फास्टटैग के बाद अब क्या है मोदी सरकार का जीएनएसएस जो बनेगा सौ टोलों की एक दवा?

शुरुआत में जीएनएसएस को दिल्ली और मुंबई समेत 5,000 किमी लंबे विभिन्न हाइवे पर लागू करने की योजना है

जीएनएसएस-आधारित टोल व्यवस्था के बाद टोल प्लाजा के पास ऐसे नजारे नहीं दिखेंगे
जीएनएसएस-आधारित टोल व्यवस्था के बाद टोल प्लाजा के पास ऐसे नजारे नहीं दिखेंगे

दरअसल, मोदी सरकार ने फास्टटैग के जरिए भारत के हाइवे-टोल संग्रह में काफी सुधार किया था. उसके पांच साल बाद सरकार अब अपने अगले महत्वाकांक्षी कदम ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (जीएनएसएस)-आधारित टोल वसूली प्रणाली की तैयारी कर रही है. इसका मकसद यात्रियों और लंबी दूरी के ड्राइवरों को निर्बाध और स्वचालित टोल वसूली की सुविधा देते हुए मानवयुक्त टोल बूथों को पूरी तरह खत्म करना है.

जीएनएसएस-आधारित यह तकनीक उपग्रहों के जरिए वाहनों को ट्रैक करेगी और की गई यात्रा की सटीक दूरी के आधार पर शुल्क लगाएगी. यह पक्का करती है कि उपयोगकर्ता हाइवे के केवल उसी हिस्से के लिए भुगतान करें जिसका वे उपयोग करते हैं. मानवयुक्त बूथों को खत्म करने से वाहनों को हाइवेज पर निर्बाध प्रवेश करने और बाहर निकलने की अनुमति मिलेगी और ईंधन क्षमता में सुधार होगा.

यह प्रणाली उपग्रहों के एक नेटवर्क का इस्तेमाल करती है. वह नेटवर्क वाहन में लगे जीएनएसएस रिसीवर को सिग्नल भेजता है जो विभिन्न उपग्रहों से संकेतों को त्रिकोणमिति से मापकर वाहन के सटीक स्थान, गति और दिशा की गणना करता है. इस तरह से यह प्रणाली सटीक रूप से निर्धारित कर सकती है कि मोटर चालकों ने टोल रोड पर कितनी दूरी तय की और उसके हिसाब से उनसे शुल्क वसूला जा सकता है.

नई प्रणाली का इस्तेमाल करने के लिए ड्राइवरों को अपने वाहनों को पंजीकृत करना होगा और अपने बैंक खातों को लिंक करना होगा. इसके अलावा, मौजूदा फास्टटैग को जीपीएस-आधारित नई टोल वसूली प्रणाली से जोड़ना होगा. वाहनों और उपग्रहों के बीच संचार सुनिश्चित करने के लिए हाइवे के किनारे दूरसंचार टावर लगाए जाएंगे.

सरकार ने चालू बजट सत्र के दौरान संसद को बताया कि इस प्रणाली की पायलट स्टडी कर्नाटक में एनएच-275 के बेंगलूरू-मैसूरू खंड और हरियाणा में एनएच-709 के पानीपत-हिसार खंड पर की गई है. शुरुआत में इसे दिल्ली और मुंबई समेत 5,000 किमी लंबे विभिन्न हाइवे पर लागू करने की योजना है. इस हफ्ते इंटरनेशनल हाइवे टोल-समाधान कंपनियों सहित कुल 15 कंपनियों ने टोल चार्जर सॉफ्टवेयर बनाने के लिए अपनी रुचि दिखाई है. मंत्रालय ने इसकी निगरानी के लिए एक शीर्ष समिति का गठन किया है.

वैसे, इसे लागू करना चुनौतियों से भरा है. ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल टावर कनेक्टिविटी चिंता का विषय है. डेटा सुरक्षा एक अन्य मुद्दा है क्योंकि यह प्रणाली बड़ी संख्या में उपयोगकर्ताओं की जानकारी संभालेगी. यह तकनीक टोल चोरी और उपयोगकर्ताओं को सटीक रूप से ट्रैक करने तथा चार्ज वसूलने में कितना सक्षम होगी, इसे लेकर अंदेशे भी हैं.

शुरुआत में इसे वाणिज्यिक वाहनों पर आजमाया जाएगा और निजी कारों को विभिन्न चरणों में शामिल किया जाएगा. इस प्रणाली में एक केंद्रीकृत टोल चार्जर भी होगा, जो वाहनों में लगे ऑन-बोर्ड इकाइयों (ओबीयू) से डेटा हासिल करके टोल गणना करेगा. सरकार के कंसेप्ट पेपर में कहा गया है कि जीएनएसएस प्रणाली मौजूदा फास्टैग इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ एकीकृत होगी, शुरुआत में टोल प्लाजा पर निर्दिष्ट जीएनएसएस लेन का इस्तेमाल करेगी और आखिरकार सभी लेन को जीएनएसएस-आधारित टोल वसूली सुविधा में परिवर्तित कर देगी. इसके प्रमुख हितधारकों में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई), भारतीय राजमार्ग प्रबंधन कंपनी लिमिटेड (आईएचएमसीएल) और बैंक शामिल हैं.

