यूं ही नहीं, बल्कि दल बदल-बदल के संसद पहुंचे हैं ये नेता!
लोकसभा चुनाव 2024 में एक पार्टी से दूसरी में छलांग लगाने और नई वफादारियों की कसमें खाने के बाद चुनावी फतह हासिल करने वाले नेताओं की कहानी

पहली-पहली बार दलबदलू
वीरेंद्र सिंह, 65 वर्ष ( सपा ) चंदौली, उत्तर प्रदेश
पावन नगरी की विस्तारित परिक्रमा के भीतर पड़ने वाले चिरईगांव के इस बनारसी ने राजनैतिक पंसद के मामलों में उदार होने या कट्टर नहीं होने की शिक्षा-दीक्षा संभवत: बीएचयू के छात्र मामलों से हासिल की. 1996 में वे कांग्रेस (अपनी मूल पार्टी) के विधायक बने, उससे टूटकर बने और कम वक्त जिंदा रहे लोकतांत्रिक कांग्रेस नाम के उस धड़े का हिस्सा रहे जिसने कल्याण सिंह की भाजपा सरकार (जिसमें वे मंत्री बने) का समर्थन किया था.
टूटकर बना धड़ा जब और बिखरा तो वे जहां के तहां बने रहे, फिर विधायक बनने की गरज से बसपा के अखाड़े में कूदे, उसके बाद मुलायम सिंह यादव के मातहत मंत्री बनने के लिए सपा में आ गए, लेकिन अभी तक पक्का मकान नहीं बनाया. कांग्रेस में लौटने और बसपा का एक और चक्कर लगाने की अफवाहों के बीच उनकी उड़ान आखिरकार जमीन पर उतरी, जहां विचारधारा का साजो-सामान इतना ठोस माना गया कि राष्ट्रीय प्रवक्ता बना दिया गया.
नारायणदास अहिरवार, 63 वर्ष, ( सपा ) जालौन, उत्तर प्रदेश
दलबदलुओं के बारे में अक्सर गहरी अवमानना और तिरस्कार से लेकर हल्के मजाक भरे लहजे तक में बात की जाती है. ज्यादा से ज्यादा यह कहा जाता है कि वे अपनी राजनैतिक जरूरतों को ऊपर रखते हैं.
लेकिन अहिरवार का 2015 में समाजवादी पार्टी में जाना, और इस बार पांच बार के भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री भानु प्रताप सिंह वर्मा को बुंदेलखंड के बेशकीमती आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से हराना कुछ और भी बताता है, जिसका वास्ता मुख्य रूप से उनकी राजनैतिक जीवनगाथा से है.
बीसेक साल की उम्र में अहिरवार कांशीराम के डीएस4 आंदोलन के असर में आए और 1984 में बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक सदस्य बने. इसलिए अगर उनका जाना बसपा के जाटव वोटों के छितराने का इशारा है, तो वर्मा की हार गैर-जाटवों के भी भगवा खेमे से निकल भागने का प्रमाण है.
थंगा तमिलसेल्वन, 63 वर्ष, (डीएमके) थेनी, तमिलनाडु
तमिलसेल्वन एआईएडीएमके से टूटकर अलग हुए धड़े एएमएमके से डीएमके में गए. इसकी बदौलत ही वे एकमात्र सीट जीत पाए जो 2019 में डीएमके की अगुआई वाला गठबंधन हार गया था.
2001 में वे तब सुर्खियों में आए जब उन्होंने आंडिपट्टी से एआईएडीएमके की विधायकी से इस्तीफा दे दिया ताकि तब मुख्यमंत्री जे. जयललिता भ्रष्टाचार के मामले में बरी होने के बाद उपचुनाव लड़ सकें. इस कदम से वे एआईएडीएमके सुप्रीमो के दुलारे बन गए और इनाम में उन्हें राज्यसभा की सीट से नवाजा गया.
2011 और 2016 में आंडिपट्टी की नुमाइंदगी करने के लिए वे राज्य में लौट आए. जयललिता के निधन के बाद तमिलसेल्वन एएमएमके में शामिल हो गए, लेकिन 2019 में थेनी लोकसभा सीट से हार गए.
राहुल सिंह लोधी, 40 वर्ष (भाजपा) दमोह, मध्य प्रदेश
कभी दमोह के नजदीक गांव हिंडोरिया के जागीरदार रहे लोधी ने 2018 में विधानसभा का चुनाव कांग्रेस की टिकट पर लड़ा और भाजपा के दिग्गज नेता जयंत मलैया को हराया था. मगर 2020 में वे पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो गए, और 2021 में उसी सीट से उपचुनाव हार गए.
