क्या भारत 2070 तक अपने 'नेट जीरो' कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल कर पाएगा?

देश 2070 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने की दिशा की ओर बढ़ रहा. लेकिन उसे हरित ऊर्जा की आपूर्ति में दुनिया में अगुआ कहलाने के लिए अपने प्राकृतिक संसाधनों और अक्षय ऊर्जा उत्पादन इन्फ्रास्ट्रक्चर का लाभ उठाने की दरकार

अक्षय ऊर्जा की ओर/सांकेतिक तस्वीर
अक्षय ऊर्जा की ओर/सांकेतिक तस्वीर

यकीनन भारत खुद ही नहीं, दूसरों को भी प्रदूषण-मुक्त या हरित भविष्य की ओर बढ़ने को प्रेरित कर सकता है. दरअसल, भारत कुल मात्रा के मामले में कार्बन उत्सर्जन करने वाला दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश भले हो, मगर इसका प्रति व्यक्ति ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन भी सबसे कम है. अब यह अपने प्रतिबद्ध लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में तेज कदम बढ़ा रहा है, ताकि देश की 50 फीसद ऊर्जा गैर-कार्बन स्रोतों से हासिल हो और 2030 तक 500 गीगावाट से अधिक प्रदूषण-मुक्त स्रोतों से बिजली उत्पादन हो.

इतना ही नहीं, भारत अपने राष्ट्रीय निर्धारित योगदान या एनडीसी को पूरा करने में ब्रिटेन और जर्मनी सरीखे विकसित देशों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन कर रहा है. असल में, इन दोनों यूरोपीय देशों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं पर दबाव के मद्देनजर अपने लक्ष्य घटा दिए हैं. भारत की योजना 2070 तक बिल्कुल शून्य उत्सर्जन के पैमाने को छू लेने की है, जो हाल ही में वैश्विक जलवायु परिवर्तन बैठक में निर्धारित लक्ष्य है.

बस यहीं से भारत की यात्रा थोड़ी पेचीदा होने वाली है. दरअसल 2047 तक हमारी ऊर्जा की जरूरतें दोगुनी होने की उम्मीद है. देश में बिजली की अधिकतम मांग फिलहाल के 245.2 गीगावाट से बढ़कर 2031-32 में 400 गीगावाट तक पहुंचने का अनुमान है. फिर हरित ऊर्जा महंगी भी है. भारत इसके उत्पादन को सस्ता बनाने के लिए टेक्नोलॉजी पर आश्रित है.

ऊपर से समय-सीमा का भी मामला है. जैसा कि चेक-कनाडाई वैज्ञानिक तथा नीति विश्लेषक वाक्लाव स्मिल कहते हैं, "एक प्रमुख ईंधन से बड़े पैमाने पर दूसरे में बदलाव में आम तौर पर 50-60 साल लगते हैं. इसके लिए एक नहीं, कई पीढ़ियों के पक्के इरादों की दरकार होगी." फिलहाल उपलब्ध लगभग सभी वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों से उत्पादन के लिए भारत अहम कच्चे माल और मशीनरी के आयात पर निर्भर है, जबकि चीन महत्वपूर्ण खनिजों और 'रेयर अर्थ' का अपरिहार्य स्रोत बन गया है.

अहमदाबाद में सेंटर ऑफ एन्वायरनमेंट एजुकेशन के निदेशक कार्तिकेय साराभाई कहते हैं, "जवाब हरित संसाधनों के मामले में आत्मनिर्भरता में निहित है." हमें देश में उत्पादन के क्षेत्र में बड़ी अर्थव्यवस्था तैयार करके स्वदेशी अनुसंधान और विकास (आरऐंडडी) में भी निवेश करना चाहिए, ताकि नई विकसित तकनीकों में बदलाव के लिए अतिरिक्त खर्च की भरपाई संभव हो सके.

