लोकसभा चुनाव 2024: खेत-खलिहान से लोकतंत्र के सबसे बड़े मैदान तक इन किसान नेताओं का सफर
ये किसान नेता संसद में विभिन्न रूप में आए हैं, श्रमिक से लेकर वरिष्ठ और मजबूत वामपंथी. उनके बीच समानता यह है कि वे सभी खेती-किसानी और जमीन से गहरे से जुड़े हुए हैं

पहली-पहली बार किसान नेता
हरेंद्र मलिक, 69 वर्ष, ( सपा ) मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश
वायरल हुए एक नारे ने सब कुछ कह दिया. उन्होंने 1978 में छात्र नेता के रूप में जब सियासी जीवन शुरू किया, तो जाट किसानों के नायक चरण सिंह का बोलबाला था. वे चार बार विधायक, एक बार राज्यसभा में रहे और बाद में तीन राजनैतिक दलों में आए-गए.
मलिक ने भाजपा के स्थानीय जाट दबंग चेहरे संजीव बालियान को कड़े मुकाबले में हराया. शपथ लेने के ठीक बाद भारी-भरकम मलिक माइक पर झुके और कहा, "जय चौधरी चरण सिंह, जय नेताजी मुलायम सिंह, जय अखिलेश." पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कोई यह देखने से नहीं चूका कि सत्ता की बेंचों पर बैठे चरण सिंह के पोते, आरएलडी के मुखिया जयंत चौधरी नाक-मुंह सिकोड़ते रह गए.
अमरा राम, 68 वर्ष, (माकपा) सीकर, राजस्थान
जमीन से जुड़ा यह मार्क्सवादी इस बात का बेहतर उदाहरण है कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. वे अपने आठवें प्रयास में दो बार के भाजपा सांसद सुमेधानंद सरस्वती को हराकर संसद पहुंचे है. उन्होंने 28 साल पहले पहला चुनाव लड़ा था. आज भी सादा-सरल शेखावाटी जीवन बिता रहे इस बी.एससी, बीएड, एम.कॉम डिग्री धारी नेता ने राजनीति में आने के लिए सरकारी शिक्षक की नौकरी छोड़ दी.
वे 1983-93 तक सरपंच चुने गए और चार बार विधायक रहे लेकिन जमीन से जुड़ाव कभी खत्म नहीं हुआ. इसमें 2021-22 में दिल्ली की सीमा पर आंदोलनकारी किसानों के 11 महीने का धरना भी शामिल है, जिसमें उन्होंने भी डेरा डाला था.
दर्शन सिंह चौधरी, 48 वर्ष, ( भाजपा ) होशंगाबाद, मध्य प्रदेश
उनकी चार मास्टर डिग्रियों— अर्थशास्त्र, इतिहास, दर्शन और अंग्रेजी—से किसी तरह का भ्रम मत पालिए. ये अविवाहित किसान मूल रूप से आरएसएस में पल्लवित हुए. उनके पास एक मोबाइक है, गौ-आधारित प्राकृतिक कृषि की तरफ झुकाव है और आंदोलनों के लिए उर्जा है.
वे इसके लिए 11 बार जेल गए हैं. राज्य किसान मोर्चा के मुखिया ने अपने पहले पेशे शिक्षा से किसी भी रूप में नाता पूरी तरह नहीं तोड़ा है. दोनों ही मोर्चों पर संसद में बोलने के लिए उनके पास काफी कुछ होगा.
प्रदीप पुरोहित, 58 वर्ष, ( भाजपा ) बरगढ़, ओडिशा
माथे पर हमेशा लाल तिलक लगाए रखने वाले इस शख्स ने 1980 के दशक में 'बालको हटाओ' आंदोलन से शुरुआत की, जो देश के सबसे पुराने पर्यावरण आंदोलन में से एक था. वनस्पतियों से भरपूर गंधमार्दन पहाड़ी के चारों तरफ चार साल तक आदिवासियों ने घेरा बनाकर रखा.
पुरोहित की संभावनाओं का खूब दोहन किया गया. एक बार विधायक और राज्य किसान मोर्चा के प्रमुख रहने के बाद पुरोहित अब दिल्ली पहुंचे हैं. वे 2024 में ओडिशा में सबसे अधिक मार्जिन से जीते हैं.
राजाराम सिंह, 66 वर्ष, ( भाकपा-माले ) काराकाट, बिहार
इसे नेता उपेंद्र कुशवाहा और भोजपुरी अभिनेता-गायक पवन सिंह के बीच मुकाबला बताया गया था. लेकिन काराकाट में चाय की दुकानों पर कोई भी मजदूर आपको बता सकता था कि यह लड़ाई राजाराम के लिए है.
छोटे कुशवाहा किसान के बेटे और बी.टेक डिग्री धारी ने इंजीनियरिंग में करियर आगे नहीं बढ़ाया और वामपंथी राजनीति में अपनी धरती के लिए जीवन समर्पित कर दिया. दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के घेराव के एक और प्रहरी राजाराम के पास अब जनता की संसद में बहस से फल निकालने का अवसर होगा.
—रोहित परिहार, अर्कमय दत्ता मजूमदार और राहलु नरोन्हा.