नई लोकसभा की वे महिला सांसद, जिन्होंने तय किया फर्श से अर्श तक का सफर
महिला जनप्रतिनिधि, जिन्होंने जमीनी स्तर पर काम किया और राष्ट्रीय स्तर पर अपना मुकाम बनाने में सफलता हासिल की

पहली-पहली बार-महिला आंदोलकारी
गेनीबेन ठाकोर, 48 वर्ष, कांग्रेस, बनासकांठा, गुजरात
उन्होंने वोटों के मामले में कोई बड़ा रिकॉर्ड न बनाया हो, मगर गेनीबेन ने गुजरात में लगातार तीसरी बार भाजपा की एकतरफा जीत को अकेले रोक दिया. राज्य में जीतने वाली कांग्रेस की इस एकमात्र उम्मीदवार ने अपने चुनाव अभियान के लिए क्राउडफंडिंग (50 लाख रुपए जुटाए) के अलावा बाइक रैलियों में हिस्सा लेने और खटला परिषदों और छोटी-छोटी सभाओं को संबोधित करने में दिन के 18-18 घंटे तक बिताए. मतदान के दिन उन्होंने अपने क्षेत्र के सभी बूथों पर निरंतर नजर बनाए रखी. उनकी मेहनत रंग लाई और उन्होंने अपने ओबीसी समुदाय और ताकतवर डेयरी क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले अगड़े चौधरी वर्ग से समर्थन के बलबूते अपनी प्रतिद्वंद्वी और भाजपा उम्मीदवार रेखा चौधरी को हराया. जमीनी स्तर की कार्यकर्ता रहीं ठाकोर ने 2012 में अपना पहला विधानसभा चुनाव वाव से लड़ा मगर सफल नहीं हुईं. 2017 में उन्होंने भाजपा के डेयरी दिग्गज शंकर चौधरी को हराया. उन्होंने 2022 में भी वही सफलता दोहराई और तबसे लगातार अपनी पैठ मजबूत करती जा रही हैं.
उनके पिता और भाई, दोनों ही कांग्रेस नेता थे, जिनकी 2005 में माओवादियों ने हत्या कर दी थी. अरुणा के पति और ससुराल के दो अन्य सदस्य भी विधायक रह चुके हैं. उनका अपना राजनैतिक सफर 1996 में शुरू हुआ, जब महबूबनगर लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरीं, मगर उन्हें हार का सामना करना पड़ा. कुछ शुरुआती असफलताओं के बाद 2019 में भगवा पार्टी में शामिल होने से पहले दो बार कांग्रेस विधायक रहीं और मंत्री पद भी संभाला. पदयात्राएं और भूख हड़ताल करने में वे आगे रही हैं और महबूबनगर में खासकर किसानों की सिंचाई की समस्याओं को लेकर मुखर रही हैं. अब वहां से वे 1952 के बाद निर्वाचित होने वाली पहली महिला सांसद बन गई हैं. वामशी चंद रेड्डी को हराना इसलिए और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इस निर्वाचन क्षेत्र की सभी विधानसभा सीटें कांग्रेस के पास हैं.
लता वानखेड़े, 54 वर्ष, भाजपा, सागर, मध्य प्रदेश
लता मूल रूप से छिंदवाड़ा की रहने वाली हैं और स्थानीय भाजपा नेता और ठेकेदार नंदकिशोर वानखेड़े से शादी के बाद सागर आ गई थीं. उनके सियासी सफर की शुरुआत 1995 में मकरोनिया गांव की पंच के तौर पर हुई, जिसके बाद वे सरपंच (2010-15) चुनी गईं. और, अब कांग्रेस के चंद्रभूषण बुंदेला को बड़े अंतर के साथ हराकर उन्होंने एक लंबी लकीर खींच दी है. वानखेड़े कुर्मी समुदाय से ताल्लुक रखती हैं. वे राज्य भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं और उन्होंने महिलाओं के मुद्दों पर कई विरोध प्रदर्शन किए हैं.
