प्रधान संपादक की कलम से
संक्षेप में कहें तो स्त्री 2 एक दैत्याकार हिट है. प्रचंड से प्रचंड पटकथाओं में भी किसी ने हमारी पॉप संस्कृति में ऐसे मोड़ की कल्पना नहीं की होगी. मगर दर्शक दहशतजदा चीखों और अनियंत्रित ठहाकों के बीच बारी-बारी से डूबते-उतराते ऐसी एक फिल्म को धूमधाम से गले लगा रहे हैं

—अरुण पुरी
हिंदी फिल्में अपने दर्शकों से दिमाग अक्सर घर छोड़कर आने के लिए कहती हैं. वे बुरा भी नहीं मानते. मगर बॉलीवुड की ऐसी फिल्म की कल्पना कीजिए जिसमें ऐसा किरदार परदे पर आता है जिसके कंधों पर सिर नहीं है और वह आगे बढ़कर अपना कटा हुआ सिर बिस्तर के नीचे छिपा देता है.
यही नहीं, कल्पना कीजिए कि ऐसी फिल्म अब तक की दूसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म (नोट - यह अब सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म है) बन जाती है. बात इतनी बड़ी है कि यह भारतीय सिनेमा के इतिहास की व्यावसायिक रूप से सबसे कामयाब फिल्मों में से एक होकर पोडियम पर जगह बना सकती है.
संक्षेप में कहें तो यह दैत्याकार हिट है—अक्षरश:. प्रचंड से प्रचंड पटकथाओं में भी किसी ने हमारी पॉप संस्कृति में ऐसे मोड़ की कल्पना नहीं की होगी. मगर दर्शक दहशतजदा चीखों और अनियंत्रित ठहाकों के बीच बारी-बारी से डूबते-उतराते ऐसी एक फिल्म को धूमधाम से गले लगा रहे हैं. हम अमर कौशिक निर्देशित हॉरर-कॉमेडी फिल्म स्त्री 2: सरकटे का आतंक की बात कर रहे हैं.
अपनी विधा की यह अलहदा फिल्म भी नहीं है. इसी बिरादरी की एक और कम बजट की फिल्म मुंज्या जून में रिलीज होने के बाद धीरे-धीरे हिट हुई. नवंबर में भूल भुलैया 3 आने वाली है, जो इस तर्ज की फिल्मों का चलन शुरू करने वाली लोकप्रिय शृंखला का अगला संस्करण होगी. अचानक 2024 हॉरर-कॉमेडी फिल्मों का साल लगने लगा है. रोमांटिक कॉमेडी फिल्में फिलहाल बीते जमाने की बात लगती हैं.
ऐक्शन विधा की एक ब्लॉकबस्टर फिल्म के मुकाबले आंकड़े यह कहानी बेहतरीन ढंग से बयान करते हैं. पिछले साल एसआरके (शाहरूख खान) की जबरदस्त मनोरंजक फिल्म जवान 554 करोड़ रुपए बटोरकर बॉलीवुड की सर्वकालिक दूसरी सबसे बड़ी हिट बनी थी. महीने भर से भी कम वक्त में बॉक्स ऑफिस पर 530 करोड़ रुपए बटोरकर स्त्री 2 उसे पीछे छोड़ने पर आमादा है. यह अचानक और अप्रत्याशित नहीं हुआ. लोटपोट कर देने वाले हॉरर का माहौल बीते कुछ वक्त से बन रहा था.
जैसा कि नाम से पता चलता है, स्त्री 2 सीक्वेल है, जो कस्बाई भारत में पुराने ढर्रे की अलौकिक विपदा से लड़ते दोस्तों के समूह की कहानी को ठीक वहीं से उठाती है जहां इस फ्रेंचाइज के पहले संस्करण स्त्री (2018) ने उसे छोड़ा था. इसमें राजकुमार राव, श्रद्धा कपूर, पंकज त्रिपाठी आदि अदाकारों का भी वही जमावड़ा है. इस धूम-धड़ाके को दोहराने लायक समझा गया, यही इस बात का संकेत है कि यह बीज विचार कितना सुसाध्य है—शुरुआत में भले ही यह कितना भी दूर की कौड़ी लगता हो.
निर्देशक कौशिक इस उभरते रुझान की केंद्रीय शख्सियत बनकर उभरे हैं. दोनों स्त्री फिल्मों के बीच उन्होंने 2022 की लोकप्रिय हॉरर-कॉमेडी फिल्म भेड़िया का निर्देशन किया—जिसके पाशविक 'मुख्य किरदार' की जीती-जागती मूरत उनके सांताक्रूज दफ्तर की शोभा बढ़ा रही है. इन सभी फिल्मों के 'आभार' पर एक नजर डालिए और परदे के पीछे काम करने वालों के वही नाम दिखाई देंगे. ये सभी फिल्में अक्सर कौशिक के साथ मैडॉक फिल्म्स के दिनेश विजान ने प्रोड्यूस की हैं.
