क्या अब आईआईटी से पढ़ना भी नौकरी की गारंटी नहीं रही!

लंबे समय से यह माना जाता रहा है कि आईआईटी या आईआईएम से डिग्री लेने का मतलब है सुरक्षित भविष्य का दरवाजा खुल जाना. लेकिन कंपनियां प्लेसमेंट के दौरान आईआईटियन को दिए गए जॉब ऑफर को तेजी से रद्द कर रही हैं

रोजगारः इलस्ट्रेशन: नीलांजन दास
रोजगारः इलस्ट्रेशन: नीलांजन दास

मनीष कुमार (बदला हुआ नाम) 9 दिसंबर, 2023 को बहुत खुश थे. आईआईटी दिल्ली से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीटेक मनीष को सिंगापुर की एक कंपनी से सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर 14 लाख रुपए का ऑफर मिला था. लेकिन उनकी खुशी पांच ही महीने में काफूर हो गई.

वजह यह रही कि इस साल जून में यह ऑफर रद्द कर दिया गया. साथ ही यह भी कहा गया कि ''हम ऑफर की संख्या छह से घटाकर सिर्फ दो कर रहे हैं''—और यह सुझाव दिया गया कि वे संस्थान की प्लेसमेंट टीम से फिर से संपर्क करें.

आईआईटी गुवाहाटी के एक अन्य इंजीनियरिंग स्टुडेंट का भी अनुभव खराब रहा. वे अपना नाम जाहिर नहीं करना चाहते. उन्हें दिसंबर 2023 में एड टेक फर्म मीडिया.नेट से प्री-प्लेसमेंट ऑफर मिला. लेकिन इसी जून में उन्हें बताया गया कि कंपनी को ''अप्रत्याशित परिस्थितियों की वजह से शुरुआती योजना में ऐडजस्टमेंट की जरूरत'' है.

इस वजह से उनकी जॉइनिंग की तारीख को जनवरी 2025 तक बढ़ा दिया गया है. उन्हें बताया गया है, ''हम हालात पर बारीकी से नजर रखना जारी रखेंगे और आपको घटनाक्रम से अवगत कराते रहेंगे.'' कंपनी ने जॉइनिंग की तारीख स्पष्ट नहीं की है.

तीसरा वाकया आईआईटी (बीएचयू) वाराणसी के ग्रेजुएट का था. उन्होंने अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया क्योंकि उन्हें ई-एक्सएल में एनालिटिक्स कंसल्टेंट के रूप में काम करने का मौका मिला. हालांकि उनकी यह नौकरी साल भर ही चली क्योंकि जून 2023 में उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया. उन्होंने दुख जताते हुए कहा, ''मैं पिछले 11 महीने से बेरोजगार हूं.''

लंबे समय से यह माना जाता रहा है कि आईआईटी या आईआईएम से डिग्री लेने का मतलब है सुरक्षित भविष्य का दरवाजा खुल जाना. लेकिन कंपनियां प्लेसमेंट के दौरान आईआईटियन को दिए गए जॉब ऑफर को तेजी से रद्द कर रही हैं. आईआईटी (बीएचयू) के ग्रेजुएट ने दुख जताते हुए कहा, ''एक आईआईटियन के रूप में नौकरी न मिलना सबसे बुरी चीज है. मैं इसकी कभी कल्पना भी नहीं कर सकता था.''

मनीष भी उतने ही परेशान हैं. वे बताते हैं, ''कंपनी ने आखिरी समय में मेरा ऑफर रद्द कर दिया, जिससे मेरे पास कोई विकल्प नहीं बचा.'' उन्होंने आईआईटी कानपुर के पूर्व छात्र और ग्लोबल आईआईटी एलुमनाइ सपोर्ट ग्रुप के संस्थापक धीरज सिंह को पत्र लिखा. वे अब मनीष की ओर से शुरुआती प्रतिबद्धता का सम्मान करने के लिए कंपनी के साथ बातचीत कर रहे हैं.