कमलजीत सहरावत, 51 वर्ष, भाजपा, पश्चिमी दिल्ली
सहरावत ने उस वक्त पत्रकारों से कहा था, ''मोदी है तो मुमकिन है'', साथ ही दावा किया कि उन्हें टिकट मिलने की जानकारी टीवी न्यूज चैनलों से मिली. दक्षिण दिल्ली नगर निगम की पहली महिला प्रमुख (2017-19) और पूर्व राज्य महिला मोर्चा प्रमुख रहीं सहरावत दिवंगत पूर्व सीएम साहिब सिंह वर्मा के बेटे और क्षेत्र के तत्कालीन सांसद प्रवेश वर्मा की जगह पार्टी उम्मीदवार बनाई गई थीं. वे कांग्रेस के पूर्व दिग्गज और आप उम्मीदवार महाबल मिश्रा को करीब 2,00,000 मतों से हराकर भाजपा के भरोसे पर खरी उतरीं.
कमलेश जांगड़े, 46 वर्ष, भाजपा, जांजगीर-चांपा (एससी), छत्तीसगढ़
वर्ष 2019 में टिकट से वंचित रह गईं कमलेश को इस बार मौजूदा सांसद गुजराम अजगले की जगह उम्मीदवार बनाया गया और उन्होंने यह सीट करीब 60,000 मतों से जीत ली. राज्य के सबसे बड़े दलित समुदाय सतनामी से ताल्लुक रखने वाली कमलेश हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर हैं. उन्होंने साल 2002 में एबीवीपी सदस्य के तौर पर राजनीति में कदम रखा. साल 2005 से 2015 के बीच दो बार अपने गांव मसानिया कलां की सरपंच रहीं. उन्होंने अपने पैतृक जिले सक्ती में भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष के तौर पर भी काम किया है.
स्मिता वाघ, 59 वर्ष, भाजपा, जलगांव, महाराष्ट्र
अमलनेर निवासी स्मिता ने सियासी सफर की शुरुआत संघ के छात्र संगठन एबीवीपी से की और नॉर्थ महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी के विरोध-प्रदर्शनों में सक्रिय भूमिका निभाई. उनके पिता पंचायत समिति के अध्यक्ष थे और स्मिता ने 1990 के दशक में भाजपा के लिए काम करना शुरू किया. महाराष्ट्र विधान परिषद में उन्होंने एक कार्यकाल पूरा किया और राज्य महासचिव भी रहीं. उन्होंने 2019 में भी जलगांव सीट के लिए दावेदारी जताई थी मगर पार्टी ने उनकी जगह उन्मेष पाटील को तरजीह दी. इस बार भाजपा ने स्मिता को उम्मीदवार बनाया, तो नाराज होकर पाटील शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) में शामिल हो गए. पाटील के सहयोगी करण पवार ने शिवसेना (यूबीटी) उम्मीदवार के तौर पर स्मिता के खिलाफ चुनाव लड़ा मगर वे करीब 2,50,000 वोटों से हार गए.
प्रतिभा धानोरकर, 38 वर्ष, कांग्रेस, चंद्रपुर, महाराष्ट्र
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह हारने के बावजूद राज्य में सिर्फ एक ही उम्मीदवार ने पार्टी का झंडा बुलंद रखा था. वे थे सुरेश धानोरकर जिन्होंने कोयला एवं वन बेल्ट में आने वाली चंद्रपुर सीट से तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हंसराज अहीर को हराया था. पूर्व शिवसैनिक रहे सुरेश धानोरकर का 2023 में निधन हो गया. इस बार उनकी विधवा और वरोरा सीट से विधायक प्रतिभा ने भाजपा के दिग्गज उम्मीदवार और वन मंत्री सुधीर मुनगंटीवार को हराकर बड़ी सफलता हासिल की. इस जीत में उनके कुनबी (किसान) समुदाय के बीच ध्रुवीकरण ने अहम भूमिका निभाई. धनोरकर परिवार इस क्षेत्र में खासा रुतबा रखता है और बताया जाता है कि चंद्रपुर में शराब कारोबार में उसकी बड़ी हिस्सेदारी है.
— अभिषेक जी. दस्तीदार और धवल कुलकर्णी