तिस पर भी उनकी हार को लोकसभा चुनाव के टिकट से पुरस्कृत किया गया और इसकी वजह थी पार्टी के दिग्गज नेता प्रह्लाद पटेल के साथ उनकी नजदीकी, जो उन्हीं के समुदाय के हैं. लोधी जबलपुर के क्राइस्ट चर्च बॉयज स्कूल के पूर्व छात्र हैं, जिसे महाकौशल और बुंदेलखंड इलाकों के कई अफसरों और राजनेताओं को तैयार करने के लिए जाना जाता है.
संजय देशमुख, 55 वर्ष, (शिवसेना (यूबीटी) ) यवतमाल-वाशिम, महाराष्ट्र
वे महाराष्ट्र की राजनीति के 'आयाराम-गयाराम' हो सकते हैं. जब शिवसेना ने विदर्भ में जड़ें जमाईं, तो यवतमाल के देशमुख उसकी जमात में शामिल होने वाले लोगों में थे और जिला प्रमुख के ओहदे तक गए.
फिर वे दो बार (1999 और 2004 में) विधानसभा के लिए चुने गए, लेकिन दिग्रस से शिवसेना के आधिकारिक प्रत्याशी श्रीकांत मुंगिनवार को हराकर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में. राज्य के पूर्व मंत्री देशमुख एक और संजय (राठौड़), मिट्टी और जल संरक्षण मंत्री, के पारंपरिक विरोधी हैं, जिन्होंने उन्हें 2009 में हराया था.
उस वक्त देशमुख कांग्रेस के साथ थे. बाद में वे भाजपा में शामिल हो गए, लेकिन जब राठौड़ सेना के एकनाथ शिंदे धड़े में चले गए, तो वे फिर उद्धव ठाकरे की सेना में लौट आए.
बाबू सिंह कुशवाहा, 58 वर्ष, ( सपा ) जौनपुर, उत्तर प्रदेश
मायावती के मुख्य सहयोगी और उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सरकार में प्रमुख मंत्री रहे कुशवाहा को 2011 में 1,000 करोड़ रुपए के एनआरएचएम घोटाले में कथित संलिप्तता की वजह से पार्टी से निकाल दिया गया था. बारहवीं कक्षा तक पढ़े कुशवाहा जेल काटने के बाद कुछ समय के लिए भाजपा में चले गए और फिर 2016 में अपनी जन अधिकार पार्टी बनाई.
माफिया से नेता बने धनंजय सिंह का समर्थन भाजपा के पक्ष में होने के बावजूद कुशवाहा ने चुनावी मैदान में कृपा शंकर सिंह को धूल चटाई.
जीतेंद्र कुमार दोहरे, 54 वर्ष, (सपा ) इटावा, उत्तर प्रदेश
यादव परिवार का गृह क्षेत्र एससी-आरक्षित सीट है इसलिए समाजवादी पार्टी ने ऐसे शख्स को चुना जो 2020 में बसपा छोड़कर आया, संगठन के मजबूत आदमी हैं, पेशों की फेहरिस्त में 'खेती, ठेकेदारी के काम और जन सेवा' का उल्लेख करते हैं और जिनकी बहन उस पंचायत की अध्यक्ष हैं जिसके दायरे में 91 गांव आते हैं. तरकीब काम कर गई.
प्रदीप कुमार पाणिग्रही, 61 वर्ष, (भाजपा) बरहामपुर, ओडिशा
राज्य के पूर्व मंत्री, नवीन पटनायक के वफादार, और गोपालपुर से तीन बार के विधायक पाणिग्रही को 2020 में 'जनविरोधी गतिविधियों' की वजह से बीजद से निकाल दिया गया था. वे फरवरी में भाजपा में आ गए और अपने सबसे नजदीकी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के रश्मि रंजन पटनायक को हराया.
वकालत की शिक्षा-दीक्षा प्राप्त पाणिग्रही भारत के कानूनों के विशेष संदर्भ के साथ अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत जैवविविधता के संरक्षण में पीएचडी हैं.