धीरज सिंह, आईआईटी कानपुर के पूर्व छात्र

दरअसल, आईआईटियन में बेरोजगारी बढ़ने का यह रुझान ही था जिसने धीरज सिंह को आरटीआई दायर करने के लिए मजबूर किया. इससे पता चला कि लगभग 38 फीसद आईआईटियन या सभी 23 कैंपसों में लगभग 8,000 छात्र अभी भी नौकरी के ऑफर का इंतजार कर रहे हैं.

धीरज बताते हैं, ''अनप्लेस्ड छात्रों की संख्या दो साल में दोगुना से ज्यादा हो गई है. यह 2022 में 3,400 से 2.3 गुना बढ़कर 2024 में 8,000 हो गई है. प्रतिशत के लिहाज से, अनप्लेस्ड छात्रों की संख्या 2022 में 19 फीसद से बढ़कर 2024 में 38 फीसद हो गई है.''

भारत में बेरोजगारी भरी ग्रोथ पिछले कुछ समय से एक खुला रहस्य रही है. ऑनलाइन पोर्टल नौकरी.कॉम के आंकड़ों से पता चलता है कि नौकरी के अवसरों में 17 फीसद की गिरावट आई है—2022 में 20.3 लाख से 2023 में 16.8 लाख तक. यहां तक कि फ्रेशर्स के लिए एंट्री लेवल की नौकरियों में भी 13 फीसद की कमी आई है, जो 3,00,000 से घटकर 2,61,000 रह गई हैं. यह रुझान प्रमुख संस्थानों के छात्रों को भी प्रभावित करने लगा है, जो चिंताजनक है. यह दर्शाता है कि आर्थिक मंदी के जितने व्यापक असर दिख रहे हैं, यह उससे कहीं ज्यादा है.

नई नौकरियां निकलने में आखिर दिक्कत क्या है? यह दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के लिए चुनावी साल है—अमेरिका में नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं, और भारत में हाल ही लोकसभा चुनाव हुआ है. नई सरकार के सत्ता में आने से पहले कंपनियां आमतौर पर तस्वीर साफ होने का इंतजार करना चाहती हैं.

एचआर सर्विस फर्म सीआईईएल एचआर के सीईओ आदित्य मिश्र बताते हैं कि केवल एक बार जब वे उस नेता को जान लेते हैं जो पदभार संभाल रहा है, तो उनकी नीतिगत स्थिति स्पष्ट हो जाती है और निवेश योजनाओं को हरी झंडी मिल जाती है.

दरअसल 2021 और 2022 के दौरान एड-टेक, किराना या ग्रोसरी कंपनियों, आईटी और आईटीईएस (आईटी-सक्षम सेवाएं) फर्मों और जीसीसी (ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर) सहित कई ऑनलाइन टेक फर्मों ने डिजिटल सेवाओं में तेजी से वृद्धि जारी रहने की उम्मीद में ज्यादा लोगों को काम पर रखा.

मिश्र कहते हैं, ''सामान्य वर्ष के मुकाबले न केवल नए कर्मचारियों की संख्या दोगुनी बढ़ी, बल्कि 4-5 साल के अनुभव वाले कर्मचारियों को भी 20 लाख रुपए और उससे ज्यादा के पैकेज मिले, जो सामान्य दर से दोगुना है.'' विशेषज्ञ स्टाफिंग फर्म एक्सफेनो के सह-संस्थापक कमल कारंत बताते हैं कि 2022-2023 तक हालात बदल गए. पश्चिमी बाजारों में मंदी और रूस-यूक्रेन युद्ध ने कंपनियों को वर्कफोर्स का पुनर्मूल्यांकन और उसे युक्तिसंगत बनाने के लिए मजबूर किया.

नतीजा: आईटी/आईटीईएस, टेक स्टार्ट-अप्स, सास (सॉफ्टवेयर ऐज अ सर्विस) कंपनियों और अन्य गैर-तकनीकी क्षेत्रों से प्रौद्योगिकी प्रतिभा से संबंधित नौकरियां वित्त वर्ष 24 मंन वित्त वर्ष 22 के चरम मांग की तुलना में 43 फीसद गिर गईं.