इस व्यवस्था को शुरू करने में थोड़ा वक्त लगेगा. इस प्रोजेक्ट को लागू करने वाली एजेंसी आइएचएमसीएल के अध्यक्ष विशाल चौहान कहते हैं, "हम एक समयसीमा के हिसाब से चल रहे हैं. टोल चार्जर इकाई की तैनाती के लिए अनुरोध प्रस्ताव इसी महीने जारी किया जाएगा. दिसंबर तक यह इकाई स्थापित हो जाएगी...इस वित्तीय वर्ष के अंत तक, कुछ हिस्सों में पायलट प्रोजेक्ट शुरू हो जाएगा."

भारत में टोल विवादों से भरा मसला है. ऊंची टोल दरों की वजह से वाहन चालकों और प्लाजा कर्मचारियों के बीच अक्सर झड़प होती है. इसको लेकर सियासत भी खूब होती है. यह बात केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से बेहतर कोई नहीं जानता. जून में हितधारकों से बातचीत के दौरान गडकरी ने कहा, "सिस्टम में अंदरूनी लोग हैं...वे जानते हैं कि फास्टैग कैसे बंद करना है, कंप्यूटर कैसे बंद करना है." मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में लगभग 12.70 करोड़ वाहन हैं. मगर केवल 9 करोड़ लोग टोल का भुगतान करते हैं. गडकरी ने कहा, "लगभग 25 फीसद वाहन टोल का भुगतान नहीं कर रहे. वे सरकार से चोरी कर रहे हैं."

फिलहाल टोल राशि का 97 फीसद भाग टैग के जरिए के हासिल किया जा रहा है. सरकार को उम्मीद है कि जीएनएसएस से बाकी तीन फीसद भी वसूला जा सकता है. सरकार पूरे भारत में 1,409 टोल प्लाजा से रोजाना लगभग 194 करोड़ रुपए कमाती है.

मगर कुछ सवालों के जवाब दिए जाने बेहद जरूरी हैं. मसलन, सभी वाहन डेटा और गोपनीयता की सुरक्षा का क्या किया जाएगा? एनएचएआई ने भारत के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे से कानूनी राय लेने के बाद यह फैसला किया है कि उपयोगकर्ता की सहमति के बाद ही उनके वाहन को टोल प्लाजा के जियो-जोन में ट्रैक किया जाएगा.

मगर ड्राइविंग व्यवहार सबसे चुनौतीपूर्ण पहलू है. नई प्रणाली का लक्ष्य मल्टी लेन फ्री फ्लो (एमएलएफएफ) है, जिसका मतलब है कि टोल वाली सड़क पार करते वक्त वाहन नहीं रुकेंगे. मगर प्रणाली को दूर से कैसे पता चलेगा कि किस वाहन में ओबीयू नहीं है, या वॉलेट में कम बैलेंस है? और गैर-जीएनएसएस वाहनों को निर्दिष्ट लेन में प्रवेश करने से कैसे रोका जाएगा? हालांकि इन चीजों पर अधिकारी विचार-विमर्श कर रहे हैं.

इंटरनेशनल ट्रांसपोर्ट फोरम, इंडिया के अखिलेश श्रीवास्तव कहते हैं, "हम आंख मूंदकर पश्चिम की नकल नहीं कर सकते क्योंकि उनका पूरा क्रियान्वयन हमारे पायलट आजमाइश के बराबर होता है. हमें अपनी विशिष्ट जरूरतों के आधार पर अपनी खुद की प्रणाली विकसित करनी की जरूरत है."

कुल मिलाकर, संदेह बरकरार है. मगर सरकार ने इस प्रक्रिया की शुरुआत कर दी है ताकि टोल प्लाजा और उन पर लगने वाली लंबी कतारें अतीत की बात हो जाएं.

टोल का नया भविष्य

> जीएनएसएस टोलिंग ऐप को डाउनलोड करके उपयोगकर्ता अपने वाहन को पंजीकृत कर सकते हैं और ऑन-बोर्ड यूनिट (ओबीयू) इंस्टॉल कर सकते हैं, जो सैटेलाइट टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करता है

> यह प्रणाली प्रवेश/निकास बिंदुओं की गणना करके यात्रा को ट्रैक कर सकती है

> जीएनएसएस प्रणाली दूरी-आधारित टोलिंग का इस्तेमाल करती है और यात्रियों की ओर से की गई यात्रा की एकदम सही दूरी के लिए चार्ज करती है. लिंक किए गए बैंक खाते से टोल राशि कट जाती है

- अभिषेक जी. दस्तीदार

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