परदे के पीछे से निकले इन सांसदों ने लोकसभा जीतकर सबको चौंकाया
परदे के पीछे खासे जोशो-खरोश से काम करते पार्टी कार्यकर्ता, राजनेताओं के पति/पत्नियां, या राजनीति में कदम रखते फौजी. इस श्रेणी वाले नए सांसद अचानक सबकी नजरों में उभरे

विवेक 'बंटी' साहू, 45 वर्ष, भाजपा, छिंदवाड़ा, मध्य प्रदेश
वर्ष 1952 से कांग्रेस छिंदवाड़ा का आम चुनाव कभी नहीं हारी थी. मगर 45 वर्षीय विवेक साहू ने उसे बदल दिया और 2024 के लोकसभा चुनाव में छिंदवाड़ा की सीट को कांग्रेस से छीनकर इतिहास रच दिया. कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के गढ़ में उनके बेटे और मौजूदा सांसद नकुलनाथ को साहू ने 1,10,000 से भी ज्यादा वोटों से हराया. बी.कॉम. के पहले साल तक पढ़े साहू उर्फ 'बंटी' ने नवंबर, 2023 में कमलनाथ के खिलाफ छिंदवाड़ा से विधानसभा का चुनाव लड़ा और हार गए थे. मगर फिर भी भाजपा ने छिंदवाड़ा के अपने इस जिला प्रमुख में भरोसा बनाए रखा और उन्हें लोकसभा का टिकट दिया.
बापी हलदर, 37 वर्ष, तृणमूल कांग्रेस, मथुरापुर (अनुसूचित जाति), पश्चिम बंगाल
नदी किनारे बसे मथुरापुर को मछलीपालक परिवार से आने वाले 37 वर्षीय बापी हलदर के रूप में नया सांसद मिल गया है. साल 1998 में टीएमसी की शुरुआत से ही हलदर इस पार्टी से जुड़े रहे हैं. अलबत्ता अपना चुनावी सफर उन्होंने साल 2013 से शुरू किया जब वे स्थानीय ग्राम पंचायत में चुने गए. साल 2015 में वे पंचायत प्रधान बने और उन्होंने यही सीट साल 2018 में भी जीती. अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के अशोक पुरकायत पर जीत दर्ज करने के बाद हलदर ने कहा, "ममता बनर्जी ने इस बात को साबित कर दिया कि हमारी पार्टी में अगर कोई लोगों के लिए लड़ता है, उनके लिए काम करता है, तो मेरे जैसा जमीनी कार्यकर्ता भी सांसद बन सकता है."
कैप्टन विरियातो फर्नांडीस, 55 वर्ष, कांग्रेस, दक्षिण गोवा
असल में कांग्रेस की गोवा इकाई तकरीबन अमीबा की तरह टूटती-बंटती रही थी. पूर्व मुख्यमंत्री दिगंबर कामत और माइकल लोबो सरीखे दिग्गज नेता भाजपा के पाले में चले गए. ऐसे में कांग्रेस के लिए दक्षिण गोवा सीट को बनाए रखना बेहद जरूरी था. पार्टी ने वहां से 78 वर्षीय सांसद फ्रांसिस्को सरदिन्हो का टिकट काटकर भारतीय नौसेना के अफसर से एक्टिविस्ट बने कैप्टन विरियातो फर्नांडीस को उम्मीदवार बनाया. नौसैन्य इंजीनियर होने के नाते फर्नांडीस 1999 के करगिल युद्ध के दौरान सैन्य लामबंदी का हिस्सा थे. वे उस ऑपरेशन तलवार का भी हिस्सा थे जिसका मकसद पाकिस्तान के व्यापार रास्तों को बंद करना था. पहले ही सेवानिवृत्ति ले लेने के बाद वे गोएंचो आवाज नामक एनजीओ से जुड़े, और बाद में कांग्रेस में आ गए. 2022 में वे डाबोलिम विधानसभा सीट से हार गए. अब वे भाजपा की पल्लवी डेम्पो को हराकर संसद पहुंचे हैं. उनकी जीत में रोमन कैथोलिकों के समर्थन का भी योगदान है, जिनकी साल्सेट (मडगांव के आसपास के इलाके) में करीब 36 फीसद आबादी है. फर्नांडीस बैडमिंटन के खिलाड़ी भी हैं.