इनमें से आईटी/आईटीईएस समूह, जो नियोक्ता बाजार का एक प्रॉक्सी है और सबसे ज्यादा लोग इसी में लगते हैं, में मांग हर साल 2,80,000-300,000 की सामान्य मांग से 41 फीसद कम है. 3,00,000 नए कर्मचारियों में से 80 फीसद या 2,40,000 फ्रेशर्स हैं. वित्त वर्ष 24 में एंट्री लेवल पर युवा प्रतिभाओं की संख्या घटकर मात्र 60,000 रह गई, जो दो दशक में सबसे कम भर्ती है. कोविड वर्ष '21 में भी इतना कम नहीं हुआ था. ''आइटी/आइटीईएस कंपनियां पिछले दो साल से कैंपस में नहीं गई हैं.''

मंदी का असर सिर्फ उन लोगों पर ही नहीं पड़ रहा जिन्हें अभी तक नौकरी नहीं मिली है, बल्कि उन लोगों पर भी पड़ रहा है जिन्हें नौकरी मिल गई है. अखिल भारतीय आईटी और आईटीईएस कर्मचारी संघ (एआईआईटीईयू) के डेटा से पता चलता है कि आईटी/आईटीईएस फर्मों ने 2023 में लगभग 20,000 तकनीकी पेशेवरों को नौकरी से निकाल दिया.

एआईटीईयू के महासचिव सौभिक भट्टाचार्य कहते हैं कि यह संख्या बहुत कम है. ऐसा इसलिए क्योंकि आईटी/आईटीईएस फर्म श्रम विभाग को छंटनी की सूचना देने से बचने के लिए अक्सर कर्मचारियों से अपनी मर्जी से इस्तीफा देने या बर्खास्तगी का सामना करने के लिए कहती हैं. विकल्पों की कमी की वजह से ज्यादातर कर्मचारी भविष्य की नौकरी की संभावनाओं की रक्षा के लिए स्वैच्छिक इस्तीफा देने का विकल्प चुनने को मजबूर होते हैं. जो लोग बेहतर संभावनाओं की उम्मीद में नौकरी छोड़ते हैं, वे भी अक्सर खुद को मुश्किल में पाते हैं.

एआई-आधारित भर्ती प्लेटफॉर्म हायरप्रो के सीओओ पशुपति शंकरन कहते हैं, ''शीर्ष प्रतिभाओं की भर्ती 20-30 फीसद कम हुई है और नियमित कॉलेजों के छात्रों के लिए यह और भी खराब, 40 फीसद है.'' मध्यम स्तर के कॉलेजों और प्रबंधन स्कूलों के लिए, जहां कंपनियां आमतौर पर 25,000-30,000 तक थोक भर्ती करती हैं, अब यह संख्या घटकर लगभग 10,000 रह गई है.

भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद (आईआईएम-ए) में रणनीति के प्रोफेसर अमित कर्ण का कहना है कि हालांकि उन्होंने अपने छात्रों के लिए 100 फीसद प्लेसमेंट का इंतजाम किया लेकिन नौकरी के ऑफर की संख्या 10-20 फीसद तक कम हो गई. वे बताते हैं, ''छात्रों को नौकरी के उतने अलग-अलग ऑफर नहीं मिले होंगे, जितने उनके सीनियर्स को कुछ साल पहले मिलते थे.'' उन्होंने यह भी कहा कि प्लेसमेंट के मामले में नए आइआइएम और भी बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं.

अपनी ही आकांक्षाओं के शिकार

रिक्रूटर आईआईटी के छात्रों में 'बेरोजगारी' का कारण उनकी भारी अपेक्षाओं को मानते हैं. वे अक्सर कंपनी के ब्रांड से समझौता करने या कम वेतन वाली नौकरियों के लिए तैयार नहीं होते. नाम न बताने की शर्त पर दिल्ली स्थित एक आईआईटी छात्र ने कहा, ''मुझे एक वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी से नौकरी का ऑफर मिला, लेकिन वेतन कम था. मैं कम पैकेज का बेंचमार्क बनने के बजाए बाजार में सुधार का इंतजार करना पसंद करूंगा.''

