कंटेंट बनाता हूं. बहुत जल्द मुझे गूगल से भी कुछ आमदनी होने की उम्मीद है.''
हीरा कारोबार में ऐतिहासिक संकट के बीच सोलंकी और घेटिया दो भिन्न पहलुओं की तरह हैं. बहरहाल, उद्योग की फीकी पड़ती चमक को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि हीरा शायद सदा के लिए नहीं रहेगा.
सुरेश सोलंकी, 30 वर्ष, हीरा पॉलिश करने वाले
कभी हर महीने 60,000 रुपए कमाते थे लेकिन पिछले छह महीने से छोटे-मोटे काम करके दिहाड़ी मजदूर के तौर पर 300 रुपए रोज कमा रहे हैं.
''पहले मैं रोज 60 हीरे पॉलिश करता था. यह संक्चया छह महीने पहले गिरकर 20 हो गई. अब हमें महीने में केवल पांच दिन यह काम करने के लिए बुलाया जाता है''
फीकी पड़ती चमक
> होलसेल प्राकृतिक हीरों की कीमतें इस साल करीब 30 प्रतिशत गिरीं जबकि लैब में बने हीरे (एलजीडी) के दाम 2018 के मुकाबले 70% तक नीचे आए.
> वैश्विक स्तर पर कच्चे और पॉलिश्ड हीरे की इन्वेंट्री ऐतिहासिक ऊंचाई पर बनी हुई है.
> नए और युवा उपभोक्ता एलजीडी पसंद कर रहे हैं.
> सस्ते एलजीडी ने अमेरिका में 15% प्राकृतिक हीरे के कारोबार पर कब्जा जमा लिया है. हर जगह ऐसे हालात दिख रहे हैं.
> चीन और हाँगकाँग से मांग महामारी के पहले के समय के स्तर से एक-तिहाई घट गई है; उपभोक्ताओं का झुकाव स्थिर निवेश विकल्प के तौर पर सोने की ओर बढ़ रहा है.
> खनन कंपनियों ने उत्पादन लक्ष्य वर्ष 2024 और 2025 के लिए 12-15% तक घटा दिया है.
> भारत में हीरा पॉलिश और कटिंग करने वाली कंपनियां कर्मचारियों के काम के घंटे घटा रही हैं और स्टाफ में भी कटौती कर रही हैं.