मंजू शर्मा, 64 वर्ष, भाजपा, जयपुर, राजस्थान
हवामहल विधानसभा क्षेत्र की नुमाइंदगी मंजू शर्मा के पिता भंवर लाल शर्मा ने 1977 से 1998 तक लगातार छह बार की थी. 2008 में मंजू यह सीट महज 580 वोटों से हार गईं. कनोडिया कॉलेज से पोस्ट ग्रेजुएट मंजू का जुएलरी का कारोबार था. वे पार्टी के कुछ पदों पर रहीं और भाजपा के लिए सुरक्षित मानी जाने वाली जयपुर सीट से सांसद रामचरण बोहरा की जगह उन्हें उम्मीदवार बनाया गया. इत्तफाकन राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा, उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी और प्रेम चंद बैरवा, ये सभी जिन विधानसभा क्षेत्रों की नुमाइंदगी करते हैं, वे इसी संसदीय क्षेत्र में हैं. मंजू ने कांग्रेस के पूर्व परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खचरियावास को 3,00,000 से ज्यादा वोटों से हराया.
कैप्टन बृजेश चौटा, 42 वर्ष, भाजपा, दक्षिण कन्नड़, कर्नाटक
राजनीति में आने से पहले चौटा ने भारतीय सेना में आठ साल सेवा दी. वहां वह 8 गोरखा राइफल्स में थे. पहले ही सेवानिवृत्त हो जाने के बाद उनका लक्ष्य नीति निर्माण और प्रशासन से जुड़ना था. संघ से जुड़े परिवार से आने वाले चौटा ने 2013 में भाजपा के यूथ विंग भारतीय जनता युवा मोर्चा का दामन थामा और 2023 में पार्टी की कर्नाटक इकाई के राज्य सचिव बने. उनका लक्ष्य मंगलूरू बंदरगाह से जोड़ने वाली सड़क और रेल के बुनियादी ढांचे में सुधार लाकर दक्षिण कन्नड़ तटरेखा का विकास करना है. भाजपा ने दक्षिण कन्नड़ से सांसद नलिन कुमार कतील की बजाए उन्हें टिकट दिया. उन्होंने कांग्रेस के पद्मराज पुजारी को 1,49,208 वोटों से हराया.
कुलदीप इंदौरा, 54 वर्ष, कांग्रेस, गंगानगर (अनुसूचित जाति), राजस्थान
राजस्थान के पूर्व मंत्री हीरा लाल इंदौरा के बेटे और राजनीतिशास्त्र में एमए कुलदीप दो बार विधानसभा चुनाव हार चुके थे. मगर गंगानगर के अनूपगढ़ को जिले का दर्जा दिलाने के लिए उनकी कड़ी मेहनत और उनकी पत्नी सीमा के अनूपगढ़ नगरपालिका की पूर्व अध्यक्ष होने के चलते कांग्रेस ने उन पर फिर भरोसा जताया. वे कुछ राज्यों के कांग्रेस प्रभारी राष्ट्रीय सचिव भी रहे. यह लोकसभा क्षेत्र पंजाब सीमा से सटी और इंदिरा गांधी नहर से सिंचित पट्टी का हिस्सा है. सो, उनसे किसानों और दलितों के मुद्दे उठाने की उम्मीद की जा रही है. उन्होंने भाजपा की प्रियंका मेघवाल को 88,000 से ज्यादा वोटों से हराया.
श्यामकुमार बर्वे, 46 वर्ष, कांग्रेस, रामटेक (अनुसूचित जाति), महाराष्ट्र
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रामटेक लोकसभा सीट से अपने उम्मीदवार के तौर पर कांग्रेस ने नागपुर जिला परिषद की पूर्व प्रमुख रश्मि बर्वे को चुना था. मगर उनका जाति प्रमाणपत्र रद्द हो जाने की वजह से उनके पति श्यामकुमार बर्वे को उनकी जगह चुनाव लड़ना पड़ा. बर्वे दंपती कांग्रेस के पूर्व मंत्री सुनील केदार के समर्थक हैं. कोयला खनिक के बेटे श्यामकुमार भंडारा जिले के कंदरी गांव के उपसरपंच थे. श्यामकुमार ने लोकसभा के टिकट की खातिर पाला बदलकर शिवसेना में चले गए कांग्रेस के विधायक राजू पारवे को हराया.