गणपति पी. राजकुमार, 59 वर्ष, (डीएमके) कोयंबत्तूर, तमिलनाडु
राजकुमार ने राजनीति का पाठ 1989 में एआईएडीएमके के साथ सीखा, जहां वे 2020 तक रहे. उपेक्षित महसूस करने के बाद वे प्रतिद्वंद्वी डीएमके में चले गए. चार साल बाद उन्होंने पार्टी को 1998 के बाद पहली बार कोयंबत्तूर सीट जिताई और भाजपा के राज्य प्रमुख अन्नामलाई को 1,18,000 से ज्यादा वोटों से हराया.
2001 में पार्षद चुने गए राजकुमार 2014 से 2016 तक कोयंबत्तूर के मेयर रहे. कारोबारी और किसान राजकुमार के पास 89 करोड़ रुपए की संपत्ति है.
नीलेश लंके, 44 वर्ष, ( एनसीपी (एसपी) ) अहमदनगर, महाराष्ट्र
चुनाव अभियान के दौरान भाजपा के उम्मीदवार डॉ. सुजय विखे पाटील ने अंग्रेजी और हिंदी बोलने को लेकर लंके का मजाक उड़ाया. मगर मतदाता अलग ही जबान में बोले. राजस्व मंत्री राधाकृष्ण विखे पाटील के बेटे और न्यूरोसर्जन सुजय को जमीन से जुड़े लंके ने धूल चटा दी.
पहले शिवसेना से जुड़े लंके एनसीपी में आए और 2019 में उन्होंने पारनेर की विधानसभा सीट अपने मेंटर विजयराव औटी से छीन ली. बाद में उन्होंने अजित पवार का समर्थन किया, पर अंतत: शरद पवार के खेमे में लौट आए.
एटाला राजेंदर, 60 वर्ष, (भाजपा) मलकाजगिरि, तेलंगाना
सात बार के विधायक राजेंदर की राजनैतिक जड़ें वामपंथी उग्रवाद में रही हैं. शुरुआत में उन्होंने जन-केंद्रित आंदोलन चलाने में के. चंद्रशेखर राव की मदद की और अलग राज्य का अभियान चलाने वाले सियासतदां के रूप में विकसित हुए. बाद में उनके मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री बने.
मगर केसीआर के 'अधिनायकवादी तौर-तरीकों' से उनका मन बेचैन होने लगा, लिहाजा 2021 में वे भाजपा में आ गए और अब उस निर्वाचन क्षेत्र की नुमाइंदगी करते हैं, जहां से कांग्रेस के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी 2019 में संसद में दाखिल हुए थे. पोल्ट्री के फलते-फूलते कारोबार के मालिक राजेंदर अगले राज्य भाजपा प्रमुख बनने की दौड़ में हैं.
मलविंदर सिंह कंग, 45 वर्ष, ( आप ) आनंदपुर साहिब, पंजाब
बीते दो साल में मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान की अगुआई में कंग चुनौतीपूर्ण मौकों पर पार्टी और सरकार का बचाव करते हुए पंजाब में आप की आवाज बनकर उभरे. भाजपा में दशक भर लंबा वक्त बिताने के बाद 2020-21 में किसान आंदोलन के दौरान वे आप में शामिल हुए. मूलत: ग्वालियर के कंग ने पंजाब विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति में नाम कमाया और वे भाजपा के वरिष्ठ नेता अनुराग ठाकुर के शिष्य माने जाते थे.
उम्मेदा राम बेनीवाल, 47 वर्ष (कांग्रेस) बाड़मेर, राजस्थान
बायतु विधानसभा सीट हारने वाले अक्सर बाड़मेर लोकसभा सीट जीत जाते हैं. राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के टिकट पर चुनाव लड़ रहे बेनीवाल 2023 में बायतु में कांग्रेस के हरीश चौधरी से महज 910 वोटों से हार गए थे. 2018 में भी बेनीवाल को हराने वाले चौधरी ने इस बार अलबत्ता उन्हें कांग्रेस में शामिल होने के लिए राजी कर लिया, बावजूद इसके कि आरएलपी इंडिया गठबंधन का हिस्सा थी.
तिकोने मुकाबले में बेनीवाल ने भारी जीत हासिल की. कला स्नातक बेनीवाल की आमदनी का स्रोत कृषि और इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनियां हैं. उन्होंने लोकप्रिय राजपूत नेता और निर्दलीय विधायक रवींद्र सिंह भाटी को हराया और फिर केंद्रीय मंत्री और भाजपा के नेता कैलाश चौधरी को तीसरे पायदान पर धकेल दिया.