मैडॉक फिल्म्स धीरे-धीरे भारतीय हॉरर-कॉमेडी फिल्मों का चमत्कार बन रहा है. दरअसल, अगर आप 2021 की रूही को भी गिन लें तो स्त्री 2 इस खेमे की पांचवीं फिल्म है. इसे मैडॉक सुपर नेचुरल यूनिवर्स कहा जा रहा है. इस सृजन की एक और प्रमुख शख्सियत निरेन भट्ट हैं, जिन्होंने सिविल इंजीनियर से आईटी कंसल्टेंट बनने के बाद अब हॉरर-कॉमेडी फिल्मों के ख्याली प्रेतों को जगाने में मगन रहना अपना लिया है.
इनमें से ज्यादातर फिल्मों की कहानियां, संवाद और स्क्रीनप्ले उन्होंने ही गढ़े हैं, जिनमें दहशत के लम्हों को बीच-बीच में शब्दों के कौतुक, स्लैप्स्टिक और बेवकूफाना पॉप संस्कृति के इशारों के अलावा उस चीज से जोड़ा गया है जिसे वे "केले के छिलके" वाला हास्य कहते हैं. भट्ट कहते हैं, "हॉरर-कॉमेडी फिल्में दर्शकों की तुरत-फुरत प्रतिक्रिया उपजाने का माध्यम है. यह सामुदायिक अनुभव है. इसका पूरा आनंद लेने के लिए आप इसे दूसरों के साथ देखते हैं." तभी तो यह सिनेमाघरों में भीड़ बटोरने का अचूक नुस्खा है.
इन फिल्मों की एक और साझा लड़ी है. इनकी कहानियां भारतीय लोक कथाओं और मिथकों से ली गई हैं. स्त्री ने बेंगलूरू के इर्द-गिर्द फैली 1990 के दशक की एक शहरी किंवदंती उधार ली, मुंज्या ने सीजीआई का इस्तेमाल करके पीपल के पेड़ में रहने वाली महाराष्ट्रियन लड़के की आत्मा को जिंदा किया, तो भेड़िया अरुणाचल (जहां कौशिक ने शुरुआती साल बिताए) के एक मिथकीय इंसानी भेड़िये से प्रेरित है.
इसमें भट्ट "दृश्य रूपकों और व्यंग्य के माध्यम से" कोई न कोई सामाजिक संदेश पिरो देते हैं. मसलन, भेड़िया में भेड़िया मूलवासियों और बाहरी लोगों के बीच टकराव और तीव्र औद्योगिकीकरण के सौजन्य से छीजते जंगलों को छूने का माध्यम है. कौशिक कहते हैं, "आपको दर्शकों को आईना दिखाना होता है, पर संदेश उन्हें डांटे-फटकारे या उन पर चीखे-चिल्लाए बिना देना होगा." इसके बजाए मैडॉक का तरीका मौज-मस्ती के ढेर सारे झोंके के साथ लोटपोट कर देने वाली आदिम भावनाओं से उन्हें नम्र बनाना है.
इस हफ्ते, जब स्त्री 2 हंसी और चीत्कार के साथ बॉक्स ऑफिस के रिकॉर्ड तोड़ रही है, डिप्टी एडिटर सुहानी सिंह असल जिंदगी के हॉरर और कॉमेडियों से हमें मोहलत देते हुए हॉरर-कॉमेडी फिल्मों की नई विधा पर आवरण कथा जितनी लंबी और संपूर्ण नजर डाल रही हैं. पश्चिम के विपरीत हॉरर फिल्में बॉलीवुड की मुख्यधारा का कभी प्रमुख हिस्सा नहीं रहीं. इस विधा की बड़ी हिट फिल्में ज्यादातर नाच-गानों, प्रतिशोध की महागाथाओं, पारिवारिक ड्रामों और बेशक रोमांस—चाहे वह ट्रैजिक हो या कॉमिक—के पुराने फॉर्मूलों के इर्द-गिर्द घूमती रही हैं.
सफेद साड़ियां पहने धुंध में भटकती कुछ खूबसूरत महिलाएं डराती थीं. द एक्जोरसिस्ट या जॉज की टक्कर की कोई हिंदी फिल्म नहीं है. भूत-प्रेत की फिल्मों की तरफ रामगोपाल वर्मा के गुमराह रुख को छोड़ दें, तो रामसे ब्रदर्स की तरफ से पेश सिनेमा एकमात्र अपवाद था, जिनकी दोयम हॉरर फिल्में बेशक गैर इरादतन मजेदार हो सकती थीं. इस बार यह इरादतन और असल है. विश्वस्तरीय वीएफएक्स स्टूडियो के बूते शानदार निर्माण के साथ हॉरर हंसते-हंसते खजाना भर रहा है.
तो जाइए और इस नई विधा को परखिए, लेकिन पॉपकॉर्न गटकते हुए दम न घोंट लीजिएगा!
— अरुण पुरी, प्रधान संपादक और चेयरमैन (इंडिया टुडे समूह)