सरकार भी इसी दिशा में सोच रही है और इसी आधार पर नीतियां तैयार कर रही है. सीईईडब्ल्यू (ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद) में प्रौद्योगिकी भविष्य कार्यक्रम के वरिष्ठ कार्यक्रम प्रमुख ऋषभ जैन कहते हैं, "भारत 2009 से ही स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों पर तेजी से अमल कर रहा है. भारत के प्राकृतिक संसाधनों और संपदाओं की बदौलत सौर, पवन (तटीय और तट से कुछ दूर), पनबिजली, जैव ऊर्जा और हरित हाइड्रोजन जैसी अधिकांश स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों पर अमल की अपार संभावनाएं हैं. बड़े पैमाने पर उत्पादन से घरेलू स्तर पर प्रमुख घटकों के निर्माण के लिए आर्थिक मौके पैदा हो सकते हैं जिससे नई नौकरियां और आर्थिक विकास हो सकता है.

वे आगे बताते हैं कि चीन पूरी दुनिया के लिए स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों का निर्माण कर रहा है, मगर कई देश अब आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने की कोशिश कर रहे हैं. भारत इस मौके का लाभ उठा सकता है और इन उत्पादों की आपूर्ति के लिए विकसित देशों से साझेदारी को औपचारिक रूप दे सकता है. मूल्य शृंखलाओं के उन हिस्सों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है जहां यह सरकारी मदद के बिना वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी है या हो सकता है, जिससे इस क्षेत्र की दीर्घकालिक स्थिरता तय होगी.

नई दिल्ली में सेंटर फॉर सोशल ऐंड इकोनॉमिक प्रोग्रेस के सीनियर फेलो राहुल टोंगिया कहते हैं कि निर्यात में सिर्फ कमाई के लक्ष्यों की बजाए रणनीति पर जोर देना चाहिए.

वे कहते हैं, "घरेलू बाजार में खुद ही बहुत मांग है, और हमें उस मांग पर पहले तवज्जो देने का लक्ष्य रखना चाहिए, मगर निर्यात का फायदा भी महत्वपूर्ण है और आदर्श स्थिति तो यह है कि दोनों पर बराबर ध्यान देना चाहिए. भारत को केवल सबसे सस्ते उत्पादों के बजाए पूरी आपूर्ति शृंखला में तेजी लाने के लिए महत्वपूर्ण पूर्ण-विकसित सेवाओं का निर्यात करने वाले खिलाड़ी के रूप में उभरने का लक्ष्य रखना चाहिए. कई देश चीन+1 की रणनीति अपना सकते हैं, लेकिन इसे सिर्फ इस बात पर कायम नहीं रखा जा सकता कि हम अपनी लागत कम रखकर लाभ ले सकते हैं. यह बेहद मुश्किल है. चीन की क्षमता के मद्देनजर उसे लागत के मामले में हराना मुश्किल है."

कोयले का भारी बोझ

जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन में विकसित देशों की नाराजगी के बावजूद भारत ने दो-टूक कहा है कि वह कोयले का उपयोग नहीं छोड़ पाएगा, बल्कि उसे कम करेगा क्योंकि देश का निम्न आय वर्ग अतिरिक्त खर्च का बोझ नहीं उठा सकता. भारत के बिजली उत्पादन में कोयले का योगदान करीब 70 फीसद है, सो जोर ताप बिजलीघरों की दक्षता बढ़ाने और कोयला खनन से ढुलाई और भंडारण तक में उत्सर्जन कम करने के लिए नई टेक्नोलॉजी के अमल पर है. सरकार ने कोयला गैसीकरण मिशन जैसी स्वच्छ कोयला पहल भी शुरू की, जिसका लक्ष्य 2030 तक 10 करोड़ टन कोयले को गैसीकृत करना है.

इसका मतलब होगा सुपरक्रिटिकल और एडवांस्ड अल्ट्रा-सुपरक्रिटिकल (एयूएससी) तकनीकों को अपनाना. एयूएससी प्लांट पारंपरिक कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की तुलना में अधिक तापमान और दबाव पर काम करते हैं जिससे ताप बिजली दक्षता में 5-10 फीसद तक सुधार होता है. इस साल बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ऐलान किया कि नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन (एनटीपीसी), भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (बीएचईएल) और इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च की ओर से संयुक्त रूप से विकसित स्वदेशी तकनीक से एनटीपीसी और बीएचईएल 800 मेगावाट का एयूएससी थर्मल पावर प्लांट स्थापित करेंगे. अदाणी समूह भी एयूएससी में बड़े पैमाने पर निवेश की योजना बना रहा है.