प्रवीण पटेल, 45 वर्ष, ( भाजपा) फूलपुर, उत्तर प्रदेश
उनके पिता कांग्रेसी थे, जो उस समय 'नेहरू के निर्वाचन क्षेत्र' के रूप में जाने जाने वाले इस इलाके में आम बात थी. मगर बेटे ने बसपा के साथ तैरना सीखा, और तैरते हुए भाजपा के किनारे पहुंच गए. दोनों पार्टियों के लिए उन्होंने विधानसभा के स्तर पर अपनी जीतने की क्षमता साबित की. इस बार अपने हुनर को वे और ऊंचे स्तर पर ले गए, भले ही महज 4,332 वोटों के अंतर के साथ मुकाबले का 'रोमांचक अंत’ हुआ हो.
राज कुमार चब्बेवाल, 55 वर्ष, (आप ) होशियारपुर, पंजाब
दो बार के कांग्रेस विधायक और पार्टी की विधायी टीम में दो नंबर के नेता चब्बेवाल ने चुनाव से ठीक पहले आप का दामन थाम लिया. भाजपा के साथ अपना राजनैतिक करियर शुरू करने वाले चब्बेवाल 2009 में कांग्रेस में आए. 2012 के विधानसभा चुनाव में नाकाम कोशिश के बाद उन्होंने अगले दो चुनाव जीते.
कांग्रेस में चब्बेवाल के पूर्व साथियों का दावा है कि 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले पंजाब निर्माण कार्यक्रम के एससी लाभार्थियों को फर्जी स्वीकृति पत्र बांटने के आरोपों के बाद उन्हें दबाव का सामना करना पड़ रहा था.
इमरान मसूद, 54 वर्ष, (कांग्रेस) सहारनपुर, उत्तर प्रदेश
पूर्व विधायक और लोकसभा चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस में लौटे इमरान बीते तीन साल में तीन पार्टियां बदल चुके थे.
लालजी वर्मा, 69 वर्ष, ( सपा ) आंबेडकर नगर, उत्तर प्रदेश
जनता दल में शुरुआती हाथ आजमाने के बाद छह बार के कुर्मी विधायक बसपा के दिग्गज थे, जब 2022 के चुनावों से ऐन पहले सपा में आए.
रुचि वीरा, 62 वर्ष, ( सपा ) मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
2014 में बिजनौर के विधानसभा उपचुनाव में अपनी पहली जीत दर्ज करने वाली रुचि 2019 में थोड़े वक्त के लिए बसपा में रहीं. उन्हें बिल्कुल आखिरी वक्त पर उम्मीदवार बदलकर लाया गया.
माधवनेनी रघुनंदन राव, 59 वर्ष, (भाजपा) मेडक, तेलंगाना
टीआरएस में अलग राज्य के पक्षधर राव का 2013 में पार्टी छोड़कर कांग्रेस में चले आए. 2014 में वे भाजपा में शामिल हुए और विधायक बन गए.
राकेश राठौड़, 60 वर्ष, ( कांग्रेस ) सीतापुर, उत्तर प्रदेश
सीतापुर से भाजपा के पूर्व विधायक पिछले साल ही कांग्रेस में शामिल हुए. मई 2021 में कई कथित ऑडियो क्लिप लीक हुए, जिनमें उन्होंने योगी सरकार की आलोचना की थी.
कृष्णा देवी पटेल, 53 वर्ष, ( सपा) बांदा, उत्तर प्रदेश
कृष्णा देवी पिछले साल ही अपने पति और पूर्व मंत्री शिव शंकर पटेल के साथ समाजवादी पार्टी में शामिल हुई थीं, जब उन्हें भाजपा से निलंबित कर दिया गया था.
अभय कुमार सिन्हा, 52 वर्ष, ( राजद ) औरंगाबाद, बिहार
जद (यू) के पूर्व विधायक मार्च में ही राजद में आए. भाजपा के सुशील कुमार सिंह को हराने वाले कुशवाहा नेता ने पूरे बिहार में अपने समुदाय के वोटों को प्रभावित किया.
नीरज मौर्य, 54 वर्ष, ( सपा ) आंवला, उत्तर प्रदेश
पूर्व बसपा नेता, जो 2007 से 2017 तक जलालाबाद से विधायक रहे, कुछ वक्त भाजपा में बिताने के बाद 2022 में समाजवादी पार्टी में आ गए.
—अनिलेश एस. महाजन, धवल एस. कुलकर्णी, रोहित परिहार, राहुल नरोन्हा और अर्कमय दत्त मजूमदार.