पांच साल पुराने एक टेक स्टार्ट-अप के संस्थापक बताते हैं कि उन्होंने प्रोडक्ट मैनेजमेंट, सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, डेवऑप्स इंजीनियर और बिजनेस डेवलपमेंट में नौकरी के प्रस्ताव के साथ अंतिम वर्ष के कुछ आईआईटी छात्रों से संपर्क किया था. ''ताज्जुब है कि छात्रों ने जॉइन करने में खास दिलचस्पी नहीं दिखाई. वे बड़े ब्रांडों और उन मोटे वेतन पैकेजों पर अड़े हुए थे जो मंदी के साल में असंभव लगते हैं.''

फिर आईआईटी के भीतर की अपनी हायरार्की है. इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग में विशेषज्ञता रखने वाले छात्रों को शीर्ष प्रतिभा वाला माना जाता है और उन्हें ग्लोबल टेक्नोलॉजी फर्मों या माइक्रोसॉफ्ट और गोल्डमैन सैक्स जैसे निवेश बैंकों में काम मिल जाता है.

मैकेनिकल, टेक्सटाइल और सिविल इंजीनियरिंग के छात्र अक्सर स्ट्रीम बदल लेते हैं और ग्लोबल कंसल्टिंग फर्मों या एफएमसीजी/रिटेल ब्रांड्स में चले जाते हैं. शंकरन कहते हैं, ''यह स्थिति नौकरी के बाजार में असंतुलन को उजागर करती है, विशेष रूप से सिविल, बायोटेक, प्रोडक्शन इंजीनियरिंग जैसी गैर-क्रीम शाखाओं को प्रभावित करती है, जहां स्नातक अपनी विशेषज्ञता में आकर्षक वेतन के कारण अपने मुख्य क्षेत्रों में नौकरी नहीं करते.''

कहीं बड़ा मसला

देश के डायनेमिक मार्केट और पीएलआई (परफॉर्मेंस-लिंक्ड इनसेंटिव) तथा घरेलू मांग से सीधे जुड़े क्षेत्रों में ग्रोथ की बदौलत शीर्ष-स्तरीय प्रतिभाओं के लिए मंदी अंतत: दूर हो सकती है. लेकिन 4.65 करोड़ कार्यबल के लिए व्यापक बेरोजगारी अब भी एक चुनौती है. पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे 2022-2023 के मुताबिक, देश में केवल 21 फीसद श्रमिक नियमित नौकरियों में लगे हुए हैं, बाकी या तो स्वरोजगार (57 फीसद) हैं या खुदरा/दिहाड़ी (22 फीसद) में लगे हुए हैं.

सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट के प्रोग्राम हेड डॉ. संजीव फणसलकर ने एक्सेस डेवलपमेंट की 'इंडिया'ज लाइवलीहुड्स रिपोर्ट 2023' में लिखा है, ''बाकी लोगों को सार्थक आजीविका प्रदान करने की चुनौती बहुत बड़ी है.'' फिच समूह की कंपनी इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के वरिष्ठ निदेशक सुनील कुमार सिन्हा कहते हैं, ''योजना आयोग के भंग होने के बाद से निजी क्षेत्र में सृजित नौकरियों या मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में लेबर एलास्टिसिटी पर कोई डेटा नहीं है.''

समाधान क्या है? टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के फ्लेचर स्कूल में ग्लोबल बिजनेस के डीन भास्कर चक्रवर्ती का सुझाव है कि भारत में निजी क्षेत्र की नौकरियों में वृद्धि बुनियादी ढांचे, जीसीसी, स्टार्ट-अप और अक्षय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों से लाई जा सकती है. बकौल चक्रवर्ती, ''दुनिया के वर्कफोर्स को काम पर लगाने का सबसे अहम तरीका मैन्युफैक्चरिंग है. पर भारत इस खेल में पीछे है. अधिकांश मैन्युफैक्चरिंग चीन, मेक्सिको और बांग्लादेश में होता है. देखना है क्या एपल और माइक्रॉन जैसी कंपनियों के आने से चीन प्लस वन रणनीति के तहत अन्य अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भारत की ओर आकर्षित होती हैं.'' देश युवा आबादी के फायदे को जाया नहीं कर सकता.

Read more!