सूरज की उम्मीद भरी किरणें

भारत के लिए सबसे अच्छे विकल्पों में एक बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा का उपयोग है. इस क्षेत्र में मोदी सरकार ने अच्छा काम किया है. 30 अप्रैल तक सौर ऊर्जा की स्थापित क्षमता 82.64 गीगावॉट है, जो कुल बिजली का 19 फीसद और देश में हरित ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है. 2030 तक 450 गीगावॉट क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य है. चुनौती यह है कि हम उत्पादन के लिए अहम कच्चे माल और मशीनरी के लिए आयात पर निर्भर हैं. अभी चीन से फोटोवोल्टिक पैनलों के उत्पादन के लिए 70 फीसद तक कच्चा माल और लगभग सभी मशीनरी आयात की जाती है.

सौर ऊर्जा के लिए खुली जगह की जरूरत होती है, पर देश में जमीन पर काफी दबाव है. साराभाई जैसे विशेषज्ञ कहते हैं कि देश को भंडारण और ढुलाई की लागत कम करने के लिए बिजली उत्पादन के विकेंद्रीकरण पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और उत्पादन क्षमता को बढ़ाना चाहिए. रिलायंस इंडस्ट्रीज ने हाल में इस साल अपनी पहली सौर गीगा फैक्ट्री चालू करने की योजना की घोषणा की. सौर ऊर्जा को बड़े पैमाने पर अपनाने के लिए सरकार ने फरवरी 2024 में प्रधानमंत्री सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना की घोषणा की, जिसका लक्ष्य दस लाख सौर छतों को स्थापित करना है, जिससे लोगों को हर महीने 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली मिल सके.

खेती-किसानी के अवशेष से निकलने वाले इथेनॉल जैसे जैव ईंधन देश की आत्मनिर्भरता की खोज में एक और अहम संसाधन बन सकते हैं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में. मुंबई में ईक्यूब इन्वेस्टमेंट एडवाइजर्स में क्लाइमेट चेंज ऐंड सस्टेनेबिलिटी सर्विसेज की चीफ एग्जीक्यूटिव रीता रॉयचौधरी कहती हैं, "भारत इस क्षेत्र में नेतृत्व करने के लिए बहुत सारे कच्चे माल, विशेषज्ञता और क्षमता से संपन्न है. इसके लिए क्षमता और मांग स्थानीय तथा राज्य स्तर पर बनाई जानी चाहिए. चुनौती यह है कि पूरे देश में कच्चा माल अलग-अलग किस्म का है. मूल्य शृंखला में जरूर कमाई के मौके हैं."

वे कहती हैं कि अगर सरकार इसके अभीष्ट उपयोग को प्रोत्साहित करती है तो इस क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा क्योंकि निजी कंपनियां इसमें आएंगी और स्थानीय खिलाड़ी बढ़ेंगे. भारत ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस का भी हिस्सा है, जो इसे नई तकनीक तक पहुंच प्रदान करता है. बायोमास हाइड्रोजन का भी स्रोत है, जिसका उपयोग हरित ऊर्जा पैदा करने के लिए भी किया जा सकता है.

ग्रीन हाइड्रोजन परियोजना

जीवाश्म ईंधन, बायोमास और जल तथा अक्षय ऊर्जा के मिश्रण से प्राप्त हाइड्रोजन भविष्य के सबसे आशाजनक हरित ईंधन के रूप में उभरा है. खासकर ग्रीन हाइड्रोजन, जो अक्षय ऊर्जा से पैदा होता है. फिलहाल, प्राकृतिक गैस हाइड्रोजन उत्पादन का प्राथमिक स्रोत है और यह वैश्विक हाइड्रोजन उत्पादन में लगभग 75 फीसद का योगदान देता है, जो सालाना लगभग 70 मीट्रिक टन है.

