अंग्रेजों के बनाए कानून की जगह लेने वाली इन संहिताओं पर कैसा संशय?

नए आपराधिक कानूनों की कामयाबी उन्हें चौकस ढंग से लागू करने, हितधारकों से लगातार बात करने और जायज चिंताओं को समझकर दूर करने के लिए तैयार होने पर निर्भर करेगी

इलस्ट्रेशन: नीलांजन दास
इलस्ट्रेशन: नीलांजन दास

भारत ने 1 जुलाई को नई राह गढ़ने वाले तीन कानूनों—भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए)—के लागू होने के साथ अपनी आपराधिक न्याय प्रणाली के नए युग का सूत्रपात किया. पिछले दिसंबर में विपक्षी दलों के जबरदस्त विरोध के बीच संसद में पारित इन कानूनों ने क्रमश: वर्ष 1860 की भारतीय दंड संहिता (आइपीसी), 1973 की आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह ली.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि ये नए कानून न्याय सुनिश्चित करेंगे, जबकि ब्रिटिश काल के कानून दंड को प्राथमिकता देते थे. जीरो एफआईआर, पुलिस शिकायतों का ऑनलाइन पंजीकरण, इलेक्ट्रॉनिक समन, और सभी गंभीर अपराधों के क्राइम सीन की अनिवार्य वीडियोग्राफी सरीखे प्रावधानों को शामिल करके सरकार ने इन कानूनों को पीड़ित केंद्रित कानूनों के तौर पर सामने रखा है. इन कानूनों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों से जुड़े कानूनों को समर्पित धाराएं हैं, जिनमें दंड की गंभीरता बढ़ाई गई है.

ऐसे कानूनी सुधार की लंबे वक्त से टलती आ रही जरूरत को स्वीकार करते हुए आलोचकों ने इन कानूनों के कई विवादास्पद पहलुओं को लेकर चिंता जाहिर की है. मसलन, पुलिस के अधिकारों का विस्तार, आतंकवाद सरीखे अपराधों की अस्पष्ट परिभाषा, और नागरिक स्वतंत्रताओं पर इनका संभावित असर. इन कानूनों को बनाने में सलाह-मशविरे की प्रक्रिया के दायरे और अवधि को लेकर भी चिंताएं जाहिर की गई हैं. यह प्रक्रिया कोविड-19 की वैश्विक महामारी के दौरान चली. विपक्ष के विरोध के बावजूद इन कानूनों को फटाफट पारित कर देने से बेचैनी और भी बढ़ गई.

यही नहीं, इन कानूनों के मसौदे की यह कहकर भी आलोचना की जा रही है कि इनकी भाषा खराब और अस्पष्ट है. मसलन, जनवरी 2024 में भारत भर के ट्रक, बस और ईंधन टैंकरों के ड्राइवर बीएनएस की धारा 106(2) के खिलाफ हड़ताल पर गए, जिसमें "बेलगाम रफ्तार और लापरवाही से ड्राइविंग के कारण हुई मौत जो कि गैर इरादतन हत्या नहीं है और इसमें घटना के फौरन बाद पुलिस या मजिस्ट्रेट को सूचना दिए बगैर अभियुक्त फरार हो गया हो" के लिए 10 साल की कैद और जुर्माने का प्रावधान है. हड़ताल केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला के यह भरोसा दिलाने के बाद खत्म हुई कि इस कानून को ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के प्रतिनिधियों के साथ मशविरे के बाद लागू किया जाएगा. इस विवादास्पद धारा को फिलहाल स्थगित रखा गया है.

विडंबना यह है कि संसद की गृह मामलों की स्थायी समिति ने इस धारा का नया मसौदा बनाने की सिफारिश की थी. समिति ने कहा कि प्रावधान के मसौदे से स्पष्ट नहीं होता कि दोनों कर्तव्य—अपराध स्थल पर रुके रहना और घटना की सूचना देना—अनिवार्यत: पूरे होने चाहिए या नहीं. समिति ने सुझाव दिया कि यह खंड संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन करता है जो कहता है कि "किसी अपराध के आरोपी को खुद अपने खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा."