आशीष दुबे, 54 वर्ष, भाजपा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
जबलपुर लोकसभा सीट से भाजपा ने जब आशीष दुबे को उम्मीदवार घोषित किया, आम प्रतिक्रिया यह थी कि योग्य कार्यकर्ता को पुरस्कृत किया गया है. दुबे कटंगी-पाटन इलाके के जमींदार परिवार से हैं. वे भाजपा में संगठन के कई पदों पर रहे हैं और फिलहाल उसके राज्य महामंत्री हैं. 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले जबलपुर के एक विधानसभा क्षेत्र के लिए भी दुबे का नाम चर्चा में था. उन्होंने कांग्रेस के दिनेश यादव को 4,80,000 वोटों से हराया. बी.कॉम और लॉ की डिग्रियों से लैस दुबे ने अपने निर्वाचन क्षेत्र में विकास के काम करने का संकल्प व्यक्त किया है.
विजयलक्ष्मी देवी, 61 वर्ष, जद (यू), सीवान, बिहार
जद (यू) के पूर्व विधायक रमेश सिंह कुशवाहा की पत्नी विजयलक्ष्मी देवी नीतीश कुमार के चर्चित कुर्मी-कुशवाहा (या लव-कुश) समीकरण की नुमाइंदगी करती हैं. विजयलक्ष्मी को राजनैतिक पहचान अपने पति से मिली, जो कभी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के साथ थे, फिर जद (यू) और बाद में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी में आए. रमेश मार्च में फिर से जद (यू) में आ गए. विजयलक्ष्मी सीवान से निर्दलीय उम्मीदवार और पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब की मुश्किल चुनौती पर फतह हासिल करके लोकसभा पहुंची हैं.
बिजुली कालिता मेधी, 45 वर्ष, भाजपा, गुवाहाटी, असम
अपना करियर मेधी ने भाजपा की जमीनी कार्यकर्ता के तौर पर शुरू किया और उनके पास कोई सियासी विरासत नहीं थी. भाजपा ने अचानक उन्हें गुवाहाटी की प्रतिष्ठित सीट के लिए चुन लिया और वह भी मौजूदा सांसद क्वीन ओझा का टिकट काटकर. गुवाहाटी विश्वविद्यालय से पोस्ट-ग्रेजुएट मेधी भाजपा की महिला मोर्चे की पूर्व अध्यक्ष और पार्टी की असम इकाई की उपाध्यक्ष हैं. मेधी ने 2018 में भाजपा से पाला बदलकर कांग्रेस में गई तेजतर्रार नेता मीरा बोरठाकुर गोस्वामी को 2,51,090 वोटों के अंतर से हराया.
कालीचरण सिंह, 62 वर्ष, भाजपा, चतरा, झारखंड
कालीचरण सिंह ने बीएससी और बीएड कर रखी है और वे कभी सरकारी स्कूल में मैथ्स पढ़ाते थे. स्कूल हेडमास्टर के बेटे कालीचरण ने 1986 में नौकरी छोड़ दी और भाजपा के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए. संगठन के कई कामों को संभालते हुए वे धीरे-धीरे ऊपर चढ़ते गए और राज्य भाजपा के उपाध्यक्ष पद पर पहुंचे. कालीचरण भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के करीबी सहयोगी हैं और उनका करियर भी मरांडी के करियर की तरह ही परवान चढ़ा. गौरतलब यह कि 2024 का चुनाव उनका पहला चुनाव था और इससे पहले उन्होंने कोई चुनाव नहीं लड़ा था. भाजपा ने चतरा से अपने मौजूदा सांसद सुनील कुमार को हटाकर कालीचरण को मैदान में उतारा. कालीचरण ने अपने नजदीकी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के कृष्णानंद त्रिपाठी को 2.20 लाख वोटों के अंतर से हराया.
—अजय सुकुमारन, धवल एस. कुलकर्णी और अर्कमय दत्ता मजूमदार