प्रचुर मात्रा में अक्षय ऊर्जा संसाधन, स्थायी ग्रिड इन्फ्रास्ट्रक्चर, विशाल तटरेखा और बंदरगाह, मजबूत इंजीनियरिंग और निर्माण क्षमताएं, और सहायक कानून भारत के लिए दुनिया को ग्रीन हाइड्रोजन निर्यात करने के लिए अनुकूल स्थिति पैदा करते हैं. निजी क्षेत्र के दिग्गजों ने ग्रीन हाइड्रोजन संयंत्रों में बड़े पैमाने पर निवेश की घोषणा की है. इसलिए अदाणी ग्रीन ने ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन सुविधाओं के निर्माण, प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने और आवश्यक बुनियादी ढांचे की स्थापना में 4.15 लाख करोड़ रुपए के निवेश की घोषणा की है. इसी तरह, रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने इसके लिए लगभग 80,00 करोड़ रुपए का वादा किया है.

साल 2022 में शुरू किए गए भारत के ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का लक्ष्य प्रति वर्ष 5 मीट्रिक टन (एक टन हाइड्रोजन लगभग 33 मेगावाट प्रति घंटा और दस लाख टन हाइड्रोजन लगभग 33 टेरावाट प्रति घंटे) तक पहुंचना है. इसके लिए भारत को ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए 125 गीगावाट अक्षय ऊर्जा की अतिरिक्त क्षमता की जरूरत होगी.

अक्षय ऊर्जा मंत्रालय और ईवाइ की मई 2024 में 'भारत की ग्रीन हाइड्रोजन क्रांति' नामक रिपोर्ट में कहा गया, "भारत में पंप हाइड्रो स्टोरेज (पीएचएस) है, जो बड़े पैमाने पर 'वॉटर बैटरी’ की तरह काम करता है, यह ऑफ-पीक घंटों के दौरान अक्षय स्रोतों (जैसे सौर और पवन) से अतिरिक्त ऊर्जा संग्रहीत करता है और ऊंची मांग के दौरान उसे वापस छोड़ता है.

उससे ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लिए अक्षय ऊर्जा की चौबीसों घंटे उपलब्धता में योगदान मिलता है.’’ राष्ट्रीय विद्युत योजना 2022 ने 2032 तक 18.8 गीगावाट पीएचएस की जरूरत का अनुमान लगाया है. पीएचएस के साथ अक्षय ऊर्जा की उपलब्धता को सक्षम करने के लिए बड़े पैमाने पर बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली विकसित की जा रही है.

फिर भी चुनौतियां बहुत हैं. ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लिए मुख्य उपकरण इलेक्ट्रोलाइजर को कुशलतापूर्वक संचालित करने और नुक्सान को रोकने के लिए स्थिर बिजली आपूर्ति की जरूरत होती है. समस्या यह है कि ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन मुख्य रूप से अक्षय स्रोतों से किया जाता है, इसलिए उत्पादन में उतार-चढ़ाव उत्पादन को बाधित कर सकता है, जिसके लिए ग्रिड के प्रभावी प्रबंधन की जरूरत होती है. अन्य बाधाएं उत्पादन, भंडारण और ढुलाई की उच्च लागत हैं, साथ ही इलेक्ट्रोलिसिस के लिए पानी की बड़े पैमाने पर जरूरत भी है, जो इसके उत्पादन के लिए सबसे उन्नत तकनीक है.
भारत में हरित भविष्य के लिए संकल्प और संसाधन हैं. बस इसके लिए क्रियान्वयन को आगे बढ़ाने की जरूरत है. 

खास पहलू

- भारत में बिजली उत्पादन में कोयले का योगदान करीब 70 फीसद है, इसलिए जोर ताप बिजलीघरों की दक्षता को बढ़ाने और तकनीक की मदद के जरिए कोयला खनन, भंडारण और परिवहन में उत्सर्जन को कम करने पर है. 

- सौर ऊर्जा उत्पादन का विकेंद्रीकरण करने की दरकार ताकि भंडारण/परिवहन की लागतों में कमी की जा सके.

- ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में स्थिर बिजली आपूर्ति की जरूरत होती है. ऐसे में हाइड्रोजन ऊर्जा के उत्पादन के लिए ग्रिड को स्थिर बनाए रखना जरूरी.

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