प्रावधानों में विसंगतियों का आरोप लगाते हुए नए आपराधिक कानूनों पर अमल स्थगित करने के लिए सरकार को कई अर्जियां दी गई हैं. बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने सभी बार एसोसिएशन और वरिष्ठ वकीलों से उन प्रावधानों के बारे में बताने को कहा है जिन्हें वे असंवैधानिक या संवैधानिक लोकतंत्र के लिए नुक्सानदेह मानते हैं. काउंसिल इनके आधार पर संशोधनों की सिफारिश के लिए समिति का गठन करेगी.

नए कानूनों को लागू करने से पहले सरकार ने देश भर व्यापक तैयारियां कीं, जिनमें प्रशिक्षण और टेक्नोलॉजी अपग्रेड शामिल हैं. मगर अधिसूचना चुनाव आयोग की तरफ से 18वीं लोकसभा के चुनाव की तारीखों के ऐलान से एक हफ्ता बाद 23 फरवरी को जारी की गई. नतीजतन, चुनाव प्रक्रिया में व्यस्त होने के कारण ज्यादातर हितधारकों को 1 जुलाई से नए कानूनों को लागू करने के लिए वक्त ही नहीं मिला.

गौरतलब है कि 1 जुलाई से पहले घटे अपराधों में पुराने कानूनों के तहत ही मुकदमे दर्ज होंगे पर अदालती कार्रवाई नए कानूनों के तहत होगी. इससे पुलिस और सिस्टम में नए और पुराने कानूनों की उधेड़बुन जारी रहेगी. तीन नए कानून लागू होने से नए केसों में तो प्रक्रिया तेजी से चल सकती है लेकिन देश की अदालतों में लंबित 4.5 करोड़ से ज्यादा मुकदमे पुराने ढर्रे पर ही चलेंगे. पुराने कानून में मुहावरा बन चुकी धारा 420 अब बीएनएस में 318 हो गई है. साथ ही बीएनएस में पुरानी धारा 377 को खत्म कर दिया गया है जिसमें पुरुष या ट्रांसजेंडर से दुष्कर्म में केस दर्ज किया जाता था.  

नए आपराधिक कानूनों की कामयाबी उन्हें चौकस ढंग से लागू करने, हितधारकों से लगातार बात करने और जायज चिंताओं को समझने और दूर करने के लिए तैयार होने पर निर्भर करेगी.—साथ में मनीष दीक्षित

वैधानिक चेतावनी

तीन नए कानूनों—भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम—के जरिये आपराधिक कानूनों में किए गए परिवर्तनों पर एक नजर

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह

विवादास्पद प्रावधान

> आइपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह) को निरस्त कर दिया गया है, मगर बीएनएस की धारा 150 के जरिये भारत की संप्रभुता और अखंडता खतरे में डालने वाले कृत्यों को अपराधों के रूप में विस्तारित कर दिया गया है, जिसमें संभावित तौर पर पिछले राजद्रोह के मामले भी शामिल हैं 

> गंभीर अपराधों के मामलों में पुलिस हिरासत को 15 से 90 दिनों तक बढ़ा दिया गया है और इससे पुलिस की ज्यादतियों तथा यातना को लेकर चिंता बढ़ गई है. केंद्रीय गृह मंत्री ने साफ किया है कि एक बार में 15 दिनों से अधिक की हिरासत नहीं ली जा सकती 

> शादी के झूठे वादे समेत धोखे और झूठे वादों के जरिये बनाए गए यौन संबंध के लिए 10 साल तक की कैद की सजा हो सकती है. इसके आलोचकों ने चेताया है कि इससे सहमति से बनाए गए संबंधों को अपराध माना जा सकता है 

> आतंकवाद की परिभाषा में अब लोक व्यवस्था को बिगाड़ना या देश को अस्थिर करना शामिल हैं, जिससे इसके दुरुपयोग की आशंका बढ़ गई है

> एसपी-स्तर के अधिकारी वैधानिक मानदंडों के बिना ही आतंक से संबंधित मामलों में यूएपीए या बीएनएस लागू करने को लेकर फैसला ले सकते हैं

> गैरहाजिरी के दौरान सुनवाई से सही इंसाफ मिलने की संभावना कम हो सकती है, यूएपीए प्रावधानों की तरह

> 3-7 साल की कैद की सजा वाले मामलों में प्रारंभिक जांच आवश्यक है जिससे वैध एफआईआर में देरी और पुलिस को विवेकाधीन अधिकार मिलने की आशंका

> गिरफ्तारी के मौके पर कानूनी मदद को हटाया गया है, जिससे हाशिए के लोगों का उचित प्रतिनिधित्व मिलना मुश्किल 

> नए कानूनों के स्थानीय भाषा में नाम संविधान के अनुच्छेद 348 का उल्लंघन, जिसके तहत हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अंग्रेजी अनिवार्य है

अपराध और सजा के नए प्रावधान

> संगठित अपराध और छोटे संगठित अपराध सरीखे नए अपराध जोड़े गए हैं. संगठित अपराधों में मानव और मादक पदार्थों की तस्करी तथा साइबर क्राइम शामिल हैं. छोटे संगठित अपराधों में संगठित चोरी और जुआ शामिल हैं

> छीना-झपटी चोरी से अलग है और इसके लिए तीन साल तक की जेल हो सकती है

> मॉब लिंचिंग अब एक अलग अपराध है. नस्ल, जाति, लिंग, जन्म स्थान, भाषा या अन्य पूर्वाग्रहों के आधार पर पांच या अधिक लोगों के समूह के हाथों की गई हत्या के लिए सात साल से आजीवन कारावास या यहां तक कि मौत की सजा भी हो सकती है

> बेहद मामूली अपराधों के लिए वैकल्पिक सजा के तौर पर सामुदायिक सेवा को पहली बार पेश किया गया है
कमजोर लोगों के लिए इंसाफ

> महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों, मसलन नाबालिगों के साथ सामूहिक बलात्कार और उनकी तस्करी सरीखे अपराधों, के लिए मौत की सजा जैसा गंभीर दंड

> बलात्कार पीड़ितों के बयान महिला अधिकारियों की ओर से दर्ज किए जाने चाहिए और मेडिकल जांच सात दिनों के भीतर पूरी की जानी चाहिए

> महिलाओं के खिलाफ हुए अपराधों के मामलों में बयान महिला मजिस्ट्रेट की ओर से दर्ज हों और ऐसा संभव न हो तो किसी महिला की मौजूदगी में दर्ज होने चाहिए

> बलात्कार पीड़ितों के बयान ऑडियो-वीडियो माध्यमों से दर्ज होंगे  

> महिलाओं के खिलाफ अपराध की पीड़िताएं 90 दिनों के भीतर मामले की प्रगति का नियमित अपडेट पाने की हकदार हैं 

> महिलाओं में 15 साल से कम उम्र, 60 साल से ज्यादा उम्र की या विकलांग महिलाओं को पुलिस थाने आने से छूट प्रदान की गई है

तेज और निष्पक्ष सुनवाई

> 14 दिनों के भीतर अभियुक्त और पीड़ितों को एफआइआर, पुलिस रिपोर्ट, चार्जशीट और अन्य दस्तावेज मुहैया कराना आवश्यक

> गिरफ्तार व्यक्तियों को उनकी पसंद के किसी व्यक्ति को तुरंत सूचित करने का अधिकार है. गिरफ्तारी का विवरण पुलिस थानों और जिला मुख्यालयों में प्रदर्शित किया जाना चाहिए

> राज्य सरकारों की ओर से गवाह सुरक्षा योजनाएं अनिवार्य हैं  
> इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और डिजिटल सबूत अदालत में स्वीकार्य हैं. द्वितीयक साक्ष्य को व्यापक बनाते हुए उसमें यांत्रिक रूप से बनाई गई प्रतियों और गवाहों के मौखिक बयानों को शामिल कर लिया गया है

> मामलों में अधिकतम दो स्थगन की अनुमति है, सुनवाई के बाद 45 दिनों के भीतर फैसला; पहली सुनवाई के 60 दिनों के भीतर आरोप तय किए जाने चाहिए

> बैकलॉग को कम करने के लिए मामूली मामलों की संक्षिप्त सुनवाई—जल्दी इंसाफ दिलाने के लिए एक सरलीकृत और तीव्र प्रक्रिया अनिवार्य

तकनीकी सहायता

> बिना पुलिस थाने गए इलेक्ट्रॉनिक रूप से मामलों को दर्ज कराया जा सकता है

> किसी भी पुलिस स्टेशन में जीरो एफआइआर दर्ज कराई जा सकती है

> गंभीर अपराध के मामलों में फॉरेंसिक एक्सपर्ट क्राइम सीन का दौरा करेंगे, किसी तरह की छेड़छाड़ को रोकने के लिए सबूतों की इकट्ठा किए जाने की वीडियोग्राफी की जाएगी

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